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डाक्टर कांती भाई वसुनी ने बताया,,,राजस्थान मध्य प्रदेश गुजरात का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल ”बामणिया” के बारे में : राजस्थान से धर्मेन्द्र सोनी की रिपोर्ट

धर्मेन्द्र सोनी
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कुशलगढ़ जिला बांसवाड़ा राजस्थान रिपोर्टर धर्मेन्द्र सोनी, को डाक्टर कांती भाई वसुनी ने बताया कि,, राजस्थान मध्य प्रदेश गुजरात का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बामणिया

आदिवासियों दुखी दर्दो हम राही हमदर्दी हो का तीर्थ स्थल भील आश्रम मध्य प्रदेश बामणिया में लाखों हजारों की तादाद में लोग पैदल दौड़े चले आते हैं अपने आस्था विश्वास और दृढ़ संकल्प के साथ अपने रहनुमा के श्री चरणों में चाहे मामा जी के भक्त श्रद्धालु हो सभी राजनीतिक पार्टी के हो मामा जी की समाधि पर माथा टेकने के लिए वह श्रद्धा सुमन पुष्पांजलि अर्जित करने के लिए श्रद्धालु भक्त आते हैं स्वर्गीय मामा बालेश्वर दयाल की कर्मभूमि तपोभूमि के नाम से प्रसिद्ध स्थल है मामा बालेश्वर दयाल का जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के निवाड़ी कला गांव में श्री शिव शंकर दयाल माता रामदुलारी के घर 10 मार्च 1905 को रामनवमी के दिन हुआ था मामा बालेश्वर दयाल के जन्म के कुछ वर्षों बाद माता का देहांत हो गया उनकी शिक्षा-दीक्षा इटावा क्षेत्र में हुई वहीं से सामाजिक कार्यों में भाग लेने लग गए और एक बार नगर में गंदगी का आलम फैला हुआ था तब सभी मित्र मिलकर शहर की सफाई का बेड़ा उठाते हैं और सुबह 4:00 बजे उठकर पूरे नगर की डोली में रहकर सफाई करते हैं सुबह जब लोग देखते हैं की सूर्योदय के तुरंत बाद चौराहों पर बालकों के सेवा कार्य की प्रशंसा और नगर पालिका कर्मचारी की भर्त्सना प्रारंभ हो गई समाचार पत्रों में कई लेख प्रकाशित हुए जैसे मुंशी पार्टी के प्रबंध ऊपर करारी चप्पथ मेंबर मौज करें और बालक सफाई इस प्रकार प्रथम बार बालेश्वर दयाल का सार्वजनिक नेतृत्व इटावा जनपद वासियों के सम्मुख शुरू हुआ बालेश्वर के नेतृत्व में इटावा जनपद की छात्र संगठन में एक अद्भुत राजनीतिक सामाजिक चेतना जागृत हुई

मामा जी के नेतृत्व में यह मंडली विदेशी बहिष्कार गांधी तिलक फंड यात्रा अभियानों हेतु चंदा एकत्रित करना लाला लाजपत राय के स्वागत समारोह की तैयारी करना उक्त कार्यों से बालेश्वर दयाल का सार्वजनिक चरित्र उजागर होने लगा एक बार गांधीजी के इटावा स्टेशन से गुजरने के समाचार तेजी से पहले तब मामा बालेश्वर दयाल द्वारा गांधीजी को रोककर विनय पूर्वक भाषण के लिए आग्रह किया तब मामा जी ने शहर स्वीकार कर जोरदार भाषण दिया और मामा जी को चंदा भी दीया इस प्रकार मामा जी कॉलेज समय में आकर वापिस अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं और हेड मास्टर की पिटाई भी कर देते हैं इस पर स्टेशन मास्टर पुलिस को लेकर को ले जाते हैं और वहां उनकी उपस्थिति पाते हैं इस प्रकार कॉलेज के प्रोफेसर मुखर्जी को अपना पूरा किस्सा सुनाते हैं तब जाकर गुरु शिष्य का निष्कपट प्रेम और स्नेह से मुखर्जी भविष्य में हिस्सा नहीं करने की शपथ दिलाकर छात्रों की उपस्थिति रजिस्टर में दर्ज कर लेते हैं इन्हीं दिनों इटावा इंटर कॉलेज की एक हॉकी टीम आगरा गई जिसमें मामा बालेश्वर भी जाते हैं और उनके संपर्क से उज्जैन के खिलाड़ी महावीर से मिलना होता है जो गांधीवादी विचारों से अत्यंत प्रभावित था और शिविर में गांधी टोपी पहने थे तब बालेश्वर दयाल ने अखबार में छपी मालवा आदिवासियों द्वारा अपने बच्चे बेचने की खबरों पर चर्चा की तब महावीर ने उन्हें अवगत कराया कि अपनी गरीबी के कारण या अपने बच्चे को गिरवी रखते हैं और बेच देते हैं इस घटना से मामाजी के ह्रदय में आदिवासी समुदाय के प्रति प्रेम दया की भावना जागृत होगी 1927 ने जब बालेश्वर दयाल की आयु 21 वर्ष हो चुके तब उनका विवाह श्रीराम नाथ तिवारी की बहन से ब्राह्मण कुल की पुत्री बालेश्वर दयाल की अर्धांगिनी बनी विवाह के उपरांत बालेश्वर जी के जीवन में कोई परिवर्तन नहीं हुआ परंतु अतिवादी राष्ट्रीयता आदिवासी सेवा भावना की वृद्धि से व्यसन से एक दिन उन्होंने पुत्र को उसके पढ़ाई लिखाई नौकरी से विमुख होने की भावना के कारण बहुत भला बुरा सुनाते हुए कहा तुम पढ़ते लिखते नहीं हो और फालतू के काम करते हो अच्छा हो यहां से चले जाओ पिता का उठाना पाकर भावेश में उन्होंने इटावा छोड़ दिया और अपने मामा श्री माधव प्रसाद दुबे के पास खाचरोद मध्य प्रदेश चले आए मामा ने बालेश्वर को सामाजिक कार्यों और 86 जनों से दूर करने के लिए उन्हें सब इंस्पेक्टर कोऑपरेटिव विभाग की ट्रेनिंग के लिए उज्जैन भेज दिया डेढ़ माह के प्रशिक्षण के बाद वापस खाचरोद लौट आए और इसी विभाग में नौकरी के लिए आवेदन किया तब उनके मन में प्रश्न उठा कि कब तक मामा के घर में रहे और क्यों और सार्वजनिक सेवा का व्रत आगे कैसे बढ़ाया जाए

इस प्रकार कुछ समय के लिए खाचरोद थांदला रतलाम आदि स्थानों पर नौकरी अवश्य की परंतु वेतन भी जी ताऊ जी पारिवारिक संबंधी को बेचकर वंश की सेवा प्रवृत्ति परंपरा का उदाहरण किया खाचरोद के एक विद्यालय में से ₹30 मासिक वेतन पर शिक्षक नियुक्ति हुए वह आपने सीधे सरल दिन है अशिक्षित आदिवासियों की सेवा का बीड़ा उठाया आपने भीलवाड़ी भाषा में वादा प्रतीत होने लगी तब आपने भीली भाषा सीखने का निश्चय किया खाचरोद के निकट बाबरा गांव चंद्रशेखर आजाद की जन्म भूमि के रूप में प्रतिष्ठित थे वह आप बालेश्वर दयाल बाबरा गांव आजाद की माता जी से मिले वहां ब्लू के बीच रहकर भी लोहड़ी भाषा और बिल्ली बोलना प्रारंभ किया और गुजराती भी सीखी इस प्रकार आपने अध्यापक की जीवन केवल कहने मात्र कथा उनके ह्रदय में सदा सार्वजनिक सेवा की योजना व्याप्त थी पत्नी सावित्री देवी उनके साथ सदा रहे किंतु उनके मानस पटल को क्रांतिकारी और सेवा वादी दिशा से विमुख नहीं कर सकी इसमें 1930 में दक्षिण के तीर्थ गुरु मयूर मंदिर में हरिजन प्रवेश के लिए महात्मा गांधी ने आमरण अनशन प्रारंभ किया इसी के तहत गांधीजी ने एक प्रेरक अखबारी संदेश सहानुभूति वाले सामूहिक प्रार्थना अथवा सर्वोच्च करें के नाम से प्रेषित किया इस संदेश को पढ़ने के बाद बालेश्वर दयाल के ह्रदय में मावली अंचल के हरिद्वार उद्धार योजना में जन्म