साहित्य

#दिल_पे_मरने_वाले_मरेंगे_भिखारी….By-मनस्वी अपर्णा

मनस्वी अपर्णा
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#दिल_पे_मरने_वाले_मरेंगे_भिखारी
कल “बारहवीं फेल” फिल्म देखी वाकई अच्छी फिल्म है, लेकिन कुछ दृश्यों और उनके अभिनेताओं ने कई मायनों में इस फ़िल्म को एक ख़ास ऊंचाई दी है…. फिल्म के तीन दृश्यों में मेरे लाख रोके से भी आंसू रुक नहीं पाए, ऐसा अक्सर होता है ऐसे कई गीत हैं जिनके बोल और उन स्वरों के आरोह अवरोह की सटीकता मेरे रोंगटे खड़े कर देती है, फिल्मों के कई दृश्य मेरे कंठ को अवरूद्ध कर आंसुओ को बहा देते हैं। मुझे फिल्म देखने का सलीका मेरे बाबा ने सिखाया है मैं बहुत छोटी थी तब ही वो मुझे फिल्मों की उन बारीकियों के बारे में बताया करते थे जिनसे किसी भी डायरेक्टर के vision और एक्टर के हुनर को समझा जा सकता है, तबसे अब तक ऐसी अनेक फिल्में हैं जिनके किरदार, दृश्य और विषयवस्तु मेरी पसंद की फेहरिस्त में शामिल हैं, ऐसे कई कमाल के एक्टर्स हैं जिन्हें पात्र विशेष से अलग कर पाना नामुमकिन है, और मैं समझती हूं किसी भी अभिनेता की यही सबसे बड़ी काबिलियत होनी चाहिए कि वह अदा किए जा रहे क़िरदार में घुल जाए…. अगर फिल्म देखते वक्त आपको यह खयाल बना रहे कि आप किसी किरदार को नहीं बल्कि फलां फलां फिल्म स्टार को देख रहे हैं तो इसे एक्टिंग कहना कतई वाजिब नहीं होगा।

बहरहाल बारहवीं फेल एक ऐसे आईपीएस अफसर के संघर्ष की कहानी जिसने जीवन के हर कठिनतम दौर को देखा और जिया है। फिल्म के उन तमाम दृश्यों से हर वो व्यक्ति सीधे तौर पर कनेक्ट कर सकता है जिसने बेहद गरीब हालात में व्यक्तिगत मूल्यों को बचाकर रखा है उनसे समझौता नहीं किया, बदले में बेशक वह ताउम्र गरीबी और तंगहाली में क्यूं न जिया हो। जीवन प्रतिक्षण चुनाव है और विपदा में यह चुनाव और भी कठिन हो जाता है फिल्म का अंतिम दृश्य इस बात को बिलकुल साफ़ साफ़ रेखांकित करता है कि आप मूल्य और सुविधा में से क्या चुनते हैं, और यही चुनाव आपके व्यक्तित्व को बनाता है मूल्यों का चुनाव आपको मूल्यवान बनाएगा और सुविधाओं का चुनाव आपको सुविधावान बनाएगा.. बस ये आपके अंतस की बात है कि आपका मन, विचार और बुध्दि किस ओर झुकते हैं। ऐसी कई कहानियां उन युवाओं की भी ज़रूर होंगी जो इन प्रतियोगी परीक्षाओं में किसी भी level पर चयनित होने से चूक गए होगें, लेकिन फसाने को रंगीन बनाने लायक सियाही सिर्फ़ उन्हीं को हासिल होती है जो कोई मुक़ाम हासिल कर लेते हैं वरना ऐसी हज़ार दास्तानें रोज़ वक़्त की गर्द में समाती रहती है।

मैंने अपने अब तक के जीवन में ऐसे बहुत ही कम लोग देखें हैं जो धन, शक्ति और सम्मान के आतुर न हो, हर दूसरा व्यक्ति किसी न किसी स्तर पर इसी खेल में उलझा है उसूलों से समझौतों को नीति का नाम देकर खुश है, मैंने मूल्यों के प्रति आसक्त व्यक्ति न के बराबर देखे हैं…. इसलिए मैंने यह भी देखा है कि अक्सर वो लोग जो अपनें जीवन मूल्यों की कद्र करते हैं, अपने वचन के प्रतिबद्ध होते हैं, ईमान के लिए निष्ठावान होते हैं उनकी approach दुनियादार लोगों को समझ में नहीं आती, ऐसे लोग impractical मानें जाते हैं सीधी भाषा में कहें तो पहले दर्जे के बेवकूफ़… दुनिया चलती चीज़ों को सलाम करती है, रुकी हुई चीज़ें, ठहरे हुए लोग अक्सर ठोकरों का शिकार होते हैं। ऐसे में मुझे फिर शैलेन्द्र याद आते हैं जो इन जैसे लोगों की आवाज़ हैं जो कहते हैं और क्या ही ख़ूब कहते हैं….

दिल का चमन उजड़ते देखा
प्यार का रंग उतरते देखा
हमने हर जीने वाले को
धन दौलत पर मरते देखा
दिल पे मरने वाले मरेंगे भिखारी

अंततः यह कहना अनुचित होगा कि इन दोनों प्रकार के लोगों में कोई अच्छे बुरे का भेद है या कोई hierarchy है बस यह चुनाव का मामला है और आपका चुनाव आपकी पंक्ति तय करेगा कि आप कहां खड़े होइएगा और आपके जीवन में क्या होगा और क्या नहीं होगा।

ऐसा मुझे मेरे मतानुसार लगता है।

मनस्वी अपर्णा