विशेष

तानाशाह की असली ‘सूरत’ एक बार फिर देश के सामने है, संविधान को ख़त्म करने की तरफ़ एक और क़दम!

Rahul Gandhi
@RahulGandhi
तानाशाह की असली ‘सूरत’ एक बार फिर देश के सामने है!

जनता से अपना नेता चुनने का अधिकार छीन लेना बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान को खत्म करने की तरफ बढ़ाया एक और कदम है।

मैं एक बार फिर कह रहा हूं – यह सिर्फ सरकार बनाने का चुनाव नहीं है, यह देश को बचाने का चुनाव है, संविधान की रक्षा का चुनाव है।

Dr. Ragini Nayak
@NayakRagini

श्रीमती ‘ईरानी’ ‘पारसी’ से शादी करने के बाद
वोट बटोरने के लिए दिखावे में ‘मंगलसूत्र’ लटकाए फिरती हैं

श्रीमान मोदी अपनी ब्याहता के ‘मंगलसूत्र’ का मान रख न सके
पर वोट बटोरने के लिए दूसरी मां-बेटियों के मंगलसूत्र की दुहाई देते हैं

ये भाजपायी न अपनों के सगे हैं, न अपने धर्म के !

जयचंद प्रजापति
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पड़ोसी पड़ोसी के काम आता है
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पड़ोसियों के नाम पर भरोसेलाल जलभुन जाता है। बहुत गुस्सा आता है। अमीर बनता है। घमंडी है। मक्कार कहीं का। पूरा बदमाश है। लफंगा है।
उसकी पत्नी यहाँ वहाँ गुलछर्रे उड़ाती है। बनता है महान आदमी। समाज में कोई पूछता नहीं है। समाज में कोई वैल्यू नहीं है। खाने के लिए दो जून की रोटी नसीब नहीं होती है। गरीब भीखमंगा। दरिद्रता का छाता ओढ़ रखा है।
पड़ोसियों से लोग बहुत नफरत रखते हैं। बुराइयाँ खोजते फिरते हैं। नीचा दिखाने के लिए तरह-तरह हथकंडे अपनाते हैं लोग लेकिन यह सब बहुत गलत बात है।
भरोसेलाल का पड़ोसी सियाराम हैं। गरीब जरूर है लेकिन पड़ोसियों की मदद करने में कोई कसर नही छोड़ता है। भरोसेलाल भरोसे का आदमी नहीं है। मजाल है किसी के भरनी करनी दुख दुरापत में खड़ा हुआ हो कभी।
सियाराम की पत्नी मर गयी थी। भरोसेलाल द्वार छोड़ कर नहीं गया। निर्दयी कहीं का। चुल्लूभर पानी में डूब मर जाता। दो कौड़ी का भाव। छुछुंदर जैसा मुंह लेकर बैठा रहा। उसकी पत्नी की मौत पर बैठे-बैठे चार कट्टी बीड़ी सुलगा दी।
सियाराम को इस बात का मलाल नहीं है कि वह आया नहीं। इस बात कि चिंता है कि समाज में नफरत की नींव और गहरी हो जायेगी। लोगों में गलत संदेश जायेगा।
समय एक जैसा नहीं रहता। सियाराम पहले ऐसे पड़ोसी व्यक्ति थे जब भरोसेलाल फिसल कर गिर पड़े थे। सियाराम पहुँच कर अस्पताल ले गयेे थे। दोनों बेटे विदेश में थे। इलाज कराया था। तब ठीक होकर भरोसेलाल घर पहुंचे थे। भरोसेलाल की पत्नी बीमार हो गयी थी। ब्लड की कमी थी। कोई ब्लड देने को तैयार नहीं था। यही पड़ोसी सियाराम था जिसने ब्लड देकर भरोसेलाल की पत्नी की जान बचाई थी।दोनों बेटे विदेश का बहाना बनाकर नहीं आयें।
नफरत की आग में सियाराम था ही नहीं। मानवता उसके जीवन का मूलधन है। समाज में प्रेम का बीज बोना चाहता है। इस बार भरोसेलाल तथा पत्नी दोनों साथ में बीमार हो गये। सियाराम नि:संकोच दवाई कराई। दोनों ठीक हो गये। शर्मिन्दगी महसूस तब भरोसेलाल को हुई। लोगों ने कहा पड़ोसी हो तो सियाराम जैसा। आज भरोसेलाल सियाराम के आगे बौना नजर आ रहा था।
——जयचंद प्रजापति ’जय’
प्रयागराज