लिया और आपने पौराणिक गति का विरोध अपने दिमाग ईद सिंह से करने का मन बनाया संपूर्ण मित्र मंडली को इकट्ठा किया और गुप्त रूप से एक सत्यनारायण कथा का वितरण का कार्यक्रम तय किया क्योंकि सत्यनारायण कथा और उसके प्रसाद को समाज में सम्मानित स्थान प्राप्त था इसके लिए कोई मना है भी नहीं थी कथा करने और प्रसाद वितरण का दायित्व क्रमश कथावाचक दाऊ महाराज और राम बाबू हरिजन को सौंपा गया कथा प्रसाद वितरण और आरती के लिए हरिजन बालकों को स्वच्छंद वस्त्र साफा धारण कराया गया जैसे ही हरिजनों के चेहरे उजागर हुए चारों ओर विरोध का स्वर गूंजने लगा कि सभी हरिजन चमार तो यहां जमा है लेकिन प्रसाद का अनादर करने की किसी को हिम्मत ना हो सकी क्योंकि उस समय यह धारणा प्रचलित थी कि प्रसाद के अपमान के बुरे परिणाम रोकने पड़ते हैं इस प्रकार सामाजिक बदलाव की दिशा में बालेश्वर दयाल और साथियों का यह प्रयास सफल रहा थांदला के आदिवासी क्षेत्र में सन 1931 32 में बारिया काल और भुखमरी का दौरा या जैन विधि ने राहत कोष के लिए परीक्षा बनाने और बांटने की योजना रखी इस पर्चे में लिखा आदिवासी ही इन अंचल का अन्नदाता है जो आज भुखमरी का शिकार है उधर अन्नदाता अनाज वितरण हेतु सहयोग करें इस बीच पुलिस ने उक्त पर्चे का आधार बनाकर बालेश्वर दयाल को 18 दिन की पुलिस हिरासत में डाल दिया गुजरात के दीवानी कोर्ट में मुकदमा चला और वकील उनसे पूछा आपने भी लोको अन्नदाता क्यों लिखा अन्नदाता संबोधन राजा के लिए होता है तब बालेश्वर जी ने प्रेम पूर्वक उत्तर दिया राजा तो अन खाता है अन्नदाता वह जो उठ जाता है

दीवान जी ने केस वापस लेते हुए कहा आप शब्दों का आडंबर त्याग देवें इस प्रकार हिरासत से मुक्ति मिली पर्दे में यह भाव उदित हुआ कि जहां अन्नदाता कहना ही अपराध है वहां जीवन पर्यंत जागृति के लिए जंगली परंपराओं से संघर्ष करना ही उचित होगा मामा बालेश्वर दयाल आदिवासी सेवा कार्यों को गति प्रदान करने के लिए एक ऐसे स्थान की तलाश में थे जो मध्य प्रदेश के झाबुआ रतलाम धार इंदौर राजस्थान के बांसवाड़ा डूंगरपुर प्रतापगढ़ चित्तौड़ उदयपुर गुजरात के पंचमहाल दाहोद साबरकांठा आदि क्षेत्रों के आदिवासी समुद्र के लिए स्थान हो अतः 1937 ईस्वी में उन्होंने मध्यप्रदेश के इंदौर या सबकी पेटलावद तहसील में स्थित बामणिया नामक ग्राम को अपना मुख्य केंद्र बनाया इन क्षेत्रों में प्राय उच्च वर्गों द्वारा आदिवासियों का शोषण किया जाता था अतः बालेश्वर दयाल ने मामा के मामा बनकर इस शोषण के विरुद्ध शंखनाद किया जो उनके जीवन पर्यंत जारी रहा उन्होंने एक साथ कई मोर्चा राजनैतिक आर्थिक सामाजिक शैक्षणिक सरकारी गैर सरकारी और धार्मिक शोषण एवं अत्याचार जो इस समुदाय पर हो रहे थे के विरुद्ध प्रबल और सशक्त आंदोलन प्रारंभ किया और आदिवासी को संगठित करने का कार्य किया 1940 में जबरिया सपने एक फरमान जारी करके क्षेत्र के आदिवासियों को आठ में प्रवेश एवं कृषि उपज बेचने के अधिकारियों पर पाबंदी लगा दी कुछ किसान जबर हाथ में प्रवेश करने लगे रियासती पुलिस द्वारा गोलियां चलाई गई इस गोलीकांड में दो आदिवासी मारे गए मामा बालेश्वर दयाल ने गोलीकांड का विरोध गुजरात