तृप्त …🖤
@yaduvanshi32
संभोग किसी पुरूष का औरत के साथ रहने का मुख्य कारण है
लेकिन जब बात शादी की आती है, तो ज्यादातर पुरुष इन दोनों कारणों के लिए शादी नहीं करते। वे स्थिरता के लिए शादी करते हैं।
इसका मतलब क्या है:
एक पुरुष आपसे प्यार कर सकता है लेकिन शादी नहीं करेगा। वह सालों तक आपके साथ शारीरिक संबंध बना सकता है लेकिन शादी नहीं करेगा। लेकिन जैसे ही उसे कोई ऐसी महिला मिलती है जो उसकी जिंदगी में स्थिरता लाती है, वह उससे शादी कर लेता है।
स्थिरता से मेरा मतलब है मन की शांति। मैंने पुरुषों को यह कहते सुना है, “मुझे इस महिला से प्यार है, लेकिन मैं पूरी जिंदगी उसके साथ नहीं बिता सकता।”
जब पुरुष शादी के बारे में सोचते हैं, तो वे वेडिंग ड्रेस या ब्राइड्समेड्स जैसी चीजों पर ध्यान नहीं देते, जैसा कई महिलाएं करती हैं। इसके बजाय, वे सोचते हैं, “क्या ये महिला मेरे साथ एक घर बना सकती है? क्या ये मेरे बच्चों और मेरी देखभाल कर सकती है? क्या ये मुझे शांति और आराम देगी?”
पुरुषों को शांति चाहिए। वे ऐसी महिलाओं को पसंद नहीं करते जो उन्हें तनाव दें। यही वजह है कि एक पुरुष किसी महिला के साथ सालों तक रह सकता है, लेकिन किसी दूसरी महिला से कुछ ही समय में शादी कर सकता है।
पुरुषों के लिए यह सिर्फ सेक्स या प्यार के बारे में नहीं है। यह सम्मान के बारे में है, क्योंकि सम्मान से ही स्थिरता मिलती है।
तृप्त …🖤
@yaduvanshi32
अस्तित्व अनिश्चित है, असुरक्षित है, खतरनाक है। वह एक प्रवाह है —चीजें सरक रही हैं, बदल रही हैं। यह एक अपरिचित संसार है; परिचय पा लो उसका। थोड़ा साहस रखो और पीछे मत देखो, आगे देखो; और जल्दी ही अनिश्चितता स्वयं सौंदर्य बन जाएगी, असुरक्षा सुंदर हो उठेगी।
वस्तुत: केवल असुरक्षा ही सुंदर होती है, क्योंकि असुरक्षा ही जीवन है। सुरक्षा असुंदर है, वह एक हिस्सा है मृत्यु का—इसीलिए वह सुरक्षित होती है।
बिना किन्हीं तैयार नक्शो के जीना ही एकमात्र ढंग है जीने का। जब तुम तैयार निर्देशों के साथ जीते हो, तो तुम जीते हो एक झूठी जिंदगी। आदर्श, मार्ग— निर्देश, अनुशासन—तुम लाद देते हो कोई चीज अपने जीवन पर; तुम सांचे में ढाल लेते हो अपना जीवन। तुम उसे उस जैसा होने नहीं देते, तुम कोशिश करते हो उसमें से कुछ बना लेने की। मार्ग निर्देशन की तैयार रूपरेखाएं आक्रामक होती हैं, और सारे आदर्श असुंदर होते हैं। उनसे तो तुम चूक जाओगे स्वयं को। तुम कभी उपलब्ध न होओगे अपने स्वरूप को।
कुछ हो जाना वास्तविक सत्ता नहीं है। होने के सारे ढंग, और कुछ होने के सारे प्रयास, कोई चीज लाद देंगे तुम पर। यह एक आक्रामक प्रयास होता है। तुम हो सकते हो संत, लेकिन तुम्हारे संतत्व में असौंदर्य होगा। मैं कहता हूं तुमसे और मैं जोर देता हूं इस बात पर बिना किन्हीं निर्देशों के जीवन जीना एक मात्र संभव संतत्व है। फिर तुम शायद पापी हो जाओ; पर तुम्हारे पापी होने में एक पवित्रता होगी, एक संतत्व होगा।
जीवन पवित्र है. तुम्हें कोई चीज उस पर जबरदस्ती लादने की कोई जरूरत नहीं, तुम्हें उसे गढ़ने की कोई जरूरत नहीं; कोई जरूरत नहीं कि तुम उसे कोई ढांचा दो, कोई अनुशासन दो और कोई व्यवस्था दो। जीवन की अपनी व्यवस्था है, उसका अपना अनुशासन है। तुम बस उसके साथ चलो, तुम बहो उसके साथ, तुम नदी को धकेलने की कोशिश मत करना। नदी तो बह रही है —तुम उसके साथ एक हो जाओ और नदी ले जाती है तुम्हें सागर तक।
यही होता है एक संन्यासी का जीवन सहज होने देने का जीवन—करने का नहीं। तब तुम्हारी अंतस—सत्ता पहुंच जाती है, धीरे — धीरे, बादलों से ऊपर, बादलों और अंतर्विरोधों के पार। अचानक तुम मुक्त होते हो। जीवन की अव्यवस्था में, तुम पा लेते हो एक नयी व्यवस्था। लेकिन व्यवस्था की गुणवत्ता अब संपूर्णतया अलग होती है। यह कोई तुम्हारे द्वारा आरोपित चीज नहीं होती, यह स्वयं जीवन के साथ ही आत्मीयता से गुंथी होती है।
तृप्त …🖤
@yaduvanshi32
पुरुष कहता है मै 45 वर्ष का हूं। जीवन में तीन बार विवाह हुआ और हर बार पत्नी की मृत्यु हो गयी। लेकिन अभी भी स्त्री के प्रति मन ललचाता है। मैं क्या करूं ?
तीन तीन बार तुमने प्रयास किया और तुम हार गये, अब तो उम्र भी हो गयी। बयालीस साल की उम्र तक पुरुष का स्त्री में रस रहे, स्त्री का पुरुष में रस रहे, यह स्वाभाविक है।
इसमें कुछ पाप नहीं है।
जैसे चौदह साल की उम्र में रस पैदा होता है। 🌺जीवन में सारे परिवर्तन सात सात साल के बिंदुओं पर होते हैं।🌺
पहला परिवर्तन तब होता है जब बच्चा सात साल से आठ साल का होता है। तब उसमें अहंकार का जन्म होता है। वह अपने मां बाप से मुक्त होने की कोशिश करता है। इसलिए सात साल के बच्चे हर चीज में इनकार करने लगते हैं नहीं करूंगा, नहीं जाऊंगा।
और जो जो उनसे कहो, वही इनकार करेंगे, और जो इनकार करो कि मत मरना सिगरेट मत पीना, सिनेमा मत जाना, वे पहुंच जाएंगे। वे सिगरेट भी पीएंगे। इनकार से अहंकार पैदा होने का उपाय बनता है।
सात साल की उम्र में अहंकार पैदा होता है, व्यक्ति अपने को अलग करता है मां बाप से। सात साल की उम्र में वस्तुत:
मां बाप के गर्भ से मुक्त होने की चेष्टा शुरू होती है।
चौदह साल में चेष्टा पूरी हो जाती है।
इसलिए चौदह साल के बच्चे मां बाप को भी जरा बेचैन करते हैं और बच्चों को मां बाप भी जरा बेचैन करते हैं। चौदह साल का बच्चा बाप के सामने खड़ा होता है तो बाप भी थोड़ी मुश्किल में पड़ता है। और चौदह साल का बच्चा भी अपने को हमेशा मुश्किल में अनुभव करता है।
अब उसकी कामवासना आनी शुरू होती है। दूसरे सात साल पूरे हो गये। अहंकार के बिना कामवासना नहीं जग सकती। पहले अहंकार जगे, तो ही कामवासना जग सकती है।
पहले मैं जगे, तो तू की तलाश जग सकती है। नहीं तो तू की तलाश कैसे होगी? चौदह साल में वासना जगती है।
अटठाईस साल में वासना अपने शिखर पर पहुंच जाती है। चौदह साल में जगती है, इक्कीस साल में परिपक्व होती है। अठाईस साल में अपने शिखर पर पहुंच जाती है। पैंतीसवें साल में ढलान शुरू हो जाता है। पैंतीस साल में जिंदगी का आधा हिस्सा आ गया। पहाड़ी चढ़ गये तुम।
जितनी चढ़नी थी, पैतीस के बाद उतार शुरू होता है। बयालीस में एकदम शिथिल होने लगती है। उन्चास में समाप्त हो जाती है। बयालीस के पहले तक स्त्री में पुरुष का रस, पुरुष में स्त्री का रस स्वाभाविक है।
42 बयालीस के बाद शिथिलता आनी शुरू होती है। 49 उन्चास में समाप्त हो जाना चाहिए।
अगर जीवन बिल्कुल स्वाभाविक चलता जाएं।
उंचास के बाद एक नया अस्तित्व का चरण उठता है।
जैसे एक से सात तक अहंकार को पाला था, ऐसे ही उन्यास से छप्पन तक अहंकार का विगलन शुरू होता है। यही क्षण हैं जब आदमी धार्मिक होने की चेष्टा में संलग्न होता है। छप्पन से लेकर तिरेसठ तक अहंकार शून्य हो जाना चाहिए। और तिरेसठ से सत्तर तक निरअहंकार जीवन होना चाहिए।
अगर सत्तर वर्ष में हम जीवन को बांट दें, तो जैसे पहले से सात साल तक निरअहंकार जीवन था, ऐसे ही फिर तिरेसठ से सत्तर तक निरअहंकार जीवन हो जाना चाहिए। समाधिस्थ का जीवन, मृत्यु की तैयारी, परमात्मा से मिलने का उपाय।
अब तुम कहते हों तुम पचपन के हुए!
