धर्म

तौहीद और शिर्क : उन्हें इस भूल में नहीं रहना चाहिए कि वे अपने कर्मों की सज़ा और प्रतिफल से बच जाएंगे : पार्ट-18

وَلَا تُجَادِلُوا أَهْلَ الْكِتَابِ إِلَّا بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ إِلَّا الَّذِينَ ظَلَمُوا مِنْهُمْ وَقُولُوا آَمَنَّا بِالَّذِي أُنْزِلَ إِلَيْنَا وَأُنْزِلَ إِلَيْكُمْ وَإِلَهُنَا وَإِلَهُكُمْ وَاحِدٌ وَنَحْنُ لَهُ مُسْلِمُونَ (46)

और (आसमानी) किताब वालों से बस उत्तम शैली में ही बात करो सिवाय उनके जो उनमें अत्याचारी हैं और (उनसे) कहो कि जो चीज़ हम पर और तुम पर (भी) नाज़िल हुई है हम उस पर ईमान लाए। और हमारा ईश्वर और तुम्हारा ईश्वर एक ही है और हम उसी के आज्ञाकारी हैं। (29:46)

وَكَذَلِكَ أَنْزَلْنَا إِلَيْكَ الْكِتَابَ فَالَّذِينَ آَتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ يُؤْمِنُونَ بِهِ وَمِنْ هَؤُلَاءِ مَنْ يُؤْمِنُ بِهِ وَمَا يَجْحَدُ بِآَيَاتِنَا إِلَّا الْكَافِرُونَ (47)

और इसी प्रकार हमने तुम्हारी ओर (अपनी) किताब नाज़िल की तो जिन्हें हमने किताब प्रदान की है वे उस (क़ुरआन) पर ईमान लाएँगे। और इन (अनेकेश्वरवादियों) में से (भी) कुछ उस पर ईमान लाएंगे और काफ़िरों के अलावा कोई हमारी आयतों का इन्कार नहीं करता। (29:47)

وَمَا كُنْتَ تَتْلُو مِنْ قَبْلِهِ مِنْ كِتَابٍ وَلَا تَخُطُّهُ بِيَمِينِكَ إِذًا لَارْتَابَ الْمُبْطِلُونَ (48) بَلْ هُوَ آَيَاتٌ بَيِّنَاتٌ فِي صُدُورِ الَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ وَمَا يَجْحَدُ بِآَيَاتِنَا إِلَّا الظَّالِمُونَ (49)

और (हे पैग़म्बर!) आप इससे पहले न कोई किताब पढ़ते थे और न उसे अपने हाथ से लिखते थे कि अगर ऐसा होता तो ये असत्यवादी सन्देह में पड़ जाते। (29:48) (ऐसा नहीं है) बल्कि वह (क़ुरआन) तो उन लोगों के सीनों में खुली निशानी है, जिन्हें ज्ञान व ईश्वरीय पहचान प्रदान की गई है। और अत्याचारियों के अतिरिक्त हमारी आयतों का कोई इन्कार नहीं करता। (29:49)

وَقَالُوا لَوْلَا أُنْزِلَ عَلَيْهِ آَيَاتٌ مِنْ رَبِّهِ قُلْ إِنَّمَا الْآَيَاتُ عِنْدَ اللَّهِ وَإِنَّمَا أَنَا نَذِيرٌ مُبِينٌ (50

और उन्होंने कहा कि उन पर उनके पालनहार की ओर से (चमत्कार और) निशानियाँ क्यों नहीं नाज़िल हुई हैं? (हे पैग़म्बर!) कह दीजिए कि निशानियाँ (और चमत्कार) तो ईश्वर ही के पास हैं और मैं तो केवल स्पष्ट रूप से सचेत करने वाला हूँ। (29:50)

أَوَلَمْ يَكْفِهِمْ أَنَّا أَنْزَلْنَا عَلَيْكَ الْكِتَابَ يُتْلَى عَلَيْهِمْ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَرَحْمَةً وَذِكْرَى لِقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ (51)

क्या उनके लिए यह पर्याप्त नहीं कि हमने आप पर किताब नाज़िल की जो (निरंतर) उन्हें पढ़कर सुनाई जाती है? निश्चित रूप से इस (किताब) में उन लोगों के लिए दया है और उपदेश है जो ईमान लाएँ। (29:51)

قُلْ كَفَى بِاللَّهِ بَيْنِي وَبَيْنَكُمْ شَهِيدًا يَعْلَمُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَالَّذِينَ آَمَنُوا بِالْبَاطِلِ وَكَفَرُوا بِاللَّهِ أُولَئِكَ هُمُ الْخَاسِرُونَ (52

(हे पैग़म्बर! काफ़िरों से) कह दीजिए कि मेरे और तुम्हारे बीच ईश्वर गवाह के रूप में काफ़ी है। वह जानता है जो कुछ आकाशों और धरती में है और जो लोग असत्य पर ईमान लाए और उन्होंने ईश्वर का इन्कार किया वही घाटे उठाने वाले हैं। (29:52)

وَيَسْتَعْجِلُونَكَ بِالْعَذَابِ وَلَوْلَا أَجَلٌ مُسَمًّى لَجَاءَهُمُ الْعَذَابُ وَلَيَأْتِيَنَّهُمْ بَغْتَةً وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ (53

वे आपसे (ईश्वरीय) दंड (भेजे जाने) के लिए जल्दी मचा रहे हैं और यदि इसका एक नियत समय न होता तो उन के लिए अवश्य ही दंड आ जाता और निश्चय ही वह तो अचानक ही उनके पास (इस प्रकार) आएगा कि उन्हें ख़बर भी न होगी। (29:53)

يَسْتَعْجِلُونَكَ بِالْعَذَابِ وَإِنَّ جَهَنَّمَ لَمُحِيطَةٌ بِالْكَافِرِينَ (54)

(हे पैग़म्बर!) वे आपसे (ईश्वरीय) दंड (भेजे जाने) के लिए जल्दी मचा रहे हैं जबकि नरक, काफ़िरों को अपने घेरे में लिए हुए है। (29:54)

يَوْمَ يَغْشَاهُمُ الْعَذَابُ مِنْ فَوْقِهِمْ وَمِنْ تَحْتِ أَرْجُلِهِمْ وَيَقُولُ ذُوقُوا مَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ (55)

जिस दिन (ईश्वरीय) दंड उन्हें ऊपर से और पैरों के नीचे से घेर लेगा और (ईश्वर उनसे) कहेगा जो कुछ तुम करते रहे हो उस(के परिणाम) का स्वाद चखो। (29:55)

يَا عِبَادِيَ الَّذِينَ آَمَنُوا إِنَّ أَرْضِي وَاسِعَةٌ فَإِيَّايَ فَاعْبُدُونِ (56) كُلُّ نَفْسٍ ذَائِقَةُ الْمَوْتِ ثُمَّ إِلَيْنَا تُرْجَعُونَ (57)

हे मेरे बन्दो! जो ईमान लाए हो! निःस्संदेह मेरी धरती विशाल है। अतः तुम मेरी ही उपासना करो। (29:56) प्रत्येक जीव मृत्यु का स्वाद चखने वाला है। फिर तुम सब हमारी ही ओर लौटाए जाओगे। (29:57)

وَالَّذِينَ آَمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَنُبَوِّئَنَّهُمْ مِنَ الْجَنَّةِ غُرَفًا تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا نِعْمَ أَجْرُ الْعَامِلِينَ (58) الَّذِينَ صَبَرُوا وَعَلَى رَبِّهِمْ يَتَوَكَّلُونَ (59)

और जो लोग ईमान लाए और जिन्होंने अच्छे कर्म किए उन्हें हम स्वर्ग (की उच्च मंज़िल) के ऐसे कमरों में जगह देंगे जिनके से नीचे नहरें बह रही होंगी जिनमें वे सदैव रहेंगे और क्या ही अच्छा प्रतिफल है अच्छे कर्म करने वालों का! (29:58) (ये वही लोग हैं) जिन्होंने धैर्य से काम लिया और जो अपने पालनहार पर भरोसा रखते हैं। (29:59)

وَكَأَيِّنْ مِنْ دَابَّةٍ لَا تَحْمِلُ رِزْقَهَا اللَّهُ يَرْزُقُهَا وَإِيَّاكُمْ وَهُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ (60)

और कितने ही चलने वाले जीव हैं जो अपनी रोज़ी प्राप्त नहीं कर सकते। ईश्वर ही उन्हें भी और तुम्हें भी रोज़ी देता है। और वह सब कुछ सुनने और जानने वाला है। (29:60)

وَلَئِنْ سَأَلْتَهُمْ مَنْ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ لَيَقُولُنَّ اللَّهُ فَأَنَّى يُؤْفَكُونَ (61)

और यदि आप (अनेकेश्वरवादियों) से पूछें कि किसने आकाशों और धरती की रचना की और सूर्य और चन्द्रमा को (अपने) अधीन किया? तो निश्चित रूप से वे बोलेंगे कि अल्लाह ने। तो वे किस प्रकार (सत्य की ओर से) फिरे जाते हैं? (29:61)

اللَّهُ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَنْ يَشَاءُ مِنْ عِبَادِهِ وَيَقْدِرُ لَهُ إِنَّ اللَّهَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ (62)

ईश्वर अपने बन्दों में से जिसके लिए चाहता है आजीविका विस्तृत कर देता है और जिसके लिए चाहता है तंग कर देता है। निःसंदेह ईश्वर हर चीज़ को भली-भाँति जानता है। (29:62)

وَلَئِنْ سَأَلْتَهُمْ مَنْ نَزَّلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَحْيَا بِهِ الْأَرْضَ مِنْ بَعْدِ مَوْتِهَا لَيَقُولُنَّ اللَّهُ قُلِ الْحَمْدُ لِللَّهِ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْقِلُونَ (63) وَمَا هَذِهِ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا إِلَّا لَهْوٌ وَلَعِبٌ وَإِنَّ الدَّارَ الْآَخِرَةَ لَهِيَ الْحَيَوَانُ لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ (64)

और यदि आप उनसे पूछें कि आकाश से किसने पानी बरसाया और उसके द्वारा धरती को उसके मरने के पश्चात जीवित किया? तो निश्चय ही वे , अल्लाह ने! कह दीजिए कि सारी प्रशंसा ईश्वर ही के लिए है किन्तु उनमें से अधिकतर बुद्धि से काम नहीं लेते। (29:63) और यह सांसारिक जीवन तो केवल बहलावा और खेल है। निःसंदेह अगर वे जानते तो परलोक का घर (और जीवन) ही वास्तविक जीवन है। (29:64)

فَإِذَا رَكِبُوا فِي الْفُلْكِ دَعَوُا اللَّهَ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّينَ فَلَمَّا نَجَّاهُمْ إِلَى الْبَرِّ إِذَا هُمْ يُشْرِكُونَ (65) لِيَكْفُرُوا بِمَا آَتَيْنَاهُمْ وَلِيَتَمَتَّعُوا فَسَوْفَ يَعْلَمُونَ (66)

तो जब वे नौका में सवार होते हैं (और नौका तूफ़ान में फंस जाती है) तो वे ईश्वर को (पूरी) निष्ठा से पुकारते हैं (और दूसरों को भूल जाते हैं) किन्तु जब वह उन्हें बचा कर थल तक ले आता है तो वे फिर अनेकेश्वरवाद की ओर उन्मुख हो जाते हैं। (29:65) ताकि जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसके प्रति अकृतज्ञता दिखाएँ और ताकि (जीवन के नश्वर आनंदों) के मज़े लें। लेकिन शीघ्र ही उन्हें पता चल जाएगा। (29:66)

أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّا جَعَلْنَا حَرَمًا آَمِنًا وَيُتَخَطَّفُ النَّاسُ مِنْ حَوْلِهِمْ أَفَبِالْبَاطِلِ يُؤْمِنُونَ وَبِنِعْمَةِ اللَّهِ يَكْفُرُونَ (67)

क्या उन्होंने नहीं देखा कि हमने (मक्के को) एक शान्त व सुरक्षित हरम बनाया, हालाँकि लोग उनके आस-पास से उचक लिए जाते हैं तो क्या फिर भी वे असत्य पर ईमान रखते हैं और ईश्वर की अनुकंपा के प्रति कृतघ्नता दिखाते हैं? (29:67)

وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنِ افْتَرَى عَلَى اللَّهِ كَذِبًا أَوْ كَذَّبَ بِالْحَقِّ لَمَّا جَاءَهُ أَلَيْسَ فِي جَهَنَّمَ مَثْوًى لِلْكَافِرِينَ (68)

और उस व्यक्ति से बढ़कर अत्याचारी कौन होगा जो ईश्वर पर झूठ घड़े या सत्य को उस समय झुठलाए जब वह उसके पास आए? क्या काफ़िरों का ठिकाना नरक में नहीं होगा? (29:68)

وَالَّذِينَ جَاهَدُوا فِينَا لَنَهْدِيَنَّهُمْ سُبُلَنَا وَإِنَّ اللَّهَ لَمَعَ الْمُحْسِنِينَ (69)

और जो लोग हमारे मार्ग में मिल कर प्रयास (व जेहाद) करें, हम अवश्य ही उन्हें अपने मार्ग दिखाएँगे। निःसंदेह ईश्वर सद्कर्मियों के साथ है। (29:69)

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ. الم (1)

अल्लाह के नाम से जो अत्यंत कृपाशील और दयावान है। अलिफ़. लाम. मीम. (30:1)

غُلِبَتِ الرُّومُ (2)

रोम वाले (ईरानियों से) पराजित हो गए। (30:2)

فِي أَدْنَى الْأَرْضِ وَهُمْ مِنْ بَعْدِ غَلَبِهِمْ سَيَغْلِبُونَ (3)

(अरबों से सबसे निकट धरती में) और वे अपनी पराजय के पश्चात शीघ्र ही विजयी हो जाएँगे। (30:3)

فِي بِضْعِ سِنِينَ لِلَّهِ الْأَمْرُ مِنْ قَبْلُ وَمِنْ بَعْدُ وَيَوْمَئِذٍ يَفْرَحُ الْمُؤْمِنُونَ (4)

अगले कुछ ही वर्षों में और अधिकार तो ईश्वर ही का है पहले भी और उसके बाद भी। और उस दिन ईमान वाले ईश्वर की सहायता से प्रसन्न होंगे। (30:4)

بِنَصْرِ اللَّهِ يَنْصُرُ مَنْ يَشَاءُ وَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ (5

वह जिसकी चाहता है, सहायता करता है। और वह अत्यन्त प्रभुत्वशाली व दयावान है (30:5)

وَعْدَ اللَّهِ لَا يُخْلِفُ اللَّهُ وَعْدَهُ وَلَكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ (6)

यह ईश्वर का वादा है और वह कभी अपने वादे को नहीं तोड़ता लेकिन अधिकतर लोग नहीं जानते। (30:6)

يَعْلَمُونَ ظَاهِرًا مِنَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَهُمْ عَنِ الْآَخِرَةِ هُمْ غَافِلُونَ (7)

वे तो (आंखों से दिखाई देने वाले) सांसारिक जीवन के केवल विदित रूप को जानते हैं किन्तु प्रलय (के जीवन) की ओर से वे बिलकुल निश्चेत हैं। (30:7)

أَوَلَمْ يَتَفَكَّرُوا فِي أَنْفُسِهِمْ مَا خَلَقَ اللَّهُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا إِلَّا بِالْحَقِّ وَأَجَلٍ مُسَمًّى وَإِنَّ كَثِيرًا مِنَ النَّاسِ بِلِقَاءِ رَبِّهِمْ لَكَافِرُونَ (8)

क्या उन्होंने अपने आप में यह सोच-विचार नहीं किया कि ईश्वर ने आकाशों और धरती को और जो कुछ उनके बीच है, सत्य के साथ और एक नियत अवधि के लिए पैदा किया है और निश्चय ही बहुत से लोग अपने पालनहार से मुलाक़ात का इन्कार करने वाले हैं। (30:8)

أَوَلَمْ يَسِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَيَنْظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ كَانُوا أَشَدَّ مِنْهُمْ قُوَّةً وَأَثَارُوا الْأَرْضَ وَعَمَرُوهَا أَكْثَرَ مِمَّا عَمَرُوهَا وَجَاءَتْهُمْ رُسُلُهُمْ بِالْبَيِّنَاتِ فَمَا كَانَ اللَّهُ لِيَظْلِمَهُمْ وَلَكِنْ كَانُوا أَنْفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ (9)

क्या वे धरती में चले-फिरे नहीं कि देखते कि उन लोगों का कैसा अंजाम हुआ जो उनसे पहले थे? वे शक्ति में उनसे अधिक बलवान थे और उन्होंने धरती को उपजाया और उससे कहीं अधिक उसे आबाद किया जितना उन्होंने आबाद किया है। और उनके पास उनके पैग़म्बर प्रत्यक्ष निशानियां और तर्क लेकर आए (लेकिन उन्हें झुठलाने के कारण वे तबाह हो गए)। तो ईश्वर (का इरादा) ऐसा न था कि उन पर अत्याचार करता बल्कि वे स्वयं ही अपने आप पर अत्याचार करते थे। (30:9)

ثُمَّ كَانَ عَاقِبَةَ الَّذِينَ أَسَاءُوا السُّوأَى أَنْ كَذَّبُوا بِآَيَاتِ اللَّهِ وَكَانُوا بِهَا يَسْتَهْزِئُونَ (10)

फिर जिन लोगों ने बुराई किया था उनका परिणाम बहुत बुरा हुआ क्योंकि वे ईश्वर की आयतों को झुठलाते थे और उनका परिहास करते थे। (30:10)

اللَّهُ يَبْدَأُ الْخَلْقَ ثُمَّ يُعِيدُهُ ثُمَّ إِلَيْهِ تُرْجَعُونَ (11)

ईश्वर ही सृष्टि का आरम्भ करता है, फिर वही उसे दोबारा लौटाता है, फिर तुम सब उसी की ओर पलटाए जाओगे। (30:11)

وَيَوْمَ تَقُومُ السَّاعَةُ يُبْلِسُ الْمُجْرِمُونَ (12)

और जिस दिन (प्रलय की) वह घड़ी आ जाएगी, उस दिन अपराधी निराश होकर रह जाएँगे। (30:12)

وَلَمْ يَكُنْ لَهُمْ مِنْ شُرَكَائِهِمْ شُفَعَاءُ وَكَانُوا بِشُرَكَائِهِمْ كَافِرِينَ (13)

और उनके द्वारा ठहराए गए (ईश्वर के) समकक्षों में से कोई उनका सिफ़ारिश करने वाला नहीं होगा और वे स्वयं भी अपने उन समकक्षों का इन्कार कर देंगे। (30:13)

وَيَوْمَ تَقُومُ السَّاعَةُ يَوْمَئِذٍ يَتَفَرَّقُونَ (14

और जिस दिन प्रलय आ खड़ा होगा उस दिन सभी लोग अलग-अलग हो जाएँगे। (30:14)

فَأَمَّا الَّذِينَ آَمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ فَهُمْ فِي رَوْضَةٍ يُحْبَرُونَ (15

तो जो लोग ईमान लाए हैं और जिन्होंने अच्छे कर्म किए हैं, वे (स्वर्ग के) एक बाग़ में प्रसन्नता से रहेंगे। (30:15)

وَأَمَّا الَّذِينَ كَفَرُوا وَكَذَّبُوا بِآَيَاتِنَا وَلِقَاءِ الْآَخِرَةِ فَأُولَئِكَ فِي الْعَذَابِ مُحْضَرُونَ (16)

किन्तु जिन लोगों ने (ईश्वर का) इन्कार किया और हमारी आयतों व प्रलय की मुलाक़ात को झुठलाया है तो वे दंड में ग्रस्त किए जाएँगे। (30:16)

فَسُبْحَانَ اللَّهِ حِينَ تُمْسُونَ وَحِينَ تُصْبِحُونَ (17)

तो अल्लाह का गुणगान करो जब तुम रात में प्रविष्ट होते हो और जब सुबह करते हो। (30:17)

وَلَهُ الْحَمْدُ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَعَشِيًّا وَحِينَ تُظْهِرُونَ (18)

और आकाशों और धरती में सारी प्रशंसा उसी के लिए विशेष है और इसी तरह (ईश्वर का गुणगान करो) पिछले पहर और जब तुम दोपहर में प्रविष्ट होते हो। (30:18)

