धर्म

तौहीद और शिर्क : उन्हें इस भूल में नहीं रहना चाहिए कि वे अपने कर्मों की सज़ा और प्रतिफल से बच जाएंगे : पार्ट-8

وَمَا أَرْسَلْنَاكَ إِلَّا مُبَشِّرًا وَنَذِيرًا (56) قُلْ مَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ إِلَّا مَنْ شَاءَ أَنْ يَتَّخِذَ إِلَى رَبِّهِ سَبِيلًا (57)

और (हे पैग़म्बर!) हमने तो आपको केवल शुभ-सूचना देने वाला और डराने वाला बना कर भेजा है। (25:56) कह दीजिए कि मैं इस (पैग़म्बरी और धर्म के प्रचार के) काम पर तुमसे कोई प्रतिफल नहीं माँगता सिवाय इसके कि जो कोई चाहे (मेरे मार्गदर्शन से) अपने पालनहार की ओर ले जाने वाला कोई मार्ग अपना ले। (25:57)

وَتَوَكَّلْ عَلَى الْحَيِّ الَّذِي لَا يَمُوتُ وَسَبِّحْ بِحَمْدِهِ وَكَفَى بِهِ بِذُنُوبِ عِبَادِهِ خَبِيرًا (58)

और (हे पैग़म्बर!) उस जीवन्त (ईश्वर) पर भरोसा कीजिए जो अमर है और उसकी प्रशंसा के साथ उसका गुणगान कीजिए। और उसके लिए अपने बन्दों के गुनाहों से अवगत होना ही काफ़ी है। (25:58)

الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ ثُمَّ اسْتَوَى عَلَى الْعَرْشِ الرَّحْمَنُ فَاسْأَلْ بِهِ خَبِيرًا (59)

(वही ईश्वर) जिसने आकाशों और धरती को और जो कुछ इन दोनों के बीच है, छः दिनों अर्थात चरणों में पैदा किया, फिर (शक्ति के) सिंहासन पर विराजमान हुआ (और उसने संसार के मामलों की युक्ति की)। वह अत्यंत दयावान है अतः उसी से पूछो कि वह हर चीज़ से अवगत है। (25:59)

وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ اسْجُدُوا لِلرَّحْمَنِ قَالُوا وَمَا الرَّحْمَنُ أَنَسْجُدُ لِمَا تَأْمُرُنَا وَزَادَهُمْ نُفُورًا (60)

और (हे पैग़म्बर!) जब उनसे कहा जाता है कि दयावान (ईश्वर) को सजदा करो तो वे कहते हैं, और दयावान क्या होता है? क्या तुम जिसका हमें आदेश दे रहे हो उसी को हम सजदा करने लगें? और (आपका) यह (निमंत्रण) उनकी घृणा को और बढ़ा देता है। (25:60)

تَبَارَكَ الَّذِي جَعَلَ فِي السَّمَاءِ بُرُوجًا وَجَعَلَ فِيهَا سِرَاجًا وَقَمَرًا مُنِيرًا (61) وَهُوَ الَّذِي جَعَلَ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ خِلْفَةً لِمَنْ أَرَادَ أَنْ يَذَّكَّرَ أَوْ أَرَادَ شُكُورًا (61)

(हर प्रकार की बुराई से) पवित्र है वह (ईश्वर) जिसने आकाश में राशियां बनाईं और उसमें (सूर्य के रूप में) एक चिराग़ और एक चमकता चाँद बनाया। (25:61) और वही है जिसने रात और दिन को एक-दूसरे के पीछे आने वाला बनाया, (यह) उस व्यक्ति के लिए (निशानी है) जो चेतना चाहे या कृतज्ञ होना चाहे। (25:62)

وَعِبَادُ الرَّحْمَنِ الَّذِينَ يَمْشُونَ عَلَى الْأَرْضِ هَوْنًا وَإِذَا خَاطَبَهُمُ الْجَاهِلُونَ قَالُوا سَلَامًا (62)

और दयावान (ईश्वर) के (सच्चे) बन्दे तो वही हैं जो धरती पर विनम्रता से चलते हैं और जब अज्ञानी उनसे संबोधित होते हैं (और तर्कहीन बात करते हैं) तो वे उत्तर में विनम्रतापूर्ण बात करते हैं। (25:63)