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जन साधारण को ”सावन” की हैसियत ज़ीनत अमान के बताये पता चली!

मुकेश नेमा
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जन साधारण को सावन की हैसियत जीनत अमान के बताये पता चली ! यदि वो मनोज कुमार को गा गाकर ताने नहीं देती तो लोगों को कैसे पता चलता कि सावन लाखों का होता है और उसे दो टकिया की नौकरी के लिये ज़ाया नहीं करना चाहिये !
वैसे बेहतर यह होगा कि सबसे पहले ज़ीनत अमान की ही तारीफ़ कर ली जाये ! ज़ीनत अमान ऐसी थी कि उन्हें देखने भर से सावन सर के बल खड़ा हो सकता था ! वे जब पर्दे पर दिखती थी और लोगों के मन में आप जैसा कोई मेरी ज़िंदगी में आये वाला गाना बजने लगता था ! वो हम तुम्हें चाहते हैं ऐसे ,जैसे बेहतरीन गाने की धुन थी ! और उनके जैसा ना तब कोई था ना आज है !

आईये सावन पर लौटें ! वैसे यह बात तो जानी मानी है कि आपके जीवन में आने वाली सुंदरी की उत्कृष्टता आपको मिली नौकरी की गुणवत्ता के समानुपाती होती है ! ऐसे में यह तो पता नहीं कि लाखों में एक टाईप ख़ूबसूरत ज़ीनत अमान को रोटी कपड़ा और मकान से जूझता ,शक्ल से ही गरीब लगता मनोज कुमार कैसे पसंद आ गया ! और उनके इस प्रेमी की तनख़्वाह इतनी कम क्यों थी ! कम तो निश्चित रूप से थी ! ज़ीनत अमान झूठ क्यों बोलने लगी ! वैसे उन्हें देखकर ही उनकी बात पर यक़ीन करने का जी चाहता है कि मनोज कुमार की दो टकिया दी नौकरी ही ज़ीनत अमान के जीवन में रोटी और कपड़े कम होने की वजह रही होगी !

रोटी ,कपड़ा और मनोज कुमार जैसी दिक़्क़त से जूझने के बावजूद यदि ज़ीनत अमान ,सावन को नौकरी पर तरजीह दे रही है तो इसका साफ़ मतलब है कि सावन में ऐसा कुछ तो ज़रूर है तो भादो ,जेठ और असाढ में नहीं है ! आज हम लोग इसी पर चर्चा करेंगे !

सावन दूसरे महीनों से इस मायने में अलग है कि इस महीने में बादल आते है ! पानी गिरता है ,तो फिसलन हो जाती है ! हमारे हीरो हीरोइनों को कुछ कुछ होने लगता है ,उनका साथ साथ रपट जाने का मन होने लगता है ! आमतौर पर वो गाना गाने के लिये कमर कस लेते है ! जैसे एक फ़िल्म में सुनील दत्त ने हमें यह ज्ञानवर्द्धक जानकारी दी कि सावन के महीने में पवन सोर करने लगती है ! तब भी सारे पढ़े लिखे नूतन से सहमत थे कि पवन सोर नही ,शोर करती है पर अड़ियल सुनील दत्त नहीं माने ! उनके इस नहीं मनाने से ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने माना कि शोर से से प्रदूषण होता है और पूरी दुनिया को इसे गंभीरता से लेना चाहिये !

एक और फ़िल्म में गाल में गड्डे लिये फिरने वाली सुंदरी शर्मिला टैगोर ने गाना गाकर ज़माने को यह सूचित किया कि अब के बरस सावन में घटा के बरसते ही उनके तन मन में आग लगने वाली है ! चूँकि यह बात शर्मिला टैगोर ने कही थी ,इसलिये केमेस्ट्री के तमाम विशेषज्ञ जुटे ! उस सावन के बाद पचासों सावन बरस चुके पर वे अब भी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि ऐसी अनहोनी कैसे मुमकिन है !

वैसे सावन और सावन में होने वाली बरसात का जितना फ़ायदा राजकपूर ने उठाया उसकी कोई दूसरी मिसाल मिलना मुश्किल है ! उनके जीवन में पद्मिनी से लेकर पद्मिनी कोल्हापुरे जैसे ढेर सारे सावन आये ! उनकी हर हीरोईन को भीगना पड़ा ! जब जब वे भीगी ,उन्होंने सुरीले गाने गाये ! पब्लिक आँखों के ज़रिये मन से भीगी और राजकपूर को धन से भीगने का मौक़ा हासिल हुआ !

बात ज़ीनत अमान के ताने से शुरू हुई थी ऐसे में यह बात अब तक तो साफ़ हो नहीं सकी है कि उन्होंने सावन के लाखों का होने का हिसाब कैसे लगाया ,पर यह तो तय है कि मनोज कुमार किसी प्राईवेट जॉब में थे ,तनख़्वाह बहुत कम थी और छुट्टियों का भी टोटा था ! कुल मिलाकर आज जैसा ही ज़माना था तब भी ! अंतर केवल इतना सा है कि सावन की क़ीमत भी अब पहले से कम है ,  नौकरियाँ लगातार ग़ायब होती जा रही है और अब हमारे पास ज़ीनत अमान भी नहीं है !
मुकेश नेमा