धर्म

तौहीद और शिर्क : उन्हें इस भूल में नहीं रहना चाहिए कि वे अपने कर्मों की सज़ा और प्रतिफल से बच जाएंगे : पार्ट-23

وَيَرَى الَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ الَّذِي أُنْزِلَ إِلَيْكَ مِنْ رَبِّكَ هُوَ الْحَقَّ وَيَهْدِي إِلَى صِرَاطِ الْعَزِيزِ الْحَمِيدِ (6) وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا هَلْ نَدُلُّكُمْ عَلَى رَجُلٍ يُنَبِّئُكُمْ إِذَا مُزِّقْتُمْ كُلَّ مُمَزَّقٍ إِنَّكُمْ لَفِي خَلْقٍ جَدِيدٍ (7)

और (हे पैग़म्बर!) जिन्हें ज्ञान प्रदान किया गया है वे अच्छी तरह जानते हैं कि जो कुछ आपके पालनहार की ओर से आप की ओर भेजा गया है, वह पूरी तरह सत्य है प्रभुत्वशाली व प्रशंसा के अधिकारी ईश्वर का मार्ग दिखाता है। (34:6) और इसका इन्कार करने वाले कहते हैं कि क्या हम तुम्हें ऐसा व्यक्ति बताएँ जो तुम्हें (यह) ख़बर देता है कि जब तुम (क़ब्र में) कण-कण हो जाओगे तो निश्चय ही तुम नए सिरे से पैदा कर दिए जाओगे? (34:7)

أَفْتَرَى عَلَى اللَّهِ كَذِبًا أَمْ بِهِ جِنَّةٌ بَلِ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآَخِرَةِ فِي الْعَذَابِ وَالضَّلَالِ الْبَعِيدِ (8) أَفَلَمْ يَرَوْا إِلَى مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ مِنَ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ إِنْ نَشَأْ نَخْسِفْ بِهِمُ الْأَرْضَ أَوْ نُسْقِطْ عَلَيْهِمْ كِسَفًا مِنَ السَّمَاءِ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآَيَةً لِكُلِّ عَبْدٍ مُنِيبٍ (9)

क्या उसने ईश्वर पर झूठ गढ़ कर थोपा है, या उसे कुछ पागलपन है? (ऐसा नहीं है) बल्कि जो लोग प्रलय पर ईमान नहीं रखते वे दंड और गहरी पथभ्रष्टता में हैं। (34:8) क्या उन्होंने आकाश और धरती में से जो कुछ उनके सामने और उनके पीछे है, उसे नहीं देखा? अगर हम चाहें तो उन्हें धरती में धँसा दें या उन पर आकाश से (पत्थरों के) कुछ टुकड़े गिरा दें। निश्चय ही इसमें हर उस बन्दे के लिए एक निशानी है जो तौबा करने वाला है। (34:9)

وَلَقَدْ آَتَيْنَا دَاوُودَ مِنَّا فَضْلًا يَا جِبَالُ أَوِّبِي مَعَهُ وَالطَّيْرَ وَأَلَنَّا لَهُ الْحَدِيدَ (10) أَنِ اعْمَلْ سَابِغَاتٍ وَقَدِّرْ فِي السَّرْدِ وَاعْمَلُوا صَالِحًا إِنِّي بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ (11)

और निश्चय ही हमने दाऊद को अपनी ओर से श्रेष्ठता प्रदान की थी (और आदेश दिया था कि) हे पर्वतो! उनके साथ (ईश्वर का) गुणगान करो, और (यही आदेश हमने) पक्षियों को भी दिया और हमने उनके लिए लोहे को नर्म कर दिया। (34:10) (इस आदेश के साथ) कि अच्छी कवचें बनाओं और उनकी कड़ियों को ठीक नाप से जोड़ो। और (हे दाऊद!) अच्छा कर्म करो, निःस्संदेह जो कुछ तुम करते हो उसे मैं देखने वाला हूँ। (34:11)

