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…तो खुले आसमान में नहीं होता अंतिम संस्कार : कुशलगढ़ ज़िला बांसवाड़ा राजस्थान से धर्मेन्द्र सोनी की क़लम से

धर्मेन्द्र सोनी
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कुशलगढ़ जिला बांसवाड़ा राजस्थान रिपोर्टर धर्मेन्द्र सोनी की क़लम से,,

बालाचुना में यदी सरकार बना देती मुक्ती धाम तो खुले आसमान में नहीं होता अंतिम संस्कार , आज भी दो किलोमीटर दूर पानी में चल कर ले जाते हे मुर्दे की अर्थी पुर्व संसदीय सचिव की ग्रूह पंचायत का है मामला,जिस रस्ते सारी दुनिया जाती तुझे उसी पर जाना है आंख खोल कर देख बावरे जगत मुशाफीर खाना हे राजा रंक पुजारी पंडित सब को एक दिन जाना है

केन्द्र सरकार से लेकर राजस्थान सरकार विकास के कितने भी दावे बढ़-चढ़ कर करले की हमारी सरकार ने ये किया वो किया लेकिन धरातल पल पर सरकारो की अनदेखी कहें यो पोल आज हम राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के कुशलगढ़ उप खंड क्षेत्र के खेड़ा धरती घाटा क्षेत्र के बालाचुना गांव की ओर पाढको जनप्रतिनिधियों सरकार व अधिकारियों का ध्यान अपनी कलम से दिला रहें हैं वेसे तो बालाचुना गांव खजुरा पंचायत में आता है, ज़हां भारतीय जनता पार्टी के पुर्व विधायक व संसदीय सचिव भीमाभाई डामोर का ग्रूह क्षेत्र है संसदीय सचिव भीमाभाई डामोर पहले कुशलगढ़ पंचायत समिति के प्रधान भी रहें यंहा की बड़ी विडम्बना है कि आज़ादी से लेकर वर्तमान समय तक बालाचुना गांव में श्मशान घाट नहीं है वर्तमान राजस्थान सरकार ने जब प्रसासन गांव के संग अभियान चलाए इन शिविरों में मुक्ती धाम हेतु प्रस्ताव भी लिए लेकिन आज तक बालाचुना गांव में श्मशान घाट नहीं है

मामा बालेश्वर दयालु महा विद्यालय कुशलगढ़ छात्र संघ के पुर्व अध्यक्ष रमणलाल मईडा ने बताया कि बालाचुना में रविवार को वालजी पुत्र कानजी मईडा की मोत हो गई सर्वगिय वालजी की अंतिम यात्रा में समाज के लोग शरीक हुए विडंबना यह रही कि इस गांव में यदी कोई बच्चा बुडा महिला पुरुष यदी मर जाएं तो शव यात्रा, गांव से दो किलोमीटर दूर स्थित खुले आसमान में पानी के किनारे मुर्दे का अंतिम संस्कार करना पड़ता है इतना ही नहीं इन दो किलोमीटर के रास्ते में वर्षा के समय घुटनों घुटनो तक अर्थी को लेकर सव यात्रा लेजानी पड़ती है

वहीं सरकार अम्रुत महोत्सव मना रही हैं वहीं आम आदमी के मरने के बाद भी श्मशान घाट तक नशीब नहीं है इतना ही नहीं खजुरा,बालाचुना वडलाकी रेल, उमर झोंका सहित कुशलगढ़ उप खंड क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी श्मशान घाट नहीं है तथा खुलें में शवों का अंतिम संस्कार करना मजबूरी बनगया देखना यह होगा कि राजस्थान सरकार प्रसासन जनप्रतिनिधि इस ओर ध्यान देंगे या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा,!\