साहित्य

छड़ी की मार…..बस मुझे छूना नहीं कभी भी….कभी भी नहीं….।

संजय नायक ‘शिल्प’
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चन्द्ररूपायनम (छड़ी की मार…..)
चन्द्र जैसे ही घर से साइकिल निकाल कर बाहर आया ,
वैसे ही मुहल्ले का आधा पागल लड़का गुल्लू वहाँ आ गया, वो चन्द्र से बहुत लगाव रखता था।
गुल्लू का पिता ज्यादा शराब के सेवन से मर चुका था और उसकी माँ घरों में झाड़ू पोंछे का काम करती थी, वो घर से जल्दी निकल जाती थी, और गुल्लू मुहल्ले में निकल आता था।
गुल्लू ने चन्द्र से अपनी पगलाई बोली में कहा,”चन्दल चन्दल, मुधे थाइतिल ता एत चत्तल लदवाओ न।”
“गुल्लू भैया अभी तो मैं स्कूल के लिए लेट हो रहा हूँ, शाम को एक कि बजाय साइकिल के दो चक्कर लगवा दूँगा “, चन्द्र बोला
” थित है पल अदल थाम को दो चत्तल नहीं लगवाए तो थड़ी से पितूंगा तुधे।”
” नहीं छड़ी से नहीं पीटना, मैं पक्का दो चक्कर लगवा दूँगा “, कहकर चन्द्र स्कूल के लिए निकल गया।
उस वक़्त रूपा और चन्द्र ग्यारहवीं में पढ़ रहे थे। उम्र ने रूपा के बदन को भरना शुरू कर दिया था। चन्द्र के चेहरे पर भी हल्की दाढी मूंछ के रोयें उभर आये थे।
रिसेस चल रही थी , चन्द्र हमेशा अकेला जाकर खाना खाता था। चन्द्र जैसे ही अपना टिफिन लेकर अलग जाने लगा , रूपा ने टोका,”तू हमेशा अकेला ही खाता है चन्द्र, ऐसा क्या माल लाता है इस टिफिन में ?”
” माल कुछ नहीं , माँ ने कहा है अध्धयन और भोजन अकेले में छुपकर करना चाहिए ।”
” पर अध्धयन तो तू हम सबके बीच ही करता है, फिर भोजन भी कर ले।”
“अब माँ की दोनों बातों में से एक तो माननी चाहिए न।” मुस्कुराते हुए उसने कहा और वो अलग खाने चला गया।
लंच के बाद जब वो मैदान में थे, एक दूसरे को छूने का खेल खेल रहे थे, चन्द्र की बारी आई वो रूपा को छूने पीछे दौड़ा रूपा दौड़ रही थी, सामने एक पेड़ आया तो जैसे ही वो पलटी चन्द्र ने उसे छूने के लिए हाथ बढ़ाया और उसका हाथ रूपा के वक्ष को छू गया।
दोनों ही स्तब्ध थे , रूपा का चेहरा गुस्से में तमतमा गया और उसने जोर से कहा, “बदतमीज…!!!”, तड़ाक से एक थप्पड़ चन्द्र के गाल पर मारा और रोती हुई वहाँ से क्लास रूम की और भाग गई।
चन्द्र अवाक रह गया, अनजाने में उससे ये गलती हो गई थी । अपराध बोध और अपमान से उसके आँसू आ गए । नीलम एक पल चन्द्र को देखती रही और रूपा के पीछे क्लास रूम की और दौड़ी । अन्य लड़के लड़कियाँ भी जो उनके साथ खेल रहे थे सब अलग अलग जाकर बैठ गए।
