धर्म

तौहीद और शिर्क : क्या ईश्वर के सिवा कोई और रचयिता है, जो तुम्हें आकाश और धरती से रोज़ी देता हो? : पार्ट-26

وَجَاءَ مِنْ أَقْصَى الْمَدِينَةِ رَجُلٌ يَسْعَى قَالَ يَا قَوْمِ اتَّبِعُوا الْمُرْسَلِينَ (20) اتَّبِعُوا مَنْ لَا يَسْأَلُكُمْ أَجْرًا وَهُمْ مُهْتَدُونَ (21)

और इतने में नगर के दूरवर्ती सिरे से एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया। उसने कहाः हे मेरी जाति के लोगो! पैग़म्बरों का आज्ञापालन करो। (36:20) उनका आज्ञापालन करो जो तुमसे कोई बदला नहीं माँगते और वे सीधे मार्ग पर हैं। (36:21)

وَمَا لِيَ لَا أَعْبُدُ الَّذِي فَطَرَنِي وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ (22) أَأَتَّخِذُ مِنْ دُونِهِ آَلِهَةً إِنْ يُرِدْنِ الرَّحْمَنُ بِضُرٍّ لَا تُغْنِ عَنِّي شَفَاعَتُهُمْ شَيْئًا وَلَا يُنْقِذُونِ (23) إِنِّي إِذًا لَفِي ضَلَالٍ مُبِينٍ (24)

और क्यों न मैं उसकी बन्दगी करूँ जिसने मुझे पैदा किया है और जिसकी ओर तुम सबको पलट कर जाना है? (36:22) क्या मैं उसे छोड़ कर दूसरे पूज्य बना लूँ? हालांकि अगर दयावान (ईश्वर) मुझे कोई नुक़सान पहुँचाना चाहे तो न उनकी सिफ़ारिश मेरे कुछ काम आ सकती और न ही वे मुझे छुड़ा सकते हैं। (36:23) (अगर मैं ऐसा करूं) तो मैं अवश्य ही स्पष्ट गुमराही में पड़ जाऊँगा। (36:24)

إِنِّي آَمَنْتُ بِرَبِّكُمْ فَاسْمَعُونِ (25) قِيلَ ادْخُلِ الْجَنَّةَ قَالَ يَا لَيْتَ قَوْمِي يَعْلَمُونَ (26) بِمَا غَفَرَ لِي رَبِّي وَجَعَلَنِي مِنَ الْمُكْرَمِينَ (27)

(हे लोगो!) मैं तो तुम्हारे पालनहार पर ईमान ले आया, तो अब तुम भी मेरी बात मान लो। (36:25) (अंततः उन लोगों ने उसकी हत्या कर दी और) उससे कहा गयाः मेरे स्वर्ग में प्रवेश करो। उसने कहाः काश! मेरी जाति (के लोगों) को ज्ञात होता (36:26) कि मेरे पालनहार ने मुझे किस चीज़ के चलते क्षमा कर दिया और मुझे प्रतिष्ठित लोगों में शामिल कर दिया। (36:27)

وَمَا أَنْزَلْنَا عَلَى قَوْمِهِ مِنْ بَعْدِهِ مِنْ جُنْدٍ مِنَ السَّمَاءِ وَمَا كُنَّا مُنْزِلِينَ (28) إِنْ كَانَتْ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً فَإِذَا هُمْ خَامِدُونَ (29) يَا حَسْرَةً عَلَى الْعِبَادِ مَا يَأْتِيهِمْ مِنْ رَسُولٍ إِلَّا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ (30)

और उसके बाद उसकी जाति पर हमने आकाश से कोई सेना नहीं उतारी और (उससे पहले भी) हम (सेना) उतारने वाले नहीं थे (कि यह हमारी परंपरा ही नहीं थी) (36:28) वह तो केवल एक भीषण चिंघाड़ थी और फिर अचानक ही वे सब बुझकर रह गए। (36:29) अफ़सोस उन बन्दों पर! जो भी पैग़म्बर उनके पास (मार्गदर्शन के लिए) आया, वे उसका मज़ाक़ ही उड़ाते रहे। (36:30)

أَلَمْ يَرَوْا كَمْ أَهْلَكْنَا قَبْلَهُمْ مِنَ الْقُرُونِ أَنَّهُمْ إِلَيْهِمْ لَا يَرْجِعُونَ (31) وَإِنْ كُلٌّ لَمَّا جَمِيعٌ لَدَيْنَا مُحْضَرُونَ (32)

क्या उन्होंने देखा नहीं कि हम उनसे पहले कितनी ही जातियों को तबाह कर चुके हैं और इसके बाद वे फिर कभी इन (काफ़िरों) की ओर पलट कर नहीं आएंगे? (36:31) और ये सबके सब (प्रलय के दिन) हमारे सामने उपस्थित किए जाएँगे। (36:32)

وَآَيَةٌ لَهُمُ الْأَرْضُ الْمَيْتَةُ أَحْيَيْنَاهَا وَأَخْرَجْنَا مِنْهَا حَبًّا فَمِنْهُ يَأْكُلُونَ (33) وَجَعَلْنَا فِيهَا جَنَّاتٍ مِنْ نَخِيلٍ وَأَعْنَابٍ وَفَجَّرْنَا فِيهَا مِنَ الْعُيُونِ (34) لِيَأْكُلُوا مِنْ ثَمَرِهِ وَمَا عَمِلَتْهُ أَيْدِيهِمْ أَفَلَا يَشْكُرُونَ (35)

और इन लोगों के लिए बेजान धरती में एक निशानी है। हमने उसे जीवन प्रदान किया और उससे अनाज निकाला जिसे ये खाते हैं। (36:33) और हमने इसमें खजूरों और अंगूरों के बाग़ पैदा किए और उसके अंदर सोते प्रवाहित कर दिए। (36:34) ताकि वे उसके फल खाएँ (हालाँकि) यह सब उनके हाथों का बनाया हुआ नहीं है। तो क्या (फिर भी) वे कृतज्ञता नहीं प्रकट करते? (36:35)

سُبْحَانَ الَّذِي خَلَقَ الْأَزْوَاجَ كُلَّهَا مِمَّا تُنْبِتُ الْأَرْضُ وَمِنْ أَنْفُسِهِمْ وَمِمَّا لَا يَعْلَمُونَ (36)

हर प्रकार के दोष से पवित्र है वह हस्ती जिसने हर प्रकार के जोड़े पैदा किए चाहे वे धरती की वनस्पतियों में से हों या स्वयं उनकी अपनी जाति (मानवों) में से हों या फिर उन चीज़ो में से, जिनको ये जानते तक नहीं। (36:36)

وَآَيَةٌ لَهُمُ اللَّيْلُ نَسْلَخُ مِنْهُ النَّهَارَ فَإِذَا هُمْ مُظْلِمُونَ (37) وَالشَّمْسُ تَجْرِي لِمُسْتَقَرٍّ لَهَا ذَلِكَ تَقْدِيرُ الْعَزِيزِ الْعَلِيمِ (38) وَالْقَمَرَ قَدَّرْنَاهُ مَنَازِلَ حَتَّى عَادَ كَالْعُرْجُونِ الْقَدِيمِ (39) لَا الشَّمْسُ يَنْبَغِي لَهَا أَنْ تُدْرِكَ الْقَمَرَ وَلَا اللَّيْلُ سَابِقُ النَّهَارِ وَكُلٌّ فِي فَلَكٍ يَسْبَحُونَ (40)

और उनके लिए एक (दूसरी) निशानी, रात है। हम उस पर से दिन को खींच लेते हैं तो उन पर अँधेरा छा जाता है। (36:37) और सूरज अपने नियत ठिकाने की ओर चला जा रहा है। यह प्रभुत्वशाली और ज्ञानी (ईश्वर) का बाँधा हुआ हिसाब है। (36:38) और रहा चांद, तो उसकी मंज़िलें हमने निर्धारित कर दी हैं, यहाँ तक कि वह उनसे गुज़रता हुआ खजूर की सूखी, अर्ध गोलाकार टहनी की तरह रह जाता है। (36:39) न सूरज के बस में है कि वह चाँद को जा पकड़े और न रात, दिन से आगे बढ़ सकती है। सब एक-एक निर्धारित कक्षा में तैर रहे हैं। (36:40)

وَآَيَةٌ لَهُمْ أَنَّا حَمَلْنَا ذُرِّيَّتَهُمْ فِي الْفُلْكِ الْمَشْحُونِ (41) وَخَلَقْنَا لَهُمْ مِنْ مِثْلِهِ مَا يَرْكَبُونَ (42) وَإِنْ نَشَأْ نُغْرِقْهُمْ فَلَا صَرِيخَ لَهُمْ وَلَا هُمْ يُنْقَذُونَ (43) إِلَّا رَحْمَةً مِنَّا وَمَتَاعًا إِلَى حِينٍ (44)

और इनके लिए एक (अन्य) निशानी यह है कि हमने इनके वंश को भरी हुई नौका में सवार किया (36:41) और फिर इनके लिए वैसी ही नौकाएं और पैदा कीं जिन पर ये सवार होते हैं। (36:42) और अगर हम चाहें तो इन्हें डूबो दें। फिर न तो इनकी फ़रियाद सुनने वाला हो और न इन्हें किसी तरह बचाया जा सके (36:43) सिवाय यह कि एक बार फिर ये हमारी कृपा के पात्र बनें और एक निर्धारित समय तक (जीवन से) लाभान्वित होते रहें। (36:44)

وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ اتَّقُوا مَا بَيْنَ أَيْدِيكُمْ وَمَا خَلْفَكُمْ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ (45) وَمَا تَأْتِيهِمْ مِنْ آَيَةٍ مِنْ آَيَاتِ رَبِّهِمْ إِلَّا كَانُوا عَنْهَا مُعْرِضِينَ (46)

और जब इनसे कहा जाता है कि उस (अंजाम) से डरो जो तुम्हारे आगे आ रहा है और जो तुम्हारे पीछे (गुज़र चुका) है, ताकि शायद तुम पर दया की जाए, (तो ये सुनी अनसुनी कर देते हैं।) (36:45) इनके सामने इनके पालनहार की आयतों में से जो आयत भी आती है, ये उससे मुंह मोड़ने के अलावा कुछ नहीं करते। (36:46)

وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ أَنْفِقُوا مِمَّا رَزَقَكُمُ اللَّهُ قَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِلَّذِينَ آَمَنُوا أَنُطْعِمُ مَنْ لَوْ يَشَاءُ اللَّهُ أَطْعَمَهُ إِنْ أَنْتُمْ إِلَّا فِي ضَلَالٍ مُبِينٍ (47)

और जब इनसे कहा जाता है कि ईश्वर ने जो कुछ रोज़ी तुम्हें दी है उसमें से (कुछ ईश्वर के मार्ग में भी) ख़र्च करो। तो ये लोग, जिन्होंने कुफ़्र अपनाया है, ईमान वालों से कहते हैं कि क्या हम उनको खिलाएँ जिन्हें अगर ईश्वर चाहता तो ख़ुद खिला देता? तुम तो बिलकुल ही बहक गए हो। (36:47)

وَيَقُولُونَ مَتَى هَذَا الْوَعْدُ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ (48) مَا يَنْظُرُونَ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً تَأْخُذُهُمْ وَهُمْ يَخِصِّمُونَ (49) فَلَا يَسْتَطِيعُونَ تَوْصِيَةً وَلَا إِلَى أَهْلِهِمْ يَرْجِعُونَ (50)

और ये लोग कहते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो (बताओ कि) प्रलय का यह वादा कब पूरा होगा? (36:48) ये लोग जिस चीज़ की प्रतीक्षा में हैं वह तो बस एक (बड़े धमाके की) आवाज़ है, जो इन्हें अचानक ही उस समय धर लेगी, जब ये (सांसारिक मामलों में) झगड़ रहे होंगे। (36:49) तो उस समय न तो ये कोई वसीयत कर पाएँगे और न अपने घर वालों की ओर लौट सकेंगे। (36:50)

وَنُفِخَ فِي الصُّورِ فَإِذَا هُمْ مِنَ الْأَجْدَاثِ إِلَى رَبِّهِمْ يَنْسِلُونَ (51) قَالُوا يَا وَيْلَنَا مَنْ بَعَثَنَا مِنْ مَرْقَدِنَا هَذَا مَا وَعَدَ الرَّحْمَنُ وَصَدَقَ الْمُرْسَلُونَ (52) إِنْ كَانَتْ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً فَإِذَا هُمْ جَمِيعٌ لَدَيْنَا مُحْضَرُونَ (53)

और फिर सूर में फूँका जाएगा। फिर ये अचानक ही अपने पालनहार के सामने पेश होने के लिए अपनी क़ब्रों से निकल पड़ेंगे। (36:51) ये (घबरा कर) कहेंगेः अरे! यह किसने हमें शयनकक्ष से उठा कर खड़ा कर दिया? यह वही चीज़ है जिसका दयावान (ईश्वर) ने वादा किया था और पैग़म्बरों की बात सच्ची थी। (36:52) बस एक ज़ोर की चिंघाड़ होगी और ये सबके-सब हमारे सामने उपस्थित कर दिए जाएंगे। (36:53)

فَالْيَوْمَ لَا تُظْلَمُ نَفْسٌ شَيْئًا وَلَا تُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ (54) إِنَّ أَصْحَابَ الْجَنَّةِ الْيَوْمَ فِي شُغُلٍ فَاكِهُونَ (55) هُمْ وَأَزْوَاجُهُمْ فِي ظِلَالٍ عَلَى الْأَرَائِكِ مُتَّكِئُونَ (56) لَهُمْ فِيهَا فَاكِهَةٌ وَلَهُمْ مَا يَدَّعُونَ (57) سَلَامٌ قَوْلًا مِنْ رَبٍّ رَحِيمٍ (58)

तो आज किसी पर कण भर भी अत्याचार नहीं होगा और तुम्हें वैसा ही बदला दिया जाएगा जैसे तुम कर्म करते रहे थे। (36:54) निश्चय ही आज स्वर्ग वाले किसी न किसी आनन्द में व्यस्त हैं। (36:55) वे और उनकी पत्नियां घनी छायाओं में तख़्तों पर टेक लगाए हुए हैं। (36:56) वहाँ उनके लिए फल हैं और वह सब कुछ है, जो वे चाहें। (36:57) (उनको) दयावान पालनहार की ओर से सलाम कहा गया है। (36:58)

وَامْتَازُوا الْيَوْمَ أَيُّهَا الْمُجْرِمُونَ (59)

और हे अपराधियो! आज तुम छँट कर (भले कर्म करने वालों से) अलग हो जाओगे (36:59)

أَلَمْ أَعْهَدْ إِلَيْكُمْ يَا بَنِي آَدَمَ أَنْ لَا تَعْبُدُوا الشَّيْطَانَ إِنَّهُ لَكُمْ عَدُوٌّ مُبِينٌ (60) وَأَنِ اعْبُدُونِي هَذَا صِرَاطٌ مُسْتَقِيمٌ (61) وَلَقَدْ أَضَلَّ مِنْكُمْ جِبِلًّا كَثِيرًا أَفَلَمْ تَكُونُوا تَعْقِلُونَ (62)

हे आदम की संतान! क्या मैंने तुमसे वादा नहीं लिया था कि शैतान की उपासना न करोगे कि निश्चय ही वह तुम्हारा खुला हुआ शत्रु है। (36:60) और यह कि मेरी ही उपासना करोगे कि यही सीधा मार्ग है? (36:61) मगर इसके बावजूद उसने तुममें से बहुत से गुटों को पथभ्रष्ट कर दिया। तो क्या तुम बुद्धि नहीं रखते थे? (36:62)

