धर्म

तौहीद और शिर्क : उन्हें इस भूल में नहीं रहना चाहिए कि वे अपने कर्मों की सज़ा और प्रतिफल से बच जाएंगे : पार्ट-12

فَاتَّقُوا اللَّـهَ وَأَطِيعُونِ (110) قَالُوا أَنُؤْمِنُ لَكَ وَاتَّبَعَكَ الْأَرْذَلُونَ (111)

तो ईश्वर से डरो और मेरा आज्ञापालन करो। (26:110) उन्होंने कहा, क्या हम आप पर ईमान ले आएं जबकि तुच्छ लोग आपका अनुसरण कर रहे हैं? (26:111)

قَالَ وَمَا عِلْمِي بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ (112) إِنْ حِسَابُهُمْ إِلَّا عَلَى رَبِّي لَوْ تَشْعُرُونَ (113)

नूह ने कहा, मुझे क्या पता कि वे क्या करते रहे हैं? (26:112) अगर वे समझते हैं तो उनका हिसाब केवल मेरे पालनहार के ज़िम्मे है। (26:113)

وَمَا أَنَا بِطَارِدِ الْمُؤْمِنِينَ (114) إِنْ أَنَا إِلَّا نَذِيرٌ مُبِينٌ (115)

और मैं कदापि ईमान वालों को धुत्कारने वाला नहीं हूँ। (26:114) मैं तो बस स्पष्ट रूप से सावधान करने वाला हूँ। (26:115)

قَالُوا لَئِنْ لَمْ تَنْتَهِ يَا نُوحُ لَتَكُونَنَّ مِنَ الْمَرْجُومِينَ (116) قَالَ رَبِّ إِنَّ قَوْمِي كَذَّبُونِ (117) فَافْتَحْ بَيْنِي وَبَيْنَهُمْ فَتْحًا وَنَجِّنِي وَمَنْ مَعِيَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ (118)

उन्होंने कहा (हे नूह!) यदि तुम न माने तो निश्चित रूप से तुम संगसार होने वालों में शामिल हो जाओगे। (26:116) नूह ने कहा, हे मेरे पालनहार! मेरी जाति वालों ने तो मुझे झुठला ही दिया है। (26:117) तो अब तू मेरे और उनके बीच फ़ैसला कर दे (और मार्ग दिखा) तथा मुझे और जो ईमान वाले मेरे साथ है, उन्हें (इन काफ़िरों से) बचा ले। (26:118)

فَأَنْجَيْنَاهُ وَمَنْ مَعَهُ فِي الْفُلْكِ الْمَشْحُونِ (119) ثُمَّ أَغْرَقْنَا بَعْدُ الْبَاقِينَ (120) إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآَيَةً وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُمْ مُؤْمِنِينَ (121) وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ (122)

तो हमने उन्हें और जो भी उनके साथ (लोगों व पशुओं से) भरी हुई नौका में था बचा लिया। (26:119) फिर हमने शेष लोगों को डूबो दिया। (26:120) निश्चय ही इस (घटना) में एक बड़ी निशानी है फिर भी उनमें से अधिकतर ईमान लाने वाले नहीं थे। (26:121) और निःसंदेह आपका पालनहार बड़ा प्रभुत्वशाली और अत्यन्त दयावान है। (26:122)

كَذَّبَتْ عَادٌ الْمُرْسَلِينَ (123) إِذْ قَالَ لَهُمْ أَخُوهُمْ هُودٌ أَلَا تَتَّقُونَ (124)

आद (जाति) ने भी पैग़म्बरों को झूठलाया। (26:123) जब उनके भाई हूद ने उनसे कहा, क्या तुम ईश्वर से नहीं डरते? (26:124)

إِنِّي لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌ (125) فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ (126) وَمَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَى رَبِّ الْعَالَمِينَ (127)

