धर्म

तौहीद और शिर्क : उन्हें इस भूल में नहीं रहना चाहिए कि वे अपने कर्मों की सज़ा और प्रतिफल से बच जाएंगे : पार्ट-17

وَمَا كُنْتَ تَرْجُو أَنْ يُلْقَى إِلَيْكَ الْكِتَابُ إِلَّا رَحْمَةً مِنْ رَبِّكَ فَلَا تَكُونَنَّ ظَهِيرًا لِلْكَافِرِينَ (86)

और (हे पैग़म्बर) आपको इसकी आशा नहीं थी कि यह किताब आपकी ओर भेजी जाएगी। यह आपके पालनहार की दया के अतिरिक्त कुछ नहीं था। अतः आप कभी भी काफ़िरों का सहारा न बनिए। (28:86)

وَلَا يَصُدُّنَّكَ عَنْ آَيَاتِ اللَّهِ بَعْدَ إِذْ أُنْزِلَتْ إِلَيْكَ وَادْعُ إِلَى رَبِّكَ وَلَا تَكُونَنَّ مِنَ الْمُشْرِكِينَ (87)

और वे आपको ईश्वर की आयतों (को) आपके पास आने के बाद (लोगों तक पहुंचाने) से रोकने न पाएँ। और आप (लोगों को) अपने पालनहार की ओर बुलाइये और कदापि अनेकेश्वरवादियों में शामिल न हों। (28:87)

وَلَا تَدْعُ مَعَ اللَّهِ إِلَهًا آَخَرَ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ كُلُّ شَيْءٍ هَالِكٌ إِلَّا وَجْهَهُ لَهُ الْحُكْمُ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ (88)

और ईश्वर के साथ किसी और (को) पूज्य (के रूप में) न पुकारो कि उसके अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं। उसके अस्तित्व के अतिरिक्त हर वस्तु समाप्त होने वाली है। (सृष्टि का) शासन उसी के लिए है और उसी की ओर तुम सबको लौटना है। (28:88)

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ. الم (1) أَحَسِبَ النَّاسُ أَنْ يُتْرَكُوا أَنْ يَقُولُوا آَمَنَّا وَهُمْ لَا يُفْتَنُونَ (2) وَلَقَدْ فَتَنَّا الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ فَلَيَعْلَمَنَّ اللَّهُ الَّذِينَ صَدَقُوا وَلَيَعْلَمَنَّ الْكَاذِبِينَ (3)

अल्लाह के नाम से जो अत्यंत कृपाशील और दयावान है। अलिफ़ लाम मीम (29:1) क्या लोगों ने यह समझ रखा है कि वे इतना कह देने मात्र से छोड़ दिए जाएँगे कि हम ईमान लाए और उन (के ईमान) की परीक्षा न ली जाएगी? (29:2) और निश्चित रूप से हम उन लोगों की परीक्षा कर चुके है जो इनसे पहले गुज़र चुके हैं। निश्चय ही ईश्वर को यह देखना है कि कौन (अपने ईमान के दावे में) सच्चे हैं और वह यह भी जान कर रहेगा कि झूठे कौन हैं? (29:3)

أَمْ حَسِبَ الَّذِينَ يَعْمَلُونَ السَّيِّئَاتِ أَنْ يَسْبِقُونَا سَاءَ مَا يَحْكُمُونَ (4) مَنْ كَانَ يَرْجُو لِقَاءَ اللَّهِ فَإِنَّ أَجَلَ اللَّهِ لَآَتٍ وَهُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ (5)

या उन लोगों ने, जो बुरे कर्म करते हैं, यह समझ रखा है कि वे हमसे आगे निकल जाएँगे? कितना बुरा है वह फ़ैसला जो वे कर रहे हैं। (29:4) जो व्यक्ति ईश्वर से मिलने का आशा रखता है तो निश्चय ही ईश्वर का नियत समय आने ही वाला है। और वह सब कुछ सुनने वाला और जानकार है। (29:5)

