साहित्य

दर्द लिखना चाहती हूं तो अल्फ़ाज़ मर जाते हैं….by-kiransingh

अयोध्या की किरन

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दर्द लिखना चाहती हूं तो अल्फ़ाज़ मर जाते हैं।
कलम ही नहीं चलती तो कागज बिखर जाते हैं।
शब्दों का कसूर ही क्या जो वही गुनहगार हुआ।
जिसका इंतजार था मतलब वही इंतजार हुआ।
निगाहें बदल जाती हैं मगर तस्वीर नहीं बदलती।
किस्मत बदल गई है मगर तकदीर नहीं बदलती।
मेरी इतनी भी लाचारी नहीं कि मुस्कान खो जाऊं।
दिल में बहुत कुछ है जो वही अरमान खो जाऊं।
गिरगिट भी कितने रंग बदलता है ये जानती हूं मै।
चांद की उपमा में भी दाग लगा है ये मानती हूं मै।
गजल , गीत क्या लिखूं जब कभी गाना न आया।
जैसे भी लिख लेती हूं वैसे कभी सुनाना न आया।
लोग डराते हैं कि हम डरकर श्रृंगार करना छोड़ दें।
जिस रास्ते पर चल रही हूं अपना रास्ता ही मोड़ दें।
गांव के आंगन की दीवारों से जुड़ा है दिल का तार।
सभी को मालूम है कि सर्दी हो रही बड़ी जोरदार ।
शाम ढलते ही सभी घरों के दरवाजे बंद हो जाते हैं।
सर्दी न लगने के बहुत सारे सस्ते प्रबंध हो जाते हैं।
मछलियों को जाल फेंककर खबरदार किया जाता।
जल्दी मरना है तुम्हें इतना समझदार किया जाता।
समंदर से नदियां मिलती तो साकी मिलते हजार।
मदिरालय में भी पत्थर पिघल जाने को रहते तैयार।
चार दिन की चांदनी पर बहुत सारे विचार किए गए।
धरा रोशनी से जगमग रहे कितने जुगाड़ किए गए।
विज्ञान में खोज हुई कंप्यूटर का आविष्कार हुआ।
चांद पर पहुंचा चंद्रयान फिर भी मनुष्य तो हार गया।
मौत आखिरी सच है फिर होता पुनर्जन्म उपसंहार।
जीत न पाया इसे कोई चाहे जितना हुआ खबरदार।
भरम में न रहना कोई कि मेरा अब यहीं ठिकाना है।
विधि का विधान है जो भी आया उसको ही जाना है।
फिर कुछ ऐसा सोचो कि एक कहानी रचकर जायेंगे।
मरने पर भी दुनिया याद करे नाम अमर कर जायेगें।
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