धर्म

तौहीद और शिर्क : उन्हें इस भूल में नहीं रहना चाहिए कि वे अपने कर्मों की सज़ा और प्रतिफल से बच जाएंगे : पार्ट-20

وَلَقَدْ آَتَيْنَا لُقْمَانَ الْحِكْمَةَ أَنِ اشْكُرْ لِلَّهِ وَمَنْ يَشْكُرْ فَإِنَّمَا يَشْكُرُ لِنَفْسِهِ وَمَنْ كَفَرَ فَإِنَّ اللَّهَ غَنِيٌّ حَمِيدٌ (12)

निश्चय ही हमने लुकमान को तत्वदर्शिता प्रदान की कि ईश्वर की कृतज्ञता प्रकट करो और जो कोई कृतज्ञ रहे वह अपने ही हित में कृतज्ञता दिखाता है। और जो भी अकृतज्ञ रहे (तो इससे ईश्वर को क्षति नहीं पहुंचेगी क्योंकि) निश्चय ही ईश्वर आवश्यकतामुक्त व प्रशंसनीय है। (31:12)

وَإِذْ قَالَ لُقْمَانُ لِابْنِهِ وَهُوَ يَعِظُهُ يَا بُنَيَّ لَا تُشْرِكْ بِاللَّهِ إِنَّ الشِّرْكَ لَظُلْمٌ عَظِيمٌ (13)

और (याद करो उस समय को) जब लुक़मान ने अपने बेटे से, उसे नसीहत करते हुए कहाः “हे मेरे बेटे! किसी को ईश्वर का समकक्ष न ठहराना कि निश्चय ही अनेकेश्वरवाद बहुत बड़ा अत्याचार है।” (31:13)

وَوَصَّيْنَا الْإِنْسَانَ بِوَالِدَيْهِ حَمَلَتْهُ أُمُّهُ وَهْنًا عَلَى وَهْنٍ وَفِصَالُهُ فِي عَامَيْنِ أَنِ اشْكُرْ لِي وَلِوَالِدَيْكَ إِلَيَّ الْمَصِيرُ (14)

और हमने मनुष्य को उसके अपने माँ-बाप के मामले में सिफ़ारिश की है। उसकी माँ ने उसे पेट में रखा जबकि वह दुर्बल होती जा रही थी और (दूध पिलाने व) दूध छुड़ाने (का समय) दो वर्ष में है। (हमने उसे सिफ़ारिश की कि) मेरे (भी) कृतज्ञ रहो और अपने माँ-बाप के भी कि (अंततः सभी को) लौटना मेरी ही ओर है।(31:14)

وَإِنْ جَاهَدَاكَ عَلى أَنْ تُشْرِكَ بِي مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ فَلَا تُطِعْهُمَا وَصَاحِبْهُمَا فِي الدُّنْيَا مَعْرُوفًا وَاتَّبِعْ سَبِيلَ مَنْ أَنَابَ إِلَيَّ ثُمَّ إِلَيَّ مَرْجِعُكُمْ فَأُنَبِّئُكُمْ بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ (15)

और यदि वे दोनों इस बात की कोशिश करें कि तुम, उस चीज़ को, जिसका तुम्हें ज्ञान नहीं है मेरा समकक्ष ठहरा दो तो उनका अनुसरण न करो और दुनिया में उनके साथ अच्छा व्यवहार रखो और उसके मार्ग का अनुसरण करो जो मेरी ओर लौटे। फिर तुम सबकी वापसी मेरी ही ओर है तब जो कुछ तुम करते रहे हो उसके बारे में मैं तुम्हें बताऊंगा। (31:15)

يَا بُنَيَّ إِنَّهَا إِنْ تَكُ مِثْقَالَ حَبَّةٍ مِنْ خَرْدَلٍ فَتَكُنْ فِي صَخْرَةٍ أَوْ فِي السَّمَاوَاتِ أَوْ فِي الْأَرْضِ يَأْتِ بِهَا اللَّهُ إِنَّ اللَّهَ لَطِيفٌ خَبِيرٌ (16)