وَلِسُلَيْمَانَ الرِّيحَ غُدُوُّهَا شَهْرٌ وَرَوَاحُهَا شَهْرٌ وَأَسَلْنَا لَهُ عَيْنَ الْقِطْرِ وَمِنَ الْجِنِّ مَنْ يَعْمَلُ بَيْنَ يَدَيْهِ بِإِذْنِ رَبِّهِ وَمَنْ يَزِغْ مِنْهُمْ عَنْ أَمْرِنَا نُذِقْهُ مِنْ عَذَابِ السَّعِيرِ (12) يَعْمَلُونَ لَهُ مَا يَشَاءُ مِنْ مَحَارِيبَ وَتَمَاثِيلَ وَجِفَانٍ كَالْجَوَابِ وَقُدُورٍ رَاسِيَاتٍ اعْمَلُوا آَلَ دَاوُودَ شُكْرًا وَقَلِيلٌ مِنْ عِبَادِيَ الشَّكُورُ (13)

और हमने हवा को सुलैमान के वशीभूत कर दिया था जो भोर के समय एक महीने की रास्ता तै करती थी और शाम के समय (भी) एक महीने की राह तै करती थी और हमने उनके लिए (पिघले हुए) ताँबे का सोता बहा दिया और जिन्नों में से भी कुछ को (उनके वशीभूत कर दिया था) जो अपने पालनहार की अनुमति से उनके सामने काम किया करते थे। और (हमने कह दिया था कि) उनमें से जो भी हमारे आदेश की अवहेलना करेगा, उसे हम भड़कती आग के दंड का मज़ा चखाएँगे। (34:12) जो कुछ सुलैमान चाहते, वे जिन्न उनके लिए वह बना दिया करते थे, (जैसे) बड़े-बड़े दुर्ग, प्रतिमाएँ, हौज़ों जैसे प्याले और ज़मीन में गड़ी हुई बड़ी बड़ी देग़ें। हे दाऊद के संतान! (इतनी सारी अनुकंपाओं पर) कृतज्ञ रहो। और मेरे बन्दों में कृतज्ञ तो कम ही हैं। (34:13)

فَلَمَّا قَضَيْنَا عَلَيْهِ الْمَوْتَ مَا دَلَّهُمْ عَلَى مَوْتِهِ إِلَّا دَابَّةُ الْأَرْضِ تَأْكُلُ مِنْسَأَتَهُ فَلَمَّا خَرَّ تَبَيَّنَتِ الْجِنُّ أَنْ لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ الْغَيْبَ مَا لَبِثُوا فِي الْعَذَابِ الْمُهِينِ (14)

फिर जब हमने सुलैमान पर मौत का फ़ैसला लागू किया तो जिन्नों को उनकी मौत का पता देने वाली वाली कोई चीज़ धरती के उस कीड़े (दीमक) के अलावा न थी जो उनकी लाठी को खा रही थी। फिर जब वे गिर पड़े, तब जिन्नों पर यह स्पष्ट हुआ कि यदि वे ग़ैब अर्थात गुप्त ज्ञान के जानने वाले होते तो उस अपमानजनक दंड में पड़े न रहते। (34:14)

لَقَدْ كَانَ لِسَبَإٍ فِي مَسْكَنِهِمْ آَيَةٌ جَنَّتَانِ عَنْ يَمِينٍ وَشِمَالٍ كُلُوا مِنْ رِزْقِ رَبِّكُمْ وَاشْكُرُوا لَهُ بَلْدَةٌ طَيِّبَةٌ وَرَبٌّ غَفُورٌ (15)

निश्चित रूप से सबा (जाति के लोगों) के लिए उनके निवास की जगह में ही (ईश्वर की शक्ति व दया की) एक निशानी थी, दाएँ और बाएँ दो (बड़े) बाग़, अपने पालनहार की रोज़ी में से खाओ, और उसका आभार प्रकट करो। एक पवित्र शहर और एक क्षमाशील पालनहार। (34:15)

فَأَعْرَضُوا فَأَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ سَيْلَ الْعَرِمِ وَبَدَّلْنَاهُمْ بِجَنَّتَيْهِمْ جَنَّتَيْنِ ذَوَاتَيْ أُكُلٍ خَمْطٍ وَأَثْلٍ وَشَيْءٍ مِنْ سِدْرٍ قَلِيلٍ (16) ذَلِكَ جَزَيْنَاهُمْ بِمَا كَفَرُوا وَهَلْ نُجَازِي إِلَّا الْكَفُورَ (17)

लेकिन (सबा जाति के लोगों ने ईश्वर की ओर से) मुंह मोड़ लिया तो हमने उन पर भयंकर बाढ़ भेज दी और उनके दोनों (फलदार) बाग़ों के बदले में उन्हें दो दूसरे बाग़ दिए, जिनमें कड़वे-कसैले फल और झाड़ थे और कुछ थोड़ी सी बेरियाँ। (34:16) यह बदला हमने उन्हें इसलिए दिया कि उन्होंने अकृतज्ञता दिखाई और क्या अकृतज्ञ इंसान के अलावा हम किसी को ऐसा बदला देते हैं? (34:17)

وَجَعَلْنَا بَيْنَهُمْ وَبَيْنَ الْقُرَى الَّتِي بَارَكْنَا فِيهَا قُرًى ظَاهِرَةً وَقَدَّرْنَا فِيهَا السَّيْرَ سِيرُوا فِيهَا لَيَالِيَ وَأَيَّامًا آَمِنِينَ (18) فَقَالُوا رَبَّنَا بَاعِدْ بَيْنَ أَسْفَارِنَا وَظَلَمُوا أَنْفُسَهُمْ فَجَعَلْنَاهُمْ أَحَادِيثَ وَمَزَّقْنَاهُمْ كُلَّ مُمَزَّقٍ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآَيَاتٍ لِكُلِّ صَبَّارٍ شَكُورٍ (19)

और हमने उनके और उन बस्तियों के बीच, जिनमें हमने बरकत प्रदान की थी, प्रत्यक्ष (व एक दूसरे के निकट) बस्तियाँ बसाईं और उनमें सफ़र की मंज़िलें विशेष अंदाज़े पर रखीं। उनमें रात-दिन निश्चिन्त होकर पूरी सुरक्षा से चलो फिरो। (34:18) लेकिन उन्होंने (अकृतज्ञता से) कहाः हे हमारे पालनहार! हमारी यात्राओं में दूरी कर दे। उन्होंने स्वयं अपने ही ऊपर अत्याचार किया। अन्ततः हमने उन्हें (दूसरों के पाठ के लिए अतीत की) कहानियाँ बना कर रख दिया और उन्हें पूरी तरह तितर-बितर कर दिया। निश्चय ही इस (घटना) में हर धैर्यवान व कृतज्ञ के लिए निशानियाँ हैं। (34:19)

وَلَقَدْ صَدَّقَ عَلَيْهِمْ إِبْلِيسُ ظَنَّهُ فَاتَّبَعُوهُ إِلَّا فَرِيقًا مِنَ الْمُؤْمِنِينَ (20) وَمَا كَانَ لَهُ عَلَيْهِمْ مِنْ سُلْطَانٍ إِلَّا لِنَعْلَمَ مَنْ يُؤْمِنُ بِالْآَخِرَةِ مِمَّنْ هُوَ مِنْهَا فِي شَكٍّ وَرَبُّكَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ حَفِيظٌ (21)

और निश्चय ही इबलीस ने उनके विषय में अपना गुमान सही होता पाया तो ईमान वालों के एक (छोटे से) गुट के सिवा उन सभी ने उसी का अनुसरण किया। (34:20) और उसको उन लोगों पर किसी प्रकार का प्रभुत्व व अधिकार प्राप्त न था किन्तु यह इसलिए हुआ कि हम यह देखना चाहते थे कि कौन प्रलय पर ईमान रखता है और कौन उसकी ओर से सन्देह में पड़ा हुआ है। और तुम्हारा पालनहार हर चीज़ की निगरानी करने वाला है। (34:21)

قُلِ ادْعُوا الَّذِينَ زَعَمْتُمْ مِنْ دُونِ اللَّهِ لَا يَمْلِكُونَ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ فِي السَّمَاوَاتِ وَلَا فِي الْأَرْضِ وَمَا لَهُمْ فِيهِمَا مِنْ شِرْكٍ وَمَا لَهُ مِنْهُمْ مِنْ ظَهِيرٍ (22) وَلَا تَنْفَعُ الشَّفَاعَةُ عِنْدَهُ إِلَّا لِمَنْ أَذِنَ لَهُ حَتَّى إِذَا فُزِّعَ عَنْ قُلُوبِهِمْ قَالُوا مَاذَا قَالَ رَبُّكُمْ قَالُوا الْحَقَّ وَهُوَ الْعَلِيُّ الْكَبِيرُ (23)

(हे पैग़म्बर!) कह दीजिए कि ईश्वर को छोड़कर, जिन्हें तुम (पूज्य) समझते हो, पुकारो। वे कण भर चीज़ के भी न तो आकाशों में स्वामी हैं और न ही धरती में, और न आकाशों व धरती (के संचालन) में उनकी कोई भागीदारी है और न ही उनमें से कोई ईश्वर का सहायक है। (34:22) और जिसे ईश्वर ने (सिफ़ारिश की) अनुमति दी हो उसके अलावा उसके यहाँ (किसी की) कोई सिफ़ारिश काम नहीं आएगी यहाँ तक कि जब उनके दिलों से घबराहट दूर हो जाएगी, तो उनसे पूछा जाएगा, तुम्हारे पालनहार ने क्या कहा? वे कहेंगे, केवल हक़ और वह अत्यन्त उच्च (व) महान है। (34:23)

قُلْ مَنْ يَرْزُقُكُمْ مِنَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ قُلِ اللَّهُ وَإِنَّا أَوْ إِيَّاكُمْ لَعَلَى هُدًى أَوْ فِي ضَلَالٍ مُبِينٍ (24)

(हे पैग़म्बर!) इनसे पूछिए कि कौन तुम्हें आकाशों और धरती से रोज़ी देता है? कह दीजिए कि ईश्वर! तो अब अवश्य ही हम में या तुममें से कोई एक ही (सही) मार्ग पर या खुली पथभ्रष्टता में (पड़ा हुआ) है। (34:24)

قُلْ لَا تُسْأَلُونَ عَمَّا أَجْرَمْنَا وَلَا نُسْأَلُ عَمَّا تَعْمَلُونَ (25) قُلْ يَجْمَعُ بَيْنَنَا رَبُّنَا ثُمَّ يَفْتَحُ بَيْنَنَا بِالْحَقِّ وَهُوَ الْفَتَّاحُ الْعَلِيمُ (26) قُلْ أَرُونِيَ الَّذِينَ أَلْحَقْتُمْ بِهِ شُرَكَاءَ كَلَّا بَلْ هُوَ اللَّهُ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ (27)

(हे पैग़म्बर! उनसे) कह दीजिए कि जो ग़लती हमने की होगी, उसकी पूछताछ तुमसे नहीं होगी और जो कुछ तुम कर रहे हो, उसके बारे में हमसे नहीं पूछा जाएगा। (34:25) कह दीजिए कि हमारा पालनहार (प्रलय में) हम सबको इकट्ठा करेगा (और) फिर हमारे बीच ठीक-ठीक फ़ैसला कर देगा और वही उत्तम फ़ैसला करने वाला व अत्यन्त ज्ञानी है। (34:26) (उनसे) कह दीजिए कि जिन्हें तुमने ईश्वर का समकक्ष बना कर उससे जोड़ रखा है, मुझे उन्हें दिखाओ तो सही, कदापि ऐसा नहीं (हो सकता) है, बल्कि वही ईश्वर अत्यन्त प्रभुत्वशाली व तत्वदर्शी है। (34:27)

