नई दिल्ली (मोहम्मद मुस्लिम गाज़ी)भारतीय मुसलमान आज़ादी के बाद से राजनीतिक भ्रष्टाचार और लोकतांत्रिक फासीवाद के शिकार हैं, अंग्रेजों के जमाने में मुसलमानों जो बिखराव था उसे बाकी रखने के लिए उन पर दंगा थोप दिया गया और उर्दू, पर्सनल लॉ, तलाक, मुस्लिम संस्थाओं के अल्पसंख्यक किरदार जैसे मुद्दों में उलझा दिया गया है,ताकि वो सम्मान जनक ज़िन्दगी गुज़ारने और संवैधानिक अधिकारों को प्राप्त करने की कोशिश भी ना कर सकें।
उर्दू दैनिक अखबार “रोज़नामा खबरें” के सम्पादक श्री मुस्लिम गाज़ी से बातचीत करते हुए तहफ़्फ़ुज़ ऐ मिल्लत फॉर्म मुम्बई के अध्य्क्ष मौलाना अज़ीज़ उल्लाह सलाफी ने कहा कि यह विडंबना है कि बादशाहों के गिरेबानों से खेलने वाले और इस देश पर लम्बे समय तक हुकूमत का इतिहास के वारिस आज अपनी जान-माल की सुरक्षा के लिए रास्ते तलाश रहे हैं रहे हैं।
देश की प्रतिष्ठित संस्थाओं,कल्यणकारी वर्ग से से किसी ना किसी रूप में मौलाना ने कहा कि भीड़ के द्वारा निर्दोष मुसलमानों की हत्या देश की अखंडता और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए खतरनाक है, प्रधानमंत्री का नारा ‘सबका साथ सबका विकास के खिलाफ है, उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार से बचने के लिए राम ने बनवास लिया था, लेकिन अब उसी राम के नाम पर महिलाएँ विधवा और बच्चे यतीम होरहे हैं।
मौलाना ने कहा कि इस स्थिति में मुसलमानो को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए कि पत्थरों, पेड़ों, पहाड़ों, जानवरों के सामने सजदे करने वाले कैसे क़ातिल बनें। मौलाना ने कहा कि यदि मुसलमानों ने पैगंबर के मानवता के सन्देश को समझत लिया होता तो गैर मुस्लिम हमारा दुश्मन ना होते, सैकड़ों वर्षों से शासन करने वाले मुस्लिम क़ौम के संबंध में, आज ये बहस होरही है कि उन्हें वोट देने का अधिकार देना चाहिए या नही ?
एक सवाल के जवाब में मौलाना अज़ीज़ुल्ला खान ने कहा कि मुसलमानों ने हमेशा जज़्बाती नारों और जज़्बाती क़यादत (नेतृत्व) को नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने कहा कि इस देश में मुसलमानों को सम्मानजनक जीवन जीने के लिए नबी के मानवता के सन्देश पर खुद पालन करते हुए उसे आम करना होगा, ताकि लोगों के मन में पलने वाली नफरतों का निवारण हो सके और नफरत का माहौल प्यार और मोहब्बत में बदल सके।
मौलाना अजीज अल खां ने कहा कि मुसलमानों को अपना लक्ष्य निर्धारित करना होगा, बगैर किसी उद्देश्य के जीवन, मुस्लिम मुहल्लों में युवाओं का टोलियों की शक्ल में रत जगा,मसलकी भेदभाव,छोटी सोच, त्याग व बलिदान का अभाव, आपसी सम्मान में कमी ने मुसलमानों की तरक़्क़ी के सब रास्ते बंद कर दिये हैं।
धार्मिक और मिल्ली जमातों के बीच मतभेद के बारे में मौलाना ने कहा कि दरअसल विभिन्न धार्मिक व मिली दलों में इत्तेहाद नहीं, आपसी विश्वास और सम्मान का माहौल बनाने की जरूरत है, मतभेद आप रोक नहीं सकते, हाँ मतभेद के सलीके चाहिए जो हमारे मौका यहाँ नही है,उन्होंने कहा कि हमारी समस्या यह है कि हम जिस बात को सही समझ लेते उसके आलाव अन्य सभी अन्य रूपों को इस्लाम से खारिज और कुफ्र समझने लगे हैं। अतिवाद और मतभेदों के विवाद पर नियंत्रण की आवश्यकता है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉबी और पिछले दिनों होने वाले विवादों के बारे में मौलाना अज़ीज़ुल्ला खान ने कहा कि बोर्ड एक सम्मानित संघीय संस्थान है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक संस्थान में कुछ विशेषताएँ और कुछ विशेष कमजोरियां होती हैं। दुर्भाग्यवश अच्छा समझने वालों की नज़र में वो कमज़ोरियाँ छिपी रह जाती हैं,जबकि कमज़ोरियाँ ढूंढने वालों को खूबियाँ दिखाई नही देती,बलिक वो खूबियों को भी कमज़ोरियों के साथ लिपेट देते है।
भेदभाव के कारण कई मुस्लिम संस्थाओं का नाम हस्ती से मिट गया है,जिसके कारण आज मुसलमानों की हालत बदतर होगई है, यह दर्दनाक सिलसिला सदियों पुराना है और जोंक त्रस्त यह परंपरा न जाने कब तक लहू पीती रहेगी, जबकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भारत की सनगलाख जमीन से वे सभी कांटे चुनने की कोशिश की है जो मुसलमानों तलवारें चोट लगी है। बोर्ड ने पेशेवर सौंदर्य की दीवारों को कवर करके एक मुस्लिम मुस्लिम आस्तिक को भर्ती करने की अवधारणा प्रस्तुत की। अंगूर के बागों को तोड़कर और समाज में उन्हें पक्षपातपूर्ण स्थिति देकर देश में खोने की शिक्षा।