धर्म

तौहीद और शिर्क : सूरए साफ़्फ़ात आयतें 31-38 : पार्ट-30

सूरए साफ़्फ़ात आयतें 31-38

فَحَقَّ عَلَيْنَا قَوْلُ رَبِّنَا إِنَّا لَذَائِقُونَ (31) فَأَغْوَيْنَاكُمْ إِنَّا كُنَّا غَاوِينَ (32) فَإِنَّهُمْ يَوْمَئِذٍ فِي الْعَذَابِ مُشْتَرِكُونَ (33)

आख़िरकार हम अपने पालनहार के इस आदेश के पात्र बन गए कि निश्चय ही हम दंड का मज़ा चखने वाले हैं। (37:31) तो (हां) हमने तुम्हें बहकाया, कि निश्चय ही हम ख़ुद भी बहके हुए थे। (37:32) इस तरह वे सब उस दिन (ईश्वरीय) दंड में एक-दूसरे के सहभागी होंगे। (37:33)

पिछले कार्यक्रम में हमने बताया कि गुमराह होने वाले लोग प्रलय के दिन अपने पापों को कुफ़्र का प्रचार करने वालों और समाज के गुमराह नेताओं पर डालने की किशश करेंगे और कहेंगे कि उन्होंने हमें गुमराह किया है लेकिन वे जवाब में कहेंगे कि तुम लोग ख़ुद ही गुमराही के चक्कर में थे और अपनी उद्दंडता और सत्य के विरोध के कारण हमारे पीछे चल पड़े। हमने तुम्हें ज़बरदस्ती और शक्ति के बल पर गुमराह नहीं किया था। हम तो ख़ुद गुमराह थे ही और हमने तुम्हें भी, जो हमारे पीछे पीछे चल पड़े थे, गुमराह कर दिया।

ये आयतें कहती हैं कि गुमराह करने वाले और गुमराह होने वाले इस नतीजे पर पहुंचेंगे कि इस प्रकार के विवाद और बातचीत का प्रलय में कोई फ़ायदा नहीं है क्योंकि उनके दंड के बारे में ईश्वरीय आदेश आ चुका है और जल्द ही वे दंड का स्वाद चखेंगे। इस ईश्वरीय दंड में वे सभी सहभागी हैं और उनका ठिकाना नरक है। अलबत्ता स्वाभाविक है कि नरक में वे अलग-अलग स्थान पर रहेंगे। हर किसी को उसके पाप और दूसरों की गुमराही में उस पाप के प्रभाव के अनुसार दंड मिलेगा और पापों का दंड एकसमान नहीं होगा।

इन आयतों से हमने सीखा कि प्रलय में पापी, दंड के उस वादे को मान लेंगे जिसकी घोषणा पैग़म्बर दुनिया में करते थे, लेकिन उनके इस मानने से उन्हें कोई फ़ायदा नहीं होगा।

गुमराह लोगों के साथ रहने से इंसान की गुमराही का रास्ता समतल होता है और उनका साथ देने के कारण इंसान नरक में पहुंच जाता है।

बुरे लोगों को समाज के नेताओं के रूप में स्वीकार करना और उनका अनुसरण करना, अत्याचारियों व गुमराहों की मज़बूती का कारण बनता है और इसके परिणाम में लोग, उनके दंड में भागीदार बन जाते हैं।

आइये अब सूरए साफ़्फ़ात की आयत नंबर 34 और 35 की तिलावत सुनें।

إِنَّا كَذَلِكَ نَفْعَلُ بِالْمُجْرِمِينَ (34) إِنَّهُمْ كَانُوا إِذَا قِيلَ لَهُمْ لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ يَسْتَكْبِرُونَ (35)

(हां) हम अपराधियों के साथ ऐसा ही किया करते हैं। (37:34) ये वे लोग थे कि जब इनसे कहा जाता कि ईश्वर के अलावा कोई पूज्य नहीं है तो ये घमंड में आ जाते थे। (37:35)

ये आयतें पापियों व अपराधियों के संबंध में ईश्वर के व्यवहार की तरफ़ इशारा करते हुए कहती हैं कि जब ईश्वर के पैग़म्बर, लोगों को एकेश्वरवाद और अनन्य ईश्वर की उपासना का निमंत्रण देते थे, तो उनमें से कुछ घमंड दिखाते थे और उनकी बातें सुनने या उनके बारे में विचार करने के लिए तैयार नहीं होते थे। इस तरह के लोग, द्वेष व हठधर्म के कारण, कुफ़्र व अनेकेश्वरवाद का रास्ता अपनाते हैं और प्रलय में उन्हें कड़ा दंड दिया जाएगा।

सत्य के मुक़ाबले में यह घमंड और हठधर्म, कभी कभी अपने आपको श्रेष्ठ समझने और धन, पद, ख्याति और स्थान की वजह से होता है और कभी कभी अपने पूर्वजों या समाज के नेताओं के अंधे अनुसरण और उनके विचारों व आस्थाओं पर आंख बंद करके विश्वास करने की वजह से भी होता है। दोनों स्थितियों में यह सत्य को सुनने और उसे मानने की राह में एक बड़ी रुकावट है।

सत्य के मुक़ाबले में घमंड इंसान को उस जगह तक पहुंचा देता है कि घमंडी व्यक्ति न केवल सत्य का इन्कार करता है बल्कि सत्य कहने वाले को हीन समझ कर उसका मज़ाक़ भी उड़ाता है और उस पर ग़लत आरोप भी लगाता है।

इन आयतों से हमने सीखा कि ईश्वर के वादे, लोक-परलोक में ज़रूर पूरे होंगे और उनकी कभी भी वादा ख़िलाफ़ी नहीं होगी।

पाप, अपराध और गुमराही की जड़, एकेश्वरवाद और सत्य के मुक़ाबले में घमंड है।

पैग़म्बर, लोगों को अपनी तरफ़ नहीं बल्कि अनन्य ईश्वर की ओर बुलाते थे। वे इस निमंत्रण में अपने लिए कोई हित या फ़ायदा दृष्टिगत नहीं रखते थे लेकिन इसके बावजूद हमेशा लोग उन पर आरोप लगाते थे और उन्हें यातनाएं देते थे।

आइये सूरए साफ़्फ़ात की आयत नंबर 36, 37 और 38 की तिलावत सुनें।

وَيَقُولُونَ أَئِنَّا لَتَارِكُوا آَلِهَتِنَا لِشَاعِرٍ مَجْنُونٍ (36) بَلْ جَاءَ بِالْحَقِّ وَصَدَّقَ الْمُرْسَلِينَ (37) إِنَّكُمْ لَذَائِقُو الْعَذَابِ الْأَلِيمِ (38)

और (अनेकेश्वरवादी) कहते थे कि क्या हम एक पागल शायर के लिए अपने ख़ुदाओं को छोड़ दें? (37:36) (बिलकुल ऐसा नहीं है) बल्कि वह तो सत्य लेकर आया है और उसने (पिछले) पैग़म्बरों की पुष्टि की है। (37:37) निश्चय ही तुम अत्यंत पीड़ादायक दंड का मज़ा चखने वाले हो। (37:38)

ये आयतें, पैग़म्बरों के निमंत्रणों को ठुकराने के संबंध में अनेकेश्वरवादियों के तर्क का उल्लेख करते हुए कहती हैं कि वे पैग़म्बरों पर आरोप लगाते थे कि उनकी बातें शायरों की तरह, ठोस सोच तर्क पर नहीं बल्कि विचारों व कल्पनाओं पर आधारित हैं। इसके अलावा वे कहते थे कि पैग़म्बर ने जिन्नों के प्रभाव में शेर-शायरी सीखी है और उनका अपना कोई विचार नहीं है। इतिहास में आया है कि अरब के लोगों का मानना था कि शायर, जिन्नों से संपर्क के माध्यम से शेर की कला सीखते हैं और इसी लिए वे इतने सुंदर शेर कह सकते हैं।

इन आयतों से हमने सीखा कि ग़लत व अंधविश्वासी विचारों व आस्थाओं पर हठधर्म, सत्य को स्वीकार करने की राह में रुकावट है।

आरोप व अनादर, पैग़म्बरों के निमंत्रण को फैलने से रोकने के लिए इन्कार करने वालों के हथकंडों में शामिल है।

सभी पैग़म्बरों की शिक्षाओं की दिशा एक ही है। उन सभी ने लोगों को एकेश्वरवाद और अनन्य ईश्वर की उपासना का निमंत्रण दिया है।