साहित्य

ज्योति हाट बाज़ार से सब्ज़ी ख़रीद कर घर लौटी तो देखा….

लक्ष्मी कान्त पाण्डेय
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स्पेशल पोस्ट फोर ज्योति गर्ग….!!
Jyoti Garg ज्योति हाट बाजार से सब्जी खरीद कर घर लौटी तो देखा घर में काफी शांति पसरी हुई थी।
दोनों बच्चे चुपचाप बरामदे में बैठे अपनी पढ़ाई कर रहे थे। रोज धमा चौकड़ी मचाने वाले उसके पाँच और तेरह साल के बेटे चुपचाप बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं। उसे इसकी बड़ी हैरानी हुई।
ज्योति के आते देख दोनों बच्चे उसकी तरफ देख कर मुस्कुराए। बड़ा बेटा समर तो फिर भी अपनी पढ़ाई में लग गया, लेकिन छोटा बेटा वीरेश जो कि थोड़ा चंचल ज्यादा है।
अंदर कमरे की तरफ इशारा करते हुए अपनी दादी मां की एक्टिंग करते हुए उसने बताया कि दादी मां आ गई है।
उसके इशारों को देखकर ज्योति की हंसी छूट गई। उसकी हंसी की आवाज सुनकर अंदर कमरे में से सासु मां जानकी जी भी बाहर बरामदे में आ गई और आते से ही अपने अंदाज में बोली,
” ये क्या बड़ी बहू, तुझे पता था ना कि आज मैं आने वाली हूं। पर फिर भी शॉपिंग करने चली गई। बड़ा घूमने-फिरने का शौक चढ़ा है मेरे पीछे से।
अब यहाँ खड़ी-खड़ी खी खी करके दांत ही दिखाती रहेगी या फिर मेरे लिए चाय भी बनाएगी”
” माँ जी मैं शॉपिंग करने नहीं, सब्जी खरीदने गई थी। वो भी पास के हाट बाजार में”
” हां हां, कुछ खरीदने तो गई थी ना। उसे शॉपिंग ही कहते हैं। अब तुम छोटे घर के लड़कियों को क्या पता? बस अपनी ही शेखी बघारने में लगी रहती हो। अब ज्यादा मुंह मत चला। जल्दी से चाय बना कर ला”
उनकी बातें सुनकर ज्योति फट से अंदर गई। सामान रखा और रसोई में पहुंच गई। अभी चाय बनाने के लिए पानी गैस पर चढ़ाया ही था कि सासू मां की आवाज आई,
” अरे बड़ी बहू, बाहर कुर्सी भी ले आना। मैं तो बाहर बरामदे में ही बैठूंगी। तुम्हारे घर में तो गर्मी बहुत ज्यादा है। पता नहीं तुम लोग इन दो कमरों में कैसे गुजर बसर करते हो”
“जी माँ जी, अभी लायी”
कहती हुई ज्योति कुर्सी लेकर बाहर बरामदे में रख आई। अंदर रसोई में आकर फटाफट चाय बनाई और दो कप में छानकर बाहर ही ले आई। एक कप जानकी जी को पकडाया और दूसरा कप लेकर वही दोनों बच्चों के पास नीचे दरी पर बैठ गई।
तभी जानकी जी ज्योति से बोली,
” अरे ज्योति , इस बार मधु ने तेरे लिए कुछ साड़ियां दी है। सभी एक से बढ़कर एक है और महंगी भी है। देख तेरी देवरानी तेरे लिए कितना कुछ करती है। कह रही थी कि भाभी जी के लिए ये साड़ियां ले जाइए। भैया तो कहां उन्हें इतनी महंगी साड़ियां दिलवा पाते होंगे। अंदर मेरे सामान में ही रखी है। अभी थोड़ी देर में दे दूंगी”
जानकी जी की बात सुनकर ज्योति बोली,
” माँ जी आप साड़ियां क्यों लेकर आई हो?