हे मेरे बेटे! निश्चित रूप से यदि (तुम्हारा कर्म) राई के दाने के बराबर हो, फिर वह किसी चट्टान के बीच हो, या आकाशों में हो या धरती में (छिपा) हो, ईश्वर उसे (प्रलय में हिसाब किताब के लिए) उपस्थित कर देगा। निश्चय ही ईश्वर अत्यन्त सूक्ष्मदर्शी व जानकार है। (31:16)

يَا بُنَيَّ أَقِمِ الصَّلَاةَ وَأْمُرْ بِالْمَعْرُوفِ وَانْهَ عَنِ الْمُنْكَرِ وَاصْبِرْ عَلَى مَا أَصَابَكَ إِنَّ ذَلِكَ مِنْ عَزْمِ الْأُمُورِ (17)

हे मेरे बेटे! नमाज़ स्थापित करो और (लोगों को) भलाई का आदेश दो व बुराई से रोको और जो भी मुसीबत तुम पर पड़े उस पर धैर्य से काम लो कि निःसंदेह यह उन कामों में दृढ़संकल्प के लिए अपरिहार्य बातों में से है। (31:17)

وَلَا تُصَعِّرْ خَدَّكَ لِلنَّاسِ وَلَا تَمْشِ فِي الْأَرْضِ مَرَحًا إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ كُلَّ مُخْتَالٍ فَخُورٍ (18)

और (घमंड से) अपना रुख़ लोगों की ओर से न फेरो और न धरती में इतरा कर चलो कि निश्चय ही ईश्वर किसी अहंकारी और घमंडी को पसन्द नहीं करता। (31:18)

وَاقْصِدْ فِي مَشْيِكَ وَاغْضُضْ مِنْ صَوْتِكَ إِنَّ أَنْكَرَ الْأَصْوَاتِ لَصَوْتُ الْحَمِيرِ (19)

और अपनी चाल में संतुलन बनाए रखो और अपनी आवाज़ धीमी रखो। निःसंदेह सबसे बुरी आवाज़ गधों की आवाज़ होती है। (31:19)

أَلَمْ تَرَوْا أَنَّ اللَّهَ سَخَّرَ لَكُمْ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ وَأَسْبَغَ عَلَيْكُمْ نِعَمَهُ ظَاهِرَةً وَبَاطِنَةً وَمِنَ النَّاسِ مَنْ يُجَادِلُ فِي اللَّهِ بِغَيْرِ عِلْمٍ وَلَا هُدًى وَلَا كِتَابٍ مُنِيرٍ (20)

क्या तुमने देखा नहीं कि ईश्वर ने, जो कुछ आकाशों में और जो कुछ धरती में है, सबको तुम्हारे अधीन कर रखा है और उसने तुम पर अपनी प्रकट और अप्रकट अनुकपाएँ पूर्ण कर दी हैं? और (इसके बावजूद) कुछ लोग ऐसे हैं जो ईश्वर के विषय में बिना किसी ज्ञान, मार्गदर्शन और प्रकाशमान किताब के बहस करते हैं। (31:20)

وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ اتَّبِعُوا مَا أَنْزَلَ اللَّهُ قَالُوا بَلْ نَتَّبِعُ مَا وَجَدْنَا عَلَيْهِ آَبَاءَنَا أَوَلَوْ كَانَ الشَّيْطَانُ يَدْعُوهُمْ إِلَى عَذَابِ السَّعِيرِ (21)

और अब जब उनसे कहा जाता है कि उस चीज़ का अनुसरण करो जो ईश्वर ने उतारी है तो वे कहते हैं कि (नहीं) बल्कि हम तो उस चीज़ का अनुसरण करेंगे जिस पर हमने अपने बाप-दादा को पाया है। क्या शैतान उन्हें दहकती आग के दंड की ओर बुलाए तब भी (वे उन्हीं का अनुसरण करेंगे)? (31:21)

وَمَنْ يُسْلِمْ وَجْهَهُ إِلَى اللَّهِ وَهُوَ مُحْسِنٌ فَقَدِ اسْتَمْسَكَ بِالْعُرْوَةِ الْوُثْقَى وَإِلَى اللَّهِ عَاقِبَةُ الْأُمُورِ (22) وَمَنْ كَفَرَ فَلَا يَحْزُنْكَ كُفْرُهُ إِلَيْنَا مَرْجِعُهُمْ فَنُنَبِّئُهُمْ بِمَا عَمِلُوا إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ (23) نُمَتِّعُهُمْ قَلِيلًا ثُمَّ نَضْطَرُّهُمْ إِلَى عَذَابٍ غَلِيظٍ (24)