هَذِهِ جَهَنَّمُ الَّتِي كُنْتُمْ تُوعَدُونَ (63) اصْلَوْهَا الْيَوْمَ بِمَا كُنْتُمْ تَكْفُرُونَ (64) الْيَوْمَ نَخْتِمُ عَلَى أَفْوَاهِهِمْ وَتُكَلِّمُنَا أَيْدِيهِمْ وَتَشْهَدُ أَرْجُلُهُمْ بِمَا كَانُوا يَكْسِبُونَ (65)

यह वही नरक है जिसका तुमसे वादा किया जाता रहा है। (36:63) जो कुफ़्र तुम (दुनिया में) करते रहे हो, उसके बदले में आज इसमें प्रविष्ट हो जाओ (और जलते रहो)। (36:64) आज हम इनके मुँह पर मुहर लगा देते हैं, इनके हाथ हमसे बोलेंगे और इनके पाँव गवाही देंगे कि ये दुनिया में क्या कमाई करते रहे हैं। (36:65)

وَلَوْ نَشَاءُ لَطَمَسْنَا عَلَى أَعْيُنِهِمْ فَاسْتَبَقُوا الصِّرَاطَ فَأَنَّى يُبْصِرُونَ (66) وَلَوْ نَشَاءُ لَمَسَخْنَاهُمْ عَلَى مَكَانَتِهِمْ فَمَا اسْتَطَاعُوا مُضِيًّا وَلَا يَرْجِعُونَ (67)

और अगर हम चाहें तो उनकी आँखें मूंद दें फिर यह रास्ते की तरफ़ लपक कर देखें, कहां से इन्हें रास्ता सुझाई देगा? (36:66) और अगर हम चाहें तो इनकी जगह पर ही इस तरह से इनका स्वरूप बिगाड़कर रख दें कि ये न आगे चल सकें और न पीछे पलट सकें। (36:67)

وَمَنْ نُعَمِّرْهُ نُنَكِّسْهُ فِي الْخَلْقِ أَفَلَا يَعْقِلُونَ (68)

और जिसको हम लम्बी आयु देते है, उसको उसकी सृष्टि में उलट देते हैं (और उसमें भूल, अक्षमता और ढिलाई आने लगती है)। तो क्या (ये परिस्थितियां देख कर) वे बुद्धि से काम नहीं लेते? (36:68)

وَمَا عَلَّمْنَاهُ الشِّعْرَ وَمَا يَنْبَغِي لَهُ إِنْ هُوَ إِلَّا ذِكْرٌ وَقُرْآَنٌ مُبِينٌ (69) لِيُنْذِرَ مَنْ كَانَ حَيًّا وَيَحِقَّ الْقَوْلُ عَلَى الْكَافِرِينَ (70)

और हमने इस (पैग़म्बर) को शायरी नहीं सिखाई है और न ही वह इन्हें शोभा देती है। यह (किताब) तो केवल एक नसीहत और स्पष्ट क़ुरआन है। (36:69) ताकि हर उस व्यक्ति को सचेत कर दे जो जीवित हो और काफ़िरों के बारे में ईश्वर की बात व्यवहारिक हो जाए। (36:70)

أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّا خَلَقْنَا لَهُمْ مِمَّا عَمِلَتْ أَيْدِينَا أَنْعَامًا فَهُمْ لَهَا مَالِكُونَ (71) وَذَلَّلْنَاهَا لَهُمْ فَمِنْهَا رَكُوبُهُمْ وَمِنْهَا يَأْكُلُونَ (72) وَلَهُمْ فِيهَا مَنَافِعُ وَمَشَارِبُ أَفَلَا يَشْكُرُونَ (73)

क्या ये लोग देखते नहीं कि हमने इनके लिए अपने (सशक्त) हाथों की बनाई हुई चीज़ों में से चौपाए पैदा किए और अब ये उनके मालिक हैं? (36:71) और हमने उन्हें इस तरह इनके वश में कर दिया है कि उनमें से कुछ तो इनकी सवारियाँ हैं और उनमें से कुछ का ये मांस खाते हैं। (36:72) और उनके अंदर इनके लिए कितने ही लाभ और पेय हैं। तो क्या ये फिर भी कृतज्ञ नहीं रहते? (36:73)

