साहित्य

जरा सा तो पहले मिले होते हमदम

संजय नायक ‘शिल्प’
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जरा सा तो पहले मिले होते हमदम
उस पहाड़ी सड़क के घुमावदार रस्ते से दोनों बहुत खुशी से जा रहे थे। आज घरवालों को उन दोनों के रिश्ते की मंजूरी मिल गई थी। दोनों पहली बार मनाली के लिए निकले थे। अचानक लड़की को न जाने क्या सूझा, उसने लड़के को चूम लिया। तभी कार के सामने एक पहाड़ी बकरी आ गई। लड़के ने पूरे जोर से ब्रेक पर पाँव मारे….गाड़ी लहराकर साइड की दीवार को तोड़ती हुई एक देवदार के पेड़ से जा टकराई। वो दोनों गहरी बेहोशी में जा चुके थे…. पर गहरी बेहोशी में जाने से पहले लड़के को लगता है कि जो उसकी बगल में बैठी है वो कोई और है, जिसकी गोद में एक दो साल का बच्चा है, भगवान की मेहरबानी थी दोनों गहरी खाई में न जा गिरे।

दूसरे दिन जब लड़के को होश आता है उसे सब पुरानी यादें ताजा हो चुकी होती हैं। उसे याद आता है कि वो और उसकी पत्नी अपने मनाली के घर में जा रहे होते हैं कि अचानक किसी बात को लेकर उसकी पत्नी उसे चूमती है और सामने एक पहाड़ी बकरी के आ जाने से वो साइड की बेरिकेड्स से कार सहित टकरा जाते हैं । उसे वो सब याद आ जाता है जो उसके साथ 28 साल पहले घटा था।

वो किसी चुम्बक के खिंचाव की तरह उठता है और अपनी घायल अवस्था में ही मनाली के लिए निकल पड़ता है । उसे अपने पुराने घर का रास्ता याद होता है और घर का पूरा नक्शा भी। वो बस से उतरकर एक पतली सड़क पकड़ लेता है जो उसे एक आबादी की ओर ले जाती है। वो पहले वहाँ कभी नहीं आया था….उसके कदम खुद ब खुद उस रास्ते की ओर बढ़ चलते हैं जहां उसे जाना था । सामने उसे वही घर दिखाई देता है, जिसमें वह रहता था। वो दृढ़ निश्चय के साथ आगे बढ़ता है और बढ़ता चला जाता है । उसे अपनी पत्नी की शक्ल याद नहीं आ रही होती है न ही उसका नाम। वो उस बंगले नुमा घर के मेन गेट पर जाकर रुक जाता है, जो एक चौड़ी सड़क के किनारे बना होता है।

वो मेन गेट पर लिखा नाम पढ़ता है, ‘जय कुकरेती।’
“अरे हां, यही तो मेरा नाम था, जय कुकरेती । उनका एक रेस्टोरेंट था उस जगह, पर उसे रेस्टोरेंट का रास्ता नहीं सूझ रहा था।

वो हिम्मत करके मुख्य दरवाजा खोलकर बंगले की ओर बढ़ जाता है। उसे नहीं पता था वहां जाकर वो क्या कहेगा, पर वो किसी अनजान आकर्षण के साथ आगे बढ़ जाता है।

बंगले की डोरबेल बजाते वक़्त उसके हाथ कांप रहे थे और अजीब सी धुकधुकी उसके दिल में महसूस हो रही थी जैसे कोई लिफ्ट बहुत तेजी से नीचे की और जा रही हो और उसमें जैसे दिल बैठ जाता है वैसे ही उसका दिल बैठा जा रहा था।
डोरबेल के बजने के कोई डेढ़ मिनीट बाद दरवाजा खुला सामने कोई 54 साल की औरत उसके सामने खड़ी थी, उसे देखते ही उसके मुहँ से अनायास ही उसके मुँह से उसका नाम निकलता है, “प्रिया…….!!!”

उस अजनबी आदमी के इस व्यवहार से वो औरत हैरान रह जाती है और उसे डाँटती है, “ये क्या बदतमीजी है, कौन हो तुम और मेरा नाम ऐसे कैसे ले रहे हो।”
“प्रिया ….मैं, मैं जय, जय कुकरेती तुम्हारा पति, 28 साल पहले हमारा एक्सीडेंट हुआ था और मैं उसके बाद तुमसे कभी नहीं मिला । मुझे अब तक कुछ याद नहीं था, चार दिन पहले ही मुझे पिछला जन्म याद हो आया है, और मेरे कदम खुद बखुद यहाँ तक आ पहुँचें है, प्रिया ….मैं …मैं तुमसे मिलने आया हूँ।” उसने तड़पते हुए कहा।

“ऐ मिस्टर कौन फ्रॉड हो तुम, पूरी मनाली जानती है जय कुकरेती का 28 साल पहले एक्सीडेंट हुआ था और वो भगवान को प्यारे हो गए थे” औरत की आवाज भर्राई। फिर उसने खुद को संभालते हुए कड़क आवाज में कहा, “देखो मिस्टर , तुम जो कोई भी हो, यहां से निकल जाओ, ज्यादा होशियारी की तो अभी पुलिस के हवाले कर दूँगी, बड़ा आया जय कुकरेती।”

“प्रिया, पूरी मनाली जानती है जय कुकरेती की 28 साल पहले एक्सीडेंट में मौत हो गई थी….पर क्या पूरा मनाली ये जानता है मैंने अपने दाएं बाजू पर “प्रिया” नाम गुदवाना था पर उस अनपढ़ नाम गोदने वाले ने “प्रिया” की बजाय “पिया” लिख दिया था । फिर तुमने उस नाम को उसी वक़्त मिटवा दिया था। देखो मेरी कलाई पर ये निशान जन्म से है”, उसने अपनी बाजू पलट कर उसे दिखाया।
“ऐसा निशान कोई भी बनवा सकता है, फालतू की बात मत करो, ठहरो, मैं अभी पुलिस बुलाती हूँ।”उसने मोबाइल का स्क्रीन लॉक खोला।

“प्रिया, कोई नहीं जानता तुम्हारे माता पिता और मेरे सिवा तुम्हारे सीने की बाईं और एक बड़ा सा लाल चकत्ता है, जिसे मैं गुलाब का फूल कहता था । कोई नहीं जानता तुम्हारे मेरे सिवाय कि होली को मेरे छोटे भाई ने तुम्हें रँग लगाने के बहाने छेड़ दिया था तो मैंने उसे पीटा था…. कोई नहीं जानता कि हमारी शादी के तीसरे दिन मुझे इस बात के लिए थप्पड़ मार दिया था कि मैंने तुम्हें कोल्ड ड्रिंक में शराब मिलाकर पिला दी थी….बताओ कोई जानता है?? ” उसने कहा।

“ये सुनते ही उस प्रिया नाम की औरत को जैसे चक्कर सा आ गया था, बड़ी मुश्किल से वो सम्भली और उसके मुँह से निकल गया, “जय…तुम मुझे बहुत छोटी उम्र में छोड़कर चले गए । तुम नहीं जानते मैं कितना तड़पी हूँ तुम्हारे बिन। अकेलापन और दर्द क्या होता है मैं तुम्हें कैसे बताऊं….तुमने बहुत देर कर दी आने में जय।” उसकी आँखों से दो आँसू लुढ़के।

“प्रिया मैं आ गया हूँ, प्रिया हम फिर से पहले की तरह रहेंगे, प्रिया मैं अब तुम्हें कभी छोड़कर नहीं जाऊंगा।” वो लड़का बहुत भावुक होकर गिड़गिड़ाया।
अचानक जैसे प्रिया नींद से जागी, “देखो मैं जान गई हूँ तुम जय ही हो जो पुनर्जन्म लेकर आया है । उसे रूप तो नया मिल गया है, पर आत्मा वही है….पर तुम अपने इस नए जीवन को स्वीकार करो… मेरे लिए तुम अब अजनबी हो।” प्रिया ने दो टूक कहा।

“प्रिया, मैं जय बनकर तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं। तुम्हें अपनाना चाहता हूँ । मैं तुम्हारे बिना खुद को अकेला महसूस करूँगा, प्लीज़ इनकार मत करो।” वो लड़का जज्बाती हो गया।

“देखो मेरी बात सुनो, तुम्हारे जज्बात अपनी जगह सही हो सकते हैं पर मैं तुम्हारे प्रति जय वाले जज्बात नहीं ला सकती । मेरा बेटा भी उम्र में तुमसे बड़ा होगा, तो तुम सोच भी कैसे सकते हो कि मैं तुम्हें इस रूप में अपनाऊंगी ? तुम चले जाओ जहां से आये हो। मेरे सालों पहले के दुख को फिर से मत कुरेदो । उन जख्मो पर अब पपड़ी जम चुकी है…चले जाओ और अपने इस जीवन को आराम से जियो।” कहते हुए प्रिया ने उसके मुँह पर घर का दरवाजा बंद कर दिया।

वो लड़का जोर से चिल्लाया, “प्रिया , जब तक तुम मुझे अपनाओगी नहीं मैं कहीं नहीं जाऊंगा। तुम्हारे घर के आगे यहीं सड़क पर बैठा रहूंगा।” कहकर वो बंगले में मुख्य द्वार से निकलकर सड़क के किनारे आकर बैठ गया।

प्रिया ने खिड़की से झाँका देखा वो लड़का सामने बैठा था। उसे अफसोस हो रहा था कि जय आकर भी मिला तो उम्र के किस दौर में मिला है, वो चाहकर भी उसे नहीं चाह सकती। उसने जय का लाया हुआ रिकॉर्ड बजा दिया, गाना बज उठा…..

जरा सा तो पहले मिले होते हमदम
के फूलों की रंगत बिखरने लगी है
नमक मेरे रुख से उतरने लगा है
ये यौवन का परबत पिघलने लगा है
मैं टूटा हुआ दिल तुम्हें सौंप के ही
नजर से तुम्हारी सँवरने लगी हूँ
न खुशबू न शोखी न जिंदादिली है
बहारों की अब उम्र ढलने लगी है
जरा सा तो पहले मिले होते हमदम….
(नोट:-ये गाना भी लेखक का ही लिखा हुआ है)

उसकी आँखों में आँसू तैर गए उसका मन कर रहा था दौड़कर जाए और उस लड़के को गले से लगा ले। पर वो जानती थी भले ही ये आत्मा जो जय की थी उसे सब याद है पर ये शरीर जय का नहीं है । ये पाप है, ये उसके बेटे से भी छोटा है, उसने कसकर होंठ भींच लिए पर उसकी आँखें बह निकलीं।

उसने खिड़की के पर्दा खींच दिया ताकि वो बाहर का कुछ न देख सके। वो बीपी की गोली लेकर लेट गई उसे रह रहकर जय याद आ रहा था । गोली के असर से उसे नींद आ गई, जब आँख खुली तो, शाम के 6 बज चुके थे। वो उठी खिड़की के पास जाकर पर्दा हटाया। सामने वो लड़का बैठा था जिसकी निगाहें खिड़की की तरफ थीं। उसने झट से फिर से पर्दा कर दिया।

उसका बेटा रेस्टोरेंट से अक्सर लेट आता था, स्ट्रीट लाइट जल चुकी थी। वो अपने काम से फ्री हुई तब तक नौ बज चुके थे, उसने कमरे की लाइट बन्द की और हल्का सा पर्दा हटा कर देखा, वो लड़का वहीं बैठा था । रात के ग्यारज बज गए थे उसका बेटा खाना खाकर अपने कमरे में सोने जा चुका था। उसने चुपके से पर्दा हटाया और देखा कि वो लड़का सड़क पर बनी लकड़ी की बेंच पर सिकुड़ा हुआ पड़ा था। शायद उसे नींद आ गई थी । उसके मन में दया जागी । वो बंगले से बाहर आई, उसके हाथ में एक कम्बल था । वो लड़के को वो कम्बल ओढ़ाकर वापस बंगले में आ गई। उसने फिर से पर्दा हटाकर देखा वो आराम से सोया पड़ा था। रातभर वो बेचैन रही, कोई दस बार उसने पर्दा हटाकर देखा और लड़के को आराम से सोया देखकर सुकून महसूस किया।

सुबह लड़के की आँख खुली तो उसने खुद को कम्बल ओढ़े हुए पाया उसके होंठों पर मुस्कान तैर गई। कुछ देर में देखा तो प्रिया हाथों में एक फूलों की डलिया लिए हुए मुख्य द्वार से बाहर निकलती हुई दिखी । वो मंदिर जा रही थी, वो उसके पीछे चल पड़ा आवाज लगाई “प्रिया, तुम मुझे प्रेम करती हो, तभी रात को मुझे कम्बल ओढ़ाया न।” प्रिया बिना किसी जवाब दिए मंदिर की सीढियां चढ़ गई। वो लड़का उसका इंतजार करता रहा।

जैसे ही वो वापस आई वो उसके पीछे फिर से चलने लगा, और फिर से बोला “प्रिया तुम्हें मुझे अपनाना ही पड़ेगा।” वो फिर से तेज कदमों के साथ अपने बंगले में चली गई। उसका बेटा जब घर से निकला तो उसने देखा उसके घर की कंबल लिए वो लड़का बैठा है। उसने सोचा माँ हर किसी की मदद करती है। शायद रात में इसके पास ओढ़ने को कुछ रहा नहीं होगा तो माँ ने दे दिया होगा। उसका बेटा अपने काम की ओर बढ़ गया।

उसके बेटे को देखकर उस लड़के के में प्रेम जैसा कोई भाव न उमड़ा।
प्रिया पूरे दिन घर से बाहर नहीं निकली, पर वो बार बार पर्दा हटाकर देख रही थी, वो लड़का वहीं दिखाई दिया।

दूसरे रोज फिर सुबह वो मंदिर तक उसके पीछे गया पर कुछ नहीं बोला । उसके पीछे पीछे ही वापस लौट आया। उस दिन उसके बेटे ने महसूस किया की वो लड़का फिर वहां बैठा है । क्या बात है… कहीं कोई चोर उचक्का तो नहीं है।
उस दिन प्रिया को बाजार से कोई ज़रूरी सामान लाना था। वो बाजार की ओर चल दी। वो लड़का भी उसके पीछे हो लिया, वो जहां जहां जा रही थी वो पीछे था।

वापसी में उसके पास सामान ज़्यादा हो गया । लड़के ने उठाने को कहा तो प्रिया ने मना कर दिया। लड़का जबरदस्ती सामान उठाने लगा तो आसपास के लोगों ने बड़ी अजीब नज़रों से प्रिया को देखा।

प्रिया को न जाने क्या सूझा उसने एक जोरदार थप्पड़ उस लड़के को जड़ दिया और सामान लेकर घर आ गई। लड़का भी मरे मरे कदमों से चलता हुआ उसी बेंच पर आकर बैठ गया।

प्रिया को उसे यूं थप्पड़ मारकर दुख हुआ पर उसने ये अचानक कर दिया था । उसे नहीं पता उसका हाथ क्यों उठ गया था, उसने पर्दा हटाकर फिर उसे देखा, वो उदास दिखाई दे रहा था।

