धर्म

तौहीद और शिर्क : क्या ईश्वर के सिवा कोई और रचयिता है, जो तुम्हें आकाश और धरती से रोज़ी देता हो? : पार्ट-24

قُلْ إِنَّمَا أَعِظُكُمْ بِوَاحِدَةٍ أَنْ تَقُومُوا لِلَّهِ مَثْنَى وَفُرَادَى ثُمَّ تَتَفَكَّرُوا مَا بِصَاحِبِكُمْ مِنْ جِنَّةٍ إِنْ هُوَ إِلَّا نَذِيرٌ لَكُمْ بَيْنَ يَدَيْ عَذَابٍ شَدِيدٍ (46)

(हे पैग़म्बर! इनसे) कह दीजिए कि मैं तुम्हें बस एक बात की नसीहत करता हूँ कि तुम ईश्वर के लिए दो-दो और एक-एक करके उठ खड़े हो, फिर विचार करो (ताकि तुम्हें पता चल जाए कि) तुम्हारे साथी (अर्थात पैग़म्बर में) में कोई उन्माद नहीं है। वे तो बस एक कड़े दंड (के आने) से पहले तुम्हें सचेत करने वाले ही हैं। (34:46)

قُلْ مَا سَأَلْتُكُمْ مِنْ أَجْرٍ فَهُوَ لَكُمْ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَى اللَّهِ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدٌ (47)

(हे पैग़म्बर! इनसे) कह दीजिए कि अगर मैंने तुमसे कोई बदला माँगा है तो वह तुम्हें ही मुबारक हो। मेरा प्रतिफल तो बस ईश्वर के ज़िम्मे है और वह हर चीज़ का साक्षी है। (34:47)

قُلْ إِنَّ رَبِّي يَقْذِفُ بِالْحَقِّ عَلَّامُ الْغُيُوبِ (48) قُلْ جَاءَ الْحَقُّ وَمَا يُبْدِئُ الْبَاطِلُ وَمَا يُعِيدُ (49)

(हे पैग़म्बर! इनसे) कह दीजिए कि निश्चय ही मेरा पालनहार सत्य को (दिल में) डालता है (और) वह सभी छिपी हुई बातों को भली-भाँति जानने वाला है। (34:48) कह दीजिए कि सत्य आ गया और असत्य न तो कुछ आरंभ कर सकता है और न ही पुनः पलटा सकता है। (34:49)

قُلْ إِنْ ضَلَلْتُ فَإِنَّمَا أَضِلُّ عَلَى نَفْسِي وَإِنِ اهْتَدَيْتُ فَبِمَا يُوحِي إِلَيَّ رَبِّي إِنَّهُ سَمِيعٌ قَرِيبٌ (50)

(हे पैग़म्बर! इनसे) कह दीजिए कि अगर मैं पथभ्रष्ट हो जाऊँ तो मेरी पथभ्रष्टता मेरे अपने लिए ही बुरी होगी और यदि मैं सीधे मार्ग पर हूँ तो इसका कारण यह है मेरा पालनहार मेरी ओर वहि (यानी अपना विशेष संदेश) भेजता है। निःसंदेह वह सब कुछ सुनने वाला (और) निकट ही है। (34:50)

وَلَوْ تَرَى إِذْ فَزِعُوا فَلَا فَوْتَ وَأُخِذُوا مِنْ مَكَانٍ قَرِيبٍ (51) وَقَالُوا آَمَنَّا بِهِ وَأَنَّى لَهُمُ التَّنَاوُشُ مِنْ مَكَانٍ بَعِيدٍ (52)

और (हे पैग़म्बर!) काश आप इन (काफ़िरों व अनेकेश्वरवादियों) को (उस समय) देखते जब ये घबराए फिर रहे होंगे और फिर बचकर कहीं न जा सकेंगे और निकट स्थान ही से धर लिए जाएँगे। (34:51) और (उस समय ये) कहेंगे कि हम उस पर ईमान ले आए। हालाँकि अब उनके लिए इतने दूर स्थान से उस (ईमान को पाना) कहाँ सम्भव है? (34:52)