يُخْرِجُ الْحَيَّ مِنَ الْمَيِّتِ وَيُخْرِجُ الْمَيِّتَ مِنَ الْحَيِّ وَيُحْيِي الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا وَكَذَلِكَ تُخْرَجُونَ (19)

वह जीवित को मृत से बाहर निकालता है और मृत को जीवित से, और धरती को उसकी मृत्यु के पश्चात जीवन प्रदान करता है और इसी प्रकार तुम भी (क़ब्रों से) निकाले जाओगे। (30:19)

وَمِنْ آَيَاتِهِ أَنْ خَلَقَكُمْ مِنْ تُرَابٍ ثُمَّ إِذَا أَنْتُمْ بَشَرٌ تَنْتَشِرُونَ (20)

और उसकी (शक्ति की) निशानियों में से यह है कि उसने तुम्हें (निर्जीव) मिट्टी से पैदा किया। फिर तुम मनुष्य (के रूप में धरती में) फैल गए। (30:20)

وَمِنْ آَيَاتِهِ أَنْ خَلَقَ لَكُمْ مِنْ أَنْفُسِكُمْ أَزْوَاجًا لِتَسْكُنُوا إِلَيْهَا وَجَعَلَ بَيْنَكُمْ مَوَدَّةً وَرَحْمَةً إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآَيَاتٍ لِقَوْمٍ يَتَفَكَّرُونَ (21)

और यह भी उसकी निशानियों में से है कि उसने तुम्हारी ही जाति से तुम्हारे लिए जोड़े पैदा किए ताकि तुम उनके पास शान्ति प्राप्त कर सको। और उसने तुम्हारे बीच प्रेम और दयालुता पैदा की और निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए बहुत सी निशानियाँ है जो सोच-विचार करते हैं। (30:21)

وَمِنْ آَيَاتِهِ خَلْقُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَاخْتِلَافُ أَلْسِنَتِكُمْ وَأَلْوَانِكُمْ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآَيَاتٍ لِلْعَالِمِينَ (22)

और उसकी निशानियों में से आकाशों और धरती की रचना और तुम्हारी भाषाओं और तुम्हारे रंगों की विविधता है। निःसंदेह इसमें ज्ञानियों के लिए निशानियाँ हैं। (30:22)

وَمِنْ آَيَاتِهِ مَنَامُكُمْ بِاللَّيْلِ وَالنَّهَارِ وَابْتِغَاؤُكُمْ مِنْ فَضْلِهِ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآَيَاتٍ لِقَوْمٍ يَسْمَعُونَ (23

और उसकी निशानियों में से तुम्हारा रात और दिन का सोना और उसकी कृपा से तुम्हारा (रोज़ी को) तलाश करना भी है। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ है जो सुनते हैं। (30:23)

وَمِنْ آَيَاتِهِ يُرِيكُمُ الْبَرْقَ خَوْفًا وَطَمَعًا وَيُنَزِّلُ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَيُحْيِي بِهِ الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآَيَاتٍ لِقَوْمٍ يَعْقِلُونَ (24)

और उसकी (शक्ति की) निशानियों में से यह भी है कि वह तुम्हें बिजली की चमक दिखाता है जो भय और आशा का कारण है। और वह आकाश से पानी बरसाता है। फिर उसके द्वारा धरती को उसके निर्जीव हो जाने के पश्चात जीवन प्रदान करता है। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ है जो बुद्धि से काम लेते हैं। (30:24)

وَمِنْ آَيَاتِهِ أَنْ تَقُومَ السَّمَاءُ وَالْأَرْضُ بِأَمْرِهِ ثُمَّ إِذَا دَعَاكُمْ دَعْوَةً مِنَ الْأَرْضِ إِذَا أَنْتُمْ تَخْرُجُونَ (25)

और उसकी निशानियों में से यह भी है कि आकाश और धरती उसके आदेश से क़ायम है। फिर जब वह तुम्हें एक बार पुकार कर धरती में से बुलाएगा, तो तुम सहसा ही (क़ब्रों से) निकल पड़ोगे। (30:25)

وَلَهُ مَنْ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ كُلٌّ لَهُ قَانِتُونَ (26)

और आकाशों और धरती में जो कोई भी है, उसी का है। (सृष्टि की व्यवस्था में) हर एक उसी का आज्ञाकारी है। (30:26)