साहित्य

तो फिर, पेश है एक और कुत्त कविता…

Kavita Krishnapallavi
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तो फिर, पेश है एक और कुत्त कविता…
कुत्ती बोली हम तो बस अपना ही पेट भरे हैं
जनवादी कवियों को देखो कैसे त्याग करे हैं
ताकतवर लोगों की ड्योढ़ी पर ना शीश झुकावें
चाह नहीं पद-पीठ-प्रतिष्ठा रजधानी में पावें
कुत्ता बोला कुत्ती से, डार्लिंग वह गया ज़माना
सीखा है कुछ कवियों ने कविता से भी कुछ पाना
जनवादी कविता पढ़ वे बेचेंगे रजनीगंधा
बज्रबुद्धि क्या जानें कितनो चोखो है यह धंधा।
ऐसा धंधा कभी नहीं होता है जल्दी मंदा
धंधा तो धंधा है इसमें क्या सुथरा क्या गंदा
बने रहेंगे प्रगतिशील और उर्फ़ी संग नाचेंगे
हत्यारों का हृदय बदलकर शान्तिमंत्र बाँचेंगे
उनका जियरा लगा हुआ है जनगण के मंगल में
कौन भला देखेगा नाचे मोर अगर जंगल में
बहुत शुद्धतावादी होने से ना काम चलेगा
नहीं चढ़ा जो बड़े मंच पर कैसे बड़ा बनेगा
जनता का कवि बड़ा बना तो जनता बड़ी बनेगी
वरना अपने दुख के सागर में ही पड़ी रहेगी
रैम्पवाक कर कविगण अपना जलवा दिखला देंगे
लुच्चों और लफंगों को भी संस्कृति सिखला देंगे
कुत्ता फिर बोला दिल्ली जलसे में हम जायेंगे
नये ढंग का प्रगतिशील बनकर वापस आयेंगे
सनक गये हो बहक गये हो, भड़क के बोली कुत्ती
संग तुम्हारे दिल्ली जायेगी मेरी यह जुत्ती।
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लॉंग लिव द स्कूल ऑफ़ कुत्त पोयट्री!

Satyam Varma
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‘प्रत्यूष’, लखनऊ की ओर से आयोजित ‘आमने-सामने’ कार्यक्रम की आठवीं कड़ी में कल शाम युवा कवि और कथाकार हरेप्रकाश उपाध्याय ने कविता पाठ किया और फिर श्रोताओं के साथ कई सवालों पर उनकी दिलचस्प बातचीत हुई। कार्यक्रम अनुराग लायब्रेरी में हुआ।

कवि का परिचय देते हुए सत्यम ने कहा कि हरेप्रकाश की कविताओं का शिल्प सीधा-सरल होता है मगर वे गहरे तक छू जाती हैं। पिछले कुछ वर्षों के दौरान उनकी कविताएँ ऐसे मेहनतकश लोगों की ज़िन्दगी, सुखदुख और जीवन-संघर्षों को हमारे सामनी लाती रही हैं जो यूँ तो हमारे आसपास हर जगह मौजूद होते हैं पर अक्सर उन पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता।

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हरेप्रकाश ने इस बार ज़्यादातर ऐसी कविताएँ सुनायीं जो इन्हीं गुमनाम लोगों पर थीं जिनके बग़ैर दुनिया चलती नहीं है। ढाबे पर काम करने वाले 12 वर्षीय राजू, ओला बाइक चालक, ग़रीब किसान इतवारू, टेलर मास्टर रफ़ीक, सब्ज़ी उगाने वाले मनसोखा, इडली सांभर बेचने वाले जैसे पात्रों पर उनकी कविताओं ने इन सीधे-सादे मगर जीवट से भरे लोगों के जीवन्त चित्र श्रोताओं के सामने पेश किये। इनमें हर पात्र अपनी कठिन संघर्षभरी ज़िन्दगी की कहानी कहते हुए आज के हालात और पूरे समाज पर बहुत कुछ कह जाता है।

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जैसे एक अख़बार हॉकर पर उनकी कविता की ये पंक्तियाँ : अख़बार में छपी दुनिया अलग है / अख़बार वालों की दुनिया अलग है / राम आधार की दुनिया बिलकुल अलग-थलग है!
ललिया, कुछ तो बताओ, आज की ताज़ा ख़बर, पूछ रहे मज़दूर, मेट्रो में महिला गार्ड आदि कविताओं को भी श्रोताओं ने तल्लीन होकर सुना।
कवितापाठ का समापन उन्होंने कल ही लिखी अपनी कविता ‘सुकवि की चिन्ता’ से की जिसका लोगों ने ख़ूब आनन्द लिया। इसकी कुछ पंक्तियाँ देखिए :
…जुलूस में भी आगे रहे लहराते हाथ / मगर मन में तो छाये रहे वही दीनानाथ / लौटकर मंदिर गये नवाये जाकर माथ

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…कवि जी को कवियों की नाराजगी से डर लगता है / न जाने क्यों बेगाना-बेगाना सा अब शहर लगता है / नया रोग है, इधर वाला अब उनको उधर लगता है!
कविता पाठ के बाद बातचीत का भी लम्बा दौर चला जिसमें वरिष्ठ कवि चन्द्रेश्वर, अनिल श्रीवास्तव, कात्यायनी, आलोचक अनिल त्रिपाठी के अलावा श्रोताओं में से अंकित सिंह बाबू, सचिन तिवारी, डॉ. उमेश सचान, उमाशंकर यादव और सत्यम ने उनकी कविताओं को लेकर कई सवाल पूछे।
बाद में लायब्रेरी से लगे जैकोबें क्लब कैफ़े में साहित्यकारों और पाठकों के साथ अनौपचारिक तौर पर भी आज के साहित्यिक परिदृश्य पर काफ़ी बातें हुईं।

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नये पाठकों को बता दें कि हरेप्रकाश उपाध्याय का पहला कविता-संग्रह ‘खिलाड़ी दोस्त तथा अन्य कविताएँ’ 2009 में भारतीय ज्ञानपीठ से आया था और वहीं से 2014 में पहला उपन्यास ‘बखेड़ापुर’ प्रकाशित हुआ। 2021 में उनका दूसरा कविता-संग्रह ‘नया रास्ता’ आया। पिछले कुछ वर्षों में सोशल मीडिया पर और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आयी उनकी नयी कविताओं ने एक बड़े पाठक वर्ग को आकर्षित किया है। वे पत्रकारिता भी करते रहे हैं और पिछले कई वर्षों से ‘रश्मि प्रकाशन’ का संचालन कर रहे हैं।
कार्यक्रम में कवि चन्द्रेश्वर, कात्यायनी, अनिल श्रीवास्तव, आलोचक आशीष त्रिपाठी आदि के साथ ही अनेक अध्येता, छात्र-युवा तथा साहित्यप्रेमी उपस्थित थे।
इस मौक़े पर हरेप्रकाश की कविताओं के कुछ अंशों पर बने पोस्टर प्रदर्शित किये गये थे और जनचेतना की ओर से कविता पुसतकों की प्रदर्शनी लगायी गयी थी।