मध्य प्रदेश राज्य

चुनावों से चार महीने पहले भाजपा ने MP में 39 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम घोषित किये, सिंधिया के क़रीबी का पत्ता साफ़ : रिपोर्ट

भाजपा ने न तो चुनावों की घोषणा का इंतजार किया और न ही कांग्रेस की सूची आने का। 39 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए। वह भी चुनावों से तकरीबन चार महीने पहले। इसमें भिंड जिले की गोहद सीट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में आए रणवीर जाटव को टिकट नहीं दिया है। पूर्व मंत्री लालसिंह आर्य पर भरोसा जताया है।

ललिता यादव (छतरपुर), लाल सिंह आर्य (गोहद), ओमप्रकाश धुर्वे (शाहपुरा), अदल सिंह कंसाना (सुमावली) और नानाभाऊ मोहोड़ (सौंसर) समेत छह पूर्व मंत्रियों को उम्मीदवार बनाया है। इसी तरह पूर्व विधायकों ध्रुव नारायण सिंह (भोपाल मध्य), राजकुमार मेव (महेश्वर), चंद्रशेखर देशमुख (मुल्ताई), सतीश मालवीय (घाटिया), और महेंद्र सिंह चौहान (भैंसदेही) को भी चुनाव मैदान में उतारा है। वहीं, छह नए चेहरों को भी मौका दिया गया है। जो टिकट घोषित हुए हैं, उनमें आठ अजा और 13 अजजा वर्गों के लिए आरक्षित सीटों पर उम्मीदवार शामिल हैं। अन्य उम्मीदवारों की बात करें 13 ओबीसी से हैं और पांच उम्मीदवार सामान्य श्रेणी से।

किस सीट पर क्या है स्थिति

मुरैना जिले की सबलगढ़ सीट पर भाजपा ने सरला विजेंद्र रावत को टिकट दिया है। 2018 में कांग्रेस के बैजनाथ कुशवाह ने यह सीट जीती थी। तब रावत तीसरे स्थान पर रही थीं। फिर भी जीत का अंतर 10 हजार वोट से कम रहा था।

मुरैना जिले की ही सुमावली सीट पर कांग्रेस से भाजपा में आए पूर्व मंत्री अदल सिंह कंसाना को टिकट दिया है। यहां की लड़ाई बेहद दिलचस्प है। कंसाना 2018 में कांग्रेस के टिकट पर जीते। उन्होंने भाजपा के अजब सिंह कुशवाह को हराया था। सिंधिया के साथ कंसाना भाजपा में आए तो 2020 में उपचुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े कुशवाह ने उन्हें हरा दिया था। हार का अंतर दस हजार से कम वोट का था।

भिंड में गोहद (अजा) में सिंधिया खेमे को झटका लगा है। सिंधिया के साथ भाजपा में आए रणवीर जाटव 2020 के उपचुनाव में अपनी सीट कायम नहीं रख सके थे। अब भाजपा ने भाजपा अजा मोर्चा के बड़े नेता और पूर्व मंत्री लालसिंह आर्य पर फिर भरोसा जताया है। आर्य इस सीट पर 2013 में विधायक रहे हैं और राज्यमंत्री भी रहे थे।

शिवपुरी की पिछोर सीट पर भाजपा ने प्रीतम लोधी को टिकट दिया है। दिलचस्प बात यह है कि ब्राह्मणों और कथावाचकों पर टिप्पणी करने को लेकर प्रीतम लोधी को पार्टी से निकाल दिया गया था। उमा भारती के करीबी लोधी की वापसी कुछ ही महीने पहले भाजपा में हुई है। 2018 में लोधी इसी सीट पर भाजपा के टिकट से चुनाव लड़े थे और सिर्फ 2675 वोट से हारे थे। 2003 में यशोधरा राजे सिंधिया यहां से जीती थी और उसके बाद यह सीट आरक्षित हो गई और तब से कांग्रेस जीत रही है।

गुना जिले की चाचौड़ा विधानसभा सीट पर भाजपा ने प्रियंका मीणा को उम्मीदवार बनाया है। भाजपा की ममता मीणा ने 2013 में जीत हासिल की थी। 2018 में उन्हें कांग्रेस के लक्ष्मण सिंह ने 9797 वोट से हराया था। प्रियंका छह महीने पहले ही भाजपा में आई हैं। उनके पति भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी हैं। काफी कम समय में प्रियंका ने चाचौड़ा में लोकप्रियता हासिल की है।