निश्चित रूप से मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार पैग़म्बर हूँ। (26:125) अतः तुम ईश्वर से डरो और मेरा अनुसरण करो। (26:126) मैं (पैग़म्बरी के) इस काम पर तुमसे कोई प्रतिफल नहीं माँगता कि मेरा प्रतिफल तो ब्रह्मांड के पालनहार के ज़िम्मे है। (26:127)

أَتَبْنُونَ بِكُلِّ رِيعٍ آَيَةً تَعْبَثُونَ (128) وَتَتَّخِذُونَ مَصَانِعَ لَعَلَّكُمْ تَخْلُدُونَ (129) وَإِذَا بَطَشْتُمْ بَطَشْتُمْ جَبَّارِينَ (130)

क्या तुम प्रत्येक उच्च स्थान पर अपनी इच्छा के चलते (व्यर्थ की) एक ऊंची इमारत का निर्माण करते रहोगे? (26:128) और भव्य महल बनाते रहोगे जैसे सदैव बाक़ी रहोगे? (26:129) और जब तुम किसी पकड़ते हो तो निर्दयी अत्याचारियों की भांति पकड़ते हो? (26:130)

فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ (131) وَاتَّقُوا الَّذِي أَمَدَّكُمْ بِمَا تَعْلَمُونَ (132) أَمَدَّكُمْ بِأَنْعَامٍ وَبَنِينَ (133) وَجَنَّاتٍ وَعُيُونٍ (134)

अतः ईश्वर से डरो और मेरीस अनुसरण करो। (26:131) और उस (ईश्वर) से डरो जिसने तुम्हारी उन चीज़ों से सहायता की जिन्हें तुम जानते हो। (26:132) उसने चौपायों और पुत्रों (के माध्यम) से तुम्हारी सहायता की। (26:133) और इसी प्रकार बाग़ों और सोतों (के माध्यम) से। (26:134)

إِنِّي أَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍ (135) قَالُوا سَوَاءٌ عَلَيْنَا أَوَعَظْتَ أَمْ لَمْ تَكُنْ مِنَ الْوَاعِظِينَ (136)

निश्चय ही मुझे तुम्हें एक बड़े दिन (मिलने वाले) दंड का भय है। (26:135) (आद जाति के) लोगों ने कहा, चाहे तुम नसीहत करो या नसीहत करने वाले न बनो, हमारे लिए एक समान है। (26:136)

إِنْ هَذَا إِلَّا خُلُقُ الْأَوَّلِينَ (137) وَمَا نَحْنُ بِمُعَذَّبِينَ (138) فَكَذَّبُوهُ فَأَهْلَكْنَاهُمْ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآَيَةً وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُمْ مُؤْمِنِينَ (139) وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ (140)

यह पिछले लोगों की शैली के अतिरिक्त कुछ नहीं है। (26:137) और हमे कदापि दंडित नहीं होंगे। (26:138) फिर उन्होंने (हूद को) झुठला दिया तो हमने उन्हें तबाह कर दिया, निःसंदेह इसमें (पाठ सीखने के लिए) एक बड़ी निशानी है और उनमें से अधिकतर ईमान लाने नहीं थे। (26:139) और (हे पैग़म्बर!) निश्चय ही आपका पालनहार ही बड़ा प्रभुत्वशाली और अत्यन्त दयावान है। (26:140)

كَذَّبَتْ ثَمُودُ الْمُرْسَلِينَ (141) إِذْ قَالَ لَهُمْ أَخُوهُمْ صَالِحٌ أَلَا تَتَّقُونَ (142) إِنِّي لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌ (143) فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ (144) وَمَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَى رَبِّ الْعَالَمِينَ (145)