وَاتَّخَذُوا مِنْ دُونِ اللَّهِ آَلِهَةً لَعَلَّهُمْ يُنْصَرُونَ (74) لَا يَسْتَطِيعُونَ نَصْرَهُمْ وَهُمْ لَهُمْ جُنْدٌ مُحْضَرُونَ (75) فَلَا يَحْزُنْكَ قَوْلُهُمْ إِنَّا نَعْلَمُ مَا يُسِرُّونَ وَمَا يُعْلِنُونَ (76)

और (यह सब होते हुए भी) इन्होंने ईश्वर के सिवा दूसरे पूज्य बना लिए हैं कि शायद इनकी मदद की जाएगी। (36:74) (जबकि) वे (प्रलय में) इनकी कोई मदद नहीं कर सकते बल्कि ये लोग उलटे उपस्थित सैनिक बने हुए हैं। (36:75) तो (हे पैग़म्बर!) इन (अनेकेश्वरवादियों) की बातें आपको दुखी न करें। हम इनकी छिपी और खुली सभी बातों को जानते हैं। (36:76)

أَوَلَمْ يَرَ الْإِنْسَانُ أَنَّا خَلَقْنَاهُ مِنْ نُطْفَةٍ فَإِذَا هُوَ خَصِيمٌ مُبِينٌ (77) وَضَرَبَ لَنَا مَثَلًا وَنَسِيَ خَلْقَهُ قَالَ مَنْ يُحْيِي الْعِظَامَ وَهِيَ رَمِيمٌ (78) قُلْ يُحْيِيهَا الَّذِي أَنْشَأَهَا أَوَّلَ مَرَّةٍ وَهُوَ بِكُلِّ خَلْقٍ عَلِيمٌ (79)

क्या इंसान देखता नहीं कि हमने उसे एक तुच्छ पानी से पैदा किया? फिर वह खुला झगड़ालू बन गया (36:77) और अब वह (मज़ाक़ उड़ाते हुए) हमारे लिए उपमाएं देता है और अपनी सृष्टि को भूल जाता है। वह कहता हैः “कौन इन हड्डियों में जान डालेगा जबकि ये जीर्ण-शीर्ण हो चुकी हों?” (36:78) इससे कह दीजिएः “इनमें वही जान डालेगा जिसने इनको पहली बार पैदा किया था और वह प्रत्येक रचना से अच्छी तरह अवगत है। (36:79)

الَّذِي جَعَلَ لَكُمْ مِنَ الشَّجَرِ الْأَخْضَرِ نَارًا فَإِذَا أَنْتُمْ مِنْهُ تُوقِدُونَ (80)

वही है जिसने तुम्हारे लिए हरे पेड़ से आग पैदा कर दी। तो तुम लोग (जब चाहो) उससे आग जलाते हो। (36:80)

أَوَلَيْسَ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بِقَادِرٍ عَلَى أَنْ يَخْلُقَ مِثْلَهُمْ بَلَى وَهُوَ الْخَلَّاقُ الْعَلِيمُ (81)

क्या वह जिसने आकाशों और धरती को पैदा किया इस बात में सक्षम नहीं है कि (प्रलय में) इन जैसों को पैदा कर सके? क्यों नहीं (वह सक्षम है) और वह महान रचयिता व अत्यन्त ज्ञानी है। (36:81)

إِنَّمَا أَمْرُهُ إِذَا أَرَادَ شَيْئًا أَنْ يَقُولَ لَهُ كُنْ فَيَكُونُ (82)

जब वह किसी चीज़ का इरादा करता है तो उसका काम बस यह है कि उसे आदेश दे कि हो जा! और वह तुरंत हो जाती है। (36:82)

فَسُبْحَانَ الَّذِي بِيَدِهِ مَلَكُوتُ كُلِّ شَيْءٍ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ (83)

तो हर प्रकार की कमी से पवित्र है वह जिसके हाथ में हर चीज़ का पूरा अधिकार है और उसी की ओर तुम पलटाए जाओगे। (36:83)