छोटे कस्बे में प्रिया के द्वारा मारे गए थप्पड़ की बात जंगल में आग की तरह फ़ैल गई, ये खबर उसके लड़के को भी लगी वो अपने दोस्त को लेकर घर की ओर चल दिया। अचानक हल्की बूंदा बांदी शुरू हो गई थी।

प्रिया को सड़क पर शोर शराबा सुनाई दिया तो उसने पर्दा हटाकर देखा । उसका बेटा और उसका दोस्त उस लड़के को पीट रहे थे। वो लड़का सड़क पर गिरा पड़ा था और उसे लात घूंसो से मारा जा रहा था । वहां भीड़ इकट्ठी हो गई थी। वो दौड़कर घर से बाहर निकली और उस लड़के पर जा गिरी और उसे अपने अंक में भींच लिया। ये देखकर उसका बेटा हैरान था भीड़ तमाशाई हो गई थी।

प्रिया ने अपने बेटे से कहा “इसे छोड़ दो तुम नहीं जानते ये कौन है।”

“कौन है ये, आपको क्यों तंग कर रहा है?” उसके बेटे ने पूछा।

प्रिया ने भीड़ से कहा “आप सब जाइए, ये हमारा घरेलू मामला है।”

भीड़ के जाने के बाद प्रिया ने सारा किस्सा कह सुनाया। उसके बेटे की आंखों में असमंजस था उसने सवाल किया “आप ये कैसे कह सकती हैंकि ये पापा का पुनर्जन्म है, ये कोई फ्रॉड भी हो सकता है।”

“पहले मुझे भी यही लगा था, पर इसने जो बातें बताई हैं वो मेरे और तुम्हारे पापा के अलावा कोई नहीं जानता था, तुम इससे माफी मांगो और इसे यहां से जाने को कहो।”

उनकी बातें चल ही रही थीं कि एक कार वहां आकर रुकी उसमें से एक लडकी उतरकर दौड़ी और उस लड़के के पास आई, “ओह धनंजय मैं कब से तुम्हें खोज रही हूं। कितना परेशान कर दिया तुमने मुझे। मैं कितनी चिंतित थी, ये तो मैंने पुलिस से मदद लेकर तुम्हारी मोबाइल लोकेशन ट्रेस करवाई तब जाकर तुम्हें खोज पाई हूं । ये क्या हुलिया बना रखा है, और ये यहां क्या हो रहा है।” लडकी ने सवाल दागे।

“तुम कौन हो?” प्रिया ने पूछा।
“जी हमारी शादी होने वाली है । यूं समझिए ये मेरा मंगेतर है, पर यहां ये क्या हो रहा है?” प्रिया ने उसे सारा किस्सा कह सुनाया। किस्सा सुनकर वो लड़की रो दी।
“जाओ, अपने भावी जीवन में खुश रहो।” कहकर प्रिया अपने बंगले की ओर बढ़ गई। लड़का जब तक कार में नहीं बैठ गया मुड़ मुड़कर प्रिया को देखता रहा।
उनकी कार के जाने के बाद प्रिया ने पर्दा हटाकर देखा, वो बेंच खाली पड़ी थी, उसने जय का लाया रिकॉर्ड बजा दिया…..

जरा सा तो पहले मिले होते हमदम
के फूलों की रंगत बिखरने लगी है
नमक मेरे रुख से उतरने लगा है
ये यौवन का परबत पिघलने लगा है
मैं टूटा हुआ दिल तुम्हें सौंप के ही
नजर से तुम्हारी सँवरने लगी हूँ
न खुशबू न शोखी न जिंदादिली है
बहारों की अब उम्र ढलने लगी है
जरा सा तो पहले मिले होते हमदम….

उसकी आंखें बह रही थीं, जिन्हें पोंछने का उसने कोई उपक्रम नहीं किया।

संजय नायक “शिल्प”