अशोकनगर जिले की चंदेरी सीट पर भाजपा ने 2003 में विधायक रहे जगन्नाथ सिंह रघुवंशी को टिकट दिया है। खास बात यह है कि 2013 से यह सीट कांग्रेस के पास है। 2018 में कांग्रेस के गोपाल सिंह चौहान (डग्गी राजा) यहां से सिर्फ 4175 वोट से जीते थे।

सागर जिले की बंडा सीट पर भाजपा ने वीरेंद्र सिंह लम्बरदार के तौर पर नया चेहरा पेश किया है। यह सीट लंबे समय से कांग्रेस के पास रही है। 1998 से इस सीट पर एक बार भाजपा तो एक बार कांग्रेस को जीत मिल रही है। 2018 में कांग्रेस के तरबार सिंह (बंटू भैया) ने अच्छी मार्जिन के साथ यहां जीत हासिल की थी।

छतरपुर जिले की महाराजपुर सीट पर भाजपा ने कामाख्या प्रताप सिंह पर भरोसा जताया है। यह क्षेत्र भी 1998 के बाद से एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस को जीत दिला रहा है। 2018 में भाजपा के मानवेंद्र सिंह इस सीट पर कांग्रेस के नीरज दीक्षित से 14 हजार वोट से हारे थे।

छतरपुर सीट पर भाजपा ने ललिता यादव को उम्मीदवार बनाया है। ललिता यादव यहां से 2008 और 2013 में विधायक रही हैं। 2018 में कांग्रेस के आलोक चतुर्वेदी ने यहां पर भाजपा की अर्चना गुड्डू सिंह को 3495 वोट से हराया था।

दमोह जिले की पथरिया सीट से भाजपा ने पूर्व विधायक लखन पटेल पर भरोसा किया है। भाजपा 1998 से इस सीट पर अजेय बनी हुई थी। 2018 में जरूर पटेल को बसपा की राम बाई ने 2205 वोट से हराया। पटेल 2013 में विधायक थे।

पन्ना जिले की गुन्नौर (अजा) सीट से भाजपा ने राजेश कुमार वर्मा को उम्मीदवार बनाया है। 2008 में राजेश कुमार वर्मा यहां से विधायक थे। 2013 में उनका टिकट कटा और 2018 में उन्हें 1984 वोट से हार का सामना करना पड़ा था।

सतना जिले की चित्रकूट सीट से भाजपा ने एक बार फिर पूर्व विधायक सुरेंद्र सिंह गहरवार को उम्मीदवार बनाया है। गहरवार 2008 में यहां विधायक थे। 2013 और 2018 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। पिछले चुनाव में हार का अंतर 10198 वोट रहा था।

अनुपपूर जिले की पुष्पराजगढ़ (अजजा) सीट से भाजपा ने नए चेहरे हीरासिंह श्याम को टिकट दिया है। दो चुनाव से भाजपा को यहां सिर्फ हार ही मिली है। 2008 में जरूर भाजपा के सुदामा सिंह ने 1440 वोट से यहां जीत हासिल की थी।

कटनी जिले की बड़वारा (अजजा) सीट पर धीरेंद्र सिंह को उम्मीदवार बनाया है। 1990 से इस सीट पर भाजपा को जीत मिल रही थी और यह सिलसिला 2018 में टूटा, जब कांग्रेस के विजयराघवेंद्र ने भाजपा के पूर्व मंत्री मोती कश्यप को 20 हजार से अधिक वोट से हराया था।

जबलपुर जिले की बरगी सीट से नीरज ठाकुर को उम्मीदवार बनाया है। 2003 से यह सीट भाजपा के पास ही थी, जो 2018 में कांग्रेस के संजय यादव ने प्रतिभा सिंह से छीन ली थी।

जबलपुर पूर्व में अंचल सोनकर को टिकट दिया गया है। 2018 में लखन घनघोरिया ने सोनकर को ही 35 हजार वोट से हराया था। 2013 में सोनकर यहां से विधायक रहे हैं।

डिंडौरी की शाहपुरा (अजजा) सीट पर पूर्व मंत्री ओमप्रकाश धुर्वे भाजपा के उम्मीदवार होंगे। 2013 में धुर्वे यहां से विधायक रहे हैं और पिछले चुनाव में उन्हें कांग्रेस के भूपेंद्र मरावी ने करीब 34 हजार वोट से हराया था।

मंडला जिले की बिछिया (अजजा) सीट पर भाजपा ने डॉ. विजय आनंद मरावी को टिकट दिया है। 2003 से इस सीट पर एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है।

