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चीन ने ताज़िकिस्तान में बनाया गुप्त सैन्य अड्डा, भारत की टेंशन बढ़ी : रिपोर्ट

1999 में हुए इंडियन एयरलाइंस के विमान IC-814 के कंधार में हाईजैक होने के लगभग दो साल बाद प्रोजेक्ट आयनी शुरू किया था। इस प्रोजेक्ट के तहत अफगानिस्तान के पड़ोसी देश ताजिकिस्तान में भारत देश के बाहर अपना पहला एयरबेस खोलने की तैयारी कर रहा था। वहीं, अब भारत के लिए चिंता की बात यह है कि चीन ने ताजिकिस्तान में एक पूरा सीक्रेट आर्मी बेस तैयार कर लिया है। चीन का यह आर्मी बेस पाकिस्तान के कब्जे वाले पीओके के नजदीक स्थित है। यहीं से चीन का बीआरआई प्रोजेक्ट के तहत चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) गुजरता है।

आतंकी खतरों से निपटने के लिए भारत ने शुरू किया था एयर बेस
पिछली तालिबान सरकार में पाकिस्तानी आतंकवादियों ने इंडियन एयरलाइंस का विमान हाईजैक किया था, जिसे बाद में अफगानिस्तान के कंधार ले जाया गया था। इस घटना के लगभग दो साल बाद, आतंकी खतरों से निपटने के लिए भारत ने देश के बाहर अपना पहला एयरबेस खोलने के लिए ताजिकिस्तान में आयनी प्रोजेक्ट शुरू किया था। 2002 में, विदेश मंत्रालय और खुफिया विभाग ने अयनी प्रोजेक्ट शुरू किया था। बाद के सालों में इसे भारतीय वायु सेना (IAF) बेस के रूप में विकसित किया गया, गिसार मिलिट्री एयरोड्रोम (GMA) के रूप में जाना जाता है। यह बेस ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे से कुछ ही दूर स्थित आयनी गांव में है और भारत और ताजिकिस्तान संयुक्त रूप से इसका प्रबंधन करते हैं। हालांकि, भारत ने ताजिकिस्तान में अपने एयरबेस को काफी लो प्रोफाइल रखा है और बेहद कम लोगों को इस एयरबेस के बारे में जानकारी है।

वाखान कॉरिडोर के नजदीक है अयनी एयरबेस
साल 2022 में जब फिर से काबुल पर तालिबान काबिज हुए थे, तो भारत के ताजिकिस्तान स्थित इसी एयरबेस से भारतीय और नेपाली नागरिकों को निकालने के लिए हवाई सेवाएं शुरू की गईं थीं। अयनी एयरबेस को 2005-06 के आसपास शुरू किया गया। 2002 और 2010 के बीच भारत ने एयर बेस के नवीनीकरण, रनवे को 3200 मीटर बढ़ाने और एडवांस नेविगेशनल और एयर डिफेंस इक्विपमेंट लगाने के लिए 70 मिलियन डॉलर का खर्च किया था। 2014 के बाद भारत ने अयनी एयरबेस पर सुखोई 30MKI जैसे लड़ाकू विमानों की अस्थायी तौर पर तैनाती भी की थी। लेकिन बाद में इस एयरबेस को बंद कर दिया गया। शीत युद्ध के दौरान अयनी क्षेत्र में सोवियत सेना के लिए प्रमुख अड्डा था। वहीं भारत के लिए अयनी एयरबेस का अपना रणनीतिक महत्व है, क्योंकि यह वाखान कॉरिडोर के नजदीक है, जो अफगानिस्तान को चीन और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (गिलगित-बाल्टिस्तान) क्षेत्र से जोड़ता है। हालांकि भारतीय वायु सेना अभी भी ताजिक सैन्य कर्मियों के लिए दक्षिण ताजिकिस्तान के कुर्गन टेप्पा में एक छोटा सा अस्पताल चलाती है।

चीन ने बना लिया गुप्त सैन्य अड्डा
वहीं अब रिपोर्ट्स आई हैं कि चीन ने अफगानिस्तान की सीमा से लगे मध्य एशियाई देश ताजिकिस्तान में एक पूर्ण सैन्य अड्डा बना लिया है। हालांकि चीन और ताजिकिस्तान दोनों ने हाल ही में ताजिक-अफगान सीमा के पास किसी गुप्त सैन्य अड्डे के होने से इनकार किया है। चीनी का यह सैन्य अड्डा 13,000 फीट की ऊंचाई पर एक सुदूर पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है, जिसमें वॉच टावर भी हैं और यहां चीन के सैनिकों की तैनाती भी है। सैटेलाइट तस्वीरों में खुलासा हुआ है कि सैन्य अड्डे तक पहुंचने के लिए चीन ने सड़क भी बनाई है। कहा जा रहा है कि अगस्त 2021 में अफगानिस्तान में हालात बिगड़ने के बाद से चीन इसका इस्तेमाल कर रहा है। सूत्रों के मुताबिक अफगानिस्तान में हुए घटनाक्रम के बाद चीन ने ताजिकिस्तान के आंतरिक मंत्रालय के साथ मिलकर यहां एक संयुक्त आतंकवाद विरोधी फैसिलिटी बनाने की बात कही थी। इसी के तहत चीन ने 2016 में ताजिकिस्तान के साथ एक सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर भी किए थे। लेकिन चीन ने आतंकवाद विरोधी फैसिलिटी बनाने की बजाय यहां गुप्त सैन्य अड्डे का निर्माण कर लिया।

चीन के बहकावे में है ताजिकिस्तान
पिछले कुछ सालों से चीन और ताजिकिस्तान एक-दूसरे के नजदीक आ रहे हैं। चीन ताजिकिस्तान को गोला-बारूद और तकनीक भी मुहैया करा रहा है। वहीं ताजिकिस्तान सैन्य गतिविधियों के लिए ज़मीन देकर और चीनी को पर्यटन और आईटी क्षेत्र में भागीदारी की अनुमति देकर इसका अहसान चुका रहा है। ताजिकिस्तान इन दिनों पूरी तरह से चीन के बहकावे में है। हाल ही में चीनी आतंकवाद विरोधी नीति के अनुसार, ताजिक अधिकारियों ने पिछले महीने हिजाब को गैरकानूनी घोषित कर दिया। सैकड़ों मस्जिदें बंद कर दी गईं। आदेश जारी किए गए कि इमामों द्वारा दी जाने वाली शिक्षाएं राज्य द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अंतर्गत होनी चाहिए और नाबालिगों को बिना अनुमति के पूजा स्थलों में प्रवेश की आज्ञा नहीं है।

चीन और ताजिकिस्तान के बीच 477 किलोमीटर लंबी सीमा
हाल में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग दुशांबे गए थे, जहां उन्होंने चीन के फंड से तैयार सरकारी सुविधाओं का उद्घाटन किया। जिसमें एक राष्ट्रपति भवन और वाशिंगटन में अमेरिकी कैपिटल की तर्ज पर बनाया गया एक नया संसद भवन भी शामिल है। दोनों देश ताजिकिस्तान के गोर्नो बदख्शां स्वायत्त क्षेत्र और चीन के झिंजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र के बीच 477 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं। सोवियत शासन के तहत, सोवियत समाजवादी ताजिक गणराज्य, जिसकी सीमाएं 1920 के दशक में खींची गई थीं, के चीन के साथ सीमित संबंध थे। उस दौरान चीन और ताजिकिस्तान के बीच सीमाएं सील कर दी गई थी। 1980 के दशक के अंत में ही सीमा पार व्यापार शुरू हुआ और धीरे-धीरे बढ़ा। हालांकि ताजिकिस्तान गणराज्य और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के बीच राजनयिक संबंध 4 जनवरी 1992 को स्थापित किए गए थे। यहां तक कि ताजिक गृह युद्ध (1992-97) के दौरान दोनों देशों के बीच बातचीत सीमित थी। युद्ध के बाद द्विपक्षीय संबंध धीरे-धीरे प्रगाढ़ हुए, क्योंकि 2000 के दशक के मध्य से निवेश, लोन और आपसी द्विपक्षीय वार्ताओं ने गति पकड़ी। दोनों देशों ने पहले शंघाई फाइव की छत्रछाया में और बाद में शंघाई सहयोग संगठन के तहत बातचीत की।

