धर्म

तौहीद और शिर्क : क्या ईश्वर के सिवा कोई और रचयिता है, जो तुम्हें आकाश और धरती से रोज़ी देता हो? : पार्ट-25

أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ أَنْزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَخْرَجْنَا بِهِ ثَمَرَاتٍ مُخْتَلِفًا أَلْوَانُهَا وَمِنَ الْجِبَالِ جُدَدٌ بِيضٌ وَحُمْرٌ مُخْتَلِفٌ أَلْوَانُهَا وَغَرَابِيبُ سُودٌ (27) وَمِنَ النَّاسِ وَالدَّوَابِّ وَالْأَنْعَامِ مُخْتَلِفٌ أَلْوَانُهُ كَذَلِكَ إِنَّمَا يَخْشَى اللَّهَ مِنْ عِبَادِهِ الْعُلَمَاءُ إِنَّ اللَّهَ عَزِيزٌ غَفُورٌ (28)

क्या तुम नहीं देखते कि ईश्वर, आकाश से पानी बरसाता है फिर उसके द्वारा हम तरह तरह के फल निकालते हैं जिनके रंग भिन्न भिन्न होते हैं? और पहाड़ों में भी सफ़ेद, लाल और गहरे काले रंगों की धारियाँ पाई जाती हैं जिनके विभिन्न रंग होते हैं। (35:27) और इसी तरह इंसानों, पशुओं और चौपायों के रंग भी भिन्न भिन्न हैं। (सच्चाई यह है कि) ईश्वर के बन्दों में सिर्फ़ ज्ञानी ही उससे डरते हैं। निश्चय ही ईश्वर अत्यन्त प्रभुत्वशाली (व) क्षमाशील है। (35:28)

إِنَّ الَّذِينَ يَتْلُونَ كِتَابَ اللَّهِ وَأَقَامُوا الصَّلَاةَ وَأَنْفَقُوا مِمَّا رَزَقْنَاهُمْ سِرًّا وَعَلَانِيَةً يَرْجُونَ تِجَارَةً لَنْ تَبُورَ (29) لِيُوَفِّيَهُمْ أُجُورَهُمْ وَيَزِيدَهُمْ مِنْ فَضْلِهِ إِنَّهُ غَفُورٌ شَكُورٌ (30)

निश्चय ही जो लोग ईश्वर की किताब की तिलावत करते हैं, नमाज़ स्थापित करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें रोज़ी दी है, उसमें से छिपे और खुले ख़र्च करते हैं, वे एक ऐसे व्यापार के आशावान हैं जिसमें कभी भी घाटा नहीं होगा। (35:29) (इस व्यापार में उन्होंने अपना सब कुछ इस लिए लगा दिया है) ताकि ईश्वर उन्हें उनका प्रतिदान पूरा का पूरा प्रदान करे और अपने उदार अनुग्रह से उन्हें और अधिक प्रदान करे कि निःसंदेह वह बहुत क्षमाशील व अत्यन्त आभारी है। (35:30)

وَالَّذِي أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ مِنَ الْكِتَابِ هُوَ الْحَقُّ مُصَدِّقًا لِمَا بَيْنَ يَدَيْهِ إِنَّ اللَّهَ بِعِبَادِهِ لَخَبِيرٌ بَصِيرٌ (31) ثُمَّ أَوْرَثْنَا الْكِتَابَ الَّذِينَ اصْطَفَيْنَا مِنْ عِبَادِنَا فَمِنْهُمْ ظَالِمٌ لِنَفْسِهِ وَمِنْهُمْ مُقْتَصِدٌ وَمِنْهُمْ سَابِقٌ بِالْخَيْرَاتِ بِإِذْنِ اللَّهِ ذَلِكَ هُوَ الْفَضْلُ الْكَبِيرُ (32)

(हे पैग़म्बर!) जो किताब हमने आपकी ओर वहि के माध्यम से भेजी है, वही सत्य है। वह अपने से पहले (वाली किताबों) की पुष्टि करने वाली है। निश्चय ही ईश्वर अपने बन्दों की स्थिति से पूरी तरह अवगत और हर चीज़ पर नज़र रखने वाला है। (35:31) फिर हमने उन लोगों को इस किताब का उत्तराधिकारी बनाया जिन्हें हमने अपने बन्दों में से चुन लिया है। अब उनमें से कोई अपने आप पर अत्याचार करने वाला है, कोई मध्यमार्गी है और कोई ईश्वर की आज्ञा से भलाइयों में आगे आगे रहने वाला है। यही वह बड़ी कृपा है। (35:32)

جَنَّاتُ عَدْنٍ يَدْخُلُونَهَا يُحَلَّوْنَ فِيهَا مِنْ أَسَاوِرَ مِنْ ذَهَبٍ وَلُؤْلُؤًا وَلِبَاسُهُمْ فِيهَا حَرِيرٌ (33) وَقَالُوا الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي أَذْهَبَ عَنَّا الْحَزَنَ إِنَّ رَبَّنَا لَغَفُورٌ شَكُورٌ (34) الَّذِي أَحَلَّنَا دَارَ الْمُقَامَةِ مِنْ فَضْلِهِ لَا يَمَسُّنَا فِيهَا نَصَبٌ وَلَا يَمَسُّنَا فِيهَا لُغُوبٌ (35)

(ऐसे लोगों का पारितोषिक) सदैव रहने वाले (स्वर्ग के) बाग़ हैं जिनमें वे प्रवेश करेंगे। वहाँ उन्हें सोने के कंगनों और मोतियों से अलंकृत किया जाएगा। और वहाँ उनका वस्त्र रेशम होगा। (35:33) और वे कहेंगे कि सारी प्रशंसा ईश्वर ही के लिए है जिसने हमसे दुख को दूर कर दिया कि निश्चय ही हमारा पालनहार अत्यन्त क्षमाशील (व) आभारी है। (35:34) जिसने हमें अपनी कृपा से स्थायी घर में ठहरा दिया जहाँ न हमें कोई कठिनाई उठानी पड़ती है और न ही थकन होती है। (35:35)

وَالَّذِينَ كَفَرُوا لَهُمْ نَارُ جَهَنَّمَ لَا يُقْضَى عَلَيْهِمْ فَيَمُوتُوا وَلَا يُخَفَّفُ عَنْهُمْ مِنْ عَذَابِهَا كَذَلِكَ نَجْزِي كُلَّ كَفُورٍ (36) وَهُمْ يَصْطَرِخُونَ فِيهَا رَبَّنَا أَخْرِجْنَا نَعْمَلْ صَالِحًا غَيْرَ الَّذِي كُنَّا نَعْمَلُ أَوَلَمْ نُعَمِّرْكُمْ مَا يَتَذَكَّرُ فِيهِ مَنْ تَذَكَّرَ وَجَاءَكُمُ النَّذِيرُ فَذُوقُوا فَمَا لِلظَّالِمِينَ مِنْ نَصِيرٍ (37) إِنَّ اللَّهَ عَالِمُ غَيْبِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ إِنَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ (38)

और जिन लोगों ने कुफ़्र अपनाया, उनके लिए नरक की आग है। न तो उनका काम तमाम कर दिया जाएगा कि मर जाएँ और न ही उनके लिए नरक के दंड में कुछ कमी की जाएगी। हम कुफ़्र अपनाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को ऐसा ही बदला देते हैं। (35:36) वे वहाँ चिल्ला-चिल्ला कर कहेंगे कि हे हमारे पालनहार! हमें यहां से निकाल ले ताकि हम अच्छे कर्म करें, उन कर्मों से भिन्न जो हम पहले करते रहे हैं। (उन्हें जवाब दिया जाएगा) क्या हमने तुम्हें इतनी आयु नहीं दी थी कि जिसमें कोई पाठ सीखना चाहता तो सीख लेता? और तुम्हारे पास सचेतकर्ता भी आया था, तो अब मज़ा चखो! यहां अत्याचारियों का कोई सहायक नहीं है। (35:37) निःसंदेह ईश्वर आकाशों और धरती की हर छिपी बात को जानता है। और बेशक वह तो सीनों में छिपे हुए राज़ों तक को जानता है। (35:38)

هُوَ الَّذِي جَعَلَكُمْ خَلَائِفَ فِي الْأَرْضِ فَمَنْ كَفَرَ فَعَلَيْهِ كُفْرُهُ وَلَا يَزِيدُ الْكَافِرِينَ كُفْرُهُمْ عِنْدَ رَبِّهِمْ إِلَّا مَقْتًا وَلَا يَزِيدُ الْكَافِرِينَ كُفْرُهُمْ إِلَّا خَسَارًا (39)

वही तो है जिसने तुम्हें धरती में उत्तराधिकारी बनाया है। अब जो कुफ़्र अपनाएगा, तो उसका कुफ़्र उसी के नुक़सान में होगा। और काफ़िरों का कुफ़्र उनके पालनहार के निकट उनके लिए प्रकोप के अलावा किसी चीज़ की वृद्धि नहीं करता और काफ़िरों का कुफ़्र उनके घाटे में वृद्धि के अलावा कोई बढ़ोतरी नहीं करता। (35:39)

قُلْ أَرَأَيْتُمْ شُرَكَاءَكُمُ الَّذِينَ تَدْعُونَ مِنْ دُونِ اللَّهِ أَرُونِي مَاذَا خَلَقُوا مِنَ الْأَرْضِ أَمْ لَهُمْ شِرْكٌ فِي السَّمَاوَاتِ أَمْ آَتَيْنَاهُمْ كِتَابًا فَهُمْ عَلَى بَيِّنَةٍ مِنْهُ بَلْ إِنْ يَعِدُ الظَّالِمُونَ بَعْضُهُمْ بَعْضًا إِلَّا غُرُورًا (40)

(हे पैग़म्बर! इन लोगों) पूछिए कि क्या तुमने अपने उन समकक्षों को देखा भी है, जिन्हें तुम ईश्वर को छोड़कर पुकारते हो? मुझे बताओ कि उन्होंने धरती में क्या पैदा किया है? या आकाशों (की सृष्टि) में उनकी कोई भागीदारी है? (अगर ये नहीं बता सकते तो उनसे पूछिए कि) क्या हमने उन्हें कोई चीज़ लिखित में दी है जिसके आधार पर ये लोग अपने अनेकेश्वरवाद के लिए कोई स्पष्ट प्रमाण रखते हों? नहीं, बल्कि ये अत्याचारी आपस में एक दूसरे को केवल झांसे (का वादा) दिए जा रहे हैं। (35:40)

إِنَّ اللَّهَ يُمْسِكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ أَنْ تَزُولَا وَلَئِنْ زَالَتَا إِنْ أَمْسَكَهُمَا مِنْ أَحَدٍ مِنْ بَعْدِهِ إِنَّهُ كَانَ حَلِيمًا غَفُورًا (41)

निश्चित रूप से ईश्वर ही आकाशों और धरती को टल जाने से रोके हुए है और अगर वे टल जाएँ तो ईश्वर के बाद कोई भी (दूसरा) उन्हें थामने वाला नहीं है। निश्चय ही वह बड़ा सहनशील (व) क्षमा करने वाला है। (35:41)

وَأَقْسَمُوا بِاللَّهِ جَهْدَ أَيْمَانِهِمْ لَئِنْ جَاءَهُمْ نَذِيرٌ لَيَكُونُنَّ أَهْدَى مِنْ إِحْدَى الْأُمَمِ فَلَمَّا جَاءَهُمْ نَذِيرٌ مَا زَادَهُمْ إِلَّا نُفُورًا (42) اسْتِكْبَارًا فِي الْأَرْضِ وَمَكْرَ السَّيِّئِ وَلَا يَحِيقُ الْمَكْرُ السَّيِّئُ إِلَّا بِأَهْلِهِ فَهَلْ يَنْظُرُونَ إِلَّا سُنَّةَ الْأَوَّلِينَ فَلَنْ تَجِدَ لِسُنَّةِ اللَّهِ تَبْدِيلًا وَلَنْ تَجِدَ لِسُنَّةِ اللَّهِ تَحْوِيلًا (43)

और अनेकेश्वरवादी ईश्वर की कड़ी-कड़ी क़सम खा कर कहते थे कि अगर उनके पास कोई सचेतकर्ता आ जाए तो वे हर दूसरी जाति से बढ़कर सीधे मार्ग पर होंग लेकिन जब उनके पास एक सचेतकर्ता आ गया तो उसके आगमन ने उनके अंदर (सत्य से) घृणा के अलावा और किसी चीज़ वृद्धि नहीं की। (35:42) वे ज़मीन में और अधिक अंहकार करने लगे और बुरी बुरी चालें चलने लगे हालांकि बुरी चालें अपने चलने वालों को ही घेर लेती हैं। तो अब क्या ये लोग इस बात की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि पिछली जातियों के साथ ईश्वर की जो परंपरा रही है वही उनके साथ भी बरती जाए? तो तुम ईश्वर की परंपरा में हरगिज़ कोई परिवर्तन न पाओगे और न ही ईश्वर की परंपरा को कभी टलते हुए पाओगे। (35:43)

أَوَلَمْ يَسِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَيَنْظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ وَكَانُوا أَشَدَّ مِنْهُمْ قُوَّةً وَمَا كَانَ اللَّهُ لِيُعْجِزَهُ مِنْ شَيْءٍ فِي السَّمَاوَاتِ وَلَا فِي الْأَرْضِ إِنَّهُ كَانَ عَلِيمًا قَدِيرًا (44)