और जो कोई अपना रुख़ ईश्वर की ओर कर ले और वह सद्कर्मी भी हो तो निश्चित रूप से उसने मज़बूत सहारे को थाम लिया है और सारे मामलों का अंत ईश्वर ही की ओर है। (31:22) और जिस किसी ने कुफ़्र अपनाया तो उसका कुफ़्र आपको दुखी न करे कि उन्हें पलटकर आना तो हमारी ही ओर है। तो जो कुछ वे करते रहे हैं उससे हम उन्हें अवश्य ही अवगत करा देंगे। निःसंदेह ईश्वर (लोगों के) दिलों तक की बात जानता है। (31:23) हम उन्हें थोड़ा संपन्न करेंगे फिर उन्हें एक कठोर दंड की ओर खींच ले जाएँगे। (31:24)

وَلَئِنْ سَأَلْتَهُمْ مَنْ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ لَيَقُولُنَّ اللَّهُ قُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ (25) لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ إِنَّ اللَّهَ هُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيدُ (26)

और यदि आप उनसे पूछें कि आकाशों और धरती को किसने पैदा किया है? तो निश्चय ही वे कहेंगे कि अल्लाह ने। कह दीजिए कि समस्त प्रशंसा ईश्वर के लिए ही है। परंतु उनमें से अधिकांश नहीं जानते। (31:25) आकाशों और धरती में जो कुछ है, सब ईश्वर ही का है। निःसंदेह ईश्वर आवश्यकतामुक्त और प्रशंसित है। (31:26)

وَلَوْ أَنَّمَا فِي الْأَرْضِ مِنْ شَجَرَةٍ أَقْلَامٌ وَالْبَحْرُ يَمُدُّهُ مِنْ بَعْدِهِ سَبْعَةُ أَبْحُرٍ مَا نَفِدَتْ كَلِمَاتُ اللَّهِ إِنَّ اللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ (27)

और धरती में जितने वृक्ष हैं यदि वे क़लम हो जाएँ और समुद्र उसकी सियाही बन जाए, उसके बाद सात और समुद्र सहायता के लिए आ जाएं तब भी ईश्वर के शब्द समाप्त नहीं होंगे। निःसंदेह ईश्वर अजेय (व) तत्वदर्शी है। (31:27)

مَا خَلْقُكُمْ وَلَا بَعْثُكُمْ إِلَّا كَنَفْسٍ وَاحِدَةٍ إِنَّ اللَّهَ سَمِيعٌ بَصِيرٌ (28)

तुम सबकी सृष्टि और जीवित करके पुनः उठाया जाना (ईश्वर के निकट) तो एक जीव (की सृष्टि व पुनः उठाए जाने) की भांति है। ईश्वर सब कुछ सुनने और देखने वाला है। (31:28)

أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ يُولِجُ اللَّيْلَ فِي النَّهَارِ وَيُولِجُ النَّهَارَ فِي اللَّيْلِ وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ كُلٌّ يَجْرِي إِلَى أَجَلٍ مُسَمًّى وَأَنَّ اللَّهَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌ (29) ذَلِكَ بِأَنَّ اللَّهَ هُوَ الْحَقُّ وَأَنَّ مَا يَدْعُونَ مِنْ دُونِهِ الْبَاطِلُ وَأَنَّ اللَّهَ هُوَ الْعَلِيُّ الْكَبِيرُ (30)

क्या तुमने देखा नहीं कि ईश्वर रात को दिन में और दिन को रात में प्रविष्ट करता है और उसने सूर्य और चन्द्रमा को वश में कर रखा है जिनमें प्रत्येक एक नियत समय तक आगे बढ़ रहा है? और जो कुछ तुम करते हो ईश्वर उससे पूरी तरह अवगत है। (31:29) यह इसका प्रमाण है कि ईश्वर ही सत्य है और उसे छोड़कर जिनको ये पुकारते हैं वह असत्य है। और निश्चय ही ईश्वर सर्वोच्च (और) महान है। (31:30)

أَلَمْ تَرَ أَنَّ الْفُلْكَ تَجْرِي فِي الْبَحْرِ بِنِعْمَةِ اللَّهِ لِيُرِيَكُمْ مِنْ آَيَاتِهِ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآَيَاتٍ لِكُلِّ صَبَّارٍ شَكُورٍ (31) وَإِذَا غَشِيَهُمْ مَوْجٌ كَالظُّلَلِ دَعَوُا اللَّهَ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّينَ فَلَمَّا نَجَّاهُمْ إِلَى الْبَرِّ فَمِنْهُمْ مُقْتَصِدٌ وَمَا يَجْحَدُ بِآَيَاتِنَا إِلَّا كُلُّ خَتَّارٍ كَفُورٍ (32)

क्या तुमने देखा नहीं कि नौकाएं समुद्र में ईश्वर की कृपा से चलती हैं ताकि वह तुम्हें अपनी (शक्ति की) कुछ निशानियाँ दिखाए। निस्संदेह इसमें प्रत्येक धैर्यवान (व) कृतज्ञ के लिए निशानियाँ हैं। (31:31) और जब कोई (उफनती हुई) लहर घने बादलों की तरह उन्हें ढंक लेती है, तो वे ईश्वर को धर्म में पूरी तरह निष्ठा के साथ पुकारते हैं, फिर जब वह उन्हें बचाकर थल तक पहुँचा देता है, तो उनमें से कुछ लोग संतुलित मार्ग पर रहते हैं (जबकि अधिकतर पथभ्रष्ट हो जाते हैं।) और हमारी निशानियों का इन्कार तो बस वही करता है जो विश्वासघाती, कृतघ्न हो। (31:32)

يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُوا رَبَّكُمْ وَاخْشَوْا يَوْمًا لَا يَجْزِي وَالِدٌ عَنْ وَلَدِهِ وَلَا مَوْلُودٌ هُوَ جَازٍ عَنْ وَالِدِهِ شَيْئًا إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ فَلَا تَغُرَّنَّكُمُ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا وَلَا يَغُرَّنَّكُمْ بِاللَّهِ الْغَرُورُ (33) إِنَّ اللَّهَ عِنْدَهُ عِلْمُ السَّاعَةِ وَيُنَزِّلُ الْغَيْثَ وَيَعْلَمُ مَا فِي الْأَرْحَامِ وَمَا تَدْرِي نَفْسٌ مَاذَا تَكْسِبُ غَدًا وَمَا تَدْرِي نَفْسٌ بِأَيِّ أَرْضٍ تَمُوتُ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ خَبِيرٌ (34)

हे लोगो! अपने पालनहार का भय रखो और उस दिन से डरो जब न कोई बाप अपनी संतान के काम आएगा और न कोई संतान अपने बाप के काम आने वाली होगी। निश्चय ही ईश्वर का वादा सच्चा है तो सांसारिक जीवन कदापि तुम्हें धोखे में न डाले और न धोखेबाज़ (शैतान) तुम्हें ईश्वर (की क्षमा) के माध्यम से धोखे में डाले। (31:33) निःसंदेह (प्रलय की) उस घड़ी का ज्ञान केवल ईश्वर के पास है। वही मेंह बरसाता है ओर जो कुछ (माताओं के) गर्भाशयों में होता है उसे जानता है। कोई नहीं जानता कि कल वह क्या कमाएगा और कोई नहीं जानता है कि किस धरती में उसकी मृत्यु होगी। निःसंदेह ईश्वर जानने वाला और ख़बर रखने वाला है। (31:34)

الم (1) تَنْزِيلُ الْكِتَابِ لَا رَيْبَ فِيهِ مِنْ رَبِّ الْعَالَمِينَ (2) أَمْ يَقُولُونَ افْتَرَاهُ بَلْ هُوَ الْحَقُّ مِنْ رَبِّكَ لِتُنْذِرَ قَوْمًا مَا أَتَاهُمْ مِنْ نَذِيرٍ مِنْ قَبْلِكَ لَعَلَّهُمْ يَهْتَدُونَ (3)

