देशभर में रँग और भाषाएँ तक हिन्दू मुस्लिम बन गई हैं,जिसके कारण देश में सांप्रदायिकता काफी बढ़ गई है,और लोग रंगों को धर्मों से जोड़ने लगे हैं,पिछले दिनों में जब से भगवा झण्डा का चलन आम हुआ है उसके बाद से हरे झण्डे को लोग पाकिस्तान का झंडा बताकर माहौल खराब कर रहे हैं।
चाँद तारे वाले हरे रंग के झण्डे पर प्रतिबंध की मांग की गई थी जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टाल दी है। इस मामले में दायर जनहित याचिका जस्टिस एनवी रमना और एस अब्दुल नजीर की पीठ के समक्ष लगाई गई थी, लेकिन पीठ ने कहा कि रोस्टर के मुताबिक पीआइएल मामले उनके यहां नहीं हैं। अब याचिका किसी और पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए लगेगी।
बता दें कि उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष सैयद वसीम रिजवी ने इस झंडे को पाकिस्तान मुस्लिम लीग (कायदे आजम) पार्टी का राजनैतिक झंडा बताते हुए भारत में इस पर रोक लगाने की मांग की है। रिजवी ने अपनी याचिका में कहा है कि आधे चांद और तारे के निशान वाले हरे रंग के झंडे से इस्लाम धर्म का कोई लेना देना नहीं है। उन्होंने कहा कि इस झंडे के फहराए जाने से माहौल भी खराब होता है।
दाखिल याचिका में झंडे के बारे में इतिहास बताते हुए यहां तक कहा गया है कि पैगम्बर मोहम्मद साहब अपने कारवां में सफेद या काले रंग का झंडा प्रयोग करते थे। याचिकाकर्ता का कहना है कि आधे चांद और तारे के निशान वाला यह हरा झंडा 1906 में आजादी से पहले पुरानी मुस्लिम लीग के वकार उल माली व मोहम्मद अली जिन्ना ने इजाद किया था। ये मुस्लिम लीग 15 अगस्त 1947 को खत्म हो गई और उसके बाद पाकिस्तान में इसकी उत्तराधिकारी नयी मुस्लिम लीग पार्टी बनी, जिसका नाम पाकिस्तान मुस्लिम लीग और पाकिस्तान मुस्लिम लीग (कायदे आजम) है।
ये पार्टी पाकिस्तान में इस झंडे को अपने चिन्ह की तरह इस्तेमाल करती है, जिसका भारत में मुसलमान इस्लामिक झंडे की तरह इस्तेमाल करते हैं। इस झंडे को मुस्लिम बहुल इलाके में फहराया जाता है, जिससे कई बार हिन्दू और मुसलमानों के बीच सौहर्द बिगड़ता है। याचिकाकर्ता का कहना है कि हरे झंडे में आधा चांद और तारा कभी भी इस्लामिक प्रथा का हिस्सा नहीं रहा है और और न ही इसका इस्लाम धर्म में कोई महत्व है।