विशेष

जो पुरुष खुद को ऊँचा उठाने से प्रेम करते हैं वे अपने ही विनाश की ओर बढ़ रहे हैं, क्योंकि…

सुलैमान के नीतिवचनों से बुद्धि
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नीतिवचन 17:19
जो अपराध से प्रेम करता है, वह लड़ाई-झगड़े से प्रेम करता है; बढ़-बढ़कर बोलनेवाला मनुष्‍य अपने पैरों पर कुल्‍हाड़ी मारता है।

कहते हैं, जो असली मर्द होता है वह लड़ाई-झगड़े से प्रेम करता है। यह झूठ है! लड़ना-झगड़ना पाप है, और यह अन्य जघन्य पापों की ओर ले जाता है। जो लोग लड़ाई-झगड़े से प्रेम करते हैं वे पाप से प्रेम करते हैं, क्योंकि यही है जो वे अपनी कलहपूर्ण, प्रतिशोधी और हिंसक भावनाओं के कारण कर सकते हैं। धर्मीजन मेल-मिलाप करनेवाले होते हैं (मत्ती 5:9; रोमियों 12:18; याकूब 3:17-18)। एकमात्र लड़ाई-झगड़ा (युद्ध) जिसे आप उचित ठहरा सकते हैं वह है सत्य के लिए पवित्र संघर्ष करना (नेह 13:23-28; यहूदा 1:3)।

कहते हैं, जो असली मर्द होता है वह नंबर एक पर आने के लिए यत्न करता है। यह भी झूठ है! अपनी ही सरपरस्ती करने और खुद को ऊँचा उठाने की चाहत अहंकार, दंभ और अभिमान है। जो पुरुष खुद को ऊँचा उठाने से प्रेम करते हैं वे अपने ही विनाश की ओर बढ़ रहे हैं, क्योंकि यही होने वाला है (नीतिवचन 16:18; 18:12; 29:23)। धर्मी व्यक्ति मन का दीन और नम्र होता है, और जहां तक संभव हो, खुद की बड़ाई करने से दूर ही रहता है (नीतिवचन 15:33; 18:12; 29:23)।

इस नीतिवचन के दो उपखंडों के बीच मज़बूत सम्बन्ध है। प्रथम खंड में लड़ाई को पाप कहकर उसकी भर्त्सना की गई है, और दूसरे खंड में अहंकारी के विनाश की प्रतिज्ञा की गई है। सम्बन्ध क्या है? यह अहंकार या घमंड ही है जो लड़ाई का कारण बनता है (नीतिवचन 28:25)। “झगड़े रगड़े केवल अहंकार ही से होते हैं, परन्तु जो लोग सम्मति मानते हैं, उनके पास बुद्धि रहती है” (नीतिवचन 13:10)। अगर मानव-गर्व न हो, तो सभी लड़ाइयाँ शीघ्र ही समाप्त हो जाएँगी।
प्रथम खंड पर विचार करें। कितनी गंभीर चेतावनी है! यदि आपको बहस करना, वाद-विवाद करना, लड़ना, झगड़ना या तकरार करना अच्छा लगता है, तो आप अवश्य ही पाप से प्रेम करते हैं, क्योंकि आप यही कर रहे हैं। परन्तु परमेश्वर ने कहा, “सब प्रकार की कड़वाहट, और प्रकोप और क्रोध, और कलह, और निन्दा, सब बैरभाव समेत तुम से दूर की जाए। एक दूसरे पर कृपालु और करुणामय हो, और जैसे परमेश्‍वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करो” (इफि 4:31-32)।

यदि आपको जरा भी अन्देशा होता है कि लड़ाई-झगडा शुरू हो सकता है, तो इसे तुरन्त रोकें! लड़ाई तब तक बढ़ती रहेगी, जब तक कि दोनों में से कोई एक पक्ष पीछे नहीं हटता (नीतिवचन 17:14; 26:21)। क्रोधी पुरुषों से बचें, क्योंकि वे ऐसे लड़ाई-झगड़े करते हैं जिनकी जड़ अधिकतर मामलों में बचकानी और मूर्खतापूर्ण होती हैं (नीतिवचन 15:18; 22:24-25; 29:22)। नफरती अंध-भक्तों के साथ मित्रता मत रखों, क्योंकि प्रेम ही है जो नफ़रत और झगड़ों को समाप्त कर सकता है (नीतिवचन 10:12; 17:9; 1 पतरस 4:8)। जब भी और जहां भी संभव हो, मेल-मिलाप करानेवाले बनें, क्योंकि ऐसे लोग परमेश्वर की दृष्टि में महान हैं और वे परमेश्वर से इनाम पायेंगे (मत्ती 5:9; रोमियों 12:18; 14:17-19; 1 कुरिन्थ 1:10; इफि 4:3; याकूब 3:17-18).

झूठ फैलानेवालों से कोई मित्रता मत रखों, क्योंकि वे झगड़े कराते हैं (नीतिवचन 16:28; 26:20)। यदि तुम किसी ठट्ठा करनेवाले को देखो, जिसको फटकार सुनना अच्छा नहीं लगता, तो उससे छुटकारा पा लो, क्योंकि वह झगड़े भी कराता है (नीति 22:10)। लड़ाई-झगड़ा आपके पापी शरीर की अभिलाषाओं से फट पड़ता है, जिसका विरोध किया जाना चाहिए (गला 5:19-21; याकूब 4:1)। अपने आप को और दोस्तों को उन सभी झगड़ालू लोगों से अलग करने की पूरी कोशिश करें जो लड़ाई-झगड़े से प्रेम करते हैं।

अब दूसरे खण्ड पर विचार करें। एक और गंभीर चेतावनी! यदि तुम अपनी ही बड़ाई करोगे तो आपका विनाश निश्चित है। बढ़-बढ़कर बोलने का अर्थ है आपनी संपत्ति, अपनी पहचान, और प्रतिष्ठा की शेखी बघारना। इन बातों को बढ़ा-चढ़ा कर मत बताओ। अभिमान विनाश ही को ले आता है (नीतिवचन 16:18)। मन की दीनता कहीं बेहतर है (नीतिवचन 16:19; भजन 138:6)। यदि आप विनम्रतापूर्वक और चुपचाप जीवन में अपनी भूमिका निभाने में व्यस्त रहते हैं, तो परमेश्वर और अच्छे लोग आपको सम्मान और पुरस्कार देंगे।

आपकी प्रशंसा दूसरे लोग करें, अपनी प्रशंसा आप खुद न करें (नीतिवचन 27:2)। सार्वजनिक समारोहों में सबसे नीचे का स्थान लेने की मानसिकता को अपनाएं (नीतिवचन 25:6-7)। ऊँचा होने का परमेश्वर का तरीका सीखें – अपने आप को छोटा करके (लूका 14:11)। बपतिस्मा देनेवाले युहन्ना के समान बनें, “अवश्य है कि वह बढ़े और मैं घटूँ” (यूहन्ना 3:30)। परमेश्वर के शक्तिशाली हाथ के नीचे स्वयं को विनम्र करें; वह तुम्हें ऊँचा उठाएगा (1 पतरस 5:6; याकूब 5:6,10)।

अपने को और अपने प्रियजनों को अभिमानी और घमण्डी लोगों से अलग करने के लिए आप जो कुछ कर सकते हैं वह करें, क्योंकि उनपर परमेश्वर का दण्ड आने ही वाला है, और उन्हें भले मनुष्यों द्वारा भी ठुकराया जाएगा। उन्हें आपका मित्र नहीं होना चाहिए, और न ही उन्हें व्यवसायों में भागिदार बनाएं, न अपने चर्च में आने की अनुमति दें। बच्चों में भी घमण्ड की भावना को कुचलने का भरकस प्रयास करें। हर हाल में विनम्रता को बढ़ावा दें, ताकि परमेश्वर और मनुष्य, दोनों आपसे प्रसन्न हो।