धर्म

तसवूफ़ एक बदनाम लफ़्ज़ होकर रह गया है….तसवूफ़ क्या है?

Razi Chishti
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तसवूफ़ क्या है?
तसवूफ़ एक बदनाम लफ़्ज़ होकर रह गया है. तसवूफ़ का नाम सुनते ही लोगों के दिमाग़ में मज़ारों के रसुमात आने लगते हैं. जो लोग तसवूफ़ के खेलाफ़ हैं दर हक़ीक़त उनका भी कोई क़सूर नहीं हैं. आज मज़ारों के अक़ीदतमन्द लोग जो बातिनी रमूज़ ओ असरार से नाआशना हैं वह भी तसवूफ़ क्या है इस से बेख़बर हैं और इन्ही रसुमात को ही तसवूफ़ समझते हैं. उनकी नज़र में मज़ारों पर सजदा करना, मज़ार का तवाफ़ करना, चादर पोशी करना, क़ौवाली सुनना और वज्द में आकर नाचने लगना यही तसवूफ़ है जबकि तसवूफ़ से इन रसुमात का कोई वास्ता सरोकार नहीं है.

हमने दीन को सिर्फ़ नमाज़ पढ़ना, रोज़ा रखना, हज करना, ज़कात देना, और कलमा शहादत पढ़ने तक महदूद करदीया और समझ लिया कि यही दीन है. यह सही है कि अरकान मज़कूर इस्लाम के पाँच स्तम्भ(pillars) हैं लेकिन एक महल सिर्फ़ pillars को तो नहीं कहते: दीवार बनाना, उसपर छत डालना, दरवाज़े और रोशनदान बनाना, यह सभी महल के ज़रूरी अंग हैं. सदियों से इन पाँच अरकान के मूतआल्लिक़ ही मदरसों मे पढ़ते रहे और तबलीग़ करते रहे लेकिन इस से आगे कभी न बढ़े और न बताया ही कि दीन में इस के आगे भी मुक़ामात हैं. नतीजा यह हुआ कि हम एक बंद गली के सामने आकर खड़े हैं और समझ में नहीं आरहा है कि इस के आगे कैसे जाए.

जब इन पाँच अरकान पर अमल करने वाले यह कहने लगे कि हम ईमान ले आए तब अल्लाह swt ने फ़रमाया;

“देहाती लोग कहते हैं कि हम ईमान लेआये, नहीं इनसे कहो कि तुम अभी इस्लाम लाये हो ईमान तो अभी तुम्हारे दिलों में दाख़िल ही नहीं हुआ” (49:14)

हम तो बस पाँच अरकान की अदायगी पर खुश हैं और यह जानते है नहीं कि इस के आगे अभी एक लंबा सफ़र हमारा मुंतज़िर है. ———-To be continued.