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जीडीपी के लुभावने आंकड़े, अर्थशास्त्री संशय में : मतदाता क्या कहते हैं : रिपोर्ट

पिछली तिमाही के दौरान भारत की जीडीपी में आठ फीसदी से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गई. लेकिन कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि जीडीपी में इजाफा कई बड़ी चुनौतियों को छिपा देता है.

भारत के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की ओर से जारी किए गए ताजा आर्थिक आंकड़ों से पता चला है कि अक्टूबर-दिसंबर 2023 की तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 8.4 फीसद की वृद्धि हुई. पिछले साल इस दौरान यह बढ़ोतरी 4.3 प्रतिशत थी.

आंकड़े जारी होने के तत्काल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि बढ़ती वृद्धि के पीछे बीजेपी सरकार की नीतियां हैं. भारत में अप्रैल और मई के बीच लोकसभा चुनावहोने हैं. पीएम मोदी और उनकी पार्टी बीजेपी ने अभी से चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है, ताकि लगातार तीसरी बार सरकार बना सकें.

मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पहले ट्विटर) पर लिखा, ”2023-24 की तीसरी तिमाही में 8.4% की मजबूत जीडीपी वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था की ताकत और इसकी क्षमता को दर्शाती है. तेज आर्थिक विकास लाने के लिए हमारे प्रयास जारी रहेंगे, जिससे 1.4 अरब भारतीयों को ‘बेहतर जीवन जीने’ में मदद मिलेगी.”

चुनाव से पहले मोदी ‘विकसित भारत 2047’ नामक एक आर्थिक नीति का प्रचार कर रहे हैं, जो ब्रिटिश शासन से आजादी पाने के ठीक 100 साल बाद, यानी 2047 तक भारत को एक विकसित देश में बदलने की उनकी सरकार की कार्य योजना है. भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन कहते हैं कि मजबूत घरेलू मांग और निजी निवेश से विकास को गति मिलती रहेगी. नागेश्वरन ने भारतीय मीडिया से बातचीत में कहा, ”कुल मिलाकर, अर्थव्यवस्था कई मोर्चों पर सही तरीके से काम कर रही है. इसलिए अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के लिए भारत की संभावित जीडीपी को लेकर एक बार फिर सोचने की जरूरत है क्योंकि उनका अनुमान यही था कि यह ज्यादा-से-ज्यादा सात फीसदी वार्षिक ही रह सकती है.”

लुभावने आंकड़े अर्थशास्त्रियों को संशय में डालते हैं
हालांकि, कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि भारत की अर्थव्यवस्था की वास्तविक ताकत का आकलन करने के लिए ज्यादा सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता है. इन अर्थशास्त्रियों ने कृषि क्षेत्र में गिरावट, असमान निजी खपत और सार्वजनिक पूंजी व्यय पर बढ़ती निर्भरता का हवाला देते हुए चेतावनी दी है कि जीडीपी की ऊंची दर संतुलित विकास को प्रतिबिंबित नहीं कर सकती है.

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी नाम के एक शोध संस्थान में प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष लेखा चक्रवर्ती ने डीडब्ल्यू को बताया कि जीडीपी की ऊंची वृद्धि दर ‘उच्च मानव विकास को सुनिश्चित नहीं करती है. इसलिए दूसरे मानव विकास संकेतकों की जांच करने की भी आवश्यकता है, जो कि सार्वजनिक नीति को बेहतर बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं.’

अर्थशास्त्री अरुण कुमार कहते हैं कि जीडीपी के आंकड़े संगठित क्षेत्र पर आधारित हैं और इसका उपयोग भारत की अर्थव्यवस्था के असंगठित हिस्से को मापने के लिए किया जाता है. लेकिन वास्तव में असंगठित क्षेत्र भारतीय श्रम शक्ति के एक बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है. डीडब्ल्यू से बातचीत में अरुण कुमार कहते हैं, ”इन आंकड़ों में असंगठित क्षेत्र को दूर कर दिया गया है और यही वजह है कि आंकड़ों में अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन करती दिख रही है. अर्थव्यवस्था में असमानता बढ़ने के प्रमाण मौजूद हैं क्योंकि असंगठित क्षेत्र में गिरावट आ रही है, जबकि संगठित क्षेत्र बढ़ रहा है. हाल ही में जारी उपभोग सर्वेक्षण के आंकड़े भी इसी ओर इशारा करते हैं.”

इसके अलावा, तीसरी तिमाही में निजी उपभोग व्यय और सरकारी उपभोग व्यय पर डेटा बहुत कम था. निजी खर्च में साल-दर-साल 3.5 फीसद की वृद्धि हुई, जबकि सरकारी उपभोग खर्च में 3.2 फीसद की कमी आई है.

विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने ताजा जीडीपी आंकड़ों को सही करने की मांग करते हुए दावा किया है कि विकास शुद्ध करों पर निर्भर करता है और इसके आने के संकेत खपत के कम होने से मिलते हैं. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश कहते हैं, ”निश्चित तौर पर ये आंकड़े ऐसे लोगों को समझ में नहीं आएंगे, जो हर समय प्रधानमंत्री के गुण गाते रहते हैं. वित्तीय वर्ष 2024 में निजी उपभोग व्यय में वृद्धि अब तीन फीसद होने की उम्मीद है, जो बीस वर्षों में सबसे धीमी है.”

मतदाता क्या कहते हैं
चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, बड़ा सवाल यह है कि क्या अर्थव्यवस्था में उछाल बीजेपी के लिए वोटों में तब्दील होगा? आम लोगों के लिए मजबूत जीडीपी आंकड़े क्या मायने रखते हैं, इस बारे में डीडब्ल्यू ने जिन मतदाताओं से बात की, उनकी प्रतिक्रियाएं मिली-जुली थीं. हालांकि, एक आम शिकायत यह थी कि अर्थव्यवस्था का ये विकास रोजगार में तब्दील नहीं हुआ है.

हाल ही में दिल्ली के एक कॉलेज से स्नातक हुए अमूल टंडन ने डीडब्ल्यू को बताया, ”हम कहते रहते हैं कि भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. ऐसा शायद इसलिए कि अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से सेवा क्षेत्र, औद्योगिक और कृषि क्षेत्रों द्वारा संचालित है. लेकिन इन क्षेत्रों में नौकरियां मिलना मुश्किल है. मुझे योग्य होने के बावजूद चार महीने से नौकरी नहीं मिली है.”

वहीं, दिल्ली के एक व्यापारी दीपक गुप्ता ने डीडब्ल्यू को बताया कि वह बीजेपी का समर्थन करते हैं और उम्मीद करते हैं कि आर्थिक विकास का लाभ जल्द ही पूरे भारतीय समाज में महसूस किया जाएगा. वह कहते हैं, ”अगले तीन साल में आर्थिक अवसर कई गुना बढ़ जाएंगे. कारोबार करने में आसानी होगी और बुनियादी ढांचा तेजी से बढ़ेगा. बस इंतजार करें, कुछ वर्षों में हर नागरिक अर्थव्यवस्था में भाग लेने में सक्षम होगा.”

महाराष्ट्र की एक महिला मंजुला साहू मछुआरा समुदाय से आती हैं और कल्याणकारी योजनाओं के लिए बीजेपी की प्रशंसा करती हैं. साहू कहती हैं, ”भारत में गरीबों को कल्याणकारी योजनाओं का सीधे लाभ मिल रहा है और यही कारण है कि मोदी ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी जीत हासिल कर रहे हैं. कल्याणकारी योजनाएं काम कर रही हैं.”

हालांकि, तमिलनाडु में चेन्नई के एक व्यवसायी अरुण मनियन कहते हैं कि विकास के इन मजबूत आंकड़ों के बावजूद, यह निश्चित नहीं है कि वह बीजेपी को वोट देंगे या नहीं. डीडब्ल्यू से बातचीत में मनियन कहते हैं, ”जीडीपी के ये आंकड़े आर्थिक विकास का भ्रम पैदा कर रहे हैं. आर्थिक विकास का पैसा अमीरों की जेब में जा रहा है और आम लोगों की हालत खराब होती जा रही है. मुझे इन आंकड़ों पर संदेह है.”

किन आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है?
विपक्ष जिन प्रमुख मुद्दों पर मोदी सरकार को घेरने की रणनीति पर काम कर रहा है, उनमें बेरोजगारी और मुद्रास्फीति सहित तमाम आर्थिक चुनौतियां प्रमुख हैं. अब सरकार का अनुमान है कि मार्च तक वित्तीय वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 7.6 फीसद तक पहुंच जाएगी, जो पहले के 7.3 फीसद के अनुमान से ज्यादा है. इन आंकड़ों के हिसाब से यह बताया जा रहा है कि भारत दुनिया में सबसे तेजी से विस्तार करने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बने रहने की राह पर है.

काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट के प्रोफेसर बिस्वजीत धर कहते हैं कि भारत की जीडीपी वृद्धि बढ़ती मुद्रास्फीति, कृषि और संबद्ध क्षेत्रों की धीमी वृद्धि और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में गिरावट जैसी आर्थिक चुनौतियों का सामना करती है. डीडब्ल्यू से बातचीत में धर कहते हैं, ”भारत की विकास गति की स्थिरता महत्वपूर्ण है और यह निजी अंतिम उपभोग जैसी घरेलू मांग और निर्यात जैसी विदेशी मांग, दोनों पर ही निर्भर करती है. पिछले कई वर्षों में घरेलू मांग बेहद सुस्त रही है और वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण निर्यात में गिरावट आ रही है.”

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मुरली कृष्णन