क्या ये लोग धरती में घूमे-फिरे हैं नहीं हैं कि इन्हें उन लोगों का अंजाम दिखाई देता जो इनसे पहले गुज़र चुके हैं और इनसे कहीं अधिक बलवान थे? और कोई भी चीज़ ईश्वर को असहाय नहीं बना सकती, न आकाशों में और न ही धरती ही में कि निश्चित रूप से वह ज्ञानी भी है और सक्षम भी है। (35:44)

وَلَوْ يُؤَاخِذُ اللَّهُ النَّاسَ بِمَا كَسَبُوا مَا تَرَكَ عَلَى ظَهْرِهَا مِنْ دَابَّةٍ وَلَكِنْ يُؤَخِّرُهُمْ إِلَى أَجَلٍ مُسَمًّى فَإِذَا جَاءَ أَجَلُهُمْ فَإِنَّ اللَّهَ كَانَ بِعِبَادِهِ بَصِيرًا (45)

और अगर ईश्वर लोगों को उनकी करतूतों पर पकड़ता तो इस धरती पर किसी भी जीव को न छोड़ता लेकिन वह उन्हें एक नियत समय तक मोहलत देता है, फिर जैसे ही उनका नियत समय आ जाता है तो (वह उन्हें दंडित करता है) निश्चय ही ईश्वर अपने बन्दों को अच्छी तरह देखने वाला है।

يس (1) وَالْقُرْآَنِ الْحَكِيمِ (2) إِنَّكَ لَمِنَ الْمُرْسَلِينَ (3) عَلَى صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ (4)

अल्लाह के नाम से जो अत्यंत कृपाशील और दयावान है। या सीन (36:1) (हे पैग़म्बर!) क़सम है तत्वदर्शी क़ुरआन की (36:2) कि आप निश्चय ही पैग़म्बरों में से हैं। (36:3) (और) एक सीधे मार्ग पर हैं। (36ः4)

تَنْزِيلَ الْعَزِيزِ الرَّحِيمِ (5) لِتُنْذِرَ قَوْمًا مَا أُنْذِرَ آَبَاؤُهُمْ فَهُمْ غَافِلُونَ (6)

(हे पैग़म्बर! यह क़ुरआन) प्रभुत्वशाली व अत्यन्त दयावान (ईश्वर) का भेजा हुआ है। (36:5) ताकि आप ऐसी जाति (के लोगों) को सावधान करें जिसके बाप-दादा को सावधान नहीं किया गया था (और) इस कारण वे निश्चेतना में पड़े हुए हैं। (36:6)

لَقَدْ حَقَّ الْقَوْلُ عَلَى أَكْثَرِهِمْ فَهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ (7)

उनमें से अधिकतर लोग (दंड) के आदेश के लायक़ हो चुके हैं इसी लिए वे ईमान नहीं लाते। (36:7)

إِنَّا جَعَلْنَا فِي أَعْنَاقِهِمْ أَغْلَالًا فَهِيَ إِلَى الْأَذْقَانِ فَهُمْ مُقْمَحُونَ (8) وَجَعَلْنَا مِنْ بَيْنِ أَيْدِيهِمْ سَدًّا وَمِنْ خَلْفِهِمْ سَدًّا فَأَغْشَيْنَاهُمْ فَهُمْ لَا يُبْصِرُونَ (9)

हमने उनकी गर्दनों में तौक़ डाल दिए हैं जिनसे वे ठुड्डियों तक जकड़े हुए हैं इस लिए वे सिर उठाए खड़े हैं। (36:8) और हमने उनके आगे एक दीवार खड़ी कर दी है और एक दीवार उनके पीछे खड़ी कर दी है। तो इस तरह हमने उन्हें ढाँक दिया है इस लिए उन्हें कुछ सुझाई नहीं देता। (36:9)

وَسَوَاءٌ عَلَيْهِمْ أَأَنْذَرْتَهُمْ أَمْ لَمْ تُنْذِرْهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ (10) إِنَّمَا تُنْذِرُ مَنِ اتَّبَعَ الذِّكْرَ وَخَشِيَ الرَّحْمَنَ بِالْغَيْبِ فَبَشِّرْهُ بِمَغْفِرَةٍ وَأَجْرٍ كَرِيمٍ (11)

