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तुर्की में राष्ट्रपति तय्यब एर्दोगान ने समय से पहले अचानक राष्ट्रपति चुनाव का किया ऐलान

नई दिल्ली: विश्व में एक नई शक्ति बनकर उभरने वाले तुर्की के राष्ट्रपति तय्यब एर्दोगान ने अचानक तुर्की में 24 जून 2018 को राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव की घोषणा करी है,ये चुनाव 2019 में होना तय थे।

तुर्की के राष्ट्रपति बहुत ज़्यादा पसन्द किए जाने वाले नेता हैं जिन पर तुर्की जनता अपनी जान कुर्बान करने को तैयार रहती है,राष्ट्रपति अर्दोआन 2002 से तुर्की की सत्ता संभाल रहे हैं और वो अब राष्ट्रपति के तौर पर अधिक शक्तियों के साथ पांच साल का नया कार्यकाल चाहते हैं

टीवी पर प्रसारित संदेश में राष्ट्रपति अर्दोआन ने कहा, “देश को पुरानी व्यवस्था की बीमारी से निजात दिलाने के लिए” नए चुनावों की ज़रूरत है,राष्ट्रपति ने कहा, “सीरिया और दुनिया के अन्य हिस्सों में चल रहे घटनाक्रम की वजह से नए एक्ज़ीक्यूटिव सिस्टम को लागू करना ज़रूरी हो गया है ताकि हम अपने देश के हित में और मज़बूती के साथ फ़ैसले ले सकें.”

एर्दोगान ने कहा कि उन्होंने अचानक चुनाव कराने का फ़ैसला राष्ट्रवादी एमएचपी पार्टी के अध्यक्ष देवलेत बाशेली से चर्चा के बाद लिया है. माना जा रहा है कि एमएचपी पार्टी सत्ताधारी एके पार्टी के साथ संसदीय चुनावों में गठबंधन करेगी.

एर्दोगान को इतनी जल्दी क्यों ?

बीबीसी के तुर्की संवाददाता मार्क लोवेन के मुताबिक ये सब बहुत ही नियोजित ढंग से किया जा रहा है,तुर्की की सरकार लगातार जल्द चुनाव कराए जाने को नकारती रही थी लेकिन मंगलवार को गठबंधन सहयोगियों के साथ हुई वार्ता के बाद यू-टर्न ले लिया. दिखाने के लिए बुधवार को चर्चा की गई और जितना अनुमान लगाया जा रहा था उससे भी बहुत पहले की चुनावी तारीख़ घोषित कर दी।

ऐसे में सवाल उठ रहा है कि इतनी ज़ल्दबाज़ी क्यों? आलोचक तर्क दे सकते हैं कि राष्ट्रपति अर्दोआन अपनी मुख्य प्रतिद्वंदी मेराल अकसेनर के पर काटना चाहते हैं. अकसेनर ने कुछ महीने पहले ही देश में नई कट्टरपंथी पार्टी गठित की है।

तुर्की की मुद्रा लीरा रिकॉर्ड निचले स्तर पर है. उभर रही अर्थव्यवस्था वाले देशों की ये सबसे ख़राब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा है. यही नहीं देश में घाटा बढ़ रहा है और महंगाई बढ़ती ही जा रही है. ऐसे में अर्दोआन संभवतः अर्थव्यवस्था में गिरावट से पहले ही कार्रवाई करना चाहते हैं।

उनके समर्थकों का तर्क है कि वो बस पिछले साल हुए जनमत संग्रह के बाद स्थिति को और स्पष्ट करना चाहते हैं. जनमत संग्रह में तुर्की के संसदीय लोकतंत्र को बदलकर राष्ट्रपति शासित गणराज्य कर दिया गया था।

इसके फ़ायदे स्पष्ट हैं. सीरिया में हाल के दिनों में कुर्द लड़ाकों के ख़िलाफ़ की गई सैन्य कार्रवाई के बाद पैदा हुए देशभक्ति की लहर का सहारा लिया जाए और विपक्ष को बिना तैयारी के ही घेर लिया जाए।

लेकिन इसका ख़तरा ये है कि गिर रही अर्थव्यवस्था का दंश झेल रहे मतदाता चुनावों को सरकार को सबक सीखाने का मौका भी बना सकते हैं।

पिछले साल तुर्की के लोगों ने बेहद कम अंतर से जनमत संग्रह में नई व्यवस्था को मंज़ूरी दी थी, जिसके तहत देश में प्रधानमंत्री का पद समाप्त हो जाएगा और प्रधानमंत्री की कार्यकारी शक्तियां राष्ट्रपति के हाथों में आ जाएंगी।