Imtiyaz Ahmed Siddiqui
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जौनपुर: अकबर बादशाह द्वारा वर्ष 1568-69 में गोमती नदी पर बनाया गया शाही पुल, 455 वर्षों से ये ब्रिज लोगों को सेवा प्रदान कर रहा है और अभी भी अच्छी स्थिति में है, इसे अफगान आर्किटेक्ट अफजल अली ने डिजाइन किया था।
जौनपुर शहर के मध्य से गुजरी गोमती नदी पर बना शाही पुल और नदी के किनारे स्थित शाही किला की तस्वीर देखकर हर कोई जनपद का नाम बता देता है। इन स्थानों पर जाने के बाद अलग ही अहसास होता है। लेकिन, वर्तमान में दोनों धरोहरों को संरक्षण की दरकार है, मगर जिम्मेदार ध्यान नहीं दे रहे हैं।
उनकी उदासीनता के कारण जहां शाही पुल पर पौधे उग आए हैं, वहीं शाही किला में बांस-बल्ली लगाकर वहां की सुंदरता में दाग लगा रहा है। पूर्वांचल का यह पहला शहर था, जिसकी व्यवस्थित बसाहट लंबे समय तक शासकों का ध्यान खींचती रही। गोमती नदी के दोनों छोर पर बसे जौनपुर को शर्की शासकों ने राजधानी बनाई।

जौनपुर में लंब समय तक रहा तो मुगल बादशाह अकबर उन्होंने यहां की कला, संस्कृति और साहित्य को पहचान दिलाई। बुजुर्ग बताते हैं कि शेरशाह सूरी ने इस जनपद में बचपन बिताया तो मुगल बादशाह अकबर ने भी लंबा समय यहां व्यतीत किया। मुगल काल में भी यहां कई निर्माण हुए। शाही किला, अटाला मस्जिद, लाल दरवाजा, बड़ी मस्जिद, झंझरी मस्जिद, चार अंगुल मस्जिद, इमामबाड़ा, मकबरा, शाही पुल आदि ऐसे स्थल हैं जो ऐतिहासिक महत्व तो बताते ही हैं।
उनकी कलात्मक उत्कृष्टता भी गजब की है। इन धरोहरों को संरक्षित करने के लिए पुरातत्व विभाग ने अपने अधीन ले रखा है। हर स्थल के बाहर घेरेबंदी कर बड़े-बड़े बोर्ड तो लगा दिए गए हैं, लेकिन उनके संरक्षण की कोशिश नहीं हो रही। मुगल काल में बने अपने तरह के अनूठे शाही पुल की दीवारों पर पीपल उग गए हैं।
पुरानी बाजार में एक कोने में बनी चार अंगुल मस्जिद तक अतिक्रमण के चलते पहुंचना भी मुश्किल हो गया है। पुरातत्व महत्व के इन स्थलों के सौ मीटर के दायरे में किसी भी तरह का निर्माण पूरी तरह प्रतिबंधित है, मगर आसपास धड़ल्ले से नई इमारतें तनती जा रही हैं। अटाला और चार अंगुल मस्जिद वाले इलाके में तो दस मीटर की दूरी पर ही कई नए निर्माण कराए गए हैं।
यही हाल सिपाह स्थित फिरोज शाह मकबरा, इमामबाड़ा, बड़ी मस्जिद और अन्य स्थलों का भी है। शाही किला में भी देखरेख का अभाव है, क्योंकि जगह-जगह इमारत की ईंटें खराब हो रही हैं, जगह-जगह बांस बल्ली लगाकर किले की खुबसूरती पर दाग लगा दिया है, वह भी टूटकर पड़े हैं।
डीएम मनीष कुमार वर्मा ने कहा कि सीआरओ से कह दिया है। शाही पुल में उगे पौधों को संबंधित विभाग से बात करके कटवाना सुनिश्चित करें। शाही किले में बांस लगे हैं, उसे दिखवाया जाएगा और काम करवाया जाएगा।
सीआरओ रजनीश राय ने कहा कि एनएचआई के अधिकारियों को पौधा कटवाना है। इसके लिए उनसे मेरी बात हो गई है। जल्द ही पौधा कटवाने के साथ ही उसमें केमिकल भी डलवाया जाएगा, ताकि पौधे की जड़ भी खत्म हो जाए। वहीं, शाही किला को और सुंदर बनाया जा एगा। इसके लिए फसाड लाइट लगवाई जाएंगी, जिसकी तैयारी चल रही है।
जगह जौनपुर, उत्तर प्रदेश
मेंटेनेंस आर्कियोलॉजी बिभाग, (यूपी)
धरोहर के दर्जा 1978
Preceded by शर्की सल्तनत के नाइ के पुल
Followed by नवका पुल, जौनपुर
डिजाइन मेहराबदार पुल
डिजाइनर अफ़ज़ल अली
बनावे सुरू 1564
पूरा भइल 1567
खोलल गइल 1567
भँसल/ढहल 1934

इसे मुगल पुल, अकबरी पुल और मुनीम खान पुल के नाम से भी जाना जाता है। इसे जौनपुर प्रांत के गवर्नर मुनीम खान ने मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में बनवाया था। 1568 से 1569 के बीच गोमती नदी पर बनाए गए इस पुल की डिजाइन अफगानी वास्तुकार अफजल अली ने तैयार की थी। यह पुल मुगल वास्तुशिल्प शैली में बने जौनपुर के उन कुछ महत्वपूर्ण स्थलों में से है, जिनका अस्तित्व आज भी बचा हुआ है। इस पुल का निर्माण विशाल खंभो पर किया गया है और पानी के बहने के लिए 10 द्वार बनाए गए हैं।
पुल से इतर इस पर खंभों पर टिकी अष्ठभुजीय आकार की गुंबजदार छतरी भी बनी हुई है। इस छतरी में लोग खुद को पुल पर दौड़ती वाहनों से सुरिक्षत रख कर नदी की बहती धाराओं का विहंगम नजारा देखते हैं। शाही पुल जौनपुर शहर से 1.7 किमी उत्तर की ओर है और आज भी इसका इस्तेमाल यातायात के लिए किया जा रहा है।