अल्लाह के नाम से जो अत्यंत कृपाशील और दयावान है। अलिफ़. लाम. मीम. (32:1) इस किताब का भेजा जाना, जिसमें कोई सन्देह नहीं है, ब्रह्मांड के पालनहार की ओर से है। (32:2) क्या वे कहते हैं कि मुहम्मद ने इसे स्वयं ही गढ़ लिया है? (ऐसा नहीं है) बल्कि वह सत्य है जो आपके पालनहार की ओर से है ताकि आप उन लोगों को सचेत करें जिनके पास आपसे पहले कोई सचेत करने वाला नहीं आया है, शायद वे मार्ग पा जाएँ। (32:3)

اللَّهُ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ ثُمَّ اسْتَوَى عَلَى الْعَرْشِ مَا لَكُمْ مِنْ دُونِهِ مِنْ وَلِيٍّ وَلَا شَفِيعٍ أَفَلَا تَتَذَكَّرُونَ (4)

अल्लाह ही है जिसने आकाशों और धरती को और जो कुछ दोनों के बीच है, छः दिनों में पैदा किया। फिर वह अर्श अर्थात सिंहासन पर विराजमान हुआ। उसके अतिरिक्त न तो तुम्हारा सहायक है और न ही कोई सिफ़ारिश करने वाला। तो क्या तुम सचेत नहीं होगे? (32:4)

يُدَبِّرُ الْأَمْرَ مِنَ السَّمَاءِ إِلَى الْأَرْضِ ثُمَّ يَعْرُجُ إِلَيْهِ فِي يَوْمٍ كَانَ مِقْدَارُهُ أَلْفَ سَنَةٍ مِمَّا تَعُدُّونَ (5) ذَلِكَ عَالِمُ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ (6)

ईश्वर आकाश से धरती तक इस (संसार के) मामले का संचालन करता है। फिर सारे मामले एक दिन, जिसका योग तुम्हारी गणना के अनुसार एक हज़ार वर्ष है, उसी की ओर ऊपर पहुंचते हैं। (32:5) वही ईश्वर परोक्ष और प्रत्यक्ष का जानने वाला (और) अजेय व अत्यंत दयावान है। (32:6)

الَّذِي أَحْسَنَ كُلَّ شَيْءٍ خَلَقَهُ وَبَدَأَ خَلْقَ الْإِنْسَانِ مِنْ طِينٍ (7) ثُمَّ جَعَلَ نَسْلَهُ مِنْ سُلَالَةٍ مِنْ مَاءٍ مَهِينٍ (8)

वही है जिसने हर चीज़ की उत्तम रचना की और मनुष्य की रचना का आरंभ गीली मिट्टी से किया। (32:7) फिर उसके वंश को एक तुच्छ पानी के सत में क़रार दिया। (32:8)

ثُمَّ سَوَّاهُ وَنَفَخَ فِيهِ مِنْ رُوحِهِ وَجَعَلَ لَكُمُ السَّمْعَ وَالْأَبْصَارَ وَالْأَفْئِدَةَ قَلِيلًا مَا تَشْكُرُونَ (9)

फिर उसने उस (के अंगों) को ठीक-ठीक व संतुलित किया और उसमें अपनी आत्मा फूँकी। और तुम्हें कान, आँखें और दिल प्रदान किए (लेकिन) तुममें थोड़े ही लोग कृतज्ञता जताते हो। (32:9)

وَقَالُوا أَئِذَا ضَلَلْنَا فِي الْأَرْضِ أَئِنَّا لَفِي خَلْقٍ جَدِيدٍ بَلْ هُمْ بِلِقَاءِ رَبِّهِمْ كَافِرُونَ (10) قُلْ يَتَوَفَّاكُمْ مَلَكُ الْمَوْتِ الَّذِي وُكِّلَ بِكُمْ ثُمَّ إِلَى رَبِّكُمْ تُرْجَعُونَ (11)

और उन्होंने कहा क्या जब हम (मरने के बाद) धरती में मिल जाएँगे तो फिर हमें एक नई सृष्टि प्राप्त होगी? नहीं, बल्कि वे अपने पालनहार से मिलने का इन्कार करने वाले हैं। (32:10) कह दीजिए कि मृत्यु का फ़रिश्ता, जिसे तुम पर नियुक्त किया गया है, तुम्हारी जान निकाल लेता है, फिर तुम अपने पालनहार की ओर लौटाए जाओगे। (32:11)