وَمَنْ جَاهَدَ فَإِنَّمَا يُجَاهِدُ لِنَفْسِهِ إِنَّ اللَّهَ لَغَنِيٌّ عَنِ الْعَالَمِينَ (6) وَالَّذِينَ آَمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَنُكَفِّرَنَّ عَنْهُمْ سَيِّئَاتِهِمْ وَلَنَجْزِيَنَّهُمْ أَحْسَنَ الَّذِي كَانُوا يَعْمَلُونَ (7)

और जो (ईश्वर के मार्ग में) संघर्ष करता है तो निश्चय ही वह स्वयं अपने ही लिए संघर्ष करता है। निश्चित रूप से ईश्वर सारे संसार से आवश्यकतामुक्त है। (29:6) और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए हम उनसे उनकी ग़लतियों को दूर कर देंगे और उन्हें, जो कुछ अच्छे कर्म वे करते रहे होंगे, उसका प्रतिफल प्रदान करेंगे। (29:7)

وَوَصَّيْنَا الْإِنسَانَ بِوَالِدَيْهِ حُسْنًا وَإِن جَاهَدَاكَ لِتُشْرِكَ بِي مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ فَلَا تُطِعْهُمَا إِلَيَّ مَرْجِعُكُمْ فَأُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ (8) وَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَنُدْخِلَنَّهُمْ فِي الصَّالِحِينَ (9)

और हमने मनुष्यों को अपने माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करने की सिफ़ारिश की है और यदि वे तुम पर किसी ऐसी चीज़ को मेरा समकक्ष ठहराने के लिए ज़ोर डालें जिसका तुम्हें कोई ज्ञान नहीं तो (इस मामले में) उनका अनुसरण न करो। तुम सबकी वापसी मेरी ही ओर है तब मैं तुम्हें, उन चीज़ों के बारे में अवगत कराऊंगा जो तुम करते रहे हो। (29:8) और जो लोग ईमान लाए और अच्छे कर्म करते रहे हम अवश्य ही उन्हें अच्छे लोगों (की पंक्ति) में सम्मिलित करेंगे। (29:9)

وَمِنَ النَّاسِ مَن يَقُولُ آمَنَّا بِاللَّـهِ فَإِذَا أُوذِيَ فِي اللَّـهِ جَعَلَ فِتْنَةَ النَّاسِ كَعَذَابِ اللَّـهِ وَلَئِن جَاءَ نَصْرٌ مِّن رَّبِّكَ لَيَقُولُنَّ إِنَّا كُنَّا مَعَكُمْ أَوَلَيْسَ اللَّـهُ بِأَعْلَمَ بِمَا فِي صُدُورِ الْعَالَمِينَ (10) وَلَيَعْلَمَنَّ اللَّـهُ الَّذِينَ آمَنُوا وَلَيَعْلَمَنَّ الْمُنَافِقِينَ (11)

और लोगों में कुछ ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि हम ईश्वर पर ईमान ले आए किन्तु जब उन्हें ईश्वर के मार्ग में सताया गया तो उन्होंने लोगों की यातनाओं को ईश्वरीय दंड समझ लिया (और ईमान छोड़ दिया)। और अब यदि आपके पालनहार की ओर से सहायता पहुँच जाए तो वे कहेंगे हम तो आपके साथ थे। क्या जो कुछ संसार वालों के सीनों में है उससे ईश्वर भली भाँति अवगत नहीं है? (29:10) और निश्चित रूप से ईश्वर उन लोगों को जानता है जो ईमान लाए और (इसी तरह) वह मिथ्याचारियों को भी अच्छी तरह जानता है। (29:11)

وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِلَّذِينَ آمَنُوا اتَّبِعُوا سَبِيلَنَا وَلْنَحْمِلْ خَطَايَاكُمْ وَمَا هُم بِحَامِلِينَ مِنْ خَطَايَاهُم مِّن شَيْءٍ إِنَّهُمْ لَكَاذِبُونَ (12) وَلَيَحْمِلُنَّ أَثْقَالَهُمْ وَأَثْقَالًا مَّعَ أَثْقَالِهِمْ وَلَيُسْأَلُنَّ يَوْمَ الْقِيَامَةِ عَمَّا كَانُوا يَفْتَرُونَ (13)

और काफ़िरों ने ईमान वालों से कहाः तुम हमारे मार्ग पर चलो, हम तुम्हारे पापों का बोझ उठा लेंगे जबकि वे उनके पापों में से कुछ भी उठाने वाले नहीं हैं। निश्चय ही वे झूठे हैं। (29:12) और निश्चित रूप से वे अपने (पापों का) बोझ भी उठाएँगे और अपने बोझ के साथ और दूसरे बहुत से बोझ भी उठाएंगे। और प्रलय के दिन अवश्य उनसे उस झूठ के विषय में पूछा जाएगा जो वे (ईश्वर और पैग़म्बर के बारे में) गढ़ते हैं। (29:13)

وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا نُوحًا إِلَى قَوْمِهِ فَلَبِثَ فِيهِمْ أَلْفَ سَنَةٍ إِلَّا خَمْسِينَ عَامًا فَأَخَذَهُمُ الطُّوفَانُ وَهُمْ ظَالِمُونَ (14) فَأَنْجَيْنَاهُ وَأَصْحَابَ السَّفِينَةِ وَجَعَلْنَاهَا آَيَةً لِلْعَالَمِينَ (15)

और हमने नूह को उनकी जाति की ओर भेजा और वे उनके बीच नौ सौ पचास साल रहे। (लेकिन अधिकतर लोग उन पर ईमान नहीं लाए) तो उन्हें तूफ़ान ने इस दशा में आ पकड़ा कि वे अत्याचारी थे। (29:14) फिर हमने नूह को और (उनके साथ सवार) नौका वालों को बचा लिया और इसे पूरे संसार के लिए एक निशानी बना दिया। (29:15)

وَإِبْرَاهِيمَ إِذْ قَالَ لِقَوْمِهِ اعْبُدُوا اللَّهَ وَاتَّقُوهُ ذَلِكُمْ خَيْرٌ لَكُمْ إِنْ كُنْتُمْ تَعْلَمُونَ (16) إِنَّمَا تَعْبُدُونَ مِنْ دُونِ اللَّهِ أَوْثَانًا وَتَخْلُقُونَ إِفْكًا إِنَّ الَّذِينَ تَعْبُدُونَ مِنْ دُونِ اللَّهِ لَا يَمْلِكُونَ لَكُمْ رِزْقًا فَابْتَغُوا عِنْدَ اللَّهِ الرِّزْقَ وَاعْبُدُوهُ وَاشْكُرُوا لَهُ إِلَيْهِ تُرْجَعُونَ (17)

और (हे पैग़म्बर! याद कीजिए उस समय को) जब इब्राहीम ने अपनी जाति (के लोगों) से कहा कि ईश्वर की उपासना करो और उससे डरते रहो कि यह तुम्हारे लिए बेहतर है यदि तुम जानते हो। (29:16) तुम तो ईश्वर को छोड़ कर मूर्तियों की पूजा कर रहे हो और झूठ गढ़ रहे हो। तुम ईश्वर के अलावा जिनकी उपासना करते हो वे तुम्हारी रोज़ी के भी मालिक नहीं हैं। तो तुम ईश्वर ही के यहाँ रोज़ी तलाश करो, उसी की उपासना करो और उसी के कृतज्ञ रहो कि तुम्हें उसी की ओर लौटकर जाना है। (29:17)

وَإِنْ تُكَذِّبُوا فَقَدْ كَذَّبَ أُمَمٌ مِنْ قَبْلِكُمْ وَمَا عَلَى الرَّسُولِ إِلَّا الْبَلَاغُ الْمُبِينُ (18)

और यदि तुम मुझे झुठलाते हो तो (इसमें आश्चर्य नहीं है क्योंकि) तुमसे पहले कितनी ही जातियां भी (अपने पैग़म्बरों को) झुठला चुकी हैं। और पैग़म्बर पर (धर्म के) स्पष्ट प्रचार के अतिरिक्त कोई दायित्व नहीं है। (29:18)

أَوَلَمْ يَرَوْا كَيْفَ يُبْدِئُ اللَّهُ الْخَلْقَ ثُمَّ يُعِيدُهُ إِنَّ ذَلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرٌ (19) قُلْ سِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَانْظُرُوا كَيْفَ بَدَأَ الْخَلْقَ ثُمَّ اللَّهُ يُنْشِئُ النَّشْأَةَ الْآَخِرَةَ إِنَّ اللَّهَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ (20)

क्या उन्होंने देखा नहीं कि ईश्वर किस प्रकार सृष्टि का आरम्भ करता है और फिर उसे लौटा देता है? निस्संदेह यह (काम) ईश्वर के लिए अत्यन्त सरल है (29:19) (हे पैग़म्बर) कह दीजिए कि धरती में घूमो-फिरो और देखो कि ईश्वर ने किस प्रकार सृष्टि का आरम्भ किया। इसके बाद वह परलोक को अस्तित्व में लाएगा कि निश्चय ही ईश्वर हर चीज़ में सक्षम है। (29:20)

يُعَذِّبُ مَنْ يَشَاءُ وَيَرْحَمُ مَنْ يَشَاءُ وَإِلَيْهِ تُقْلَبُونَ (21) وَمَا أَنْتُمْ بِمُعْجِزِينَ فِي الْأَرْضِ وَلَا فِي السَّمَاءِ وَمَا لَكُمْ مِنْ دُونِ اللَّهِ مِنْ وَلِيٍّ وَلَا نَصِيرٍ (22)

(ईश्वर) जिसे चाहता है दंड देता है और जिस पर चाहता है दया करता है और उसी की ओर तुम्हें पलटाया जाएगा। (29:21) और तुम न तो धरती में और न आकाश में (ईश्वर को) अक्षम बनाने वाले हो और ईश्वर के अतिरिक्त तुम्हारा कोई मित्र और सहायक नहीं है। (29:22)

وَالَّذِينَ كَفَرُوا بِآَيَاتِ اللَّهِ وَلِقَائِهِ أُولَئِكَ يَئِسُوا مِنْ رَحْمَتِي وَأُولَئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ (23)

और जिन लोगों ने ईश्वर की आयतों और (प्रलय में) उससे मिलने का इन्कार किया, वही लोग हैं जो मेरी दया से निराश हुए और वही हैं जिनके लिए पीड़ादायक दंड है। (29:23)

فَمَا كَانَ جَوَابَ قَوْمِهِ إِلَّا أَنْ قَالُوا اقْتُلُوهُ أَوْ حَرِّقُوهُ فَأَنْجَاهُ اللَّهُ مِنَ النَّارِ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآَيَاتٍ لِقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ (24)

तो उनकी जाति (के लोगों) का उत्तर इसके अतिरिक्त कुछ न था कि उन्होंने कहा कि इन्हें मार डालो या जला दो परंतु ईश्वर ने उन्हें आग से बचा लिया। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ हैं जो ईमान लाएँ। (29:24)

وَقَالَ إِنَّمَا اتَّخَذْتُمْ مِنْ دُونِ اللَّهِ أَوْثَانًا مَوَدَّةَ بَيْنِكُمْ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ثُمَّ يَوْمَ الْقِيَامَةِ يَكْفُرُ بَعْضُكُمْ بِبَعْضٍ وَيَلْعَنُ بَعْضُكُمْ بَعْضًا وَمَأْوَاكُمُ النَّارُ وَمَا لَكُمْ مِنْ نَاصِرِينَ (25)

और इब्राहीम ने कहाः निश्चित रूप से (तुम अनेकेश्वरवादियों ने) ईश्वर के स्थान पर कुछ मूर्तियों को पकड़ रखा है जो सांसारिक जीवन में तुम्हारे बीच प्रेम का कारण है लेकिन प्रलय के दिन तुम में से कुछ, कुछ दूसरों का इन्कार कर देंगे और तुम में से कुछ, दूसरों पर धिक्कार करेंगे। और तुम्हारा निश्चित ठिकाना आग है और तुम्हारा कोई सहायक न होगा। (29:25)

فَآَمَنَ لَهُ لُوطٌ وَقَالَ إِنِّي مُهَاجِرٌ إِلَى رَبِّي إِنَّهُ هُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ (26)

फिर लूत उन पर ईमान ले आए और इब्राहीम ने कहा कि निःसंदेह मैं अपने पालनहार की ओर पलायन करने वाला हूँ कि निश्चय ही वह अत्यन्त प्रभुत्वशाली (व) तत्वदर्शी है। (29:26)

وَوَهَبْنَا لَهُ إِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ وَجَعَلْنَا فِي ذُرِّيَّتِهِ النُّبُوَّةَ وَالْكِتَابَ وَآَتَيْنَاهُ أَجْرَهُ فِي الدُّنْيَا وَإِنَّهُ فِي الْآَخِرَةِ لَمِنَ الصَّالِحِينَ (27)

और हमने उन्हें इस्हाक़ और याक़ूब प्रदान किए और उनके वंश में पैग़म्बरी और किताब रखी और हमने उन्हें संसार में उनके (सद्कर्मों) का पारितोषिक प्रदान किया। और निश्चय ही वे परलोक में (भी) अच्छे लोगों में से होंगे। (29:27)

وَلُوطًا إِذْ قَالَ لِقَوْمِهِ إِنَّكُمْ لَتَأْتُونَ الْفَاحِشَةَ مَا سَبَقَكُمْ بِهَا مِنْ أَحَدٍ مِنَ الْعَالَمِينَ (28) أَئِنَّكُمْ لَتَأْتُونَ الرِّجَالَ وَتَقْطَعُونَ السَّبِيلَ وَتَأْتُونَ فِي نَادِيكُمُ الْمُنْكَرَ فَمَا كَانَ جَوَابَ قَوْمِهِ إِلَّا أَنْ قَالُوا ائْتِنَا بِعَذَابِ اللَّهِ إِنْ كُنْتَ مِنَ الصَّادِقِينَ (29)

और (हे पैग़म्बर याद कीजिए उस समय को) जब हमने लूत को भेजा और उन्होंने अपनी जाति (के लोगों) से कहा, तुम (समलैंगिकता का) जो अश्लील कर्म करते हो उसे तुमसे पहले संसार में किसी ने नहीं किया। (29:28) क्या तुम पुरुषों के पास जाते हो और (वंश जारी रहने का) मार्ग बंद करते हो और अपनी बैठकों में (एक दूसरे के सामने यह) बुरा कर्म करते हो? तो उनकी जाति (के लोगों) का उत्तर इसके अतिरिक्त कुछ नहीं था कि उन्होंने कहा, यदि तुम सच्चे हो तो हम पर ईश्वर का दंड ले आओ। (29:29)

قَالَ رَبِّ انْصُرْنِي عَلَى الْقَوْمِ الْمُفْسِدِينَ (30)

लूत ने कहा, हे मेरे पालनहार! बुराई फैलाने वाली जाति के मुक़ाबले में मेरी सहायता कर। (29:30)

وَلَمَّا جَاءَتْ رُسُلُنَا إِبْرَاهِيمَ بِالْبُشْرَى قَالُوا إِنَّا مُهْلِكُو أَهْلِ هَذِهِ الْقَرْيَةِ إِنَّ أَهْلَهَا كَانُوا ظَالِمِينَ (31) قَالَ إِنَّ فِيهَا لُوطًا قَالُوا نَحْنُ أَعْلَمُ بِمَنْ فِيهَا لَنُنَجِّيَنَّهُ وَأَهْلَهُ إِلَّا امْرَأَتَهُ كَانَتْ مِنَ الْغَابِرِينَ (32)

और जब हमारे भेजे हुए दूत इब्राहीम के पास (संतान के जन्म की) शुभ सूचना लेकर आए तो उन्होंने कहाः हम इस बस्ती के लोगों को तबाह करने वाले हैं कि निःस्संदेह इस बस्ती के लोग अत्याचारी हैं। (29:31) इब्राहीम ने कहाः बस्ती में तो लूत (भी) मौजूद हैं। ईश्वरीय दूतों ने कहाः हम बेहतर जानते हैं कि वहाँ कौन कौन है? निश्चय ही हम उन्हें और उनके परिजनों को बचा लेंगे सिवाए उनकी पत्नी के जो (दंड में) बाक़ी रह जाने वालों में से है। (29:32)

وَلَمَّا أَنْ جَاءَتْ رُسُلُنَا لُوطًا سِيءَ بِهِمْ وَضَاقَ بِهِمْ ذَرْعًا وَقَالُوا لَا تَخَفْ وَلَا تَحْزَنْ إِنَّا مُنَجُّوكَ وَأَهْلَكَ إِلَّا امْرَأَتَكَ كَانَتْ مِنَ الْغَابِرِينَ (33) إِنَّا مُنْزِلُونَ عَلَى أَهْلِ هَذِهِ الْقَرْيَةِ رِجْزًا مِنَ السَّمَاءِ بِمَا كَانُوا يَفْسُقُونَ (34) وَلَقَدْ تَرَكْنَا مِنْهَا آَيَةً بَيِّنَةً لِقَوْمٍ يَعْقِلُونَ (35)

और जब हमारे भेजे हुए दूत लूत के पास आए तो उनके आने से उनकी स्थिति बिगड़ गई और उन्होंने (उनके समर्थन से) अपना हाथ तंग पाया। फ़रिश्तों ने कहा कि न तो डरो और न ही शोकाकुल हो कि निश्चय ही हम तुम्हें और तुम्हारे घर वालों को बचा लेंगे सिवाए तुम्हारी पत्नी के कि वह पीछे रह जाने वालों में से है। (29:33) निश्चय ही हम इस बस्ती के लोगों पर उनके द्वारा किए गए पापों के कारण आकाश से एक दंड उतारने वाले हैं। (29:34) और हमने उस (उजड़ी हुई) बस्ती को उन लोगों के लिए एक खुली निशानी के रूप में छोड़ दिया जो बुद्धि से काम लेना चाहें। (29:35)

وَإِلَى مَدْيَنَ أَخَاهُمْ شُعَيْبًا فَقَالَ يَا قَوْمِ اعْبُدُوا اللَّهَ وَارْجُوا الْيَوْمَ الْآَخِرَ وَلَا تَعْثَوْا فِي الْأَرْضِ مُفْسِدِينَ (36) فَكَذَّبُوهُ فَأَخَذَتْهُمُ الرَّجْفَةُ فَأَصْبَحُوا فِي دَارِهِمْ جَاثِمِينَ (37)

और (हमने) मदयन की ओर उनके भाई शुऐब को भेजा। उन्होंने कहाः हे मेरी जाति (के लोगो) ईश्वर की उपासना करो और प्रलय की ओर से आशावान रहो और धरती में बिगाड़ मत फैलाओ। (29:36) किन्तु उन लोगों ने उन्हें झुठला दिया तो भूकम्प ने उन्हें दबोच लिया और वे अपने घरों में औंधे पड़े रह (कर मर) गए। (29:37)

وَعَادًا وَثَمُودَ وَقَدْ تَبَيَّنَ لَكُمْ مِنْ مَسَاكِنِهِمْ وَزَيَّنَ لَهُمَ الشَّيْططَانُ أَعْمَالَهُمْ فَصَدَّهُمْ عَنِ السَّبِيلِ وَكَانُوا مُسسْتَبْصِرِينَ (38)

और हमने आद और समूद को भी विनष्ट किया और निश्चय ही उनके (तबाह हो चुके) घरों और बस्तियों के खंडहरों से (उनका अंजाम) तुम पर स्पष्ट हो चुका है। और शैतान ने उनके कर्मों को उनके लिए सजा दिया और उन्हें सही मार्ग से रोक दिया जबकि वे बड़े दूरदर्शी थे। (29:38)

وَقَارُونَ وَفِرْعَوْنَ وَهَامَانَ وَلَقَدْ جَاءَهُمْ مُوسَى بِالْبَيِّنَاتِ فَاسْتَكْبَرُوا فِي الْأَرْضِ وَمَا كَانُوا سَابِقِينَ (39) فَكُلًّا أَخَذْنَا بِذَنْبِهِ فَمِنْهُمْ مَنْ أَرْسَلْنَا عَلَيْهِ حَاصِبًا وَمِنْهُمْ مَنْ أَخَذَتْهُ الصَّيْحَةُ وَمِنْهُمْ مَنْ خَسَفْنَا بِهِ الْأَرْضَ وَمِنْهُمْ مَنْ أَغْرَقْنَا وَمَا كَانَ اللَّهُ لِيَظْلِمَهُمْ وَلَكِنْ كَانُوا أَنْفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ (40)

और हमने क़ारून, फ़िरऔन और हामान को भी विनष्ट किया। मूसा उनके पास खुली निशानियाँ लेकर आए किन्तु उन्होंने धरती में घमंड और उद्दंडता से काम लिया हालाँकि वे हमसे (बच कर) निकल जाने वाले न थे। (29:39) अन्ततः हमने उनमें से हर एक को उसके पाप के कारण पकड़ लिया। फिर उनमें से कुछ पर तो हमने पत्थर बरसाने वाली हवा भेजी और कुछ को एक भीषण और मृत्युदायक चिंघाड़ ने आ लिया। और उनमें से कुछ को हमने धरती में धँसा दिया और कुछ अन्य को डूबो दिया। और ईश्वर का इरादा यह न था कि उनपर अत्याचार करे किन्तु वे स्वयं अपने आप पर अत्याचार कर रहे थे। (29:40)

مَثَلُ الَّذِينَ اتَّخَذُوا مِنْ دُونِ اللَّهِ أَوْلِيَاءَ كَمَثَلِ الْعَنْكَبُوتِ اتَّخَذَتْ بَيْتًا وَإِنَّ أَوْهَنَ الْبُيُوتِ لَبَيْتُ الْعَنْكَبُوتِ لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ (41) إِنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ مَا يَدْعُونَ مِنْ دُونِهِ مِنْ شَيْءٍ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ (42)

जिन लोगों ने ईश्वर से हटकर (दूसरों को) अपना संरक्षक बना लिया है उनकी उपमा मकड़ी जैसी है जिसने अपना एक घर बनाया और निश्चय ही अगर वे जानते होते तो सब घरों से कमज़ोर घर मकड़ी का ही होता है। (29:41) निस्संदेह ईश्वर उन चीज़ों को भली-भाँति जानता है जिन्हें ये उससे हटकर पुकारते हैं और वह अजेय व तत्वदर्शी है। (29:42)

وَتِلْكَ الْأَمْثَالُ نَضْرِبُهَا لِلنَّاسِ وَمَا يَعْقِلُهَا إِلَّا الْعَالِمُونَ (43) خَلَقَ اللَّهُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بِالْحَقِّ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآَيَةً لِلْمُؤْمِنِينَ (44)

और ये उपमाएं हम लोगों के लिए देते हैं परन्तु इन पर ज्ञानियों के अतिरिक्त कोई चिंतन नहीं करता। (29:43) ईश्वर ने आकाशों और धरती को सत्य के साथ पैदा किया। निश्चय ही इसमें ईमान वालों के लिए एक (बड़ी) निशानी है। (29:44)

اتْلُ مَا أُوحِيَ إِلَيْكَ مِنَ الْكِتَابِ وَأَقِمِ الصَّلَاةَ إِنَّ الصَّلَاةَ تَنْهَى عَنِ الْفَحْشَاءِ وَالْمُنْكَرِ وَلَذِكْرُ اللَّهِ أَكْبَرُ وَاللَّهُ يَعْلَمُ مَا تَصْنَعُونَ (45)

(हे पैग़म्बर!) आपके पास जो (आसमानी) किताब वहि (द्वारा भेजी) गई है उसमें से पढ़िए और नमाज़ स्थापित कीजिए कि निस्संदेह नमाज़ (मनुष्य को) अश्लीलता और बुराई से रोकती है। और ईश्वर की याद अधिक बड़ी है। और जो कुछ तुम करते हो उसे ईश्वर (भली भांति) जानता है। (29:45)