وَقَدْ كَفَرُوا بِهِ مِنْ قَبْلُ وَيَقْذِفُونَ بِالْغَيْبِ مِنْ مَكَانٍ بَعِيدٍ (53) وَحِيلَ بَيْنَهُمْ وَبَيْنَ مَا يَشْتَهُونَ كَمَا فُعِلَ بِأَشْيَاعِهِمْ مِنْ قَبْلُ إِنَّهُمْ كَانُوا فِي شَكٍّ مُرِيبٍ (54)

और निश्चय ही ये तो इससे पहले ही कुफ़्र अपना चुके थे और दूर से ही बिना देखे तुक्के लगा रहे थे। (34:53) और इनके और इनकी इच्छाओं के बीच दूरी डाल दी जाएगी जिस तरह इससे पहले इनके जैसे लोगों के साथ किया गया था। निश्चय ही वे बहुत डाँवाडोल कर देने वाले संदेह में पड़े हुए थे। (34:54)

الْحَمْدُ لِلَّـهِ فَاطِرِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ جَاعِلِ الْمَلَائِكَةِ رُسُلًا أُولِي أَجْنِحَةٍ مَّثْنَىٰ وَثُلَاثَ وَرُبَاعَ يَزِيدُ فِي الْخَلْقِ مَا يَشَاءُ إِنَّ اللَّـهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ (1)

अल्लाह के नाम से जो अत्यंत कृपाशील (व) दयावान है। सारी प्रशंसा ईश्वर के लिए है, जो आकाशों और धरती का पैदा करने वाला और फ़रिश्तों को संदेशवाहक नियुक्त करने है। ऐसे फ़रिश्ते जिनकी दो-दो, तीन-तीन और चार-चार भुजाएं हैं। वह अपनी रचनाओं की सृष्टि में जैसी चाहता है, वृद्धि करता है। निश्चय ही ईश्वर हर चीज़ में सक्षम है। (35:1)

مَّا یَفْتَحِ اللَّـهُ لِلنَّاسِ مِن رَّحْمَةٍ فَلَا مُمْسِکَ لَهَا وَ مَا یُمْسِکْ فَلَا مُرْسِلَ لَهُ مِن بَعْدِهِ وَهُوَ الْعَزِیزُ الْحَکِیمُ (2)

ईश्वर जिस दयालुता का दरवाज़ा लोगों के लिए खोल दे उसे कोई रोकने वाला नहीं और जिसे वह बंद कर दे तो उसे ईश्वर के बाद कोई खोलने वाला नहीं। और वह अजेय व तत्वदर्शी है। (35:2)

«یَا أَیُّهَا النَّاسُ اذْکُرُوا نِعْمَتَ اللَّـهِ عَلَیْکُمْ هَلْ مِنْ خَالِقٍ غَیْرُ اللَّـهِ یَرْزُقُکُم مِّنَ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ فَأَنَّى تُؤْفَکُونَ» (3) «وَإِن یُکَذِّبُوکَ فَقَدْ کُذِّبَتْ رُسُلٌ مِّن قَبْلِکَ وَإِلَى اللَّـهِ تُرْجَعُ الْأُمُورُ (4)

हे लोगो! तुम पर ईश्वर की जो अनुकम्पा है, उसे याद रखो। क्या ईश्वर के सिवा कोई और रचयिता है, जो तुम्हें आकाश और धरती से रोज़ी देता हो? उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। तो तुम किस प्रकार भटके चले जा रहे हो? (35:3) और (हे पैग़म्बर!) अगर वे आपको झुठलाते हैं तो आपसे पहले भी कितने ही पैग़म्बर झुठलाए जा चुके हैं। और सारे मामले अंततः ईश्वर ही की ओर पलटाए जाएंगे। (35:4)

یَا أَیُّهَا النَّاسُ إِنَّ وَعْدَ اللَّـهِ حَقٌّ فَلَا تَغُرَّنَّکُمُ الْحَیَاةُ الدُّنْیَا وَلَا یَغُرَّنَّکُم بِاللَّـهِ الْغَرُورُ (5)

हे लोगो! निश्चय ही ईश्वर का वादा सच्चा है। अतः सांसारिक जीवन तुम्हें धोखे में न डाले और न ही वह बड़ा धोखेबाज़ (शैतान) ईश्वर के बारे में तुम्हें धोखा देने पाए। (35:5)