बालाघाट जिले की बैहर (अजजा) सीट पर भाजपा ने भगत सिंह नेताम को उम्मीदवार बनाया है। परंपरागत रूप से यह सीट कांग्रेस की रही है। हालांकि, 1993, 1998 और 2008 में भाजपा ने यह सीट जीती थी। 2013 और 2018 में कांग्रेस ने यहां आसान जीत हासिल की। 2018 में कांग्रेस के संजय उइके ने भाजपा की अनुपमा नेताम को करीब 17 हजार वोट से हराया था।

बालाघाट जिले की लांजी सीट पर भाजपा ने राजकुमार कर्राये को टिकट दिया है। 2013 से यहां कांग्रेस की हीना कावरे विधायक हैं। उन्होंने रमेश भटेरे को हराकर विधायकी हासिल की थी, जो 2008 में यहां विधायक थे।

सिवनी जिले की बरघाट (अजजा) सीट पर पूर्व विधायक कमल मस्कोले पर भरोसा जताया है। 2008 और 2013 में यहां से विधायक रहे कमल का टिकट पिछले चुनावों में काट दिया गया था और कांग्रेस ने आसान जीत हासिल की थी।

नरसिंहपुर जिले की गोटेगांव (अजा) से महेंद्र नागेश को उम्मीदवार बनाया है। 2003 से ही इस सीट पर एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा की जीत होती रही है। 2018 में कांग्रेस के नर्मदा प्रसाद प्रजापति ने भाजपा के कैलाश जाटव को साढ़े 12 हजार वोट से हराया था।

छिंदवाड़ा जिले की सौंसर सीट पर नानाभाऊ मोहोड़ को उम्मीदवार बनाया है। 1998 से भाजपा के कब्जे वाली इस सीट पर मोहोड़ 2018 में कांग्रेस के विजय चौरे से 20 हजार वोट से हारे थे।

छिंदवाड़ा जिले की पांढुर्णा (अजजा) सीट से प्रकाश उइके को उम्मीदवार बनाया है। दस साल से यह सीट कांग्रेस के पास है। नीलेश उइके यहां से विधायक है।
बैतूल जिले की मुल्ताई में भाजपा ने चंद्रशेखर देशमुख को उम्मीदवार बनाया है। 2013 में विधायक रहे देशमुख का टिकट 2018 में काट दिया गया था। उस समय कांग्रेस के सुखदेव पांसे ने भाजपा के राजा पवार को 12 हजार वोट से हराया था।

बैतूल जिले की भैंसदेही (अजजा) सीट से भाजपा ने पूर्व विधायक महेंद्र सिंह चौहान पर भरोसा किया है। चौहान को 2018 में कांग्रेस के धरमू सिंह ने तीस हजार वोट से हराया था। चौहान 2013 में यहां से विधायक रहे थे।

भोपाल उत्तर विधानसभा सीट पर भाजपा ने भोपाल के पूर्व महापौर आलोक शर्मा को उतारा है। यहां चार बार से कांग्रेस के आरिफ अकील विधायक हैं। 2008 में आलोक शर्मा ने इस सीट पर किस्मत आजमाई थी, लेकिन उन्हें चार हजार वोट से हार का सामना करना पड़ा था।

भोपाल मध्य से पूर्व विधायक ध्रुव नारायण सिंह को उम्मीदवार बनाया है। सिंह 2008 में यहां से विधायक थे। शहला मसूद हत्याकांड में नाम आने की वजह से उनका टिकट कटा था। उसके बाद 2013 में सुरेंद्र नाथ सिंह यहां से भाजपा विधायक बने और 2018 में कांग्रेस के आरिफ अकील ने उनसे यह सीट छीन ली थी।

देवास जिले की सोनकच्छ (अजा) सीट से भाजपा ने राजेश सोनकर को उम्मीदवार बनाया है। सोनकर इससे पहले इंदौर की सांवेर विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और जीते भी थे। फिलहाल कांग्रेस से भाजपा में आए तुलसी सिलावट सांवेर से विधायक हैं। सोनकर को राजेंद्र वर्मा की जगह टिकट दिया गया है, जो 2013 में सोनकच्छ से विधायक थे। 2018 में पूर्व मंत्री सज्जनसिंह वर्मा ने वर्मा को दस हजार वोट से हराया था।

