साहित्य

जो छले जा रहे हैं वो नादान हैं….शुक्र इस बात का है वो इंसान हैं….BY-डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर
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आज एक गीत आपके हवाले मित्रो 🙏😊
अहमियत आप मंज़िल की क्या जानेंगे
ठोकरें कुछ सफ़र में जो खाए नहीं
ज़िन्दगी को अजी क्या जिया आपने
दर्दों ग़म में भी जब मुस्कुराए नहीं
ज़िंदगी में परेशानी आती ही है
हर कोई ज़िंदगी से परेशान है
अपनी शर्तों पे वो जी सकें ज़िंदगी
हर किसी के लिए कब ये आसान है
ठान लें पाने की तो वो मिल जाएगा
आपने ही तो अरमां जगाए नहीं
ज़िन्दगी को अजी क्या जिया आपने
दर्दों ग़म में भी जब मुस्कुराए नहीं
ये भरी ज़िंदगी है सवालात से
पर सिखा देती है लड़ना हालात से
जो छले जा रहे हैं वो नादान हैं
शुक्र इस बात का है वो इंसान हैं
ज़िन्दगी की सही हमने दुश्वारियाँ
इसके आगे मगर सर झुकाए नहीं
ज़िन्दगी को अजी क्या जिया आपने
दर्दों ग़म में भी जब मुस्कुराए नहीं
शख़्स ऐसा नहीं इस जहां में कोई
राज़ जिसने जहां से छिपाए नहीं
हम बदी की रखे बांँध कर गठरियाँ
और कहते हैं नेकी कमाई नहीं
ज़िंदगी ये मगर इस तरह से कटे
हमको जीने में कुछ शर्म आए नहीं
ज़िन्दगी को अजी क्या जिया आपने
दर्दों ग़म में भी जब मुस्कुराए नहीं
वो बुरा भी तो होगा किसी के लिए
जो भला दिख रहा आपको आदमी
छूटते जा रहे आज रिश्ते यहाँ
अब पकड़ने लगा बात को आदमी
ठोकरों से भी जो सीख पाए नहीं
फिर सबक़ उसको कोई सिखाए नहीं
ज़िन्दगी को अजी क्या जिया आपने
दर्दों ग़म में भी जब मुस्कुराए नहीं
काट कर फेंक दो जो ये नासूर हैं
एक वजह काफ़ी होती ख़ुशी के लिए
यूंँ तो सारे ही मंज़र सही हैं मगर
सब ज़रूरी नहीं ज़िंदगी के लिए
भागते हम रहे कितने नादान हैं
वो फिसलते गए हाथ आए नहीं
ज़िन्दगी को अजी क्या जिया आपने
दर्दों ग़म में भी जब मुस्कुराए नहीं
अहमियत आप मंज़िल की क्या जानेंगे
ठोकरें कुछ सफ़र में जो खाए नहीं
ज़िन्दगी को अजी क्या जिया आपने
दर्दों ग़म में भी जब मुस्कुराए नहीं
डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर