विशेष

“तथाकथित समाज”

महिमा यथार्थ
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✍️”तथाकथित समाज”

मैंने जानबूझकर वक्त दिया खुद को ,ताकि मैं जान सकूँ कि क्या चाहते है लोग ,समाज ,परिवार,दोस्त ….अन्ततः पाया यही है कि आप अगर पूछे जाते हो,प्यार किए जाते हो,सम्मानित किए जाते हो,गलतियां आपकी भुला दी जाती है जो कि यह भी समाज ही निर्धारित करता है कि क्या सही है क्या गलत…. तो बस आपकी आर्थिकी का जरिया क्या है इससे,आप की आय कितनी है…सम्पत्ति कितनी है…खाशकर लड़को के लिए तो यह और दुबिधा से भरा है ,यह उन्हें समाज में खड़े होने के लिए अतिआवश्यक है…

यह सारी चीजों में लड़कियों का यह पक्ष इसलिए आता है कि एक तो वह खुद चाहती हो यह मुकाम पाना, अपना कुछ अपने बल बूते करना, बहुतायत यह समाज में एक वजूद बनाने के लिए करती है ताकि उन्हें मजबूरन दब कर,मजबूरन ,रिश्ते को ढोना न पड़े वह जी सके एक सामान्य जीवन अपने आस -पास समाज में ,हमसफ़र के साथ ,जिम्मेदारी की तरह उन्हें न समझा जाए इसलिए करती है ….

नहीं तो शादी तो हो ही जाती है लड़कियों की दहेज देकर,सुंदरता देख कर,घरेलू गुण देखकर ,रसोई घर की कारीगरी देखकर,नौकरी देखकर….\\

आपका दिल, आपका नजरिया ,आपका ज्ञान,आपकी काबिलियत, आपकी नियत,आपका चरित्र, आपका स्वभाव कितना ही बेहतरीन क्यों न हो ,

यह सब बाद की बातें है …जब बात रिश्ते बनाने को होते है ……

लेकिन अगर सिर्फ बात करनी हो,किसी को प्रभावित करनी हो,किसी से किसी भी तरह की स्वार्थसिद्धि करनी हो तो यह सब प्रथम बन जाता है हमारे समाज ,परिवार व अन्य के लिए…

यहीं दोगलापन है समाज का ….
इसलिए आप को सब कुछ समन्वय करके चलना पड़ता है ….

समाज का डर दिखाया भी जाता है ,समाज ही आपके लिए गड्ढे भी बनाता है ,दरिया भी बनाता है,परतंत्रता भी देता है ….आजादी तो बस कागजों में है ..यदि चाहिए तो लड़ो कानून से ,समाज से तब आप विरोधी और विद्रोही भी हो जाएंगे….

बधाई हो आप तथाकथित समाज के दोगलेपन का शिकार है…
आप बस स्वयं से मुक्ति ले सकते है ,अतः आनन्द में रहिए …कोई आप को छोड़ने वाला नहीं है …..

“जीवन पाकर जीवन में,
जीवंत रहो तुम हर क्षण ,
लोग जी रहे है मृत जीवन,
तुम जीवन में जीवित रहते ,
मत जीना एक मृत जीवन!”

 

डिस्क्लेमर : लेखक के अपने निजी विचार और जानकारियां हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं है