नई दिल्ली: राजनीति में साफ सुथरी छवि का होना बहुत ज़रूरी होता है लेकिन इसका जनता पर कोई असर नही पड़ता है,इसी कारण से आजतक कोई बाहुबली नेता चुनाव नही हारा है,और ना किसी अपराधी का टिकट कटता हुआ नजर आया है।
कुछ लोगों ने दागी नेताओं को चुनाव लड़ने से रोकने की याचिका दर्ज करी थी जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासक फैसला सुनाया है,प्राप्त जानकारी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दागी विधायक, सांसद और नेता आरोप तय होने के बाद भी चुनाव सड़ सकेंगे।
सुप्रीम कोर्ट में माँग की गई थी कि गंभीर अपराधों में जिसमें सजा 5 साल से ज्यादा हो और अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ आरोप तय होते हैं तो उसके चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए।
दागी नेताओं के खिलाफ दायर की याचिका पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि किसी भी नेता के खिलाफ चार्टशीट के आधार पर कार्रवाई नहीं की जा सकती है. कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए चुनाव आयोग को निर्देश दिए हैं कि वह राजनेताओं को आपराधिक डाला अपनी वेबसाइट पर डालें, जिससे इस बात की जानकारी प्राप्त की जा सके कि एक नेता कितने अपराध कर चुका है।
कोर्ट ने जारी की गाइडलाइन
1. हर पार्टी के चुनावी उम्मीदवार को अपने आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी देनी होगी.
2. राजनीतिक पार्टियों को नेताओं के अपराध की जानकारी वेबसाइट पर डालनी होगी.
3. सरकार कानून बनाए ताकि आपराधिक रिकॉर्ड के लोगों की राजनिति में एंट्री रोकी जा सके।
संसद पर सौंपी कानून बनाने की जिम्मेदारी
राजनीति के आपराधिकरण को खतरनाक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संसद को इसके लिए कानून बनाने की जिम्मेदारी सौंपी है. कोर्ट ने कहा कि राजनीति में पारदर्शिता बड़ी चीज है, ऐसे में राजनेताओं को अपराध में संलिप्त होने से बचना चाहिए।
पिछली सुनवाई में चुनाव आयोग ने इस मांग का समर्थन करते हुए कहा था कि हम 1997 में और लॉ कमीशन 1999 में जनप्रतिनिधित्व कानून में बदलाव की सिफारिश कर चुके हैं.लेकिन सरकार बदलाव नहीं करना चाहती.इससे पहले पांच जजों की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या चुनाव आयोग को ये शक्ति दी जा सकती है कि वो आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार को चुनाव में उतारें तो उसे चुनाव चिन्ह देने से इनकार कर दे? केंद्र सरकार ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि ये चुने हुए प्रतिनिधि ही तय कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि हम अपने आदेश में ये जोड़ सकते हैं कि अगर अपराधियों को चुनाव में प्रत्याशी बनाया गया तो उसे चुनाव चिन्ह ना जारी करें. केंद्र सरकार ने कहा था कि अगर ऐसा किया गया तो राजनीतिक दलों में विरोधी एक-दूसरे पर आपराधिक केस करेंगे. संविधान पीठ ने कहा कि कोर्ट संसद के क्षेत्राधिकार में नहीं जा रहा. जब तक संसद कानून नहीं बनाती तब तक हम चुनाव आयोग को आदेश देंगे कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को चुनाव चिह्न ना दे. कोर्ट ने कहा था कि पार्टी को मान्यता देते वक्त चुनाव आयोग कहता है कि पार्टी को कितने वोट लेने होंगे।
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ उस याचिका पर सुनवाई चल रही थी, जिसमें मांग की गई है कि गंभीर अपराधों में जिसमें सज़ा 5 साल से ज्यादा हो और अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ आरोप तय होते हैं तो उसके चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए.मार्च 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को विचार के लिए भेजा था. इस मामले में अश्विनी कुमार उपाध्याय के अलावा पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह और एक अन्य एनजीओ की याचिकाएं भी लंबित हैं।