और (हे पैग़म्बर!) उनके लिए एक समान है, आप उन्हें सचेत करें या न करें, वे ईमान लाएँगे नहीं। (36:10) आप तो बस उसी को सचेत कर सकते हैं जो (क़ुरआन की) नसीहत का अनुसरण करे और बिना देखे दयावान (ईश्वर) से डरे, तो उसे क्षमा और प्रतिष्ठित प्रतिफल की शुभ सूचना दे दीजिए। (36:11)

إِنَّا نَحْنُ نُحْيِي الْمَوْتَى وَنَكْتُبُ مَا قَدَّمُوا وَآَثَارَهُمْ وَكُلَّ شَيْءٍ أحْصَيْنَاهُ فِي إِمَامٍ مُبِينٍ (12)

निःसंदेह हम मुर्दों को जीवित करेंगे और जो कुछ कर्म उन्होंने किए हैं और जो प्रभाव उन्होंने आगे भेजा है, हम वह सब लिखते जा रहे हैं और हर चीज़ को हमने एक स्पष्ट किताब में दर्ज कर रखा है। (36:12)

وَاضْرِبْ لَهُمْ مَثَلًا أَصْحَابَ الْقَرْيَةِ إِذْ جَاءَهَا الْمُرْسَلُونَ (13) إِذْ أَرْسَلْنَا إِلَيْهِمُ اثْنَيْنِ فَكَذَّبُوهُمَا فَعَزَّزْنَا بِثَالِثٍ فَقَالُوا إِنَّا إِلَيْكُمْ مُرْسَلُونَ (14)

और (हे पैग़म्बर!) इन्हें उन बस्ती वालों का एक उदाहरण दे दीजिए, जब वहाँ (ईश्वर के) भेजे हुए पैग़म्बर आए थे। (36:13) जब हमने उनकी ओर (अपने) दो पैग़म्बर भेजे और उन्होंने उन्हें झुठला दिया। तब हमने तीसरे (पैग़म्बर) के माध्यम से उन्हें बल प्रदान किया और उन तीनों ने कहाः हम (ईश्वर की ओर से) तुम्हारी तरफ़ (पैग़म्बर बना कर) भेजे गए हैं। (36:14)

قَالُوا مَا أَنْتُمْ إِلَّا بَشَرٌ مِثْلُنَا وَمَا أَنْزَلَ الرَّحْمَنُ مِنْ شَيْءٍ إِنْ أَنْتُمْ إِلَّا تَكْذِبُونَ (15) قَالُوا رَبُّنَا يَعْلَمُ إِنَّا إِلَيْكُمْ لَمُرْسَلُونَ (16) وَمَا عَلَيْنَا إِلَّا الْبَلَاغُ الْمُبِينُ (17)

(बस्ती के अनेकेश्वरवादियों ने) कहाः तुम, हम जैसे इंसानों के अलावा और कुछ नहीं हो और दयावान (ईश्वर) ने कदापि कोई भी चीज़ (तुम पर) नाज़िल नहीं की है, तुम केवल झूठ बोलते हो। (36:15) उन पैग़म्बरों ने कहाः हमारा पालनहार जानता है कि हम निश्चय ही तुम्हारी ओर पैग़म्बर (बना कर) भेजे गए हैं। (36:16) और हम पर स्पष्ट रूप से संदेश पहुँचा देने के अलावा कोई ज़िम्मेदारी नहीं हैं। (36:17)

قَالُوا إِنَّا تَطَيَّرْنَا بِكُمْ لَئِنْ لَمْ تَنْتَهُوا لَنَرْجُمَنَّكُمْ وَلَيَمَسَّنَّكُمْ مِنَّا عَذَابٌ أَلِيمٌ (18) قَالُوا طَائِرُكُمْ مَعَكُمْ أَئِنْ ذُكِّرْتُمْ بَلْ أَنْتُمْ قَوْمٌ مُسْرِفُونَ (19)

बस्ती वालों ने कहा कि हम तो तुम्हें अपने लिए अपशकुन समझते हैं, अगर तुम बाज़ न आए तो हम तुम्हें पथराव करके मार डालेंगे और तुम हमसे अवश्य ही बड़ी पीड़ादायक सज़ा पाओगे। (36:18) पैग़म्बरों ने कहाः तुम्हारा अपशकुन तो तुम्हारे अपने ही साथ है। क्या तुम यह बातें इस लिए करते हो कि तुम्हें नसीहत की गई है? (तो यह कोई क्रुद्ध होने वाली बात नहीं है) बल्कि तुम सीमा से बढ़ जाने वाले लोग हो। (36:19)