अब समय गंवाने को नहीं है। ऐसे ही काफी समय गंवा चुके हो। और तीन बार संयोग की बात थी कि स्त्रिया उदारमना थीं, छोड्कर चली गयी। चौथी भी इतनी उदारमना होगी, कुछ कहा नहीं जा सकता। अवसर भी एक सीमा तक दीये जाते हैं। बार बार मिलते ही रहेंगे, इतना भी भाग्य पर भरोसा मत करो।
और ध्यान रखो, समझदार आदमी दूसरे के अनुभव से भी सीख लेता है। और नासमझ अपने अनुभव से भी नहीं सीख पाता।
तुम्हें मिला क्या है?
एक बार इसका निरीक्षण करो।
जीवन में सिर्फ आशाएं हैं, अनुभूतिया कुछ भी नहीं। मिलेगा, ऐसी आशा रहती है। मिलती कभी कुछ नहीं। बुद्धिमान आदमी दूसरे के जीवन को भी देखकर समझ जाता है। अब समय आ गया है। अब समय आ गया है कि थोड़ी बुद्धिमानी बरतो।
मैंने सुना है, एक अदालत में मुकदमा था। मुल्ला नसरुद्दीन गवाह की तरह मौजूद था। मजिस्ट्रेट ने उससे पूछा कि नसरुद्दीन, जब इस स्त्री की अपने पति के साथ लड़ाई हुई, तब तुम क्या वहा मौजूद थे? मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा जी हां! जज ने पूछा कि तुम उसके गवाह की हैसियत से क्या कहना चाहते हो? बोलो।
मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, यही हजूर कि मैं कभी शादी नहीं करूंगा।
आदमी दूसरे के अनुभव से भी सीख लेता है।
तृप्त …🖤
@yaduvanshi32
पहले की सुहागरात में दोनों के लिए नया अनुभव होता था लेकिन अब सुहागरात सिर्फ नाम की बाकी सब पहले ही हो जाता है ……….
पहले और आज के सुहागरात के अनुभवों में अंतर व्यक्ति के अनुभवों, समय के साथ हुए बदलावों और सामाजिक परिवर्तनों के कारण हो सकता है। ये बदलाव व्यक्ति की व्यक्तिगत और सामाजिक परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं और सांस्कृतिक परिवर्तन से जुड़े हो सकते हैं।
पूर्व में, सुहागरात के समय व्यक्ति शादी के बाद नए रिश्तों, नए घर और नई ज़िम्मेदारियों के कारण कुछ विचलित महसूस कर सकता था। उस समय अनुभव नए होते थे, और साथी के साथ तालमेल बिठाने की आवश्यकता होती थी। सुहागरात का माहौल जीवनसाथी के साथ एक नए अध्याय की शुरुआत का प्रतीक होता था।
वर्तमान में, सुहागरात के अनुभव में व्यक्ति अधिक परिपक्व हो सकता है। अब लोग ज़्यादा अनुभवी होते हैं और अपने साथी के साथ समझौता करने की क्षमता रखते हैं। यह समय विभिन्न पहलुओं को समझने और नए रिश्ते को मज़बूत करने का एक मौका हो सकता है।
इसके अलावा, समय के साथ बदलती सामाजिक मान्यताएँ और जीवनशैली भी सुहागरात के अनुभव को प्रभावित करती हैं। आजकल के युवाओं की विचारधारा और दृष्टिकोण में बदलाव आया है, जिससे उनका अनुभव भी अलग हो सकता है।
अंततः, सुहागरात का अनुभव व्यक्ति के व्यक्तिगत और सामाजिक परिवर्तनों पर निर्भर करता है, और इसमें सुख-दुःख के संवेदनशील पलों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है
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@yaduvanshi32
संभोग किसी पुरूष का औरत के साथ रहने का मुख्य कारण है
लेकिन जब बात शादी की आती है, तो ज्यादातर पुरुष इन दोनों कारणों के लिए शादी नहीं करते। वे स्थिरता के लिए शादी करते हैं।
इसका मतलब क्या है:
एक पुरुष आपसे प्यार कर सकता है लेकिन शादी नहीं करेगा। वह सालों तक आपके साथ शारीरिक संबंध बना सकता है लेकिन शादी नहीं करेगा। लेकिन जैसे ही उसे कोई ऐसी महिला मिलती है जो उसकी जिंदगी में स्थिरता लाती है, वह उससे शादी कर लेता है।