विशेष

तुम नंगे हो जाओ, कपडे उतारने की बात नहीं कह रहा हूँ….!

स्वामी देव कामुक
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ना श्वेत श्वेत ना श्याम श्याम
वो सुंदरता की प्रतिमा सी।
अपनी मादक आंखों से
वो मुझमें प्राण जगाती सी।
अपने सुगन्धित केशों में
वो कलियों को महकाती सी।
अनघड़ अनंत सितारों में
वो ‘चंद्रमुखी’ ‘चंदा’ जैसी।
रत्नों के भंडारों में
वो ‘मोती माला’ के जैसी।
हे रूप कामिनी ह्रदय हिरणी
तुम उत्साह को जगाती सी।
‘वीर बहादुर’ कवियों को
तुम ‘श्रृंगार’ पाठ पढाती सी।
हे सुंदर अंतर्मन वाली,
हे चेतन जड़ करने वाली।
तुम ‘श्रृंगार रस’ की जननी सी,
तुम ‘श्रृंगार रस की जननी’ हो।
तुम्हारा स्वामी देव

स्वामी देव कामुक
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तुम नंगे हो जाओ, कपडे उतारने की बात नहीं कह रहा हूँ; मन के आवरणों को हटाने की बात कह रहा हूँ। लेकिन जब भी ऐसी कोई बात होती है तो तुम्हारे ख्यालो में स्त्री ही आती है! क्योकि ये बात जानकर तुम हैरान होगे कि तुम्हारी पत्नी भी स्त्री ही है!
तुम रोज उसे बिस्तर पर साथ पाते हो पर फिर भी उसे समझने की, जानने की चाह कभी नही की! अभी तुम्हे स्त्रीत्व तक पहुँचने में देर है; स्त्री को समझने का, उसके तन को जानने का दम चाहिए। अदभुत साहस चाहिए, प्रेम की अनुभूति चाहिए। परम की आकांक्षा चाहिए।


जबकि लोग उसके उभारो की ऊँचाई देखकर गिर जाते हैं। उसकी गहराइयो में ऐसे डूबते हैं कि मरकर के वापस आते हैं। इसलिए जब भी तुम्हें स्त्री के नजदीक जाने का अवसर मिले तो चूकना मत! जरुरी नहीं कि हर बार तुम सेक्स में हो जाओ, कुछ समय ऐसा भी गुजारना; जहाँ तुम शरीर के पार देखने की कोशिश करना; शायद तुम उसके दिल की धडकन सुन सको, शायद तुम उसके स्त्रीत्व को छू सको, और जिस पल तुमने उसके स्त्रीत्व को छू लिया!
तब अचानक से वासना तिरोहित होगी, और प्रेम का आगमन होगा, तुम एक परमसुख की अनुभूति करोगे, एक ऐसा आनंद जो तुम्हे जन्मों जन्मों तक गुदगुदाता रहेगा, तुम मुस्करा उठोगे, खिल जाओगे, और यही खिलावट तुम्हे जीवन के परम सत्ता की अनुभूति देगी, जीवन के परम आनंद से तुम्हारा मिलन होगा.
(साभार ओशो )
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तुम्हारा स्वामी देव

स्वामी देव कामुक
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प्रेम में एक अमृत है, प्रेम तुम्हें खिला जाता है।
घृणा तुम्हें मार जाती है, घृणा में एक जहर है।।
जो प्रेम से जीते हैं।
जो हृदय से जीते हैं, जिंदगी उनकी है।
और जिनकी जिंदगी है उन्हीं का परमात्मा है।
और जिनकी जिंदगी है उनका स्वर्ग कल नहीं है,
भविष्य में नहीं है, मौत के बाद नहीं है।
उनका स्वर्ग अभी है और यहीं है। वे स्वर्ग में ही हैं।
प्रेम को निखारो!
प्रेम का दीया जलाओ!
प्रेम की दीपावली मनाओ!
प्रेम की फाग खेलो!
प्रेम के रंग-गुलाल उड़ाओ!
जरूर प्रेम अभी बहुत कीचड़ में पड़ा है,
लेकिन कीचड़ से ही तो कमल पैदा होते हैं।
कीचड़ से मुक्त करो कमल को। मगर नष्ट मत कर देना।
नष्ट कर दिया तो सीढ़ी ही टूट गई।
नष्ट कर दिया तो नाव ही टूट गई।
फिर उस पार कैसे जाओगे?
प्रेम की नाव बनाओ।
यही नाव है–एकमात्र नाव, जो उस पार ले जा सकती है।
हिम्मत चाहिए,
परवाने की हिम्मत चाहिए,
जो प्रेम में ज्योति पर झपट पड़ता है और मर जाता है।
उतना साहस चाहिए–
जो सब लोक-लाज खो देता है, छोड़ देता है।
तो जरूर प्रेम तुम्हारे लिए
अभी और यहीं स्वर्ग के द्वार खोल सकता है।
धन्यभागी हैं वे, जिनके ह्रदय में प्रेम है
🌺🌺❣️ 🙏🙏_ 🌺🌺❣️
तुम्हारा स्वामी देव

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