चीन ने भूटान की पारंपरिक सीमाओं का उल्लंघन करते हुए देश में 22 गांव बसा लिए हैं। यह खुलासा हुआ है एक हालिया रिसर्च रिपोर्ट में। इसमें दावा किया गया है कि चीन के इन 22 गांवों में से 19 पूर्ण रूप से रिहायशी गांव हैं, जबकि तीन कम बसावट वाले क्षेत्र हैं। इन्हें बाद में छोटे शहरों में बदला जाएगा। चौंकाने वाली बात यह है कि इन 22 गांवों में से सात में निर्माण कार्य शुरू होने का खुलासा 2023 की शुरुआत में हो गया था। यानी चीन ने बीते डेढ़ साल में इन कब्जे वाले इलाकों में तेजी से निर्माण कार्य को बढ़ाया है।
तिब्बती विश्लेषकों के नेटवर्क टरकोइस रूफ (Turquoise Roof) की इस ताजा रिपोर्ट में हिमालयी क्षेत्र के बदलते भू-राजनीतिक क्षेत्र को लेकर कई चौंकाने वाले दावे किए गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने 2016 में भूटान के क्षेत्र के तौर पर जाने जाने वाले अपनी सीमा के पार वाले क्षेत्रों में निर्माण कार्य शुरू कर दिया था। विदेशी जानकारों और सरकारों को इसकी जानकारी लगने में पांच साल लग गए।
इस रिपोर्ट में कई नक्शे भी शामिल किए गए हैं, जिनके जरिए चीन के कब्जों के बारे में विस्तार से बताया गया है। इनमें कहा गया है कि चीन ने इन 22 गांवों में 752 रिहायशी ब्लॉक बनाए हैं, जिनमें 2284 परिवारों के रहने की व्यवस्था की गई है। इन क्षेत्रों में अधिकारियों, निर्माण कार्य में लगे कर्मियों, सीमा पुलिस और सेना के करीब 7000 लोगों को बसाए जाने की तैयारी है। इन गांवों के निर्माण के लिए चीन ने भूटान का करीब 825 वर्ग किमी इलाका कब्जा लिया है।
गौर करने वाली बात यह है कि यह गांव काफी ढलान वाली इलाके और ऊंची घाटी वाले क्षेत्रों में बनाए गए हैं, जिसकी समुद्र से ऊंचाई 3832 मीटर तक है। चीन का बसाया सबसे ऊंचा गांव मेनचुमा समुद्री से करीब 4670 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
भूटान की कमजोरी का फायदा उठा रहा चीन
चीन की तरफ से भूटान के क्षेत्र पर कब्जे की एक बड़ी वजह थिंपू की छोटी सेना और कमजोर रक्षा तैयारियां भी बताई जाती हैं। भूटान के पास इस वक्त सिर्फ 8000 सैनिक हैं, जो कि रक्षा के मकसद से तैनात किए गए हैं। ऐसे में एक ताकतवर पड़ोसी के सामने भूटान की स्वायत्ता खतरे में पड़ गई।
भूटान और चीन के बीच सीमा विवाद 1951 के तिब्बत समझौते का नतीजा है। इसके चलते भूटान और चीन करीब 477 किलोमीटर की सीमा साझा करते हैं। चीन और भूटान के बीच इस सीमा पर अब तक कोई समझौता नहीं हो सका है।
डोकलाम पर कब्जे पर चीन की नजर
चीन ने भूटान में जिन गांवों का निर्माण किया है, उनकी लोकेशन काफी अहम है। दरअसल, चीन की तरफ से यह गांव पश्चिम और पूर्वोत्तर में स्थापित किए गए हैं। इनमें से आठ गांव पश्चिमी भूटान में हैं, जिसे 1913 में तत्कालीन भूटान के शासक 13वें दलाई लामा द्वारा भूटान को सौंप दिया गया था। इन गांवों के जरिए चीन की पश्चिम में अहम कूटनीतिक लक्ष्य पर भी नजर है। यह क्षेत्र है 89 किमी का डोकलाम का पठार। डोकलाम पठार पर कब्जा भारत के साथ तनाव के बीच चीन को बड़ा कूटनीतिक फायदा देगा। डोकलाम की दक्षिणी चोटी उसे भारत के लिए कूटनीतिक तौर पर अहम सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर नजर रखने में मदद करेगी। यह क्षेत्र ही भारतीय मुख्य क्षेत्र को पूर्वोत्तर से जोड़ता है। अगर चीन इस क्षेत्र पर कब्जा कर लेता है, तो भारत को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