إِنَّ الشَّیْطَانَ لَکُمْ عَدُوٌّ فَاتَّخِذُوهُ عَدُوًّا إِنَّمَا یَدْعُو حِزْبَهُ لِیَکُونُوا مِنْ أَصْحَابِ السَّعِیرِ(6)

हे लोगो! निश्चित रूप से शैतान तुम्हारा शत्रु है। अतः तुम भी उसे अपना दुश्मन ही समझो। वह तो अपने गुट वालों को (अपने मार्ग पर) केवल इस लिए बुला रहा है कि वे नरक वालों में शामिल हो जाएँ। (35:6)

الَّذِينَ كَفَرُوا لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ وَالَّذِينَ آَمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَهُمْ مَغْفِرَةٌ وَأَجْرٌ كَبِيرٌ (7)

जो लोग काफ़िर हो गए उनके लिए कड़ा दंड है और जो लोग ईमान लाए और जिन्होंने अच्छे कर्म किए उनके लिए क्षमा और बड़ा प्रतिफल है। (35:7)

أَفَمَنْ زُيِّنَ لَهُ سُوءُ عَمَلِهِ فَرَآَهُ حَسَنًا فَإِنَّ اللَّهَ يُضِلُّ مَنْ يَشَاءُ وَيَهْدِي مَنْ يَشَاءُ فَلَا تَذْهَبْ نَفْسُكَ عَلَيْهِمْ حَسَرَاتٍ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ بِمَا يَصْنَعُونَ (8)

तो क्या जिसके लिए उसके बुरे कर्म को अच्छा बना दिया गया हो और वह उसे अच्छा ही समझ रहा हो (वह उस व्यक्ति की तरह है जो सच्चाई को सही रूप में देख रहा हो)? सच्चाई यह है कि ईश्वर जिसे चाहता है गुमराह कर देता है और जिसे चाहता है सही मार्ग दिखा देता है। तो (हे पैग़म्बर!) उन पर अफ़सोस करते-करते आपकी जान पर न बन आए। जो कुछ वे कर रहे हैं, ईश्वर उसे अच्छी तरह जानता है। (35:8)

وَاللَّهُ الَّذِي أَرْسَلَ الرِّيَاحَ فَتُثِيرُ سَحَابًا فَسُقْنَاهُ إِلَى بَلَدٍ مَيِّتٍ فَأَحْيَيْنَا بِهِ الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا كَذَلِكَ النُّشُورُ (9)

और ईश्वर ही तो है जो हवाएँ भेजता है, फिर वह बादलों को उठाती हैं, फिर हम उसे किसी निर्जीव क्षेत्र की ओर ले जाते हैं और उसके द्वारा हम उस ज़मीन को जीवित कर देते हैं जो मरी पड़ी थी, (मरे हुए इंसानों का) दोबारा जीवित होना भी इसी प्रकार होगा। (35:9)

مَنْ كَانَ يُرِيدُ الْعِزَّةَ فَلِلَّهِ الْعِزَّةُ جَمِيعًا إِلَيْهِ يَصْعَدُ الْكَلِمُ الطَّيِّبُ وَالْعَمَلُ الصَّالِحُ يَرْفَعُهُ وَالَّذِينَ يَمْكُرُونَ السَّيِّئَاتِ لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ وَمَكْرُ أُولَئِكَ هُوَ يَبُورُ (10)

जो कोई इज़्ज़त चाहता है तो (उसे ज्ञात होना चाहिए कि) प्रभुत्व तो सारा का सारा ईश्वर के लिए है। (सिर्फ़) पवित्र बोल ही उस की ओर ऊपर चढ़ता है और अच्छा कर्म उसे ऊपर उठाता है। रहे वे लोग जो बुरी चालबाज़ियां करते हैं, उनके लिए कड़ा दंड है और उनकी चालबाज़ी स्वयं ही तबाह होकर रहेगी। (35:10)

وَاللَّهُ خَلَقَكُمْ مِنْ تُرَابٍ ثُمَّ مِنْ نُطْفَةٍ ثُمَّ جَعَلَكُمْ أَزْوَاجًا وَمَا تَحْمِلُ مِنْ أُنْثَى وَلَا تَضَعُ إِلَّا بِعِلْمِهِ وَمَا يُعَمَّرُ مِنْ مُعَمَّرٍ وَلَا يُنْقَصُ مِنْ عُمُرِهِ إِلَّا فِي كِتَابٍ إِنَّ ذَلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرٌ (11)