وَمَا أَرْسَلْنَاكَ إِلَّا كَافَّةً لِلنَّاسِ بَشِيرًا وَنَذِيرًا وَلَكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ (28)

और (हे पैग़म्बर!) हमने तो आपको केवल सभी मनुष्यों के लिए शुभ सूचना देने वाला और सावधान करने वाला बनाकर भेजा है किन्तु अधिकतर लोग जानते नहीं। (34:28)

وَيَقُولُونَ مَتَى هَذَا الْوَعْدُ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ (29) قُلْ لَكُمْ مِيعَادُ يَوْمٍ لَا تَسْتَأْخِرُونَ عَنْهُ سَاعَةً وَلَا تَسْتَقْدِمُونَ (30)

और वे कहते हैं कि यदि तुम सच्चे हो तो (प्रलय का) यह वादा कब पूरा होगा? (34:29) (हे पैग़म्बर!) कह दीजिए कि तुम्हारे लिए एक ऐसे दिन का वादा निर्धारित है जिसके आने में तुम न तो एक घड़ी का विलम्ब कर सकते हो और न ही एक घड़ी पहले उसे ला सकते हो। (34:30)

وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لَنْ نُؤْمِنَ بِهَذَا الْقُرْآَنِ وَلَا بِالَّذِي بَيْنَ يَدَيْهِ وَلَوْ تَرَى إِذِ الظَّالِمُونَ مَوْقُوفُونَ عِنْدَ رَبِّهِمْ يَرْجِعُ بَعْضُهُمْ إِلَى بَعْضٍ الْقَوْلَ يَقُولُ الَّذِينَ اسْتُضْعِفُوا لِلَّذِينَ اسْتَكْبَرُوا لَوْلَا أَنْتُمْ لَكُنَّا مُؤْمِنِينَ (31)

और ईश्वर का इन्कार करने वाले कहते हैं कि हम कदापि न तो इस क़ुरआन को मानेंगे और न ही इससे पहले आई हुई किसी किताब को। और काश तुम इनकी स्थिति उस समय देख पाते जब अत्याचारी अपने पालनहार के सामने खड़े कर दिए जाएँगे। (उस समय) ये एक-दूसरे पर आरोप धर रहे होंगे। जो लोग कमज़ोर बने हुए थे, वे उन लोगों से, जो बड़े बनते थे, कहेंगेः अगर तुम न होते तो हम अवश्य ही ईमान वाले होते। (34:31)

قَالَ الَّذِينَ اسْتَكْبَرُوا لِلَّذِينَ اسْتُضْعِفُوا أَنَحْنُ صَدَدْنَاكُمْ عَنِ الْهُدَى بَعْدَ إِذْ جَاءَكُمْ بَلْ كُنْتُمْ مُجْرِمِينَ (32) وَقَالَ الَّذِينَ اسْتُضْعِفُوا لِلَّذِينَ اسْتَكْبَرُوا بَلْ مَكْرُ اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ إِذْ تَأْمُرُونَنَا أَنْ نَكْفُرَ بِاللَّهِ وَنَجْعَلَ لَهُ أَنْدَادًا وَأَسَرُّوا النَّدَامَةَ لَمَّا رَأَوُا الْعَذَابَ وَجَعَلْنَا الْأَغْلَالَ فِي أَعْنَاقِ الَّذِينَ كَفَرُوا هَلْ يُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ (33)

वे लोग जो बड़े बनते थे, उन लोगों से, जो कमज़ोर बने हुए थे, कहेंगेः क्या हमने तुम्हें उस मार्गदर्शन से रोका था जो तुम्हारे पास आया था? (नहीं) बल्कि तुम स्वयं ही अपराधी थे। (34:32) वे लोग जो कमज़ोर बने हुए थे, उन बड़े बनने वालों से कहेंगेः नहीं, बल्कि वह रात-दिन की धूर्तता थी जब तुम हमसे कहते थे कि हम ईश्वर का इन्कार करें और दूसरों को उसका समकक्ष ठहराएँ। अंततः जब ये लोग यातना देखेंगे तो अपने मन में पछताएँगे और हम उन लोगों के गलों में जिन्होंने कुफ़्र की नीति अपनाई, ज़ंजीरें डाल देंगे। क्या उन्हें उसके सिवा कोई और बदला दिया जा सकता है जैसे कर्म वे करते रहे थे? (34:33)

وَمَا أَرْسَلْنَا فِي قَرْيَةٍ مِنْ نَذِيرٍ إِلَّا قَالَ مُتْرَفُوهَا إِنَّا بِمَا أُرْسِلْتُمْ بِهِ كَافِرُونَ (34) وَقَالُوا نَحْنُ أَكْثَرُ أَمْوَالًا وَأَوْلَادًا وَمَا نَحْنُ بِمُعَذَّبِينَ (35)

और हमने जिस बस्ती में भी कोई सचेतकर्ता भेजा तो वहाँ के संपन्न लोगों ने यही कहा कि जो (संदेश) देकर तुम्हें भेजा गया है, हम उसे नहीं मानते। (34:34) और उन्होंने कहा कि हम तो धन और संतान में (तुमसे) बढ़कर हैं और हम दंडित होने वाले नहीं हैं। (34:35)

قُلْ إِنَّ رَبِّي يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَنْ يَشَاءُ وَيَقْدِرُ وَلَكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ (36)

(हे पैग़म्बर! इन से) कह दीजिए कि निःसंदेह मेरा पालनहार जिसे चाहता है व्यापक आजीविका प्रदान करता है और जिसे चाहता है नपी-तुली आजीविका देता है किन्तु अधिकांश लोग (इसकी वास्तविकता) नहीं जानते। (34:36)

وَمَا أَمْوَالُكُمْ وَلَا أَوْلَادُكُمْ بِالَّتِي تُقَرِّبُكُمْ عِنْدَنَا زُلْفَى إِلَّا مَنْ آَمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا فَأُولَئِكَ لَهُمْ جَزَاءُ الضِّعْفِ بِمَا عَمِلُوا وَهُمْ فِي الْغُرُفَاتِ آَمِنُونَ (37)

और यह तुम्हारा माल व तुम्हारी सन्तान नहीं है जो तुम्हें हमसे निकट करती है सिवाय उसके जो कोई ईमान लाए और सद्कर्म करे तो ऐसे ही लोग हैं जिनके लिए उनके कर्म का दुगना प्रतिफल है। और वे (स्वर्ग के शानदार) कमरों में निश्चिन्त हो कर रहेंगे। (34:37)

وَالَّذِينَ يَسْعَوْنَ فِي آَيَاتِنَا مُعَاجِزِينَ أُولَئِكَ فِي الْعَذَابِ مُحْضَرُونَ (38)

और जिन लोगों ने यह सोच कर हमारी आयतों को झुठलाने की कोशिश की कि वे हमें असहाय कर सकते हैं, वे (ईश्वरीय) दंड में ग्रस्त किए जाएँगे। (34:38)

قُلْ إِنَّ رَبِّي يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَنْ يَشَاءُ مِنْ عِبَادِهِ وَيَقْدِرُ لَهُ وَمَا أَنْفَقْتُمْ مِنْ شَيْءٍ فَهُوَ يُخْلِفُهُ وَهُوَ خَيْرُ الرَّازِقِينَ (39)

(हे पैग़म्बर!) उनसे कह दीजिए कि मेरा पालनहार अपने बन्दों में से जिसे चाहता है व्यापक रोज़ी प्रदान करता है और जिसे चाहता है नपी-तुली रोज़ी देता है। और जो कुछ भी तुम (उसकी राह में) ख़र्च करते हो, वही उसकी जगह तुम्हें और (माल) देता है और वही रोज़ी देने वालों में सबसे अच्छा है। (34:39)

