धर्म

तौहीद और शिर्क : क्या ईश्वर के सिवा कोई और रचयिता है, जो तुम्हें आकाश और धरती से रोज़ी देता हो? : पार्ट-28

بَلْ عَجِبْتَ وَيَسْخَرُونَ (12) وَإِذَا ذُكِّرُوا لَا يَذْكُرُونَ (13) وَإِذَا رَأَوْا آَيَةً يَسْتَسْخِرُونَ (14) وَقَالُوا إِنْ هَذَا إِلَّا سِحْرٌ مُبِينٌ (15)

बल्कि आप (उनके द्वारा प्रलय के इन्कार पर) आश्चर्य में हैं और वे (उसका) परिहास (भी) कर रहे हैं। (37:12) और जब भी उन्हें समझाया जाता है, तो वे समझते ही नहीं हैं। (37:13) और जब वे कोई (ईश्वरीय) निशानी देखते हैं तो उसका मज़ाक़ उड़ाते हैं। (37:14) और कहते हैं कि यह तो एक खुले हुए जादू के अलावा कुछ नहीं है। (37:15)

पिछले कार्यक्रम में हमने कहा कि काफ़िर, प्रलय का इन्कार करते हैं। ये आयतें पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम को संबोधित करते हुए कहती हैं कि वे न केवल यह कि प्रलय का इन्कार करते हैं बल्कि उसका मज़ाक़ भी उड़ाते हैं और इसके ज़रिए आपका भी परिहास करते हैं। आपको, जो प्रलय पर पूरा विश्वास रखते हैं, उनके द्वारा प्रलय के इन्कार व परिहास पर आश्चर्य होता है कि वे किस तरह, उस चीज़ का अकारण इन्कार कर सकते हैं जिसके बारे में वे नहीं जानते। काश वे कम से कम चुप रहते या यह कहते कि हमें नहीं पता कि प्रलय आएगा या नहीं?

आगे चल कर आयतें कहती हैं कि उनके इस इन्कार का कारण अज्ञान नहीं बल्कि द्वेष और हठधर्म है। इसी लिए जब भी यह विषय पेश किया जाता है तो वे इसे सुनने और इस पर ध्यान देने के लिए तैयार नहीं होते। इसके अलावा अगर वे कोई ईश्वरीय चमत्कार भी देख लेते हैं तो उसे मानने के लिए तैयार नहीं होते बल्कि दूसरों को भी ईश्वरीय पैग़म्बर का मज़ाक़ उड़ाने को कहते हैं और उन्हें धोखा देने के लिए कहते हैं कि यह जादू है।

जबकि ईश्वरीय चमत्कार और जादू का अंतर पूरी तरह स्पष्ट है। जादूगर बरसों तक अभ्यास करता है ताकि कोई काम कर सके जबकि ईश्वरीय पैग़म्बर बिना किसी शिक्षा व अभ्यास के केवल ईश्वर के इरादे और उसकी आज्ञा से असाधारण काम करता है जिसे मोजेज़ा या चमत्कार कहा जाता है।

इन आयतों से हमने सीखा कि अगर दिल सत्य को मानने के लिए तैयार न हो तो सबसे अच्छे लोगों की बात भी इंसान पर प्रभाव नहीं डालती।

सत्य के विरोधियों का एक तरीक़ा, मज़ाक़ उड़ाना है और सत्य के समर्थकों व चाहने वालों को इससे डरना नहीं चाहिए और मैदान से नहीं हटना चाहिए।

अनेकेश्वरवादी वास्तव में क़ुरआने मजीद के असाधारण होने को स्वीकार करते थे लेकिन उसे जादू-टोना कहा करते थे।

आइये अब सूरए साफ़्फ़ात की 16वीं से लेकर 18वीं आयतों तक की तिलावत सुनें।

أَئِذَا مِتْنَا وَكُنَّا تُرَابًا وَعِظَامًا أَئِنَّا لَمَبْعُوثُونَ (16) أَوَآَبَاؤُنَا الْأَوَّلُونَ (17) قُلْ نَعَمْ وَأَنْتُمْ دَاخِرُونَ (18)

क्या (यह संभव है कि) जब हम मर चुके होंगे और मिट्टी और (गली हुई) हड्डियाँ बन जाएँ, उस समय फिर हम जीवित करके (दोबारा) उठाए जाएँ? (37:16) और क्या हमारे पहले के (पूर्वज और) बाप-दादा भी उठाए जांएगे? (37:17) कह दीजिए कि हाँ! (तुम सब उठाए जाओगे) ऐसी स्थिति में कि तुम अपमानित (भी) होगे। (37:18)