गौरतलब है कि डोकलाम का पठार वही क्षेत्र है, जिसे लेकर 2017 में भारत और चीन की सेनाएं आमने सामने थीं। भारत-चीन और भूटान के ट्राई-जंक्शन पर पड़ने वाले डोकलाम को चीन अपना बताया है। हालांकि, भारत इसे चीन का हिससा नहीं मानता और 2017 में उसकी निर्माण की कोशिशों को रोकने के लिए भारत ने क्षेत्र में सेना तैनात कर दी थी। दोनों देशों के बीच करीब दो महीनों तक चले तनाव के बाद चीन ने अपनी सेना को वापस बुला लिया था।
भूटान को इलाका कब्जाने के बाद उसे झूठी पैकेज डील देना चाहता है चीन
चीन की तरफ से जो गांव बसाए गए हैं, वह पूर्वोत्तर भूटान में स्थित हैं, जो कि कूटनीतिक तौर पर भारत के लिए खतरा नहीं हैं। हालांकि, चीन ने 1990 तक इन्हें भूटान के नक्शे पर दिखाने के बाद फिर अपने नक्शे पर दिखाना शुरू कर दिया। यहां एक चौंकाने वाली बात यह है कि आखिर चीन को भारत के खिलाफ कूटनीतिक फायदा न मिलने के बावजूद उसने पूर्वोत्तर भूटान के गांवों पर कब्जा क्यों किया? टरकोइस रूफ की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन इन इलाकों को भूटान के पश्चिम में स्थित डोकलाम पठार पर कब्जा करने के इरादे से रख रहा है। वह भूटान को पैकेज डील देना चाहता है, जिसके तहत थिंपू इन गांवों को अपने पास रख सकता है, लेकिन उसे डोकलाम पठार चीन को सौंपना पड़ सकता है। चीन ने 1990 में ही सीमा विवाद खत्म करने के लिए इससे जुड़ा एक प्रस्ताव भूटान को सौंपा था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने भूटान के कब्जाए क्षेत्रों में जिन गांवों को बसाया है, वह शायद ही थिंपू को वापस मिल पाएं। हालांकि, डोकलाम को लेकर भारत और भूटान के बीच कई समझौते हैं, जिसके तहत भूटान अकेले पश्चिमी क्षेत्र, खासकर ट्राई-जंक्शन से जुड़े क्षेत्र को चीन को सौंपने का फैसला नहीं कर सकता। हालांकि, भूटान के सुरक्षा गारंटर के तौर पर भारत को चीन की तेज होती निर्माण गतिविधियों और उसके पीछे के एजेंडे का जल्द हल खोजना होगा।
In 2016, China began constructing a village in territory generally understood to be part of Bhutan. It was five years before the existence of that village was discovered by outside observers or noticed by foreign governments.
There are now 22 such villages and settlements consisting of some 752 residential blocks divided into an estimated 2,284 residential units, each suitable for one family-sized unit. To fill these units, the 🇨🇳 authorities have relocated or are currently relocating approximately 7,000 people to these previously unpopulated areas of Bhutan, together with an unknown number of officials, construction workers, border police and military.
To construct these villages, China has annexed approximately 825 sq km of land that was formerly within Bhutan, constituting just over 2% of Bhutan’s territory. At least two new sites within Bhutan have been cleared for construction, many of the existing villages are being expanded, bids have been sought by the 🇨🇳 government for the construction of at least one other village, and the 🇨🇳 authorities have announced that three of the existing villages are going to be upgraded to towns.
There is no sign that Bhutan can do anything about it — or that China will face any costs for doing so.