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तालेबान के किसी भी नेता को काबुल में एमन अलज़वाहेरी के मौजूद होने की सूचना नहीं थी : ज़बीहुल्लाह मुजाहिद

अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान की अंतरिम सरकार के प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा कि इंटेलीजेन्स गैप की वजह से तालेबान के किसी भी नेता को काबुल में एमन अलज़वाहेरी के मौजूद होने की सूचना नहीं थी।

उन्होंने कहा कि ज़वाहेरी की हत्या के बाद अब तालेबान सरकार को औपचारिकता देने की प्रक्रिया तेज़ होनी चाहिए ताकि तालेबान सरकार दुनिया के सामने जवाबदेह बन सके।

अलक़ायदा के मुखिया की हत्या के बारे में तालेबान नेताओं के विरोधाभासी बयानों से लगता है कि इस गुट के भीतर इस मसले पर मतभेद पैदा हो गया है। अपुष्ट ख़बरें बताती हैं कि ज़वाहेरी काबुल में एक तालेबान अधिकारी का मेहमान था। ज़वाहेरी को दफ़्न किए जाने क विषय में भी तालेबान के भीतर मतभेद देखने में आया।

ज़वाहेरी की हत्या को तालेबान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के लिए भी एक नाकामी समझा जा रहा है बल्कि यहां तक कहा जा रहा है कि इस घटना से पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी की बदनामी हुई है।

टीकाकार कहते हैं कि तालेबान तो पहले से चाहते थे कि ज़वाहेरी अफ़ग़ानिस्तान में शरण लें और इसके लिए तालेबान ने निश्चित रूप से पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी की स्वीकृति भी ज़रूर ली होगी।

अमरीका पहले से कहता रहा है कि तालेबान ने दोहा समझौता का उल्लंघन किया क्योंकि काबुल पर क़ब्ज़ा करने के विषय में उसने उन शर्तों को पूरा नहीं किया जिनकी उसने पहले हामी भरी थी। अमरीका की नज़र में ज़वाहेरी को शरण देना भी तालेबान की ओर से दोहा समझौते का उल्लंघन है।

ज़वाहेरी की हत्या के बाद तालेबान काफ़ी जटिल परिस्थितियों में फंस गए हैं और उनकी कोशिश है कि उनकी सरकार को विश्व स्तर पर मान्यता मिल जाए।

अफ़ग़ानिस्तान के मामलों के विशेषज्ञ सैयद हुसैन हुसैनी का कहना है कि तालेबान इस समय कई समूहों में बटे हुए दिखाई देते हैं। आम नागरिकों से बर्ताव का मुद्दा हो या आतंकियों से सहयोग का विषय हो तालेबान के अलग अगल समूह अलग अलग राग अलापते दिखाई दे रहे हैं। इस स्थिति के चलते अफ़ग़ान जनता में असमंजस की स्थिति है।

जहां तालेबान के सामने एक बड़ा चैलेंज यह था कि वह देश में अलग अलग जातियों और समूहों को एकजुट करे और व्यापक जनाधार की सरकार बनाएं वहीं अब इस गुट के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि ख़ुद को अलग अगल समूहों में बटने से नहीं बचा पा रहा है। तालेबान की कोशिश है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसे मान्यता मिल जाए मगर वर्तमान हालात में तो यह मंज़िल काफ़ी दूर दिखाई देती है। दोहा समझौते की विषयवस्तु अभी सामने नहीं आई है मगर तालेबान ख़ुद को इस समझौते के पीछे नहीं छिपा सकते।