खरगोन जिले के महेश्वर (अजा) से राजकुमार मेव को उम्मीदवार बनाया है। मेव 2013 में विधायक बने थे, लेकिन 2018 में उनका टिकट कटा था। तब उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और दूसरे नंबर पर रहे थे। कांग्रेस की विजयलक्ष्मी साधौ इस समय यहां से विधायक हैं, जिन्होंने करीब 36 हजार वोट से जीत हासिल की थी।

खरगोन जिले की कसरावद सीट से आत्माराम पटेल को उम्मीदवार बनाया है। 2008 में आत्माराम पटेल यहां से विधायक थे। 2013 और 2018 में वह चुनाव हारे। पिछले चुनाव में कांग्रेस के सचिन यादव ने उन्हें साढ़े पांच हजार वोट से हराया था।

अलीराजपुर (अजजा) सीट से नागर सिंह चौहान को उम्मीदवार बनाया है, जो 2008 और 2013 में विधायक रहे थे। 2018 में करीब 22 हजार वोट से उन्हें कांग्रेस के मुकेश रावत ने हराया था।

झाबुआ (अजजा) से भाजपा ने भानू भूरिया को उम्मीदवार बनाया है। 2013 और 2018 में यह सीट भाजपा के पास थी। गुमान सिंह डामोर के सांसद बनने के बाद सीट खाली हुई तो कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ने यह सीट 2019 के उपचुनाव में भाजपा से छीन ली। इस सीट पर कांग्रेस और भाजपा में कड़ा मुकाबला रहा है।

झाबुआ जिले की पेटलावद (अजजा) सीट पर भाजपा ने पूर्व सांसद दिलीपसिंह भूरिया की बेटी और पूर्व विधायक निर्मला भूरिया पर भरोसा किया है। 2018 में निर्मला भूरिया सिर्फ पांच हजार वोट के अंतर से चुनाव हारी थी। इस बार उनसे उम्मीद है कि वह सीट दोबारा भाजपा की झोली में डालेंगी।

धार जिले की कुक्षी (अजजा) सीट पर भाजपा ने जयदीप पटेल पर भरोसा किया है। पिछले 15 साल से यह सीट कांग्रेस के पास है। इस बार नये चेहरे के तौर पर जयदीप पटेल की इंट्री हुई है। पिछला चुनाव कांग्रेस ने यहां करीब 63 हजार वोट से जीता था।

धार जिले की धरमपुरी (अजजा) सीट पर पूर्व विधायक कालू सिंह ठाकुर को उम्मीदवार बनाया है। ठाकुर 2013 में यहां विधायक रहे हैं। पिछले चुनाव में ठाकुर का टिकट कटा और भाजपा ने यह सीट करीब 14 हजार वोट से गंवा दी थी।

इंदौर जिले की राऊ सीट से भाजपा ने इंदौर विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष मधु वर्मा को उतारा है। यह सीट प्रतिष्ठा की मानी जाती है। पूर्व मंत्री जीतू पटवारी यहां पर दस साल से विधायक हैं। उससे पहले यह सीट भाजपा के जीतू जिराती के पास थी, जो 2013 में इस सीट पर हारे थे। मधु वर्मा भी यहां 2018 में हार चुके हैं।

उज्जैन की तराना (अजा) सीट से ताराचंद गोयल को उतारा है। परंपरागत रूप से यह सीट भाजपा के पास ही रही थी। 2018 में अनिल फिरोजिया यहां हारे और 2019 में लोकसभा चुनाव जीते। कांग्रेस के महेश परमार यहां ताकतवर हैं और महापौर के चुनावों में भी उन्होंने भाजपा के उम्मीदवार को कड़ी टक्कर दी थी।

उज्जैन की ही घाटि्टया (अजा) सीट पर सतीश मालवीय को टिकट दिया है। 2013 में मालवीय यहां से विधायक थे। 2018 में कांग्रेस से भाजपा में आए प्रेमचंद गुड्डू के बेटे को टिकट दिया था और वह हारे थे। रामलाल मालवीय ने अजित प्रेमचंद गुड्डू को पांच हजार से कम वोट से हराया था। भाजपा को यहां उम्मीद नजर आ रही है।

BJP ने क्यों किया मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ के उम्मीदवारों का ताबड़तोड़ एलान?

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा ने अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है। मध्य प्रदेश की 39 और छत्तीसगढ़ की 21 विधानसभा सीटों पर पार्टी ने प्रत्याशी घोषित कर दिए गए है। केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक के एक दिन बाद ही सूची जारी कर भाजपा ने इन विधानसभा चुनाव में बढ़त बनाने की कोशिश की है। पार्टी ने उन सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं जहां कांग्रेस के कद्दावर नेताओं का कब्जा है। इसमें भी ज्यादातर वो सीटें हैं, जहां भाजपा लगातार दो या तीन बार चुनाव हार रही है। ऐसा पहली बार हुआ है कि भाजपा ने चुनाव की घोषणा से पहले ही उम्मीदवारों का एलान किया है।

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की ये सभी वो सीटें हैं जहां वर्तमान में कांग्रेस का कब्जा है। आंतरिक सर्वे में भी इन सीटों पर पार्टी की स्थिति ठीक नहीं पाई गई थी। पार्टी की कोशिश है कि उम्मीदवारों के नामों का एलान पहले करने से उन्हें तैयारी करने का मौका मिलेगा। इससे इन सीटों पर जीतने की संभावना बढ़ सकती है। कांग्रेस के गढ़ कहे जाने वाली इन सीटों को भाजपा ने आकांक्षी सीट नाम दिया है।

मध्य प्रदेश की पहली सूची में 2018 में चुनाव हारे 14 चेहरे को फिर से मौका दिया गया है। इनमें चार मंत्री ललिता यादव, लालसिंह आर्य, ओम प्रकाश धुर्वे और नाना भाऊ मोहोड़ शामिल है। एमपी की पहली सूची में सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर एक पूर्व विधायक रणवीर जाटव का टिकट कट गया है। जाटव 2018 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे। उपचुनाव में वे भाजपा से चुनाव लड़े थे। लेकिन वे हार गए थे।

छत्तीसगढ़ की 21 सीटों में 10 सीटें अनुसूचित जनजाति की है। एक सीट अनुसूचित जाति वर्ग को दी गई है। पाटन सीट से सांसद विजय सिंह बघेल को मैदान में उतारा गया है। इस सीट से प्रदेश के सीएम भूपेश बघेल विधायक है। दोनों नेताओं के बीच भतीजे-काका का रिश्ता है। पार्टी ने अपनी पहली सूची में पांच महिला उम्मीदवारों को मौका दिया है।

फरवरी से तैयारियों में जुट गई थी पार्टी
मध्य प्रदेश में कुल 103 आकांक्षी सीटें हैं जहां पिछली बार बीजेपी चुनाव हार गई थी। इसके अलावा 22 ऐसी सीटें हैं, जिस पर पार्टी का जीत का मार्जिन एक हजार से कम था। जबकि छत्तीसगढ़ की 25 आकांक्षी सीट है। जहां कांग्रेस की स्थिति मजबूत है। इन सीटों पर हर बार भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ता है।

अमर उजाला से चर्चा में पार्टी के वरिष्ठ नेता कहा कि, इन हारी हुई सीटों को जीतने के लिए भाजपा ने फरवरी माह से रणनीति बनाना शुरु कर दिया था। संगठन ने इन सीटों पर हारे हुए बूथों को जीतने से लेकर प्रत्याशियों के चयन की एक्सरसाइज पूरे छह माह तक की। फिर इसकी विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गई। इसमें क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए उम्मीदवार चयन किया गया। दोनों राज्यों के संगठनों ने यह अपनी अपनी रिपोर्ट बुधवार को केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में रखी थी। इसके बाद यह पहली सूची गुरुवार को जारी की गई।

आकांक्षी सीटों पर जीत के लिए ये है प्लान
दोनों राज्यों में कांग्रेस के प्रभाव वाली सीटों को जीतने के लिए बीजेपी गुजरात फॉर्मूला यानी हर बूथ पर 51 फीसदी वोट शेयर प्राप्त करने और उत्तर प्रदेश के फॉर्मूले और योजनाओं के जरिए जनता से कनेक्ट होने पर काम कर रही है, जिससे इन सीटों पर बीजेपी को जीत मिल सके। जिस तरीके से साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने अमेठी में राहुल गांधी को हराया था। उसी तर्ज पर अब मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की आकांक्षी सीटों पर बीजेपी कुछ कांग्रेस के दिग्गजों को हराने की रणनीति पर काम कर रही है। इन सीटों पर बीजेपी कई दिग्गज नेता उतारकर कांग्रेस को टक्कर देने के लिए माहौल तैयार करेगी। साथ ही, कांग्रेस नेताओं ने विकास के लिए क्या काम किए हैं, इस तरह के विषय पर स्पेशल कैंपेन चलाएगी।