के दाहोद कस्बे में एक सभा का आयोजन किया इस सभा में देश के कई बड़े नेता सम्मिलित हुए देश के प्रमुख समाचार पत्रों द्वारा गोलीकांड की भर्त्सना की गई एक जांच आयोग दिल्ली से भेजा गया जांच उपरांत पीड़ित परिवारों को मुआवजा दिया गया इस प्रकार मामा जी ने क्षेत्र के आदिवासी पर अपनी मजबूत पकड़ कायम कर ली वहीं दूसरी ओर इस घटना ने मामाजी को राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा दिलवाई उस समय के राष्ट्रीय समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण मामा बालेश्वर दयाल से प्रभावित हुए 1942 में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महासमिति से स्वीकृति प्राप्त कर महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन का श्रीगणेश किया तब बालेश्वर दयाल 3 अक्टूबर 1942 को गिरफ्तार कर लिए गए मध्य भारत तथा राजस्थान की कोटा बूंदी बांसवाड़ा कुशलगढ़ डूंगरपुर और सिरोही की रियासतों में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी 3 जनवरी 1948 को मामा जी ने कांग्रेस से त्यागपत्र दिया क्योंकि नेहरू जी ने अपने पूर्व में दिए गए जागीर प्रथा उन्मूलन के वचन को पूर्ण करने में आनाकानी कर रहे थे के बाद मामा जी ने समाजवादी दल में प्रवेश किया उनका लक्ष्य था गरीब किसानों आदिवासियों हरिजनों गिरी जनों का कल्याण और सेवा करना था इन्हीं के हितार्थ नई दबाव डालने वाले वर्ग को सशक्त करना था

मामा जी ने प्रश्नों के फल स्वरुप आदिवासी वर्ग की समस्याएं देश के राजनीतिक परिपेक्ष में तेजी से उभर कर सामने आने लगी स्वतंत्रता के पश्चात समाजवादी आंदोलन के नाम से प्रसिद्ध सुधार आंदोलन प्रारंभ करने का श्रेय राम मनोहर लोहिया को दिया जाता है सन 1954 में सोशल पार्टी की 1956 में मामा बालेश्वर दयाल इस पार्टी के सदस्य बन गए 1960 में समाजवादी दल के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति हुए और 1977 में प्रसिद्ध पटना सम्मेलन में भाग लिया मामा जी ने अपनी पार्टी का जनता पार्टी में विलय किया और 1977 ईस्वी में बनी जनता पार्टी कई दल जिनमें लोकदल समाजवादी दल लोहिया वादी हिंदू किसान पंचायत जनसंघ संगठन संगठन के नाम उल्लेखनीय हैं सम्मिलित हुए थे 1977 में लोकसभा चुनाव में देश में प्रथम बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी 24 मार्च 1977 को मोरारजी देसाई भारत के प्रधानमंत्री चुनाव में रतलाम झाबुआ लोकसभा सीट में मामा बालेश्वर दयाल को निर्विरोध चुने गए क्षेत्रीय प्रतिनिधि के रूप में मामा जी ने लोकसभा की प्रमुख समस्याओं को धरातलीय स्वरूप प्रदान करने के प्रयत्न में लग गए समस्या में स्वरोजगार सिंचाई प्रबंध यातायत विकास सड़क विकास आदिवासी के जल जंगल जमीन पर अधिकार उनके शैक्षणिक विकास स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार आदि प्रमुख थे जो मामाजी द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत की गई 1977 से 1984 तक लोकसभा सांसद और दो बार क्रमश राज्यसभा सदस्य पर आसीन हुए 26 दिसंबर 1998 को आदिवासियों के मसीहा ने अपने प्राणों उत्सर्ग कर दिया उनकी समाधि भी लआश्रम बामणिया बनी है