धर्म

तौहीद और शिर्क : उन्हें इस भूल में नहीं रहना चाहिए कि वे अपने कर्मों की सज़ा और प्रतिफल से बच जाएंगे : पार्ट-22

إِنَّ الْمُسْلِمِينَ وَالْمُسْلِمَاتِ وَالْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ وَالْقَانِتِينَ وَالْقَانِتَاتِ وَالصَّادِقِينَ وَالصَّادِقَاتِ وَالصَّابِرِينَ وَالصَّابِرَاتِ وَالْخَاشِعِينَ وَالْخَاشِعَاتِ وَالْمُتَصَدِّقِينَ وَالْمُتَصَدِّقَاتِ وَالصَّائِمِينَ وَالصَّائِمَاتِ وَالْحَافِظِينَ فُرُوجَهُمْ وَالْحَافِظَاتِ وَالذَّاكِرِينَ اللَّهَ كَثِيرًا وَالذَّاكِرَاتِ أَعَدَّ اللَّهُ لَهُمْ مَغْفِرَةً وَأَجْرًا عَظِيمًا (35)

निश्चित रूप से मुस्लिम पुरुष और मुस्लिम महिलाएं, ईमान वाले पुरुष और ईमान वाली महिलाएं, निष्ठापूर्वक आज्ञापालन करने वाले पुरुष और निष्ठापूर्वक आज्ञापालन करने वाली महिलाएं, सच्चे पुरुष और सच्ची महिलाएं, धैर्यवान पुरुष और धैर्यवान महिलाएं, विनम्र पुरुष और विनम्र महिलाएं, दान देने वाले पुरुष और दान देने वाली महिलाएं, रोज़ा रखने वाले पुरुष और रोज़ा रखने वाली महिलाएं, अपनी पवित्रता की रक्षा करने वाले पुरुष और अपनी पवित्रता की रक्षा करने वाली महिलाएं और ईश्वर को अधिक याद करने वाले पुरुष और उसे अधिक याद करने वाली महिलाएं, इन सबके लिए ईश्वर ने क्षमा और बड़ा प्रतिफल तैयार कर रखा है। (33:35)

وَمَا كَانَ لِمُؤْمِنٍ وَلَا مُؤْمِنَةٍ إِذَا قَضَى اللَّهُ وَرَسُولُهُ أَمْرًا أَنْ يَكُونَ لَهُمُ الْخِيَرَةُ مِنْ أَمْرِهِمْ وَمَنْ يَعْصِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَالًا مُبِينًا (36)

और जब ईश्वर और उसका पैग़म्बर किसी मामले का फ़ैसला कर दें तो फिर न तो किसी ईमान वाले पुरुष और न ही किसी ईमान वाली स्त्री को यह हक़ है कि उसे अपने मामले में फ़ैसला करने का अधिकार रह जाता है और जो कोई ईश्वर और उसके पैग़म्बर की अवज्ञा करे तो वह खुली हुई पथभ्रष्टता में पड़ गया है। (33:36)

وَإِذْ تَقُولُ لِلَّذِي أَنْعَمَ اللَّهُ عَلَيْهِ وَأَنْعَمْتَ عَلَيْهِ أَمْسِكْ عَلَيْكَ زَوْجَكَ وَاتَّقِ اللَّهَ وَتُخْفِي فِي نَفْسِكَ مَا اللَّهُ مُبْدِيهِ وَتَخْشَى النَّاسَ وَاللَّهُ أَحَقُّ أَنْ تَخْشَاهُ فَلَمَّا قَضَى زَيْدٌ مِنْهَا وَطَرًا زَوَّجْنَاكَهَا لِكَيْ لَا يَكُونَ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ حَرَجٌ فِي أَزْوَاجِ أَدْعِيَائِهِمْ إِذَا قَضَوْا مِنْهُنَّ وَطَرًا وَكَانَ أَمْرُ اللَّهِ مَفْعُولًا (37) مَا كَانَ عَلَى النَّبِيِّ مِنْ حَرَجٍ فِيمَا فَرَضَ اللَّهُ لَهُ سُنَّةَ اللَّهِ فِي الَّذِينَ خَلَوْا مِنْ قَبْلُ وَكَانَ أَمْرُ اللَّهِ قَدَرًا مَقْدُورًا (38)

और (हे पैग़म्बर! याद कीजिए उस समय को) जब आप उस व्यक्ति से कह रहे थे, जिसे ईश्वर ने (इस्लाम की) अनुकंपा प्रदान की और आपने भी (स्वतंत्रता की) अनुकंपा दी कि अपनी पत्नी को अपने पास रोके रखो, (उसे तलाक़ न दो) और ईश्वर का डर रखो, और उस समय आप अपने दिल में वह बात छिपाए हुए थे जिसे ईश्वर प्रकट करना चाहता था। आप लोगों से डर रहे थे, जबकि ईश्वर इसका ज़्यादा हक़ रखता है कि आप उससे डरिए। फिर जब ज़ैद उससे अपनी ज़रूरत पूरी कर चुका तो हमने उसका आपसे विवाह कर दिया ताकि ईमान वालों पर अपने मुँह बोले बेटों की पत्नियों के मामले में कोई तंगी न रहे जबकि वे उनसे अपनी ज़रूरत पूरी कर चुके हों। और ईश्वर का फ़ैसला तो पूरा होकर ही रहता है (33:37) पैग़म्बर पर उस काम में कोई तंगी (या रुकावट) नहीं है जो ईश्वर ने उनके लिए निर्धारित कर दिया हो। ईश्वर की यही परंपरा उन पैग़म्बरों के मामले में भी (प्रचलित) रही है जो पहले गुज़र चुके हैं और ईश्वर का आदेश तो नपा तुला और निश्चित होता है। (33:38)

الَّذِينَ يُبَلِّغُونَ رِسَالَاتِ اللَّهِ وَيَخْشَوْنَهُ وَلَا يَخْشَوْنَ أَحَدًا إِلَّا اللَّهَ وَكَفَى بِاللَّهِ حَسِيبًا (39)

(ये वे लोग हैं) जो ईश्वर के सन्देश पहुँचाते हैं और उससे डरते हैं और ईश्वर के सिवा किसी से नहीं डरते। और हिसाब के लिए ईश्वर काफ़ी है। (33:39)

مَا كَانَ مُحَمَّدٌ أَبَا أَحَدٍ مِنْ رِجَالِكُمْ وَلَكِنْ رَسُولَ اللَّهِ وَخَاتَمَ النَّبِيِّينَ وَكَانَ اللَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمًا (40)

मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) तुम्हारे पुरुषों में से किसी के बाप नहीं हैं बल्कि वे ईश्वर के पैग़म्बर और अंतिम नबी हैं। और ईश्वर हर चीज़ का पूरा ज्ञान रखने वाला है। (33:40)

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آَمَنُوا اذْكُرُوا اللَّهَ ذِكْرًا كَثِيرًا (41) وَسَبِّحُوهُ بُكْرَةً وَأَصِيلًا (42)

हे ईमान वालो! ईश्वर को बहुत अधिक याद करो। (33:41) और प्रातःकाल और संध्या के समय उसका गुणगान करते रहो। (33:42)

هُوَ الَّذِي يُصَلِّي عَلَيْكُمْ وَمَلَائِكَتُهُ لِيُخْرِجَكُمْ مِنَ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ وَكَانَ بِالْمُؤْمِنِينَ رَحِيمًا (43) تَحِيَّتُهُمْ يَوْمَ يَلْقَوْنَهُ سَلَامٌ وَأَعَدَّ لَهُمْ أَجْرًا كَرِيمًا (44)

वही है जो तुम पर दया भेजता है और उसके फ़रिश्ते भी (तुम्हारे लिए दया की दुआ करते हैं) ताकि वह तुम्हें अँधरों से प्रकाश की ओर निकाल लाए। और वह ईमान वालों के लिए (हमेशा ही) बहुत दयालु है। (33:43) जिस दिन वे उससे मिलेंगे उस दिन उनका अभिवादन सलाम होगा और ईश्वर ने उनके लिए भला प्रतिफल तैयार कर रखा है। (33:44)

يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ إِنَّا أَرْسَلْنَاكَ شَاهِدًا وَمُبَشِّرًا وَنَذِيرًا (45) وَدَاعِيًا إِلَى اللَّهِ بِإِذْنِهِ وَسِرَاجًا مُنِيرًا (46)

हे पैग़म्बर! निश्चित रूप से हमने आपको (लोगों पर) गवाह, शुभ सूचना देने वाला और सचेत करने वाला बनाकर भेजा है। (33:45) और इसी तरह हमने आपको ईश्वर के आदेश से उसकी ओर बुलाने वाला और प्रकाशमान दीपक बना कर भेजा है। (33:46)

وَبَشِّرِ الْمُؤْمِنِينَ بِأَنَّ لَهُمْ مِنَ اللَّهِ فَضْلًا كَبِيرًا (47) وَلَا تُطِعِ الْكَافِرِينَ وَالْمُنَافِقِينَ وَدَعْ أَذَاهُمْ وَتَوَكَّلْ عَلَى اللَّهِ وَكَفَى بِاللَّهِ وَكِيلًا (48)

और (हे पैग़म्बर!) ईमान वालों को शुभ सूचना दे दीजिए कि उनके लिए ईश्वर की ओर से बड़ी कृपा है। (33:47) और काफ़िरों व मिथ्याचारियों की बातों का पालन न कीजिए और उनकी यातनाओं को (ईश्वर पर) छोड़ दीजिए। और ईश्वर पर भरोसा कीजिए कि भरोसे के लिए ईश्वर ही काफ़ी है। (33:48)

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آَمَنُوا إِذَا نَكَحْتُمُ الْمُؤْمِنَاتِ ثُمَّ طَلَّقْتُمُوهُنَّ مِنْ قَبْلِ أَنْ تَمَسُّوهُنَّ فَمَا لَكُمْ عَلَيْهِنَّ مِنْ عِدَّةٍ تَعْتَدُّونَهَا فَمَتِّعُوهُنَّ وَسَرِّحُوهُنَّ سَرَاحًا جَمِيلًا (49)

हे ईमान वालो! जब तुम ईमान वाली महिलाओं से विवाह करो और फिर उन्हें हाथ लगाने से पहले तलाक़ दे दो तो तुम्हारी ओर से उन पर कोई इद्दत नहीं, जिसकी तुम मांग करो। अतः उन्हें कुछ माल दो और भले ढंग से विदा कर दो। (33:49)

يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ إِنَّا أَحْلَلْنَا لَكَ أَزْوَاجَكَ اللَّاتِي آَتَيْتَ أُجُورَهُنَّ وَمَا مَلَكَتْ يَمِينُكَ مِمَّا أَفَاءَ اللَّهُ عَلَيْكَ وَبَنَاتِ عَمِّكَ وَبَنَاتِ عَمَّاتِكَ وَبَنَاتِ خَالِكَ وَبَنَاتِ خَالَاتِكَ اللَّاتِي هَاجَرْنَ مَعَكَ وَامْرَأَةً مُؤْمِنَةً إِنْ وَهَبَتْ نَفْسَهَا لِلنَّبِيِّ إِنْ أَرَادَ النَّبِيُّ أَنْ يَسْتَنْكِحَهَا خَالِصَةً لَكَ مِنْ دُونِ الْمُؤْمِنِينَ قَدْ عَلِمْنَا مَا فَرَضْنَا عَلَيْهِمْ فِي أَزْوَاجِهِمْ وَمَا مَلَكَتْ أَيْمَانُهُمْ لِكَيْلَا يَكُونَ عَلَيْكَ حَرَجٌ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَحِيمًا (50)

हे पैग़म्बर! हमने आपके लिए आपकी वे पत्नियां हलाल अर्थात वैध कर दीं जिनका मेहर आप दे चुके हैं और वे महिलाएं भी जो आपके स्वामित्व में आईं जिन्हें ईश्वर ने ग़नीमत (अर्थात युद्ध में जीते गए माल) के रूप में आपको प्रदान किया और आपकी वे चचेरी, फूफेरी, ममेरी और ख़लेरी बहनें भी जिन्होंने आपके साथ पलायन किया है और वह ईमान वाली महिला भी जिसने अपने आपको पैग़म्बर के लिए विशेष कर दिया है (और मेहर नहीं चाहती है), अगर पैग़म्बर उससे विवाह करना चाहें (तो यह उनके लिए हलाल है)। यह अधिकार ईमान वालों के लिए नहीं है बल्कि केवल आपसे विशेष है। हमें ज्ञात है कि हमने उनकी पत्नियों और उनकी दासियों के बारे में उन पर क्या आदेश अनिवार्य किया है (हमने उस आदेश से आपको अपवाद कर दिया है) ताकि आप पर कोई तंगी न रहे। और ईश्वर अत्यंत क्षमाशील (व) दयावान है (33:50)

تُرْجِي مَنْ تَشَاءُ مِنْهُنَّ وَتُؤْوِي إِلَيْكَ مَنْ تَشَاءُ وَمَنِ ابْتَغَيْتَ مِمَّنْ عَزَلْتَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْكَ ذَلِكَ أَدْنَى أَنْ تَقَرَّ أَعْيُنُهُنَّ وَلَا يَحْزَنَّ وَيَرْضَيْنَ بِمَا آَتَيْتَهُنَّ كُلُّهُنَّ وَاللَّهُ يَعْلَمُ مَا فِي قُلُوبِكُمْ وَكَانَ اللَّهُ عَلِيمًا حَلِيمًا (51)

(हे पैग़म्बर!) आपको अधिकार दिया जाता है कि अपनी पत्नियों में से जिसे चाहिए अपने से अलग रखिए और जिसे चाहिए अपने पास रखिए और जिसे चाहिए अलग रखने के बाद अपने पास बुला लीजिए। इस मामले में आप पर कोई दोष नहीं है। इससे इस बात की अधिक संभावना है कि उनकी आँखें ठंडी रहेंगी और वे दुखी नहीं होंगी और जो कुछ आप उन्हें देंगे उस पर वे राज़ी रहेंगी। जो कुछ तुम्हारे दिलों में है उसे ईश्वर जानता है। और ईश्वर अत्यंत जानकार व सहनशील है। (33:51)

لَا يَحِلُّ لَكَ النِّسَاءُ مِنْ بَعْدُ وَلَا أَنْ تَبَدَّلَ بِهِنَّ مِنْ أَزْوَاجٍ وَلَوْ أَعْجَبَكَ حُسْنُهُنَّ إِلَّا مَا مَلَكَتْ يَمِينُكَ وَكَانَ اللَّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ رَقِيبًا (52)

(हे पैग़म्बर!) इसके बाद आपके लिए दूसरी स्त्रियाँ हलाल अर्थात वैध नहीं हैं और न ही इस बात की अनुमति है कि आप उनकी जगह दूसरी पत्नियां ले आएं, चाहे उनका सौन्दर्य आपको कितना ही क्यों न भाए। अलबत्ता दासियों की आपको अनुमति है और ईश्वर हर चीज़ पर नज़र रखने वाला है। (33:52)