और ईश्वर ने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया, फिर एक शुक्राणु से, फिर तुम्हें जोड़े बना दिए (अर्थात महिला व पुरुष)। और उसके ज्ञान के बिना न कोई स्त्री गर्भवती होती है और न जन्म देती है। और कोई आयु पाने वाला आयु नहीं पाता और न किसी की आयु में कुछ कमी होती है सिवाय यह कि यह सब (ईश्वरीय ज्ञान की) किताब में (लिखा) होता है। निश्चित रूप से यह काम ईश्वर के लिए अत्यन्त सरल है। (35:11)

وَمَا يَسْتَوِي الْبَحْرَانِ هَذَا عَذْبٌ فُرَاتٌ سَائِغٌ شَرَابُهُ وَهَذَا مِلْحٌ أُجَاجٌ وَمِنْ كُلٍّ تَأْكُلُونَ لَحْمًا طَرِيًّا وَتَسْتَخْرِجُونَ حِلْيَةً تَلْبَسُونَهَا وَتَرَى الْفُلْكَ فِيهِ مَوَاخِرَ لِتَبْتَغُوا مِنْ فَضْلِهِ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ (12)

और वे दोनों सागर एक समान नहीं हैं, यह मीठा, प्यास बुझाने वाला और पीने में शीतल है। और वह खारा व कड़वा है। और दोनों में से तुम ताज़ा माँस खाते हो और सजावट का सामान निकालते हो, जिसे तुम पहनते हो। और तुम नौकाओं को देखते हो कि (लहरों को) चीरती हुई आगे चली जा रही हैं ताकि तुम उसकी कृपा तलाश करो और शायद उसके आभारी बन जाओ। (35:12)

يُولِجُ اللَّيْلَ فِي النَّهَارِ وَيُولِجُ النَّهَارَ فِي اللَّيْلِ وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ كُلٌّ يَجْرِي لِأَجَلٍ مُسَمًّى ذَلِكُمُ اللَّهُ رَبُّكُمْ لَهُ الْمُلْكُ وَالَّذِينَ تَدْعُونَ مِنْ دُونِهِ مَا يَمْلِكُونَ مِنْ قِطْمِيرٍ (13)

वह दिन के अंदर रात को और रात के अंदर दिन को पिरो देता है। और उसी ने सूर्य और चन्द्रमा को वशीभूत कर रखा है। यह सब एक नियत समय तक इसी तरह चलते रहेंगे। वही ईश्वर तुम्हारा पालनहार है (जिसने यह सारी व्यवस्था की है)। शासन तो बस उसी का है। और उससे हटकर जिनको तुम पुकारते हो वे तो खजूर के एक बीज के छिलके के भी मालिक नहीं हैं। (35:13)

إِنْ تَدْعُوهُمْ لَا يَسْمَعُوا دُعَاءَكُمْ وَلَوْ سَمِعُوا مَا اسْتَجَابُوا لَكُمْ وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ يَكْفُرُونَ بِشِرْكِكُمْ وَلَا يُنَبِّئُكَ مِثْلُ خَبِيرٍ (14)

अगर तुम उन्हें पुकारो तो वे तुम्हारी दुआ नहीं सुन सकते और अगर सुन भी लें तो तब भी तुम्हारी दुआ पूरी नहीं कर सकते और प्रलय के दिन वे तुम्हारे अनेकेश्वरवाद का इन्कार कर देंगे। (सच्चाई की) ऐसी ख़बर तुम्हें जानकार (ईश्वर) के अलावा कोई न दे सकता। (35:14)

يَا أَيُّهَا النَّاسُ أَنْتُمُ الْفُقَرَاءُ إِلَى اللَّهِ وَاللَّهُ هُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيدُ (15) إِنْ يَشَأْ يُذْهِبْكُمْ وَيَأْتِ بِخَلْقٍ جَدِيدٍ (16) وَمَا ذَلِكَ عَلَى اللَّهِ بِعَزِيزٍ (17)

हे लोगो! तुम ही ईश्वर के मोहताज हो और ईश्वर तो आवश्यकतामुक्त व प्रशंसित है। (35:15) अगर वह चाहे तो तुम्हें हटा कर तुम्हारे स्थान पर कोई नई रचा ले आए। (35:16) और ऐसा करना ईश्वर के लिए कुछ भी कठिन नहीं है। (35:17)

وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَى وَإِنْ تَدْعُ مُثْقَلَةٌ إِلَى حِمْلِهَا لَا يُحْمَلْ مِنْهُ شَيْءٌ وَلَوْ كَانَ ذَا قُرْبَى إِنَّمَا تُنْذِرُ الَّذِينَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُمْ بِالْغَيْبِ وَأَقَامُوا الصَّلَاةَ وَمَنْ تَزَكَّى فَإِنَّمَا يَتَزَكَّى لِنَفْسِهِ وَإِلَى اللَّهِ الْمَصِيرُ (18)

और कोई बोझ उठाने वाला किसी दूसरे का बोझ न उठाएगा और अगर कोई (बोझ) से लदा हुआ (व्यक्ति) अपना बोझ उठाने के लिए पुकारेगा तो उसके बोझ का छोटा सा भाग भी हटाने के लिए कोई न आएगा चाहे वह (उसका) निकट संबंधी ही क्यों न हो। (हे पैग़म्बर!) आप तो केवल उन्हीं लोगों को सावधान कर सकते हैं जो बिना देखे अपने पालनहार से डरते हैं और नमाज़ के स्थापित करते हैं। और जिसने अपने को पवित्र बनाया उसने अपने ही भले के लिए ख़ुद को पवित्र किया। और पलटना तो (सभी को) ईश्वर ही की ओर है। (35:18)

وَمَا يَسْتَوِي الْأَعْمَى وَالْبَصِيرُ (19) وَلَا الظُّلُمَاتُ وَلَا النُّورُ (20) وَلَا الظِّلُّ وَلَا الْحَرُورُ (21)

और अंधा और आँखों वाला बराबर नहीं हैं (35:19) और न अँधेरा और प्रकाश, (35:20) और न ही छाया और धूप। (35:21)

وَمَا يَسْتَوِي الْأَحْيَاءُ وَلَا الْأَمْوَاتُ إِنَّ اللَّهَ يُسْمِعُ مَنْ يَشَاءُ وَمَا أَنْتَ بِمُسْمِعٍ مَنْ فِي الْقُبُورِ (22) إِنْ أَنْتَ إِلَّا نَذِيرٌ (23)

और जीवित और मृत बिल्कुल भी बराबर नहीं हैं। निश्चय ही ईश्वर जिसे चाहता है सुनाता है और आप उन लोगों को नहीं सुना सकते, जो क़ब्रों में हैं। (35:22) आप तो बस एक सचेतकर्ता हैं। (35:23)

إِنَّا أَرْسَلْنَاكَ بِالْحَقِّ بَشِيرًا وَنَذِيرًا وَإِنْ مِنْ أُمَّةٍ إِلَّا خَلَا فِيهَا نَذِيرٌ (24)

(हे पैग़म्बर!) निश्चय ही हमने आपको सत्य के साथ शुभ सूचना देने वाला और सचेतकर्ता बनाकर भेजा है और कोई भी समुदाय ऐसा नहीं गुज़रा है जिसमें कोई सचेतकर्ता न रहा हो। (35:24)

وَإِنْ يُكَذِّبُوكَ فَقَدْ كَذَّبَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ جَاءَتْهُمْ رُسُلُهُمْ بِالْبَيِّنَاتِ وَبِالزُّبُرِ وَبِالْكِتَابِ الْمُنِيرِ (25) ثُمَّ أَخَذْتُ الَّذِينَ كَفَرُوا فَكَيْفَ كَانَ نَكِيرِ (26)

और (हे पैग़म्बर!) अगर वे आपको झुठलाते हैं तो जो उनसे पहले थे वे भी (अपने पैग़म्बरों को) झुठला चुके हैं। उनके पैग़म्बर उनके पास खुले तर्क व आसमानी किताबें और स्पष्ट आदेश देने वाली किताब लेकर आए थे। (35:25) फिर जिन्होंने कुफ़्र अपना (और इन्कार किया) मैंने उन्हें पकड़ लिया तो देख लो कि मेरा दंड कैसा (कड़ा) था? (35:26)