Harish Yadav
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शादी के बाद आकांक्षा ससुराल पहुंची। धीरे-धीरे सभी मेहमान अपने घर लौटने लगे, लेकिन आयुष की बहन संध्या और उनके दो बच्चे दो दिनों के लिए रुक गए। आकांक्षा को ससुराल में अपनापन देने के लिए संध्या ने भरपूर कोशिश की। आकांक्षा ने घर के कामों को जल्दी ही संभाल लिया और अपने व्यवहार से सभी का दिल जीत लिया। संध्या अपने भाई की नई जिंदगी को देखकर संतुष्ट थीं। विदा लेते समय संध्या ने आकांक्षा को गले लगाते हुए कहा, “मेरा भाई तुम्हें कभी तकलीफ नहीं देगा। तुम उसका ख्याल रखना। जरूरत पड़े तो मुझसे बेझिझक बात करना। मैं आती रहूंगी, दिल्ली से मेरठ दूर ही कितना है।”
आकांक्षा ने झुककर उनके पैर छुए और कहा, “दीदी, आप निश्चिंत रहिए।” संध्या ऑटो में बैठ गईं, लेकिन उनके बच्चे खड़े रहे। जब आकांक्षा ने कहा, “जाओ, मम्मा के साथ बैठो,” तो संध्या ने मुस्कुराते हुए कहा, “नहीं, अब तो तुम आ गई हो। ये यहीं रहेंगे…”
इस बात ने आकांक्षा को चौंका दिया। वह कुछ कह नहीं पाई लेकिन सवाल उसके मन में घूमने लगे। क्या संध्या अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होना चाह रही थीं? उसने सोचा, क्या बच्चों को उसके पास रखने की योजना बनाई गई थी? इस अनिश्चितता में, उसने आयुष के ऑफिस से लौटने का इंतजार किया।
आयुष के आते ही आकांक्षा ने चाय दी। थोड़ी देर बाद, उसने धीरे-से पूछा, “क्या दीदी के बच्चे यहीं रहेंगे?” आयुष ने शांत स्वर में जवाब दिया, “वे मेरे ही बच्चे हैं। मेरी पहली पत्नी के निधन के बाद, संध्या ने ही उन्हें पाला है।”
आकांक्षा की आंखें खुली की खुली रह गईं। “क्या तुम शादीशुदा थे? तुमने मुझे क्यों नहीं बताया?” वह लगभग चीख पड़ी।
आयुष ने गहरी सांस लेते हुए कहा, “मैंने तुम्हारे भाई को सबकुछ बताया था। उन्होंने तुम्हें नहीं बताया? अगर तुम्हें लगता है कि मैंने तुम्हें धोखा दिया है, तो तुम इस रिश्ते से आजाद हो।”
आकांक्षा के अंदर गुस्से और दर्द का तूफान उठ खड़ा हुआ। क्या उसके भाई ने उसे इस सच से दूर रखा? उसने खुद को ठगा हुआ महसूस किया। मां की मृत्यु के बाद जिस भाई ने उसे पालने का वादा किया था, वही आज उसके जीवन के इस मोड़ का कारण बन गया!
कुछ देर बाद, आयुष ने पास बैठकर कहा, “तुम्हारे साथ जो हुआ, वह गलत था। लेकिन अब इस पर शांत मन से सोचो। मैं तुम्हें वापस तुम्हारे भाई के पास छोड़ने के लिए तैयार हूं, अगर तुम ऐसा चाहो।”

आकांक्षा ने धीरे-से कहा, “नहीं, मैं वहां वापस नहीं जाऊंगी।” वह समझ गई कि अब उसे अपने फैसले खुद लेने होंगे।
अगले दिन संध्या का फोन आया। उनकी आवाज भरी हुई थी। “आकांक्षा, हमने तुम्हारे भाई को सबकुछ बताया था। अगर तुम्हें बच्चों से परेशानी है, तो वे मेरे पास रहेंगे। लेकिन आयुष को मत छोड़ना। वह बहुत अकेला रहा है। तुम्हारे आने से उसकी जिंदगी में खुशी आई है।”
इस बातचीत ने आकांक्षा को सोचने पर मजबूर कर दिया। क्या वह सच में इस रिश्ते को छोड़ सकती है? उसने महसूस किया कि आयुष और उनके बच्चे उसे धीरे-धीरे अपनाने लगे थे। वह खुद भी महसूस करने लगी कि इतने प्यार और सम्मान को छोड़कर वह कहां जाती?
उसने बच्चों से पूछा, “अगर मैं चली जाऊं, तो क्या तुम संध्या बुआ के पास रहोगे?” दोनों बच्चे रोने लगे। “नहीं, हमें आपके साथ रहना है। आप हमें बहुत अच्छी लगती हैं।”
आकांक्षा का दिल भर आया। उसने फोन पर संध्या से कहा, “दीदी, मैं यहीं रहूंगी। बच्चे भी यहीं रहेंगे।”
उसी वक्त उसने आयुष को अपनी ओर मुस्कुराते हुए देखा। उनकी नजरें मिलीं और वह शरमा गई। यह रिश्ता अब सिर्फ जिम्मेदारी नहीं, बल्कि प्यार और समझ का बंधन बन गया था।
Harish Yadav
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माफ़ कीजिए, मैं नहीं हूँ कुशल गृहणी!