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آَمَنُوا لَا تَدْخُلُوا بُيُوتَ النَّبِيِّ إِلَّا أَنْ يُؤْذَنَ لَكُمْ إِلَى طَعَامٍ غَيْرَ نَاظِرِينَ إِنَاهُ وَلَكِنْ إِذَا دُعِيتُمْ فَادْخُلُوا فَإِذَا طَعِمْتُمْ فَانْتَشِرُوا وَلَا مُسْتَأْنِسِينَ لِحَدِيثٍ إِنَّ ذَلِكُمْ كَانَ يُؤْذِي النَّبِيَّ فَيَسْتَحْيِي مِنْكُمْ وَاللَّهُ لَا يَسْتَحْيِي مِنَ الْحَقِّ وَإِذَا سَأَلْتُمُوهُنَّ مَتَاعًا فَاسْأَلُوهُنَّ مِنْ وَرَاءِ حِجَابٍ ذَلِكُمْ أَطْهَرُ لِقُلُوبِكُمْ وَقُلُوبِهِنَّ وَمَا كَانَ لَكُمْ أَنْ تُؤْذُوا رَسُولَ اللَّهِ وَلَا أَنْ تَنْكِحُوا أَزْوَاجَهُ مِنْ بَعْدِهِ أَبَدًا إِنَّ ذَلِكُمْ كَانَ عِنْدَ اللَّهِ عَظِيمًا (53) إِنْ تُبْدُوا شَيْئًا أَوْ تُخْفُوهُ فَإِنَّ اللَّهَ كَانَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمًا (54)

हे ईमान वालो! पैग़म्बर के घरों में न जाया करो सिवाय इसके कि कभी तुम्हें खाने के लिए अनुमति दी जाए। वह भी इस तरह कि (समय से पहले पहुंच कर) खाना पकने की प्रतिक्षा में न रहो। हां, जब तुम्हें बुलाया जाए तो (उस वक़्त) अंदर जाओ और फिर जब तुम खा चुको तो तुरंत उठकर चले जाओ और वहां बातों में (दिल लगा कर बैठे) रहने वाले न बनो। निश्चय ही यह (यानी तुम्हारा देर तक बैठे रहना) पैग़म्बर को तकलीफ़ देता है और उन्हें तुमसे (जाने को कहते हुए) लज्जा आती है लेकिन ईश्वर सही बात कहने से नहीं शर्माता। और जब तुम उन (की पत्नियों) से कुछ माँगो तो पर्दे के पीछे से माँगो। यह (शिष्टाचार) तुम्हारे दिलों के लिए भी और उनके दिलों के लिए भी बड़ी पवित्रता का कारण है। (हे ईमान वालो!) तुम्हारे लिए वैध नहीं कि तुम ईश्वर के पैग़म्बर को तकलीफ़ पहुँचाओ और न यह (वैध है) कि उनके बाद कभी उनकी पत्नियों से विवाह करो। निश्चय ही यह ईश्वर की दृष्टि में बड़ी (बुरी) बात है। (33:53) तुम चाहे किसी चीज़ को व्यक्त करो या उसे छिपाओ, निश्चय ही ईश्वर तो हर चीज़ का ज्ञान रखने वाला है। (33:54)

لَا جُنَاحَ عَلَيْهِنَّ فِي آَبَائِهِنَّ وَلَا أَبْنَائِهِنَّ وَلَا إِخْوَانِهِنَّ وَلَا أَبْنَاءِ إِخْوَانِهِنَّ وَلَا أَبْنَاءِ أَخَوَاتِهِنَّ وَلَا نِسَائِهِنَّ وَلَا مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُهُنَّ وَاتَّقِينَ اللَّهَ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدًا (55)

महिलाओं के लिए इसमें कोई पाप नहीं है कि वे अपने पिताओं, अपने बेटों, अपने भाइयों, अपने भतीजों, अपने भांजों, अपने जैसी स्त्रियों और अपनी दासियों के सामने बिना हिजाब के नहीं। तुम सब ईश्वर से डरती रहो कि निश्चय ही ईश्वर हर चीज़ का साक्षी है। (33:55)

إِنَّ اللَّهَ وَمَلَائِكَتَهُ يُصَلُّونَ عَلَى النَّبِيِّ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آَمَنُوا صَلُّوا عَلَيْهِ وَسَلِّمُوا تَسْلِيمًا (56)

निःसंदेह ईश्वर और उसके फ़रिश्ते पैग़म्बर पर दुरूद भेजते हैं तो हे ईमान वालो! तुम भी उन पर दुरूद व सलाम भेजो और उनका संपूर्ण आज्ञापालन करते रहो। (33:56)

إِنَّ الَّذِينَ يُؤْذُونَ اللَّهَ وَرَسُولَهُ لَعَنَهُمُ اللَّهُ فِي الدُّنْيَا وَالْآَخِرَةِ وَأَعَدَّ لَهُمْ عَذَابًا مُهِينًا (57) وَالَّذِينَ يُؤْذُونَ الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ بِغَيْرِ مَا اكْتَسَبُوا فَقَدِ احْتَمَلُوا بُهْتَانًا وَإِثْمًا مُبِينًا (58)

निश्चित रूप से जो लोग ईश्वर और उसके पैग़म्बर को यातनाएं देते हैं, ईश्वर लोक-परलोक में उन पर धिक्कार करता है और उसने उनके लिए अपमानजनक दंड तैयार कर रखा है। (33:57) और जो लोग ईमान वाले पुरुषों व महिलाओं को अकारण (आरोप लगाकर) यातना देते है, उन्होंने एक बड़े लांछन और स्पष्ट पाप का बोझ अपने सिर ले लिया है। (33:58)

يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ قُلْ لِأَزْوَاجِكَ وَبَنَاتِكَ وَنِسَاءِ الْمُؤْمِنِينَ يُدْنِينَ عَلَيْهِنَّ مِنْ جَلَابِيبِهِنَّ ذَلِكَ أَدْنَى أَنْ يُعْرَفْنَ فَلَا يُؤْذَيْنَ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَحِيمًا (59)

हे पैग़म्बर! अपनी पत्नियों व बेटियों और ईमान वाली महिलाओं से कह दीजिए कि वे अपने ऊपर अपनी चादरों का कुछ हिस्सा लटका लिया करें। यह अधिक उचित तरीक़ा है ताकि वे पहचान ली जाएँ और सताई न जाएँ और ईश्वर बड़ा क्षमाशील व दयावान है। (33:59)

لَئِنْ لَمْ يَنْتَهِ الْمُنَافِقُونَ وَالَّذِينَ فِي قُلُوبِهِمْ مَرَضٌ وَالْمُرْجِفُونَ فِي الْمَدِينَةِ لَنُغْرِيَنَّكَ بِهِمْ ثُمَّ لَا يُجَاوِرُونَكَ فِيهَا إِلَّا قَلِيلًا (60) مَلْعُونِينَ أَيْنَمَا ثُقِفُوا أُخِذُوا وَقُتِّلُوا تَقْتِيلًا (61) سُنَّةَ اللَّهِ فِي الَّذِينَ خَلَوْا مِنْ قَبْلُ وَلَنْ تَجِدَ لِسُنَّةِ اللَّهِ تَبْدِيلًا (62)

मिथ्याचारी और वे लोग जिनके दिलों में रोग है और मदीना में खलबली पैदा करने वाली अफ़वाहें फैलाने वाले अगर (अपनी हरकतों से) बाज़ न आए तो हम आपको उनके विरुद्ध खड़ा करे देंगे। फिर वे मदीने में आपके साथ बस कुछ ही समय रह पाएँग। (33:60) वे हर ओर से धिक्कारे हुए होंगे, जहाँ कहीं पाए जाएंगे पकड़े जाएँगे और बुरी तरह जान से मारे जाएँगें। (33:61) यह उन लोगों के विषय में ईश्वर की परपंरा रही है जो इससे पहले गुज़र चुके हैं। और आप ईश्वर की परंपरा में कभी भी परिवर्तन नहीं पाएंगे। (33:62)

يَسْأَلُكَ النَّاسُ عَنِ السَّاعَةِ قُلْ إِنَّمَا عِلْمُهَا عِنْدَ اللَّهِ وَمَا يُدْرِيكَ لَعَلَّ السَّاعَةَ تَكُونُ قَرِيبًا (63)

(हे पैग़म्बर!) लोग आपसे प्रलय के समय के बारे में पूछते हैं। कह दीजिए कि उसका ज्ञान तो बस ईश्वर ही के पास है। आपको क्या मालूम? शायद वह समय निकट ही हो। (33:63)

إِنَّ اللَّهَ لَعَنَ الْكَافِرِينَ وَأَعَدَّ لَهُمْ سَعِيرًا (64) خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا لَا يَجِدُونَ وَلِيًّا وَلَا نَصِيرًا (65) يَوْمَ تُقَلَّبُ وُجُوهُهُمْ فِي النَّارِ يَقُولُونَ يَا لَيْتَنَا أَطَعْنَا اللَّهَ وَأَطَعْنَا الرَّسُولَا (66)

निश्चय ही ईश्वर ने काफ़िरों पर धिक्कार की है और उनके लिए भड़कती आग तैयार कर रखी है। (33:64) जिसमें वे सदैव रहेंगे, जहां उन्हें न कोई समर्थक मिलेगा और न ही कोई सहायक। (33:65) जिस दिन उनके चेहरे आग में (बार बार) पलटाए जाएँगे (और) वे (निराशा से) कहेंगे कि काश हमने ईश्वर का आज्ञापालन किया होता और (काश हमने) पैग़म्बर का (भी) आज्ञापालन किया होता! (33:66)

وَقَالُوا رَبَّنَا إِنَّا أَطَعْنَا سَادَتَنَا وَكُبَرَاءَنَا فَأَضَلُّونَا السَّبِيلَا (67) رَبَّنَا آَتِهِمْ ضِعْفَيْنِ مِنَ الْعَذَابِ وَالْعَنْهُمْ لَعْنًا كَبِيرًا (68)

और वे कहते हैं, हे हमारे पालनहार! निश्चित रूप से हमने अपने सरदारों और अपने बड़ों का आज्ञापालन किया और उन्होंने हमें मार्ग से भटका दिया। (33:67) हे हमारे पालनहार! उन्हें दोहरा दंड दे और उन पर कड़ी धिक्कार कर! (33:68)

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آَمَنُوا لَا تَكُونُوا كَالَّذِينَ آَذَوْا مُوسَى فَبَرَّأَهُ اللَّهُ مِمَّا قَالُوا وَكَانَ عِنْدَ اللَّهِ وَجِيهًا (69)

हे ईमान वालो! उन लोगों की तरह न हो जाना जिन्होंने मूसा को यातनाएं दीं, तो ईश्वर ने मूसा को, जो कुछ उन्होंने उनके बारे में कहा था, विरक्त कर दिया और वे ईश्वर के निकट बड़े सम्मानीय थे। (33:69)

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آَمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَقُولُوا قَوْلًا سَدِيدًا (70) يُصْلِحْ لَكُمْ أَعْمَالَكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ وَمَنْ يُطِعِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَقَدْ فَازَ فَوْزًا عَظِيمًا (71)

हे ईमान लाने वालो! ईश्वर का डर रखो और सही व ठोस बात किया करो। (33:70) ताकि वह तुम्हारे कर्मों को सँवार दे और तुम्हारे पापों को क्षमा कर दे। और जो कोई ईश्वर और उसके पैग़म्बर का आज्ञापालन करे, निश्चित रूप से उसने बड़ी सफलता प्राप्त कर ली है। (33:71)

إِنَّا عَرَضْنَا الْأَمَانَةَ عَلَى السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَالْجِبَالِ فَأَبَيْنَ أَنْ يَحْمِلْنَهَا وَأَشْفَقْنَ مِنْهَا وَحَمَلَهَا الْإِنْسَانُ إِنَّهُ كَانَ ظَلُومًا جَهُولًا (72) لِيُعَذِّبَ اللَّهُ الْمُنَافِقِينَ وَالْمُنَافِقَاتِ وَالْمُشْرِكِينَ وَالْمُشْرِكَاتِ وَيَتُوبَ اللَّهُ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَحِيمًا (73)