रोती हुई रूपा क्लास रूम से अपना बस्ता उठाए स्कूल के गेट की ओर दौड़ रही थी और नीलम बस उसके पीछे रूपा…. रुक…. रूपा….रूक….करके अपना बस्ता लिए हुए दौड़ रही थी। मगर शर्म और गुस्से से कांपती हुई, रूपा स्कूल के गेट से बाहर निकल गई।
जड़वत चन्द्र अपनी इस गलती के लिए खुद को बहुत बड़ा पापी समझते हुए क्लास रूम में गया । उसने अपना बस्ता उठाया और वो भी अपनी साइकल लेकर स्कूल से बाहर निकल गया।
चन्द्र को साइकिल एक ट्रक सी लग रही थी जिसे वो हाथों से धकेल रहा था, बुझे मन से चन्द्र मुहल्ले में पहुँचा। उसे देखते ही गुल्लू आ गया।
“चन्दल थाइतिल ते तत्तल लगवाओ, तुमने तहा था न वरना थड़ी से पितूंगा ।”
छड़ी का सुनते ही चन्द्र के पाँव ठहर गये। उसने गुल्लू को अपनी साइकिल पर दो चक्कर लगवाए।
फिर बोला, “गुल्लू भैया ! मैं साइकिल खड़ी करके आता हूँ फिर हम खेलेंगे।” ये सुनकर गुल्लू तालियाँ बजाने लगा।
चन्द्र ने गुल्लू से कहा वहाँ उधर दूर चलेंगे । गुल्लू उसके साथ हो लिया । मुहल्ले से दूर जहां घने पेड़ उगे थे, चन्द्र वहाँ रूका , गुल्लू भी रुक गया।
चन्द्र ने वहाँ पर पड़ी लकड़ियों के ढेर में से उस सूखी हुई छड़ी उठाई जो बहुत खुरदरी थी । उसने उसे तोड़ा , और गुल्लू से कहा , “गुल्लू भैया ! आपको सुबह साइकिल के चक्कर नहीं लगवाए थे न, आप कह रहे थे कि मुझे छड़ी से पीटोगे, लो इस छड़ी से मुझे पीटो।”
और अपनी दोनों हथेलियों को उसके सामने फैला दिया।
भोले गुल्लू ने उसकी हथेलियों पर ताबड़तोड़ छड़ी से मारना शुरू कर दिया।
“और जोर से …और मारो भैया।” हर बार चन्द्र कहता। गुल्लू और तेजी से मारता। चन्द्र की आँखों से आँसुओं की कतार बह निकली । वह मन ही मन सोच रहा था, रूपा तुझे गलत जगह छू दिया न, मुझे ये सजा मिलनी ही चाहिए।
गुल्लू उन्माद में मारता जा रहा था और हर मार चन्द्र को अपने मन के घाव पर मलहम जैसे लग रहे थे। चन्द्र के हाथ से खून रिस आया था, अचानक जैसे गुल्लू को होश आया।
उसने चन्द्र के लहूलुहान हाथ को देखा और उसकी आँसुओं से भरी आँखों को देखकर उसने छड़ी फेंक दी और चन्द्र के गले लगकर रोने लगा, और फिर रोते रोते घर की ओर भाग गया।
उसके बाद चन्द्र ने वहाँ पर एक गड्ढे में भरे पानी से अपने हाथ धो लिए। अपनी बाज़ुओं से आँखें पोंछीं और घर आ गया। उसे मन पर कुछ हल्कापन महसूस हो रहा था। पर रह रह कर उसे रूपा को छूना याद आ रहा था, और वो सर झटक कर, उसे जेहन से निकाल देना चाहता था।
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सुबह जब वो उठा तो उसने देखा कि गुल्लू उसके हाथों पर एक मलहम लगा रहा था।
“चन्दल तू दाद दया, बहुत दलद हो लहा है ना ? ” गुल्लू रुंआसा हो कर बोला