आज सुबह से ही पता नहीं क्यों अजीब सा आलस आ रहा है।सुबह 6:30 का अलार्म बजा पर आज तो बेटे की छुट्टी है, पति की भी छुट्टी है, तो अलार्म बन्द करके फिर सो गई, अभी 10 मिनट ही हुए की मम्मी का फोन आ गया मेरी अलसाई आवाज सुनकर बोली “अब तक सो रही हो”,
“मेने कहा आज छुटटी है ।
“तो क्या सोती ही रहोगी, सब उठे उससे पहले काम निपटा लो, दोपहर में सो जाना, देर तक सोना अच्छी गृहणी के लक्षण नहीं है।”
इतनी डांट खा कर नींद ही उड़ गई,उठ के पहले चाय बना कर बालकनी में बैठ गई, उगते सूरज की लालिमा से सराबोर आकाश और करलव करते पंछियों को रोज की भागदौड़ में देख ही नहीं पाते।
फिर उठ कर झाड़ू लगा कर dustbin बाहर रखने गई तो पड़ोसन की सास बोली ,”आज बड़ी देर करदी बासी झाड़ू निकलने में “
मेने कहा “जी वो चाय पीने बैठ गई तो देर हो गई।”
“हाय राम,बासी घर में चाय पिली तुमने, अरे बेटी बासी झाड़ू लगा कर रसोई शुरू किया करना चाहिए तभी बरकत होती हैं यही कुशल गृहणी का लक्षण है।”
अब आँटी से तो क्या कहती,चुपचाप अंदर आगई।बाकी काम निपटाया,नहाने जा रही थी कि छोटी बेटी जाग गई उसका दूध गर्म किया,दलिया चढ़ाया,पति उठ गए तो उनकी चाय बनाई इसी बीच,नाश्ते की तैयारी, बड़े बेटे ने दूध गिरा दिया तो साफ किया, फिर सोचा नाश्ता बना ही दूँ ।उस समय बड़ी ननद का फ़ोन आगया बाते करते हुए नाश्ता बनाती जा रही थी ,तोऔर देर हो गई लगभग 11 बज गए पर नहाने का महूर्त नहीं आया,छुटटी के दिन फोन भी परेशान कर देते हैं लेकिन उसी दिन ही तो सबके पास थोड़ा समय होता है बात करने का।
मोबाइल फिर बजा सासुजी का वीडियो कॉल था,बच्चों को देखकर बातें करने का मौका भी तो इसी दिन मिलता है, मेने फ़ोन उठाया प्रणाम किया, आशीर्वाद के बाद बम विस्फोट हुआ” ये क्या अभी तक नाइटी में घूम रही हो, देर तक सोते रहो,देर से नहाओ ,ये लक्षण मुझे बिलकुल पसंद नहीं है तुम्हारे।
मेने कहा” माँ, कब से उठी हुई हूँ सारा काम भी हो गया नाश्ता भी बन गया,बस नहाने ही जा रही थी”
“क्या बिना नहाये नाश्ता भी बना दिया, सुबह की पूजा भी नहीं की होगी,हद है बहु तुम्हारे आलसीपन की,अच्छी गृहणी का एक भी लक्षण नहीं है तुम्हारे पास,खैर छोड़ो तुम्हें समझाने से कोई फायदा नहीं 7 साल हो गए समझाते हुए,बच्चों से बात करवाओ।”
मेने फ़ोन बेटे को दिया और चुपचाप बाथरूम में चली गई।वहां सीसे के सामने खड़ी हुई सोचने लगी क्या सही में मैं अच्छी गृहणी नहीं हूं।क्या वक़्त पर काम नहीं हो तो आप अच्छी गृहणी नही होती। इतना छोटा पैमाना है एक गृहणी को मापने का।
सब जानते हैं कि बच्चों को सम्भलते हुए काम करना बड़ा मुश्किल होता है इसलिए तो मेने पूजा का कोई समय नहीं बांधा जब भी फ़्री होती हूँ कर लेती हूं, आखिर भगवान को भी पता है मेरी व्यस्तता का वो बुरा नहीं मानते,,मैं बच्ची को रुला कर काम नहीं कर सकती, मेरे लिए झाड़ू लगाने से ज्यादा ज़रूरी मेरे पति और बच्चों का नाश्ता बनाना है,फ़िजूल के नियमों के लिए अभी समय नही है मेरे पास, बच्चों की देखभाल ज्यादा ज़रूरी है ,एक बार कुशल माँ तो बन जाऊं, बच्चे सम्भल जाएं तब बन जाएंगे कुशल गृहणी ।
मन खराब हो गया था लेकिन छुटटी खराब नहीं करनी थी सो सारा तनाव फ्लश करके बाहर निकली ,सबको खमण बहुत पसंद आया, उसके बाद मेरे हाथों का पाइनएप्पल श्रीखंड खा कर पति ने कहा “वाकई तुम कमाल हो।”बड़े जादुई शब्द थे वो पति सन्तुष्ट है, बच्चे खुश है,मैं भी बहुत खुश हूं ,तो हुई ना मैं भी कुशल गृहणी।
तो क्या हुआ जो आज देर तक सोई,तो क्या हुआ जो झाड़ू देर से लगाया,तो क्या हुआ जो बिना नहाये खाना बना दिया, तो क्या हुआ जो पूजा में देर हो गई ,तो क्या हुआ जो कपड़ो को तह नही लगाई, तो क्या हुआ जो सिंक में बर्तन पड़े हैं तो क्या हुआ जगह जगह खिलौने बिखरे पड़े हैं।जब मेरे बच्चे पति और मैं खुश हैं, तो अभी इस प्रश्न के मायने ही नहीं है कि मैं एक अच्छी गृहणी हूँ या नहीं ।
सिर्फ समय से उठना, टाइम टेबल से काम का हिसाब करना और बस रोबोट की तरह चलते रहना ,,,क्या यही पैमाना है एक पत्नी माँ या गृहणी को आँकने का,तो माफ़ कीजिए मैं कुशल गृहणी नहीं हूँ 🙏🙏