निःसंदेह हमने (ईश्वरीय) अमानत को आकाशों, धरती और पर्वतों के समक्ष पेश किया, तो उन्होंने उसका बोझ उठाने से इन्कार कर दिया और उससे डर गए। लेकिन मनुष्य ने उसे उठा लिया। निश्चय ही (अमानत का पालन न करने के कारण) वह बड़ा अत्याचारी और जाहिल है। (33:72) ताकि ईश्वर मिथ्याचारी पुरुषों व मिथ्याचारी महिलाओं और अनेकेश्वरवादी पुरुषों व अनेकेश्वरवादी महिलाओं को (अमानत में ख़यानत के लिए) दंडित करे और (अमानत में ढिलाई के कारण) ईश्वर ईमान वाले पुरुषों व ईमान वाली महिलाओं की तौबा स्वीकार कर लेता है। और ईश्वर तो हमेशा ही बड़ा क्षमाशील व दयावान है। (33:73)

بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـنِ الرَّحِیمِ الْحَمْدُ لِلَّـهِ الَّذِی لَهُ مَا فِی السَّمَاوَاتِ وَمَا فِی الْأَرْضِ وَلَهُ الْحَمْدُ فِی الْآخِرَةِ وَهُوَ الْحَکِیمُ الْخَبِیرُ، یَعْلَمُ مَا یَلِجُ فِی الْأَرْضِ وَمَا یَخْرُجُ مِنْهَا وَمَا یَنزِلُ مِنَ السَّمَاءِ وَمَا یَعْرُجُ فِیهَا وَهُوَ الرَّحِیمُ الْغَفُورُ

अल्लाह के नाम से जो अत्यंत कृपाशील और दयावान है। समस्त प्रशंसा ईश्वर ही के लिए है जिसका वह सब कुछ है जो आकाशों और धरती में है। और प्रलय में भी सारी प्रशंसा उसी के लिए है। और वही तत्वदर्शी व ख़बर रखने वाला है। (34:1) जो कुछ धरती में प्रविष्ट होता है, और जो कुछ उससे निकलता है और जो कुछ आकाश से उतरता है और जो कुछ उसमें चढ़ता है, वह सभी को जानता है। और वही अत्यन्त दयावान व क्षमाशील है। (34:2)

وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لَا تَأْتِينَا السَّاعَةُ قُلْ بَلَى وَرَبِّي لَتَأْتِيَنَّكُمْ عَالِمِ الْغَيْبِ لَا يَعْزُبُ عَنْهُ مِثْقَالُ ذَرَّةٍ فِي السَّمَاوَاتِ وَلَا فِي الْأَرْضِ وَلَا أَصْغَرُ مِنْ ذَلِكَ وَلَا أَكْبَرُ إِلَّا فِي كِتَابٍ مُبِينٍ (3)

काफ़िरों ने कहा कि हमारे लिए कभी प्रलय की घड़ी नहीं आएगी। (हे पैग़म्बर!) कह दीजिए कि क्यों नहीं, गुप्त ज्ञान के स्वामी मेरे पालनहार की क़सम! वह (घड़ी) तुम्हारे लिए भी ज़रूर आएगी। उससे कण भर भी कोई चीज़ न तो आकाशों में ओझल है और न ही धरती में, और न इससे छोटी कोई चीज़ और न ही बड़ी, सिवाय इसके कि वह एक स्पष्ट किताब में (अंकित) है। (34:3)

لِيَجْزِيَ الَّذِينَ آَمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ أُولَئِكَ لَهُمْ مَغْفِرَةٌ وَرِزْقٌ كَرِيمٌ (4) وَالَّذِينَ سَعَوْا فِي آَيَاتِنَا مُعَاجِزِينَ أُولَئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ مِنْ رِجْزٍ أَلِيمٌ (5)

ताकि ईश्वर उन लोगों को प्रतिफल दे जो ईमान लाए और जिन्होंने अच्छे कर्म किए। वही हैं जिनके लिए क्षमा और प्रतिष्ठित आजीविका है। (34:4) और जिन लोगों ने हमारी आयतों को नीचा दिखाने के लिए ज़ोर लगाया, उनके लिए बहुत ही बुरे प्रकार का पीड़ादायक दंड है। (34:5)