2006 में, ताजिक सरकार को चीनी सरकार की तरफ से अपना पहला बड़ा लोन मिला और चीनी कंपनियों ने यहां पहली बड़ी परियोजनाएं शुरू कीं। एक परियोजना में ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे को देश के उत्तरी क्षेत्र से जोड़ने वाली एक आवश्यक सड़क को फिर से आवागमन के लिए बहाल करना था। जबकि अन्य दो में पावर ट्रांसमिशन लाइनों का निर्माण शामिल था, जिसका ठेका चीनी कंपनी टेबियन इलेक्ट्रिक अपरेटस के पास था। 2007 में, चीनी कंपनी जिजिन माइनिंग ने खनन का ठेका प्राप्त किया और ताजिकिस्तान के उत्तरी सुघद क्षेत्र में एक सोने की खदान का 75 फीसदी हिस्सा हासिल किया।

ताजिकिस्तान में लगभग 400 चीनी कंपनियां
2010 के दशक में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव शुरू होने पर दोनों के बीच द्विपक्षीय बातचीत में तेजी आई। सितंबर 2020 में ताजिकिस्तान में फेडरेशन ऑफ ओवरसीज चाइनीज के सचिव ने एक साक्षात्कार में बताया था कि आज ताजिकिस्तान में लगभग 400 चीनी सरकारी और निजी कंपनियां सक्रिय हैं। कई चीनी प्रवासी श्रमिक ताजिकिस्तान में रहते हैं। चीनी मीडिया के अनुसार, ताजिकिस्तान BRI में शामिल होने वाले पहले देशों में से एक था। सूत्रों ने बताया कि 2019 में पहली बार खुलासा हुआ था कि चीन ने ताजिकिस्तान के पूर्वी गोर्नो बदख्शां क्षेत्र में एक सैन्य अड्डा बना रखा है। न तो चीन और न ही ताजिकिस्तान ने इस अड्डे के अस्तित्व या ताजिकिस्तान में चीनी सैनिकों की मौजूदगी को स्वीकार किया। वहीं अक्तूबर 2021 में, ताजिक संसद ने ताजिकिस्तान की अफगानिस्तान सीमा के नजदीक बदख्शां क्षेत्र में एक और चीनी अड्डे के निर्माण को मंजूरी दे दी। मीडिया में कहा गया कि इस अड्डे पर ताजिक सैनिक तैनात होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

उइगरों के हालात पर ताजिकिस्तान चुप
2015 में, ताजिक सरकार ने इस्लामिक रेनेसॉन्स पार्टी (एकमात्र विपक्षी पार्टी) पर प्रतिबंध लगा दिया। मस्जिद में जाना और सार्वजनिक क्षेत्र में धर्म की अभिव्यक्ति (जैसे शैक्षणिक और राज्य संस्थानों में दाढ़ी रखना) पर रोक लगाए जाने लगी। चीन और ताजिकिस्तान ने हाल के वर्षों में कुछ संयुक्त सैन्य अभ्यास भी किए हैं और चीनी सरकार ने ताजिकिस्तान को हथियार प्रदान किए हैं। चीन सरकार विभिन्न तरीकों से ताजिकिस्तान की सुरक्षा को मजबूत करने में सक्रिय रही है। झिंजियांग के साथ भौगोलिक निकटता के बावजूद और भले ही ताजिकिस्तान में उइगरों के हालात ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया है, लेकिन चीन के उत्तर-पश्चिम में उइगरों और अन्य मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सामूहिक नजरबंदी को ताजिकिस्तान के मीडिया में कोई तवज्जो नहीं मिलती है।

ताजिकों को बताया तांग राजवंश के वंशज
वहीं चीनी अब रूस पर आरोप लगा रहे हैं कि 19वीं शताब्दी में रूस के जार द्वारा चीनी क्षेत्र पर आक्रमण के कारण ताजिकिस्तान का चीन के साथ क्षेत्रीय विवाद हुआ था। 2010 में, चीन और ताजिकिस्तान ने एक सीमा सीमांकन प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए और ताजिकिस्तान ने चीन को 1,158 वर्ग किलोमीटर वापस कर दिया। वहीं चीनी सरकार का कहना है कि ताजिकिस्तान और अन्य मध्य एशियाई देशों के बीच अंतर यह है कि ताजिक लोग तुर्की नहीं, बल्कि फारसी बोलते हैं, और ताजिक तांग राजवंश के मूल लुशान सोग्डियन के वंशज हैं।