وَلَوْ تَرَى إِذِ الْمُجْرِمُونَ نَاكِسُو رُءُوسِهِمْ عِنْدَ رَبِّهِمْ رَبَّنَا أَبْصَرْنَا وَسَمِعْنَا فَارْجِعْنَا نَعْمَلْ صَالِحًا إِنَّا مُوقِنُونَ (12)

और (हे पैग़म्बर!) काश आप अपराधियों को उस समय देखते जब वे अपने पालनहार के सामने अपने सिर झुकाए (हुए कह रहे) होंगे कि हे हमारे पालनहार! (तूने जो वादा किया था) हमने देख लिया और सुन लिया। तो अब हमें (दुनिया में) वापस भेज दे ताकि हम अच्छे कर्म करें। निःसंदेह अब हमें (प्रलय पर) विश्वास हो गया है। (32:12)

وَلَوْ شِئْنَا لَآَتَيْنَا كُلَّ نَفْسٍ هُدَاهَا وَلَكِنْ حَقَّ الْقَوْلُ مِنِّي لَأَمْلَأَنَّ جَهَنَّمَ مِنَ الْجِنَّةِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ (13) فَذُوقُوا بِمَا نَسِيتُمْ لِقَاءَ يَوْمِكُمْ هَذَا إِنَّا نَسِينَاكُمْ وَذُوقُوا عَذَابَ الْخُلْدِ بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ (14)

और यदि हम चाहते तो (ज़बरदस्ती) हर एक का मार्गदर्शन कर देते (किन्तु हमने सभी को सत्य व असत्य के चयन के अधिकार के साथ पैदा किया है) परंतु मेरी बात सत्यापित हो चुकी है कि मैं नरक को (अपराधी) जिन्नों व मनुष्यों सबसे भरकर रहूँगा। (32:13) अतः तुमने आजकी मुलाक़ात को जो भुला दिया था उसके फलस्वरूप अब (दंड का) मज़ा चखो। हमने भी तुम्हें भुला दिया है और जो तुम करते रहे हो उसके बदले में स्थायी दंड का स्वाद चखो। (32:14)

إِنَّمَا يُؤْمِنُ بِآَيَاتِنَا الَّذِينَ إِذَا ذُكِّرُوا بِهَا خَرُّوا سُجَّدًا وَسَبَّحُوا بِحَمْدِ رَبِّهِمْ وَهُمْ لَا يَسْتَكْبِرُونَ (15)

हमारी आयतों पर बस वही लोग ईमान लाते है जिन्हें जब इन आयतों के माध्यम से नसीहत की जाती है तो वे सजदा करते हुए गिर पड़ते हैं और अपने पालनहार का गुणगान करते है और वे घमंड नहीं करते। (32:15)

تَتَجَافَى جُنُوبُهُمْ عَنِ الْمَضَاجِعِ يَدْعُونَ رَبَّهُمْ خَوْفًا وَطَمَعًا وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنْفِقُونَ (16) فَلَا تَعْلَمُ نَفْسٌ مَا أُخْفِيَ لَهُمْ مِنْ قُرَّةِ أَعْيُنٍ جَزَاءً بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ (17)

(रात के अंधकार में) उनके पहलू बिस्तरों से अलग हो जाते हैं (और) वे भय व लालसा के साथ अपने पालनहार को पुकारते हैं और जो कुछ हमने उन्हें प्रदान किया है उसमें से दान करते हैं। (32:16) तो कोई भी नहीं जानता कि कौन सी चीज़, जो आँखों के लिए ठंडक है, उसके लिए छिपा कर रखी गई है, उन कर्मों के बदले में जो वे करते रहे थे। (32:17)

أَفَمَنْ كَانَ مُؤْمِنًا كَمَنْ كَانَ فَاسِقًا لَا يَسْتَوُونَ (18) أَمَّا الَّذِينَ آَمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ فَلَهُمْ جَنَّاتُ الْمَأْوَى نُزُلًا بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ (19)

जो व्यक्ति ईमान वाला हो क्या वह उस व्यक्ति जैसा हो सकता है जो अवज्ञाकारी हो? वे (कदापि एक दूसरे के) बराबर नहीं हो सकते। (32:18) रहे वे लोग जो ईमान लाए और अच्छे कर्म करते रहे उनके लिए उनके कर्मों के बदले में सत्कार स्वरूप रहने के स्वर्ग के बाग़ हैं। (32:19)