साहित्य

”ढोल, गवार, शूद्र, पशु, नारी, ये सब ताड़न के अधिकारी” की व्याख्या…By-Lekhak Mukesh Sharma

Lekhak Mukesh Sharma
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ढोल ,गवार ,शूद्र, पशु, नारी,
ये सब ताड़न के अधिकारी।”
चौपाई की व्याख्या करते समय लोग काल, समय, स्थान और संदर्भ को नहीं देखते। बस जैसा मन में आया वैसी व्याख्या कर देते हैं। वैसे भी आजकल की पीढ़ी जो ज्यादातर फेसबुक जैसे मंच पर ज्ञान बांटते नज़र आती है, शायद ही तुलसीदास के इस महाकाव्य को पूरा पढ़ा और समझा होगा।

दरअसल ये पूरा का पूरा प्रसंग तब का है जब प्रभु श्रीराम लंका पर चढ़ाई करने हेतु प्रस्थान करते हैं। रास्ते में समुद्र मिल जाता है। उस पार जाने के लिए रास्ता चाहिए था सो भगवान राम समुद्र से तीन दिन तक प्रार्थना करते रहे मगर समुद्र नहीं सुना। तब जाकर भगवान क्रोधित होते हैं और समुद्र को सुखाने के लिए वाण तान देते हैं। भयभीत होकर समुद्र उपस्थित होता है और ये चौपाई कहता है…..

” प्रभु मल किन्ही मोहि सिख दीन्ही।
मरजादा पुनि तुम्हरी किन्हीं। ।
” ढोल गंवार शुद्र पशु नारी।
सकल ताड़ना के अधिकारी “। ।

अर्थात—– प्रभु, आपने अच्छा किया कि मुझे शिक्षा दी और सही रास्ता दिखाया। किंतु मर्यादा ( जीवों का स्वभाव ) भी आपकी ही बनाई हुई है।
ढ़ोल गँवार शूद्र पशु नारी,
सकल ताड़ना के अधिकारी

अर्थ
ढोल,गँवार (अशिक्षित या मूर्ख ), शूद्र, पशु और नारी,(इन सब को ) सम्पूर्ण जाँच या परीक्षा (सकल ताड़ना ) के बाद ही अधिकृत या स्वीकृत करना चाहिए देखभाल करनी चाहिए

दरअसल ज्यादातर ज्ञानी लोग इस चौपाई में आये “ताड़ना” शब्द का गलत अर्थ निकाल बैठते हैं। मूलतः ताड़ना एक अवधि शब्द है जिसका अर्थ होता है—-देखभाल करना, पहचान करना।

अर्थ का अनर्थ निकालने वाले लोगों को ये ध्यान रखना चाहिए कि ” रामचरितमानस ” की रचना तुलसीदास ने अवधि भाषा में की है न कि संस्कृत या अन्य किसी भाषा में।

जो भी लोग अवध से है
उनसे पूछिए
अक्सर वहा लोग कहते है
जरा हम जात हई,
घरवा ताड़े रहिया
या
जरा हम घुमे जात हई ,
बच्ववन अकेले है ताड़े रहिये

मतलब सभी को देख रेख कि जरुरत हैउनको देखे रहना
लेकिन कुछ गँवारों द्वारा ,हिन्दूओं का पवित्रतम् ग्रंथ रामायण सरेआम जला दी जाती है..मगर हिन्दू चुपचाप..शीत रक्तचाप… सहिष्णुता की पराकाष्ठा..!
ऐसे लोग जो अर्थ का अनर्थ निकाल कर बवाल मचाते हैं..सवाल खड़े करते हैं..ऐसे शुद्र गंवार बुद्धि पशुता प्रवृत्ति वाले सचमुच संस्कृत वाले ताड़न के अधिकारी हैं.. 😡
🙏🙏
दिल्ली पुस्तक सदन के द्वारा फेसबुक आभार और पाठकों के लिए प्रेषित

डिस्क्लेमर : लेखक के निजी विचार हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं है