धर्म

तौहीद और शिर्क : क्या ईश्वर के सिवा कोई और रचयिता है, जो तुम्हें आकाश और धरती से रोज़ी देता हो? : पार्ट-27

وَحِفْظًا مِنْ كُلِّ شَيْطَانٍ مَارِدٍ (7) لَا يَسَّمَّعُونَ إِلَى الْمَلَإِ الْأَعْلَى وَيُقْذَفُونَ مِنْ كُلِّ جَانِبٍ (8) دُحُورًا وَلَهُمْ عَذَابٌ وَاصِبٌ (9) إِلَّا مَنْ خَطِفَ الْخَطْفَةَ فَأَتْبَعَهُ شِهَابٌ ثَاقِبٌ (10)

और (हमने उसे) हर उद्दंडी शैतान से सुरक्षित कर दिया। (37:7) ये (शैतान) ऊपरी दुनिया (के रहस्यों) की बातें नहीं सुन सकते और हर ओर से मारे हांके जाते हैं। (37:8) ताकि दूर हो जाएं और इनके लिए स्थायी दंड है। (37:9) लेकिन अगर इनमें से कोई कुछ उचक ले तो एक तेज़ शोला उसका पीछा करता है। (37:10)

पिछले कार्यक्रम में हमने बताया कि ईश्वर ने सितारों को, आकाश की सजावट बनाया है और ज़मीन पर रहने वाले, आसमान की सजावट से लाभान्वित होते हैं। ये आयतें आसमान के एक अन्य पहलू की तरफ़ जो अलौकिक और ग़ैर भौतिक है, इशारा करती हैं और कहती हैं कि शैतान, आसमान के फ़रिश्तों की विशेष सीमाओं में घुसने की कोशिश करते हैं ताकि चोरी-छिपे उनकी बातें सुन लें और उनके लक्ष्य के विपरीत काम करें।

याद रहे कि धरती वासियों की सूचनाएं व ख़बरें, दूसरी दुनिया के फ़रिश्तों के पास होती हैं और वे उनके बारे में बातें करते हैं। शैतान इस चक्कर में रहते हैं कि उन्हें ईश्वरीय रहस्यों का पता चल जाए लेकिन जब भी वे उन विशेष सीमाओं के क़रीब पहुंचते हैं, उन पर हमला कर दिया जाता है और उन्हें वहां से भगा दिया जाता है।

मानो ये आयतें इंसान को शुभ सूचना देती हैं कि ईश्वर ने जिन्नों में से उद्दंडी लोगों को, जिन्हें हम शैतान कहते हैं, ब्रह्मांड के संचालन व युक्ति के मुख्यालय के क़रीब फटकने, चोरी-छिपे बात सुनने या फ़रिश्तों के काम में हस्तक्षेप की अनुमति नहीं दी है।

आगे चल कर आयतें कहती हैं कि यहां तक कि अगर कुछ शैतान, रुकावटों को पार करके फ़रिश्तों के मुख्यालय के क़रीब पहुंच भी जाएं और कोई ख़बर हथिया भी लें तो तुरंत उनको निशाना बनाया जाता है और वे मारे जाते हैं। इसी तरह की बात सूरए हिज्र की 17वीं और 18वीं और सूरए मुल्क की 5वीं आयत में भी कही गई है।

इन आयतों के विदित रूप के दृष्टिगत क़ुरआने मजीद जिन देखने व महसूस करने योग्य बातों की तरफ़ इशारा करता है या इन आयतों में जो शब्द इस्तेमाल हुए हैं, उनके बारे में पहले काफ़ी चर्चा हो चुकी है क्योंकि इसी तरह की बातें क़ुरआने मजीद की कुछ अन्य आयतों में भी हैं और अधिकतर मुफ़स्सिरों या क़ुरआन के व्याख्याकारों का कहना है कि ईश्वर का तात्पर्य, शब्दों के विदित अर्थ नहीं हैं जो महसूस किए जाने वाली बातों की तरफ़ इशारा करते हैं बल्कि यह एक तरह की उपमा है और इस तरह की उपमाएं क़ुरआने मजीद में अनेक स्थानों पर देखी जा सकती हैं जैसे क़लम, अर्श और कुर्सी इत्यादि।

स्पष्ट है कि इन शब्दों को उनके भौतिक व विदित अर्थों में नहीं लिया जा सकता। इसके अलावा ईश्वर ने एक अन्य स्थान पर कहा हैः हमने जो कुछ नाज़िल किया है, उसका एक भाग, वह उपमाएं हैं जिन्हें ज्ञान वालों के अलावा कोई समझ नहीं सकता।

इन आयतों से हमने सीखा कि दूसरी दुनिया में और फ़रिश्तों के पास कुछ ऐसे राज़ हैं जिन तक पहुंचने और उन्हें उचकने की शैतान कोशिश करते हैं लेकिन ईश्वर ने उन्हें ऐसा नहीं करने देता।

छिप कर दूसरों की बातें सुनना, शैतानी काम है और क़ुरआनी संस्कृति में इसकी निंदा की गई है।

जो लोग, दूसरों के राज़ों को जानने और अपने हितों के लिए उनका पर्दा फ़ाश करने के चक्कर में रहते हैं, उनसे कड़ाई से निपटना चाहिए।

आइये अब सूरए साफ़्फ़ात की 11वीं आयत की तिलावत सुनें।

فَاسْتَفْتِهِمْ أَهُمْ أَشَدُّ خَلْقًا أَمْ مَنْ خَلَقْنَا إِنَّا خَلَقْنَاهُمْ مِنْ طِينٍ لَازِبٍ (11)

तो (हे पैग़म्बर!) अब इनसे पूछिए कि इनकी रचना अधिक कठिन है या उन चीज़ों की जिनकी हमने (आकाशों और धरती में) रचना की है? निश्चय ही हमने इनकी रचना लेसदार मिट्टी से की है। (37:11)

पिछले कार्यक्रम में हमने बताया था कि सूरए साफ़्फ़ात में सृष्टि के आरंभ और प्रलय जैसे आस्था संबंधी विषयों पर बहुत अधिक बल दिया गया है। यह आयत पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम को संबोधित करते हुए कहती हैः प्रलय का इन्कार करने वालों से पूछिए कि किस तरह तुम इंसानों की पुनर्रचना में ईश्वर की शक्ति पर शक और उसका इन्कार करते हो? प्रलय के दिन उनकी दोबारा रचना अधिक कठिन है या इतने बड़े आकाशों की रचना? वे पानी और मिट्टी से बनाए गए हैं चाहे, पहला इंसान हो जो सीधे पानी और मिट्टी के मिश्रण से बनाया गया या बाद के इंसान हों जिनका खाना-पीना पानी और मिट्टी से है। वे सबके सब मौत के बाद, इसी मिट्टी में मिल जाएंगे और समाप्त नहीं होंगे।

आज वैज्ञानिक रूप से यह बात सिद्ध हो चुकी है कि इंसानों की शारीरिक विशेषताएं उनके कण कण में मौजूद होती हैं और हर इंसान का डीएनए, उसकी उंगलियों के निशानों की तरह दूसरों से अलग होता है। इस लिए किसी भी इंसान का एक कण का बाक़ी होना काफ़ी है और ईश्वर प्रलय में उस कण को इसी मिट्टी में परवान चढ़ा कर एक बार फिर उसी इंसान की रचना कर देगा।

सांसारिक व्यवस्था में एक शुक्राणु जो बहुत ही छोटा कण है, मां के गर्भाशय में पलता बढ़ता है और 9 महीने के बाद एक संपूर्ण नवजात दुनिया में आता है। प्रलय में भी धरती में पौधों के उगने की तरह ही, ज़मीन के गर्भाशय में वह छोटा सा कण बढ़ कर एक संपूर्ण इंसान के रूप में बाहर निकलेगा। क्या यह बात असंभव है?

इस आयत से हमने सीखा कि इन्कार करने वालों से सवाल करना, उनकी सोई हुई अंतरात्मा को जगाने का एक रास्ता है। शिक्षा व प्रशिक्षण की व्यवस्था में बहुत से मामलों में बातों को सीधे सीधे बयान करने के बजाए, सवाल और तुलना की शैली से लाभ उठाया जा सकता है।

इंसान के भविष्य और प्रलय में उसे पुनः जीवित करने के बारे में बहुत से संदेह व इन्कार, अतीत में इंसान की रचना को भूल जाने के कारण है।