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”जयदेव” तीन तीन ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’ पाने वाले पहले संगीत निर्देशक!

Manohar Mahajan
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🎼”अभी ना जाओ छोड़ कर”
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105 साल पहले आज ही के दिन जयदेव वर्मा जिन्हें ‘जयदेव’ का जन्म नैरोबी में हुआ और उनका पालन- पोषण भारत के लुधियाना में हुआ।1933 में,जब वह मात्र 15 वर्ष के थे फिल्म स्टार बनने के लिए मुंबई भाग गये। वहां, उन्होंने ‘वाडिया-फिल्म-कंपनी’ के लिए एक बाल-कलाकार के रूप में आठ फिल्मों में अभिनय किया।

प्रोफेसर बरकत राय ने उन्हें कम उम्र में ही लुधियाना में संगीत की शिक्षा दी थी।बाद में जब वे मुंबई आये तो उन्होंने कृष्णराव जावकर और जनार्दन जावकर से संगीत सीखा।दुर्भाग्य से अपने पिता के अंधेपन के कारण उन्हें अपना फ़िल्मी-करियर अचानक छोड़ना पड़ा और लुधियाना लौटना पड़ा और परिवार की ज़िम्मेदारी उनके युवा कंधों पर आ गई। अपने पिता की मृत्यु के बाद जयदेव ने अपनी बहन वेद कुमारी की देखभाल की ज़िम्मेदारी ली और बाद में उनकी शादी सत-पॉल वर्मा से कर दी। उसके बाद 1943 में वह उस्ताद अली अकबर खान के संरक्षण में संगीत का अध्ययन करने के लिए लखनऊ चले गए।अकबर अली खान साहब ने 1951 में जयदेव को अपने संगीत-सहायक के रूप में लिया,जब उन्होंने नवकेतन-फिल्म्स की ‘आंधियां’ (1952) और ‘हम सफर’ के लिए संगीत तैयार किया।

एक पूर्ण-संगीत-निर्देशक के रूप में उन्हें बड़ा ब्रेक चेतन आनंद की फिल्म ‘जोरू का भाई’ से मिला। उसके बाद चेतन आनंद की अगली ‘अंजलि’ में संगीत देने का अवसर उन्हें मिला.,ये दोनों फिल्में बहुत लोकप्रिय हुईं। हालाँकि नवकेतन की फिल्म ‘हम दोनों’ (1961) से जयदेव सच में सुर्खियों में आए,”अल्लाह तेरो नाम”,”अभी ना जाओ छोड़ कर”, “मैं जिंदगी का साथ” और “कभी खुद पे कभी हालात पे “जैसे क्लासिक गानों के साथ।उनकी दूसरी बड़ी सफलता सुनील दत्त अभिनीत फिल्म ‘मुझे जीने दो’ (1963) से मिली।

हालाँकि जयदेव की कई फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर असफल रहीं, लेकिन उनमें से कई, जैसे ‘अलाप’, ‘किनारे किनारे’,और ‘अनकही’ को उनके कल्पनाशील संगीत स्कोर के लिए याद किया जाता है। जयदेव ने मुजफ्फर अली की फिल्म ‘गमन’ में सीने में जलन और ”रात भर आपकी याद आती रही’ जैसी अपनी गजलों और गानों से एक बार फिर प्रसिद्धि हासिल की। उन्होंने ‘गमन’ में सुरेश वाडकर, ए हरिहरन और उनकी शिष्या छाया गांगुली जैसे कई नए गायकों को पेश किया।

जयदेव में पारंपरिक और लोक संगीत को हिंदी फिल्म स्थितियों में मिश्रित करने की अद्वितीय क्षमता थी, जिससे उन्हें अपने समय के अन्य संगीत-निर्देशकों से एक अद्वितीय लाभ मिला।उन्हें हिंदी कवि हरिवंश राय बच्चन की क्लासिक कृति ‘मधुशाला’ के दोहों के गैर- फिल्मी एल्बम के लिए भी जाना जाता है, जिसे गायक मन्ना डे ने गाया था.

जयदेव ने कभी शादी नहीं की. वह अपनी बहन के परिवार के करीब रहे और बाद में यूनाइटेड किंगडम में बस गए। 6 जनवरी 1987 को 68 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

जयदेव तीन तीन ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’ पाने वाले पहले संगीत निर्देशक हैं। वह सलिल चौधरी और मदन मोहन के अलावा जयदेव ही लता मंगेशकर के पसंदीदा संगीतकारों में से एक थे।

जयदेव:हिंदी फिल्मों के वो संगीतकार जिन्हें फिल्मों में उनके काम के लिए जाना जाता है: हम दोनों (1961), ‘रेशमा और शेरा’ (1971) ;’प्रेम पर्वत’ (1973),’घरौंदा’ (1977) उनके कृतित्व की रोशन मीनारें हैं,जो उनके नाम को हमेशा रोशन रखेंगी..उन्हें शत शत नमन.