साहित्य

जीवन जीने का मकसद क्या है?…By-#लक्ष्मी_सिन्हा

Laxmi Sinha
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जीवन क्या है? इसका क्या अर्थ है? इसका मर्म
क्या है? हम इसे क्यों जी रहे हैं? जीवन जीने का
मकसद क्या है? ऐसे सवाल युगों-युगों से पूछे जा
रहे हैं। वास्तव में हम सभी को जीवन के स्वरूप
को जरूर समझना चाहिए। इससे जुड़े तथ्यों
को सहर्ष सभी स्वीकार करना चाहिए। मानव
जीवन ईश्वरीय सत्ता कि एक बहुमूल्य धरोहर है,
जिसे उसकी सत्पात्रता पर विश्वास करके ही सौंपा
गया है।मानव जीवन के अलावा अन्य जीवधारियों
की तुलना में यहां कोई भेदभाव नहीं है,बल्कि ऊंचे
अनुदान के लिए यह एक प्रयोग मात्र है।
मनुष्य जीवन की सार्थकता इसी में है कि वह
सृष्टि के उत्तराधिकारी होने के नाते अपने कर्तव्यों
एवं दायित्वों को पूरी तन्मयता से निभाए।यदि पेट
प्रयोजन और लोभ-मोह उसकी गतिविधियां
सीमित रहे तो उसे नर-पुरुष के अलावा और क्या
कहा जा सकता है? अगर लोभ-मोह के साथ
अहंकार भी जुड़ जाए तो बात और भी बिगड़
जाती है। इस प्रकार मनुष्य जीवन जहां सौभाग्य
का प्रतीक होना चाहिए था, वहां वह दुर्भाग्य का
कारण बन जाता है।ईश्वर का दिया हुआ अनमोल
उपहार है-मनुष्य जीवन।बस,इस कीमती उपहार
के मूल्य को समझने की जरूरत है।
यदि हम अपनी जीवन ऊर्जा को सांसारिक
वस्तुओं एवं भोग-विलास की प्राप्ति में लगाना शुरु
कर देते हैं तो इस उर्जा से वैभव एवं भोग का
अंबार खराब किया तो जा सकता है, पर इसके
परिणामस्वरूप जीव को जो हानि होती है, उसकी
कोई भरपाई नहीं हो सकती। अज्ञानतावश मनुष्य
ऐसी गलती करता रहता है। सांसारिक ऐश्वर्य को
ही सर्वोपरि मानकर उन में लिप्त रहता है। अंततः
उसकी जीवन ऊर्जा इन्हीं में नष्ट हो जाती है शनै:
शनै:जीवन खत्म हो जाता है।जीवन जीने के लिए
शरीर एक माध्यम के रूप में इसलिए मिला है कि
इस शरीर रूपी रथ में आत्मारूपी चालक अपनी
मंजिल तक पहुंच सके।आत्मा की यात्रा परमात्मा
की ओर है, जहां केवल आनंद ही आनंद है।
#लक्ष्मी_सिन्हा
प्रदेश संगठन सचिव सह प्रदेश मीडिया प्रभारी
महिला प्रकोष्ठ राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी”बिहार”