“आपसे किसने कहा, मलहम लगाने को ? ” चन्द्र ने गुल्लू की रोनी सूरत देख पूछा ।
“मैं तल लो लहा था, तो माँ ने पूथा त्यू लो लहा है, तो मैंने बता दिया, माँ ने थहा ति तू चन्दल तो मल्हम लदाना।”
” चाची कहाँ हैं गुल्लू ? ” चन्द्र ने बड़ी ममता से पूछा ।
“वो ताम पल तली गई।”
“तुम बहुत अच्छे हो गुल्लू भैया, मैं कुछ बड़ा आदमी बन गया तो तुझे और चाची को अपने साथ ले जाऊंगा।”
“थित है चन्दल, फिल लोज मुधे थाइतिल ते तत्तल लदवाना।” गुल्लू ने बिना कुछ समझे ही खुश होते हुए कहा।
क्लास शुरू होने के बाद ही पहुंचा था चन्द्र, वो कमरे में घुसा तो रूपा और नीलम ने तो उसे देखा पर चन्द्र ने रूपा और नीलम को अनदेखा करके, अपनी आखरी बेंच पकड़ ली।
रिसेस में चन्द्र खाना खाने नहीं गया, क्लास में ही रहा।
कुछ देर में रूपा और नीलम वहाँ आ गईं।
“बन्दर आज लेट क्यूँ हुआ?” नीलम ने पूछा।
वो कुछ नहीं बोला।
रूपा चन्द्र के करीब आई, “चन्द्र कल मैंने तुम्हें सबके सामने मार दिया, उसके लिए माफ कर दो….पर कल बहुत बुरा हुआ । मैं सोच भी नहीं सकती थी…. कि चन्द्र कभी…..। सुनो मुझे देह छूना पसन्द नहीं…जानती हूँ तुमने जानकर नहीं किया, पर बस मुझे बहुत गुस्सा आ गया था। मैं जानती हूँ चन्द्र कभी ऐसा नहीं कर सकता। सुन रहे हो न….!!, आज के बाद कभी मुझे हाथ मत लगाना। और एक वादा करो मुझसे, कभी भी किसी औरत का सामाजिक या शारीरिक अपमान मत करना, सुन रहे हो न चन्द्र…..!! या मैं यूँ ही गाये जा रही हूँ ?” रूपा बेचैनी से बोली
चन्द्र बस सर झुकाए बैठा रहा।
“तुम्हारे हाथ पर ये पीला पीला क्या लगा है।” नीलम ने पूछा। चन्द्र ने हाथ पीछे कर लिए।
” नीलम इसके हाथ खोल तो “, रूपा को कुछ अंदेशा सा हुआ ।
नीलम ने वैसा ही किया, उसके हाथ पर घाव और घाव पर लगा मलहम दिखा।
” ये चोट कैसे आई?? बताओ। बताते हो या कल के जैसे एक थप्पड़ और मारूं?” जैसे रूपा के सब्र का बाँध ही टूट गया ।
” कल तुम्हें , इन हाथों से …. दर्द दिया न ……रुलाया न…..इसलिये …छड़ी से खुद को सजा दी।”कहते हुए चन्द्र की आँखें बह निकली।
” ओह , चन्द्र….!!”तड़पी रूपा।
“क्यूँ….??कैसे….!!” रूपा ने चन्द्र की ठोड़ी पकड़ कर मुँह ऊपर उठाते हुए पूछा।
चन्द्र ने आँखें बंद कर ली और गुल्लू और छड़ी वाला सारा किस्सा कह सुनाया। तीन दिल और तीन जोड़ी आँखें एक साथ रो रहीं थी।
“चन्द्र….!!! मेरे लिए खुद को इतना दर्द दिया…!! ” रूपा सुबकते हुए बोली
” तुम्हारे दर्द के आगे कुछ भी नहीं “, कहकर चन्द्र ने नज़र ऊपर उठाई ।
“चन्द्र……!!”