पिछली आयतों का क्रम जारी रखते हुए क़ुरआने मजीद इन आयतों में पैग़म्बर से प्रलय का इन्कार करने वालों की बातचीत का उल्लेख करता है। रोचक बात यह है कि इन आयतों में भी वे प्रलय के घटित न होने का कोई तर्क पेश नहीं करते और सिर्फ़ आश्चर्य प्रकट करते हैं। इसी लिए वे विश्वास न करने वाले अंदाज़ में पैग़म्बर से पूछते हैं कि क्या यह संभव है कि मरे हुए लोग, जिनके शरीर गल कर मिट्टी बन चुके हैं, प्रलय में दोबारा जीवित हो जाएं? विशेष कर हमारे पूर्वज जो सैकड़ों साल पहले मर चुके हैं और उनका कोई चिन्ह तक बाक़ी नहीं है और अगर उनकी क़ब्र खोदी जाए तो उसमें मिट्टी के अलावा कुछ नहीं मिलेगा।

ये सवाल स्वाभाविक रूप से किसी के भी मन में आ सकते हैं लेकिन ईमान वाले, ईश्वर की असीम शक्ति पर आस्था रखते हैं और जानते हैं कि वह मरे हुए लोगों को पुनः जीवित करने में सक्षम है। वे प्रलय और मरे हुए लोगों के दोबारा ज़िंदा होने के बारे में पैग़म्बरों और आसमानी किताबों की सूचनाओं पर ईमान रखते हैं लेकिन जो लोग ईश्वर और उसके पैग़म्बरों पर ईमान नहीं रखते उनके लिए इस बात को मानना बहुत कठिन है।

इन आयतों से हमने सीखा कि प्रलय का इन्कार करने वालों के पास ठोस तर्क नहीं है और वे तर्क पेश करने के बजाए सिर्फ़ इसे असंभव बताते हैं।

सवालों और शंकाओं का, चाहे उन्हें बुरी नीयत से ही क्यों न पेश किया गया हो, ठोस तरीक़े से और स्पष्ट रूप से जवाब दिया जाना चाहिए।

सत्य के साथ द्वेष व हठधर्म का नतीजा, प्रलय में अपमानित होना है।

आइये अब सूरए साफ़्फ़ात की आयत नंबर 19, 20 और 21 की तिलावत सुनें।

فَإِنَّمَا هِيَ زَجْرَةٌ وَاحِدَةٌ فَإِذَا هُمْ يَنْظُرُونَ (19) وَقَالُوا يَا وَيْلَنَا هَذَا يَوْمُ الدِّينِ (20) هَذَا يَوْمُ الْفَصْلِ الَّذِي كُنْتُمْ بِهِ تُكَذِّبُونَ (21)

निश्चित रूप से वह (तो बस) एक चिंघाड़ होगी। फिर वे सहसा ही (उठ खड़े होंगे और) अपनी आंखों से (वह सब जिसकी ख़बर दी जा रही है) देख रहे होंगे। (37:19) और कहेंगेः हाय हमारा दुर्भाग्य! यह तो (कर्मों के) बदले का दिन है। (37:20) यह वही फ़ैसले का दिन है जिसे तुम झुठलाते रहे हो। (37:21)

पिछली आयतों का क्रम जारी रखते हुए ये आयतें मरे हुए लोगों को ज़िंदा करने में ईश्वर की शक्ति की तरफ़ इशारा करते हुए कहती हैं कि यह मत सोचो कि प्रलय में सभी मरे हुए लोग एकएक करके या गुट गुट करके ज़िंदा होंगे बल्कि एक आसमानी चिंघाड़ से, जो ईश्वरीय इरादे का चिन्ह है, सृष्टि के आरंभ से अंत तक के सारे के सारे लोग मिट्टी से उठ खड़े होंगे और इधर-उधर देखने लगेंगे।

स्वाभाविक है कि जब काफ़िर, सभी लोगों के एक समय में और उस रूप में जीवित होने का दृश्य देखेंगे तो जिस चीज़ का वे दुनिया में इन्कार करते थे, उसे मान लेंगे और कहेंगेः यह वही चीज़ है जिसका हम इन्कार करते थे। हम तो दुर्भागी हो गए, आज हम क्या करें? हमारे साथ कैसा बर्ताव किया जाएगा?

काफ़िरों द्वारा प्रलय को स्वीकार किए जाने के बाद ईश्वरीय फ़रिश्ते उनसे कहेंगे कि आज असत्य से सत्य और काफ़िरों व प्रलय का इन्कार करने वालों से ईमान वालों के अलग होने का दिन है। आज बुरे लोगों से भलों के अलग होने और बंदों के बीच ईश्वर के फ़ैसले का दिन है।

इन आयतों से हमने सीखा कि प्रलय का आना और मरे हुए लोगों का जीवित होना, धीरे-धीरे और क्रमशः नहीं बल्कि सहसा होगा। अनेकेश्वरवादी, प्रलय में भौंचक्के रह जाएंगे और केवल अपने बुरे अंजाम को देखते रहेंगे।

प्रलय अफ़सोस और पछतावे का दिन है। हमें कोशिश करनी चाहिए कि दुनिया में उस राह का चयन करें जिस पर चल कर प्रलय में अफ़सोस न करना पड़े क्योंकि उस दिन अफ़सोस और पछतावे का कोई फ़ायदा नहीं होगा।