साहित्य

#दाग़_अच्छे_हैं….कमियों को भरने की यह प्रक्रिया हमारे दुख का कारण है!

मनस्वी अपर्णा
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#दाग़_अच्छे_हैं
मेरे एक पुराने मित्र हैं जो एक आईएएस अधिकारी हैं… उनके साथ मेरी मैत्री बिलकुल ही अप्रासंगिक सी है क्यूंकि हमारा background बिल्कुल जुदा है, फिर भी मित्रता है…. उन से अक्सर मैंने ज्योतिष physics और human anatomy पर काफी चर्चाएं की हैं, ज़ाहिरा तौर पर उनके पास किसी भी विषय की एक above than general approach है और उनकी वजह से मुझे science की विद्यार्थी न होते हुए भी काफ़ी कुछ बहुत गहराई से समझने को मिला है, वो अक्सर कहते हैं कि मैं कोई ऐसा महकमा चाहता हूं जो बिल्कुल loop line में हो ताकि मुझे ज़्यादा से ज़्यादा समय सोचने के लिए मिले….. एक समय में मैं उनके इस वक्तव्य पर चौंका करती थी लेकिन अब पिछले कुछ दिनों से मैं भी तकरीबन वैसा ही कुछ कर रही हूं, तो मुझे उनकी बात का मर्म ज़्यादा बेहतर ढंग से समझ आ रहा है, इन दिनों मैं भरपूर सोच रही हूं…. जब मैं कहती हूं कि मैं सोच रही हूं तब अक्सर समझने में यह भ्रांति हो सकती है कि मैं विचारों में गुम हूॅं, लेकिन हकीकत यह है कि मैं चिंतन की प्रक्रिया में हूॅं और मुझे अपने आप के साथ रहकर चिंतना में रहना अच्छा लगता है और कई बार इस मानसिक गोताखोरी में कुछ ऐसे नतीजे भी निकल आते हैं जो काफ़ी उपयोगी होते हैं।

हालिया मैं जिस नतीजे पर पहुंची हूॅं उसकी चर्चा आपसे आज करती हूॅं…. तो मैंने अपनी समझ से यह पाया है कि हमारे रोज़ के दुनियादारी वाले यानि सांसारिक जीवन के लिए “कमियाॅं ” बहुत अहमियत रखती हैं, क्यूं???इसे ठीक से समझते हैं …हम सबकी चाह होती है परिपूर्णता की ,हम ख़ुद से और अपने आस पास के हर व्यक्ति से, वस्तु से, परिस्थिति से बिलकुल perfect होने की उम्मीद रखते हैं, सही मायनों में यह एक गैर वाजिब मांग है क्यूंकि absolute perfect जैसा कुछ होता ही नहीं है, हो नहीं सकता क्यूंकि हम सब human creatures हैं और हम में कम या ज़्यादा मात्रा में कामियाॅं होना बिल्कुल स्वाभाविक है। फिर भी हम चाहते हैं कि हमारे जीवन में जो कोई भी कमी हो वो किसी न किसी तरह पूरी हो जाए और हम इस पूर्णता को हासिल करने के लिए अपनी क्षमता के हिसाब प्रयत्न करते जाते हैं।

हमको लगता है कि कमियों को भरने की यह प्रक्रिया हमारे दुख का कारण है, ये न हो तो हम कितने शांत और स्थिर होंगे पर मज़े की बात यह है कि ये कामियाँ ही दरअस्ल हमको आगे और आगे बढ़ने की प्रेरणा देती रहती हैं, कभी ज्ञात रुप से कभी अज्ञात रुप से….99 के फेर में उलझे रहना बुरा माना जाता है लेकिन आपको मानना पड़ेगा कि आपको जिजीविषा इसी 99 के फेर से ही मिलती है, अगर यह लक्ष्य न हो सामने तो आपका अकर्मण्यता और अवसाद की स्थिति में आना सुनिश्चित है। अमीर लोगों के गहरे अवसाद में जाने के पीछे यही कारण है उन्होंने धन से हर उस कमी को पूरा कर लिया होता है जिसकी वजह से जीवन को कोई चुनौती मिल रही होती है लेकिन नतीजा यह होता है कि बजाय पूर्ण होने के जीवन रीता हो जाता है, जिसको किसी भी तरह भरा नहीं जा सकता।

अगर आप किसी आध्यात्मिक यात्रा पर नहीं निकले हैं तो जीवन की कमियों को, जीवन की चुनौतियों को खुश होकर गले लगाइए क्यूंकि इन्हीं की बदौलत आपके पास कोई उद्देश्य होता है, आशा होती है, संघर्ष की कोई वजह होती है और यह सब आपको ज़िंदा रखने में बड़ा कारगर होता है, दाग़ अच्छे होतें हैं क्यूंकि ये आपको सफ़ाई की चुनौती देते हैं, यूं भी अपूर्ण का जो सौंदर्य होता है उसकी बात ही अलग होती है, चेहरे पर तिल किन्हीं कोशिकाओं के असंगत वितरण के कारण बनते हैं लेकिन खूबसूरत माने जाते हैं, गालों पर बनते डिंपल दरअस्ल कुछ मांस पेशियों की कमी की वजह से बनते हैं लेकिन इन्हें भी सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है। बस “कमियां” भी जीवन में यही महत्व रखती हैं उनके होने से जैसे आगे बढ़ने की राह साफ़ होती जाती है, अगर आप शून्य में रुक जाने के अभिलाषी यात्री नहीं है तो कमियों का दिल से स्वागत कीजिए आप नहीं जानते कि इनका आपके जीवन को चलाए रखने में प्रच्छन्न किंतु बड़ा योगदान है।
ऐसा मुझे मेरे मतानुसार लगता है।
मनस्वी अपर्णा