चन्द्र खामोश था ।
” बस मुझे छूना नहीं कभी भी….कभी भी नहीं….।”
उसकी आँखों के आसूं चन्द्र की हथेलियों पर टप्प टप्प गिर रहे थे।
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चन्द्र रोज अपने ऑफिस में सबसे पहले आता और सबसे आखिर में जाता था। वो रोज सभी सीटों के पास एक चक्कर लगाकर आता था। उसके बाद सबके जाने के बाद शाम को उपस्थिति रजिस्टर को चैक करता था।
उसने देखा एक कर्मचारी चार दिन से नहीं आ रही थी। वो पांचवे दिन आई। चन्द्र ने अपने राउंड के दौरान उसको देखा था। उसने जैसे ही शाम को उपस्थिति रजिस्टर चैक किया, उसने देखा उस कर्मचारी ने पिछले चार दिन के साइन भी कर दिए थे। चन्द्र को बड़ा गुस्सा आया।
उसने दूसरे दिन सभी कर्मचारियों को मीटिंग हॉल में बुलाया। और सबके सामने उस महिला कर्मचारी को डाँट दिया, जिसने चार दिन न आकर साइन कर दिए थे।
वो कर्मचारी रोते हुए वहाँ से चली गई , चन्द्र ने सबको जाने के लिए कह दिया। चन्द्र को लगा कुछ तो गलत हुआ है।
उसने बूढ़े पियोन से पूछा तो उसने बताया कि वो लड़की विधवा है और अपने पति की जगह पर उसे नौकरी मिली है जो कि यहां क्लर्क था । ये लड़की आठवीं पास है इसे डिपार्टमेंट ने दो साल का समय दिया है दसवीं करने के लिए । तभी ये स्थाई रूप से क्लर्क बन पाएगी, और उसके दसवीं के पेपर होने वाले हैं तो वो ऐसे ही कभी कभी आकर साइन कर देती है , क्योंकि ऑफिस में आकर वो पढ़ाई नहीं कर पा रही । यहाँ पढ़ने के लिए माहौल नहीं है, पढ़ने के लिए एकांत चाहिए।
चन्द्र ने पियोन से पूछा,”ऑफिस में ऐसा कोई कमरा नहीं है, जहां एकांत हो ? ”
” है सर ! वो रेस्ट रूम है, जिसमें कई बार कोई कर्मचारी बीमार हो जाये या कोई बाहर से आये तो वो दिन में आराम कर लेते हैं । पर वो रेस्ट रूम लगभग बन्द रहता है, उसका कोई यूज़ नहीं करता।” पियोन ने बताया।
” ठीक है आप वो रेस्ट रूम खुलवा दो, और उस कर्मचारी से कहो, कि कल से उसमें आकर पढ़े , उसे बुलाओ एक बार।” चन्द्र ने कहा।
पियोन के साथ वो कर्मचारी फिर से आई, चन्द्र ने उससे माफी मांगी और, रेस्ट रूम में पढ़ने के लिए कहा, जहां उसे कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा।
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शाम को चन्द्र ने हथेली आगे निकाल रखी थी, और गुल्लू उन पर छड़ी बरसा रहा था । गुल्लू की माँ ने चन्द्र की मौसी से कहा ,” दीदी रोको न चन्द्र को कि वो ऐसा न करे, चन्द्र की ये सजा मुझे बहुत तकलीफ देती है।”
मौसी ने चन्द्र के पास से गुल्लू को हटा दिया और वो छड़ी तोड़ दी।
“चन्द्र ये सजा आज क्यूँ??” मौसी ने पूछा।
चन्द्र ने दिन का सारा हाल कह सुनाया।
” चन्द्र तू आदमी है कि देवता?? “मौसी ने दर्द भरे स्वर में कहा।
” मौसी मैं तो आदमी ही हूँ , पर एक देवता ने एक दिन कहा था कभी किसी महिला का सामाजिक और शारीरिक अपमान मत करना ……बस जब भी गलती से ऐसा हो जाएगा , ये छड़ी मुझे सजा देगी।” चन्द्र ने कहा।
” चन्द्र धन्य है रूपा, एक ऐसी पारस जिसने एक लोहे को छूकर कुंदन बना दिया।” चन्द्र की मौसी द्रवित हो कर बोली ।
” रूपा तुम न होती तो मुझे इतनी समझ कौन देता , तुम सच में देवी हो, पर जब भी किसी महिला को दर्द देता हूँ लगता है फिर से तुम्हारा वक्ष छू दिया, जो पाप था, ये छड़ी हमेशा तुम्हें दिए दर्द की सजा देगी मुझे।”चन्द्र ने मन ही मन सोचा।
संजय नायक”शिल्प”