सुल्तानपुर। लोकसभा चुनाव चल रहे हैं। नेता जहां एक दूसरे पर वार करने में शब्दों की मर्यादा लांघ रहे हैं। जाति-धर्म की खुलकर सियासत हो रही है। ऐसे दौर में सुल्तानपुर से सांसद और भाजपा प्रत्याशी मेनका गांधी इसे सख्त नापसंद करती हैं।
अपने दीर्घ संसदीय जीवन में वे काम पर यकीन करती आई हैं। वह कहती हैं कि सांसद का चुनाव उसके काम पर होना चाहिए। जाति-कौम के आधार पर माहौल ही नहीं बनना चाहिए। इस मुद्दे पर उन्होंने बेबाकी से बात की…
सवाल : मौजूदा दौर में माना जाता है कि जातीय-धार्मिक ध्रुवीकरण से ही चुनाव जीते जाते हैं। आप इसे राजनीति में कितना जरूरी मानती हैं?
मेनका : जब सभी पार्टियां जाति के आधार पर टिकट देती हैं तो जनता के सामने च्वाइस ही नहीं रह जाती। अब हर कोई नोटा पर वोट तो नहीं दे सकता। मेरा अनुभव है कि जनता काम करने वाले को ही पसंद करती है, लेकिन उसे काम करने वाले का विकल्प तो मिले।
सवाल: यहां पहल क्या राजनीतिक दलों को करनी चाहिए?
मेनका : बिल्कुल… यदि मेरे मुकाबले मुझसे ज्यादा काम करने वालों को टिकट दिया जाता तो मुझे खुशी होती, लेकिन नए लोगों को इसलिए टिकट दे देना कि वे जाति के नाम पर कुछ वोट बटोर लेंगे…ऐसा ठीक नहीं है। जनता चाहती है कि काम करने वालों के बीच मुकाबला हो। हम मुकाबला जातियों का बना देते हैं और इस दरार को बड़ा बना देते हैं।
सवाल : भाषणों में जातीय और धार्मिक आधार पर जो अलगाव की बातें होती हैं यह कितना उचित है?
मेनका : आप माहौल ऐसा बनाएंगे तो बहुत सारे लोग इसमें फंस जाएंगे। यह माहौल नहीं बनना चाहिए, जाति और कौम के आधार पर।