मुझे जरूरत नहीं है। कम है ज्यादा है जैसी भी साड़ियां मुझे मेरे पति दिलाते हैं, मैं उसी में खुश हूं”
उसकी बात सुनकर जानकी जी मुंह बिगाड़ते हुए बोली,
” अरे कहां दिलाता होगा रमन तुझे साड़ियां। दो सौ तीन सौ से ज्यादा की तो होती नहीं तेरी साड़ियां।
देख, अभी भी तूने कॉटन की साड़ी पहन रखी है। भला आज के जमाने में कौन पहनता है ऐसी साड़ियां। फिर अगले सप्ताह मधु और संजय की शादी की सालगिरह भी है। वो लोग होटल में पार्टी रख रहे हैं। ऐसे में तुम ये हल्की-फुल्की साड़ी पहन कर जाओगी तो क्या अच्छा लगेगा। कुछ उनकी इज्जत का भी सोचो”
” पर माँ जी..”
” बस बस, ज्यादा जबान चलाने की जरूरत नहीं है। एक बार कह दिया ना। समझ नहीं आ रही तुम्हें। एक तो वो देवरानी होकर भी तुम्हारे लिए इतना सोच रही है। और ऊपर से तुम जेठानी की ठसक दिखा रही हो। पता नहीं क्या ईगो लेकर बैठी हुई हो”
कहती हुई जानकी जी चाय पीने लगी। ज्योति ने भी उस समय कुछ कहना ठीक नहीं समझा। क्योंकि वह अगर जरा सा भी कुछ बोलती तो जानकी जी बतंगड़ बना देती, इसलिए वो चुप हो गई।
यह सोच कर कि रमन खुद ही बात कर लेंगे।
रमन को बिल्कुल भी पसंद नहीं था कि ज्योति मां या फिर मधु से कोई कपड़े ले। पिछली बार भी जानकी जी एक साड़ी लेकर आई थी, जिसे ज्योति ने खुशी-खुशी रख लिया था।
जानकी जी उस दिन ज्यादा देर तक नहीं रुकी थी और रमन के आने के पहले ही वहां से रवाना हो गई थी। इसलिए रमन को इस बारे में पता नहीं था। लेकिन जब शाम को रमन घर पर आया और ज्योति ने वो साड़ी दिखाई। तो उसे देखते ही रमन बिगड़ गया,
” ये क्या ज्योति , तुमने मां से साड़ी क्यों ली?”
अचानक से रमन के सवाल से ज्योति हड़बड़ा गई और बोली,
” मां जी इतने प्यार से साड़ी लेकर आई थी तो…..”
” तो? तुम्हारे लिए मेरे प्यार की कोई वैल्यू नहीं है क्या? जो तुमने मां की दी हुई साड़ी रख ली। मैं जानता हूं कि अभी मेरे पास पैसों की कमी है। मैं तुम्हारी इच्छा को पूरी नहीं कर पाता। पर इसका मतलब ये नहीं कि तुम किसी की उतरन अपने पास रख लो”
” उतरन???”
अचानक ज्योति अवाक होकर रमन की तरफ देखने लगी। तब रमन बोला,
” हां, ये उतरन ही है। मैंने ये साड़ी मधु को पहने देखा था”
” नहीं नहीं, आप यह क्या कह रहे हो? भला माँ जी मुझे मधु की उतरन क्यों देगी?” ज्योति अभी भी मानने को तैयार नहीं थी।
” तुमसे ज्यादा मेरी मां को मैं जानता हूं। वो कभी भी तुम्हें खुशी-खुशी कुछ नहीं देगी”
कहते हुए रमन ने फेसबुक पर मधु के एक सप्ताह पुराने पोस्ट दिखाए। सचमुच मधु ने वही साड़ी पहन रखी थी। देखकर ज्योति हैरान रह गई और बोली,
” तभी माँ जी कह रही थी कि इसका ब्लाउज कटवा कर रखा था। मिल नहीं रहा है। तुम किसी और ब्लाउज के साथ इसे पहन लेना”
बस तब से रमन ने माँ को मां से कुछ भी लेने से इनकार कर दिया।
जानकी जी के दो बेटे हैं। बड़ा बेटा रमन और छोटा बेटा संजय। रमन पहले अपने पिता का बिजनेस संभालता था। लेकिन अचानक पिता की मौत होने के बाद और बिजनेस पार्टनर की धोखाधड़ी के कारण सब कुछ ठप हो गया।
हालांकि रमन अभी भी सब कुछ ठीक करने की कोशिश में लगा हुआ था, पर परिवार का पेट तो पालना था। जानकी जी भी अब यदा-कदा सुना ही देती थी। बल्कि यूं कहो कि वो अब ऐहसान ही जताती थी।
इसलिए रमन जहाँ छोटी-मोटी नौकरी करके अपना और अपने परिवार का गुजर-बसर करने लगा। वही छोटा भाई संजय इंजीनियर बन गया और अच्छा खासा कमाने लगा। रमन की शादी ज्योति के साथ हुई थी, जो खुद एक मध्यमवर्गीय परिवार की बेटी है। इसलिए शादी में ज्यादा दान दहेज भी नहीं आया। इस बात को लेकर जानकी जी हमेशा ज्योति से गुस्सा ही रही। और अब रमन की छोटी-मोटी नौकरी के कारण जानकी जी को पूरा मौका मिल गया था ज्योति को और परेशान करने का।
लेकिन संजय की पत्नी मधु अमीर घराने की बेटी है और काफी दहेज लेकर आई थी। ऊपर से संजय की इतनी कमाई। उसकी पत्नी मधु और मां जानकी जी को इस बात का बहुत घमंड है। और यहीं से दोनों बेटों में भी फर्क और ज्यादा होना शुरू हो गया। जानकी जी जहाँ संजय और मधु की तारीफ करते नहीं थकती, वही रमन और ज्योति में कमियां निकालने से भी गुरेज नहीं करती। लेकिन उसके बावजूद भी रमन और ज्योति अपने परिवार के साथ खुश है।
पहले सब लोग साथ ही रहते थे। लेकिन जानकी जी के दोनों बेटों में भेदभाव करने के कारण रमन ने अपने परिवार के साथ घर छोड़ दिया और अपने पिता द्वारा बनवाए गए इन दो कमरों के मकान में शिफ्ट हो गया। जबकि जानकी जी अपने छोटे बेटे बहु के साथ उस बड़े से मकान में ही रही। हालांकि वो मकान भी उनके पति द्वारा ही बनवाया गया था।
खैर, शाम को रमन घर पर आया तब जानकी जी बाहर बरामदे में ही बैठी हुई थी। उसे देखते ही अपने साड़ी के पल्लू से खुद को हवा करते हुए बोली,
” अरे, रमन तू आ गया बेटा। कैसे रहता है तू इस घर में। मेरी तो यहाँ गर्मी के कारण जान निकल रही है। वो तो मैं वापस चली जाती। लेकिन अगले सप्ताह संजय और मधु की शादी की सालगिरह है। वो भी बड़े होटल में। बस तुझे बताने के लिए रुक गई। बस अब रवाना होऊँगी”


रमन जानकी जी की बात सुनकर बोला,
” माँ एक-दो दिन यहां मेरे पास भी रुक जाती तो मुझे भी अच्छा लगता”
” अरे मुझसे नहीं रूका जाएगा इस दो कमरों के मकान में। कितनी गर्मी है यहां, ऊपर से एसी भी नहीं है। तू एक काम कर, कैब बुक करवा दे। मैं अभी कैब से रवाना हो जाऊंगी”
रमन जानता था कि जानकी जी यहां नहीं रुकेगी, इसलिए अपना मोबाइल निकाल कर कैब बुक कर दिया। जानकी जी अपना सामान लेने अंदर गई, इतने में ज्योति बाहर निकल कर आई और धीरे से बोली,
” सुनिए, माँ जी मेरे लिए कुछ साड़ियां लेकर आई है”
रमन ने ज्योति की तरफ देखा तो ज्योति बोली,
” मैंने मना किया था, पर वो सुन ही नहीं रही। उल्टा मुझे ही सुनाए जा रही थी। अब आप ही संभालिए मां को”
इतने में जानकी जी अपना सामान लेकर बाहर आ गई। उन्हें देखते ही रमन बोला,
” मां जाते हुए अपनी साड़ियां भी साथ लेकर जाओ। ज्योति ये साड़ियां नहीं पहनेगी”
रमन की बात सुनते ही जानकी जी ने पहले तो ज्योति को घूरकर देखा और फिर रमन से कहा,
” क्यों?
क्या बुराई है इन साड़ियों में। एक से बढ़कर एक महंगी साड़ियां है। इसने तो कभी देखी भी नहीं होगी ऐसी साड़ियाँ”
“इसने ऐसी महंगी साड़ियां नहीं देखी तो कोई बात नहीं। जब मेरी क्षमता होगी तो मैं दिला दूंगा। पर अभी मेरी हैसियत नहीं है उसे ऐसी साड़ियाँ पहनाने की। इसलिए आप ये साड़ियां वापस लेकर जाइए”
रमन ने अपनी बात कही तो जानकी जी गुस्सा हो गई,
” क्या हमेशा लकीर का फकीर ही बना रहेगा? खुद तो कुछ ढंग का कमाता नहीं है। ऊपर से हमको शर्मिंदा करता है। अब अगले हफ्ते संजय और मधु की शादी की सालगिरह है। वो भी होटल में। कितने ऊंचे ऊंचे लोग आएंगे वहाँ। उसमें ये ऐसी साड़ियां पहनकर आएगी तो क्या इज्जत रह जाएगी उन लोगों की। अरे, मैं तो बच्चों के कपड़े भी लाना चाहती थी। लेकिन….”
” लेकिन उनके बच्चों के कपड़े मेरे बच्चों के लिए छोटे थे। सही कहा ना माँ “
रमन ने कहा तो जानकी जी झेंप गई, जैसे उनकी चोरी पकड़ी गई हो। पर रमन ने बोलना बदस्तूर जारी रखा,
“मेरा परिवार उतरन पहनने के लिए नहीं है। कम है लेकिन जैसा भी है, हम उसमें खुश है। आइंदा आप जब भी यहां आओगी तो अपनी छोटी बहू की उतरन लेकर नहीं आओगी”
” अरे उतरन है तो क्या हुआ? इसने तो सपने में भी ऐसी साड़ियां नहीं देखी होगी। लेना हो तो लो ये साड़ियां, नहीं तो सालगिरह में आने की जरूरत नहीं है। मैं नहीं चाहती कि तुम्हारे कारण हम लोग शर्मिंदा हो”
जानकी जी भी अपनी धुन में बोलती गई। रमन सुनकर बिल्कुल हैरान था। भला एक मां अपने बच्चों में इतना ज्यादा फर्क करेगी, उसकी बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी। आखिर रमन बोला,
” ठीक है मां, दरवाजा खुला है। आप जा सकती हो। माना कि आपका छोटा बेटा बहुत कमाता है, पर स्वाभिमान तो मेरा भी है। हम आपको शर्मिंदा करने के लिए सालगिरह में नहीं आएंगे”
इतने में कैब आ गई। रमन की बात सुनकर जानकी जी अपने पैर पटकती हुई बाहर निकल गई। अगले हफ्ते मधु और संजय की सालगिरह में भी वो लोग नहीं गए। आखिर उनके परिवार को उनकी गरीबी से शर्मिंदगी जो महसूस होती थी।

आभार दीदी लक्ष्मी कुमावत… 🙏🙏