समूद (जाति के लोगों) ने (भी) पैग़म्बरों को झुठलाया। (26:141) जब उनके भाई सालेह ने उनसे कहा, क्या तुम (ईश्वर से) नहीं डरते? (26:142) निःसंदेह मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार पैग़म्बर हूँ। (26:143) तो ईश्वर से डरो और मेरा अनुसरण करो। (26:144) और मैं (पैग़म्बरी के) इस काम पर तुमसे कोई प्रतिफल नहीं माँगता कि मेरा बदला तो केवल ब्रह्मांड के पालनहार के ज़िम्मे है। (26:145)

أَتُتْرَكُونَ فِي مَا هَاهُنَا آَمِنِينَ (146) فِي جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ (147) وَزُرُوعٍ وَنَخْلٍ طَلْعُهَا هَضِيمٌ (148) وَتَنْحِتُونَ مِنَ الْجِبَالِ بُيُوتًا فَارِهِينَ (149) فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ (150)

क्या तुम (यह सोचते हो कि) यहाँ (इस संसार में) जो कुछ है उसके बीच, निश्चिन्त छोड़ दिए जाओगे? (26:146) बाग़ों और सोतों में (26:147) और खेतों और उन खजूरों में जिनके गुच्छे ताज़ा और गुँथे हुए हैं? (26:148) और तुम पहाड़ों को काट-काट कर इतराते हुए घर बनाते हो? (26:149) तो ईश्वर से डरो और मेरा अनुसरण करो। (26:150)

وَلَا تُطِيعُوا أَمْرَ الْمُسْرِفِينَ (151) الَّذِينَ يُفْسِدُونَ فِي الْأَرْضِ وَلَا يُصْلِحُونَ (152)

और अपव्यय करने वालों का अनुसरण न करो। (26:151) कि जो धरती में बिगाड़ पैदा करते हैं और सुधार का काम नहीं करते। (26:152)

قَالُوا إِنَّمَا أَنْتَ مِنَ الْمُسَحَّرِينَ (153) مَا أَنْتَ إِلَّا بَشَرٌ مِثْلُنَا فَأْتِ بِآَيَةٍ إِنْ كُنْتَ مِنَ الصَّادِقِينَ (154)

उन्होंने कहा हे सालेह! निश्चित रूप से आप पर जादू-टोना कर दिया गया है। (26:153) आप तो हम जैसे एक मनुष्य के अतिरिक्त कुछ नहीं हैं। तो अगर आप सच्चे हैं तो (चमत्कार के रूप में) कोई निशानी ले आइये। (26:154)

قَالَ هَذِهِ نَاقَةٌ لَهَا شِرْبٌ وَلَكُمْ شِرْبُ يَوْمٍ مَعْلُومٍ (155) وَلَا تَمَسُّوهَا بِسُوءٍ فَيَأْخُذَكُمْ عَذَابُ يَوْمٍ عَظِيمٍ (156)

सालेह ने (चमत्कार की मांग के जवाब में) कहा, यह ऊँटनी है। (जो ईश्वर की इच्छा से पहाड़ से पैदा हुई है।) एक दिन पानी पीने की बारी इसकी है और एक निर्धारित दिन पानी लेने की बारी तुम्हारी है। (26:155) और तकलीफ़ पहुँचाने के लिए इसे हाथ न लगाना कि एक बड़े दिन का दंड तुम्हें आ लेगा। (26:156)

فَعَقَرُوهَا فَأَصْبَحُوا نَادِمِينَ (157) فَأَخَذَهُمُ الْعَذَابُ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآَيَةً وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُمْ مُؤْمِنِينَ (158) وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ (159)

तो उन्होंने मार दिया (और) फिर (अपने किए पर) पछताने लगे। (26:157) तो (ईश्वरीय) दंड ने उन्हें आ लिया। निश्चय ही इस (घटना) में एक बड़ी निशानी है और उनमें से अधिकतर ईमान वाले नहीं थे। (26:158) और (हे पैग़म्बर!) निःसंदेह आपका पालनहार ही है जो अजेय और अत्यन्त दयावान है। (26:159)

كَذَّبَتْ قَوْمُ لُوطٍ الْمُرْسَلِينَ (160) إِذْ قَالَ لَهُمْ أَخُوهُمْ لُوطٌ أَلَا تَتَّقُونَ (161) إِنِّي لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌ (162) فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ (163) وَمَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَى رَبِّ الْعَالَمِينَ (164)

लूत की जाति (के लोगों) ने भी पैग़म्बरों को झुठलाया, (26:160) जब उनके भाई लूत ने उनसे कहा कि क्या तुम (ईश्वर से) नहीं डरते? (26:161) निश्चय ही मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार पैग़म्बर हूँ। (26:162) तो ईश्वर से डरो और मेरा आज्ञापालन करो। (26:163) और मैं (पैग़म्बरी के) इस काम पर तुमसे कोई प्रतिफल नहीं माँगता, मेरा प्रतिफल तो ब्रह्मांड के पालनहार के ज़िम्मे है। (26:164)

أَتَأْتُونَ الذُّكْرَانَ مِنَ الْعَالَمِينَ (165) وَتَذَرُونَ مَا خَلَقَ لَكُمْ رَبُّكُمْ مِنْ أَزْوَاجِكُمْ بَلْ أَنْتُمْ قَوْمٌ عَادُونَ (166)

क्या संसार के लोगों में से तुम पुरुषों से संबंध स्थापित करते हो? (26:165) और अपनी पत्नियों को, जिन्हें तुम्हारे पालनहार ने तुम्हारे लिए पैदा किया है, छोड़ देते हो? बल्कि तुम सीमा से बढ़ जाने वाले लोग हो। (26:166)

قَالُوا لَئِنْ لَمْ تَنْتَهِ يَا لُوطُ لَتَكُونَنَّ مِنَ الْمُخْرَجِينَ (167) قَالَ إِنِّي لِعَمَلِكُمْ مِنَ الْقَالِينَ (168)

उन्होंने कहा, हे लतू! यदि तुम ने ये (बातें करना) बंद न किया तो अवश्य ही निकाल बाहर किए जाने वालों में से होगे। (26:167) लूत ने कहा, मैं तुम्हारे कर्म से पूरी तरह विरक्त हूँ। (26:168)

رَبِّ نَجِّنِي وَأَهْلِي مِمَّا يَعْمَلُونَ (169) فَنَجَّيْنَاهُ وَأَهْلَهُ أَجْمَعِينَ (170) إِلَّا عَجُوزًا فِي الْغَابِرِينَ (171)

हे मेरे पालनहार! मुझे और मेरे परिजनों को, जो कुछ ये करते हैं उससे बचा ले। (26:169) फिर हमने उन्हें और उनके सारे परिजनों को बचा लिया। (26:170) सिवाय एक बुढ़िया के जो पीछे रह जाने वालों में थी। (26:171)

ثُمَّ دَمَّرْنَا الْآَخَرِينَ (172) وَأَمْطَرْنَا عَلَيْهِمْ مَطَرًا فَسَاءَ مَطَرُ الْمُنْذَرِينَ (173) إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآَيَةً وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُمْ مُؤْمِنِينَ (174) وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ (175)

फिर हमने शेष लोगों को तबाह कर दिया। (26:172) और हमने उन पर एक (पत्थरों की) बारिश बरसाई तो वह चेताए जा चुके लोगों के लिए कितनी बुरी वर्षा थी। (26:173) निश्चय ही इस (घटना) में एक बड़ी निशानी (और पाठ) है। लेकिन फिर भी उनमें से अधिकतर ईमान लाने वाले नहीं थे। (26:174) और निश्चय ही आपका पालनहार बड़ा प्रभुत्वशाली और अत्यन्त दयावान है। (26:175)

كَذَّبَ أَصْحَابُ الْأَيْكَةِ الْمُرْسَلِينَ (176) إِذْ قَالَ لَهُمْ شُعَيْبٌ أَلَا تَتَّقُونَ (177) إِنِّي لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌ (178) فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ (179) وَمَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَى رَبِّ الْعَالَمِينَ (180)

ऐका के लोगों ने पैग़म्बरों को झुठलाया। (26:176) जब शुऐब ने उनसे कहा कि क्या तुम (ईश्वर का) डर नहीं रखते? (26:177) निश्चय ही मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार पैग़म्बर हूँ। (26:178) तो ईश्वर से डरो और मेरा आज्ञापालन करो। (26:179) और मैं इस काम पर तुमसे कोई प्रतिफल नहीं माँगता कि मेरा प्रतिफल तो केवल समस्त संसार के पालनहार के ज़िम्मे है। (26:180)

أَوْفُوا الْكَيْلَ وَلَا تَكُونُوا مِنَ الْمُخْسِرِينَ (181) وَزِنُوا بِالْقِسْطَاسِ الْمُسْتَقِيمِ (182) وَلَا تَبْخَسُوا النَّاسَ أَشْيَاءَهُمْ وَلَا تَعْثَوْا فِي الْأَرْضِ مُفْسِدِينَ (183) وَاتَّقُوا الَّذِي خَلَقَكُمْ وَالْجِبِلَّةَ الْأَوَّلِينَ (184)

पूरा-पूरा नाप दो और डंडी न मारो। (26:181) और ठीक तराज़ू से तोलो। (26:182) और लोगों को उनकी चीज़ें कम न दो और धरती में बिगाड़ मचाते न फिरो। (26:183) और उसका डर रखो जिसने तुम्हें और पिछली जातियों को पैदा किया है। (26:184)

قَالُوا إِنَّمَا أَنْتَ مِنَ الْمُسَحَّرِينَ (185) وَمَا أَنْتَ إِلَّا بَشَرٌ مِثْلُنَا وَإِنْ نَظُنُّكَ لَمِنَ الْكَاذِبِينَ (186) فَأَسْقِطْ عَلَيْنَا كِسَفًا مِنَ السَّمَاءِ إِنْ كُنْتَ مِنَ الصَّادِقِينَ (187)

उन्होंने कहा, (हे शुऐब) निश्चय ही तुम पर जादू किया गया है। (26:185) और तुम तो हमारे ही जैसे एक आदमी हो और हम तुम्हें झूठों में समझते हैं। (26:186) तो यदि तुम सच्चे हो तो हम पर आकाश का कोई टुकड़ा ही गिरा दो। (26:187)

قَالَ رَبِّي أَعْلَمُ بِمَا تَعْمَلُونَ (188) فَكَذَّبُوهُ فَأَخَذَهُمْ عَذَابُ يَوْمِ الظُّلَّةِ إِنَّهُ كَانَ عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍ (189) إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآَيَةً وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُمْ مُؤْمِنِينَ (190) وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ (191)

शुऐब ने कहा, जो कुछ तुम कर रहे हो उसे मेरा पालनहार भली-भाँति जानता है। (26:188) तो उन्होंने उन्हें झुठला दिया। फिर (आग बरसाने) वाले बादल के दिन के दंड ने उन्हें आ लिया। निश्चय ही वह एक बड़े दिन का दंड था। (26:189) निःसंदेह इस (घटना) में एक बड़ी निशानी है लेकिन उनमें से अधिकतर ईमान लाने वाले नहीं। (26:190) और निश्चय ही तुम्हारा पालनहार ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली और अत्यन्त दयावान है। (26:191)

وَإِنَّهُ لَتَنْزِيلُ رَبِّ الْعَالَمِينَ (192) نَزَلَ بِهِ الرُّوحُ الْأَمِينُ (193) عَلَى قَلْبِكَ لِتَكُونَ مِنَ الْمُنْذِرِينَ (194) بِلِسَانٍ عَرَبِيٍّ مُبِينٍ (195)

और निश्चय ही यह (क़ुरआन) सारे संसार के पालनहार की (ओर से) भेजी गई वस्तु है। (26:192) जिसे जिब्रईल लेकर आए हैं, (26:193) आपके हृदय पर, ताकि आप (लोगों को) सचेत करने वालों में हो जाएं, (26:194) (और यह) स्पष्ट अरबी भाषा में (है)। (26:195)

وَإِنَّهُ لَفِي زُبُرِ الْأَوَّلِينَ (196) أَوَلَمْ يَكُنْ لَهُمْ آَيَةً أَنْ يَعْلَمَهُ عُلَمَاءُ بَنِي إِسْرَائِيلَ (197)

और निःसंदेह यह (सूचना) पिछले लोगों की किताबों में भी मौजूद है। (26:196) क्या यह उनके लिए (इसकी सच्चाई की) एक स्पष्ट निशानी नहीं है कि बनी इसराईल के विद्वान इस (क़ुरआन) को जानते हैं? (26:197)

وَلَوْ نَزَّلْنَاهُ عَلَى بَعْضِ الْأَعْجَمِينَ (198) فَقَرَأَهُ عَلَيْهِمْ مَا كَانُوا بِهِ مُؤْمِنِينَ (199)

और अगर हम इसे किसी ग़ैर अरबी भाषी पर भी उतारते (26:198) और वह इसे उन्हें पढ़कर सुनाता तब भी वे इस पर ईमान लाने वाले न थे। (26:199)

كَذَلِكَ سَلَكْنَاهُ فِي قُلُوبِ الْمُجْرِمِينَ (200) لَا يُؤْمِنُونَ بِهِ حَتَّى يَرَوُا الْعَذَابَ الْأَلِيمَ (201) فَيَأْتِيَهُمْ بَغْتَةً وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ (202) فَيَقُولُوا هَلْ نَحْنُ مُنْظَرُونَ (203)

इस प्रकार हमने इस (क़ुरआन) को (स्पष्ट बयान द्वारा) अपराधियों के दिलों में गुज़ारा है। (26:200) (किंतु) वे इस पर ईमान लाने वाले नहीं जब तक कि पीड़ादायक दंड न देख लें। (26:201) तो वह अचानक उन पर आ जाएगा और उन्हें पता भी न चलेगा। (26:202) तब वे कहेंगे, क्या हमें कुछ मुहलत मिल सकती है? (26:203)

أَفَبِعَذَابِنَا يَسْتَعْجِلُونَ (204) أَفَرَأَيْتَ إِنْ مَتَّعْنَاهُمْ سِنِينَ (205) ثُمَّ جَاءَهُمْ مَا كَانُوا يُوعَدُونَ (206) مَا أَغْنَى عَنْهُمْ مَا كَانُوا يُمَتَّعُونَ (207)

तो क्या वे लोग हमारे दंड (की प्राप्ति) के लिए जल्दी मचा रहे हैं? (26:204) तो क्या आपने देखा कि यदि हम उन्हें कुछ वर्षों तक सुख भोगने दें (26:205) फिर वह चीज़ आ जाए, जिससे उन्हें डराया जाता रहा है (26:206) तो जो सुख उन्हें मिला होगा वह (दंड दूर करने में) उनके कुछ काम न आएगा (26:207)

وَمَا أَهْلَكْنَا مِنْ قَرْيَةٍ إِلَّا لَهَا مُنْذِرُونَ (208) ذِكْرَى وَمَا كُنَّا ظَالِمِينَ (209)

और हमने किसी बस्ती (के लोगों) को तब तक तबाह नहीं किया कि जब तक उसके लिए (ईश्वर से) डराने वाले (न भेज दिए) हों। (26:208) ताकि (उनकी चेतावनी) शिक्षा सामग्री रहे और हम कदापि अत्याचारी नहीं थे। (26:209)