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जब अमेरिका, फ्रांस और इंग्लैंड ने ठुकरा दिया था नाटो में शामिल होने का सोवियत संघ का प्रस्ताव!

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अमेरिका, फ्रांस और इंग्लैंड ने ठुकरा दिया था नाटो में शामिल होने का सोवियत संघ का प्रस्ताव

फरवरी 1954 में सोवियत संघ ने अपने तत्कालीन पश्चिमी सहयोगियों को यूरोपीय सामूहिक सुरक्षा पर एक संधि पर हस्ताक्षर करने का प्रस्ताव दिया। जिसका मकसद हिटलर-विरोधी गठबंधन के पूर्व सदस्यों के बीच गठबंधन के सिद्धांतों को स्थापित करना था। लेकिन इस विचार को दूरगामी बहाने के तहत खारिज कर दिया गया।

31 मार्च 1954 को सोवियत संघ के विदेश मंत्रालय ने नाटो के सदस्य देशों को एक नोट भेजा जिसमें सोवियत संघ को गठबंधन में शामिल होने का प्रस्ताव दिया गया। शर्त यह थी कि गठबंधन तटस्थ स्थिति बनाए रखे। सोवियत संघ के विदेश मंत्री व्याचेस्लाव मोलोतोव ने ज्ञापन में यह लिखा था कि इस प्रस्ताव पर नाटो की सहमति और इनकार दोनों प्रतिक्रियाएं मास्को को स्वीकार्य होंगी।

उनका कहना था कि इस समझौते से सोवियत संघ के लिए सैन्य खतरा तेजी से कम हो जाएगा, क्योंकि नाटो में यूएसएसआर की सदस्यता से गठबंधन में थोड़े-बहुत परिवर्तन होंगे। और नाटो के इनकार से इस गठबंधन की वास्तविक प्रकृति भी सामने आ जाएगी, जो यूरोप में सैन्य स्थिति को स्थिर करने में नहीं, बल्कि केवल सैन्य प्रभुत्व हासिल करने में रुचि रखता है।

नाटो की प्रतिक्रिया भी कुछ ऐसी ही आई। उसने इस प्रस्ताव पर हामी नहीं भरी। इंग्लैंड, फ्रांस और अमेरिका ने 7 मई 1954 को इस प्रस्ताव पर हाथ खड़े कर दिए। उन्होंने इसे ये कहकर मना किया कि यह प्रस्ताव “चर्चा के योग्य नहीं है।”