وَيَوْمَ يَحْشُرُهُمْ جَمِيعًا ثُمَّ يَقُولُ لِلْمَلَائِكَةِ أَهَؤُلَاءِ إِيَّاكُمْ كَانُوا يَعْبُدُونَ (40) قَالُوا سُبْحَانَكَ أَنْتَ وَلِيُّنَا مِنْ دُونِهِمْ بَلْ كَانُوا يَعْبُدُونَ الْجِنَّ أَكْثَرُهُمْ بِهِمْ مُؤْمِنُونَ (41)

और जिस दिन वह उन सभी को इकट्ठा करेगा फिर फ़रिश्तों से पूछेगा कि क्या ये लोग तुम्हारी ही उपासना किया करते थे? (34:40) वे कहेंगे कि (प्रभुवर!) तू हर बुराई से पवित्र है, हमारा स्वामी तू है, ये नहीं, बल्कि वास्तव में ये (हमारी नहीं बल्कि) जिन्नों की उपासना करते थे (और) इनमें से अधिकतर उन्हीं पर ईमान लाए हुए थे। (34:41)

فَالْيَوْمَ لَا يَمْلِكُ بَعْضُكُمْ لِبَعْضٍ نَفْعًا وَلَا ضَرًّا وَنَقُولُ لِلَّذِينَ ظَلَمُوا ذُوقُوا عَذَابَ النَّارِ الَّتِي كُنْتُمْ بِهَا تُكَذِّبُونَ (42)

तो (उस समय हम कहेंगे कि) आज तुममें से कोई न किसी को लाभ पहुंचाने का अधिकार रखता है और न ही हानि पहुंचाने का। और हम उन अत्याचारियों से कहेंगे कि अब (नरक की) उस आग के दंड का मज़ा चखो जिसे तुम झुठलाया करते थे। (34:42)

وَإِذَا تُتْلَى عَلَيْهِمْ آَيَاتُنَا بَيِّنَاتٍ قَالُوا مَا هَذَا إِلَّا رَجُلٌ يُرِيدُ أَنْ يَصُدَّكُمْ عَمَّا كَانَ يَعْبُدُ آَبَاؤُكُمْ وَقَالُوا مَا هَذَا إِلَّا إِفْكٌ مُفْتَرًى وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِلْحَقِّ لَمَّا جَاءَهُمْ إِنْ هَذَا إِلَّا سِحْرٌ مُبِينٌ (43)

और जब उन्हें हमारी स्पष्ट आयतें (पढ़कर) सुनाई जाती हैं तो वे कहते हैं कि यह व्यक्ति तो बस यही चाहता है कि तुम्हें उन (मूर्तियों की उपासना) से रोक दे जिनकी उपासना तुम्हारे बाप-दादा करते आ रहे हैं। और वे कहते हैं कि यह (क़ुरआन) तो एक घड़ा हुआ झूठ है। और काफ़िरों के सामने जैसे ही सत्य आया तो उन्होंने कह दिया कि यह तो एक स्पष्ट जादू के अलावा कुछ नहीं है। (34:43)

وَمَا آَتَيْنَاهُمْ مِنْ كُتُبٍ يَدْرُسُونَهَا وَمَا أَرْسَلْنَا إِلَيْهِمْ قَبْلَكَ مِنْ نَذِيرٍ (44) وَكَذَّبَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ وَمَا بَلَغُوا مِعْشَارَ مَا آَتَيْنَاهُمْ فَكَذَّبُوا رُسُلِي فَكَيْفَ كَانَ نَكِيرِ (45)

और हमने न इन लोगों को पहले (आसमानी) किताबें दी थीं कि ये उन्हें पढ़ते हों और न आपसे पहले इनकी ओर कोई सचेतकर्ता भेजा था। (34:44) और जो लोग इनसे पहले गुज़र चुके हैं, उन्होंने भी (पैग़म्बरों को) झुठलाया था। और जो कुछ हमने उन्हें दिया था ये तो उसके दसवें भाग को भी नहीं पहुँचे हैं। मगर जब उन्होंने मेरे पैग़म्बरों को झुठलाया तो फिर (देख लो कि) मेरा दंड कैसा (कड़ा) था! (34:45)