साहित्य

घर का रास्ता!

Harish Yadav
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घर की रहिया/घर का रास्ता!
दोनों तरफ हरे भरे अन्न से लदे खेतों के बीच जाता वो कच्चा सा रास्ता जो हर बारिश में सिर्फ एक लीक बनकर रह जाता है।
सर्दियों में जब ओस की बूंदे उस राह में उगी दूब पर मोतियों सदृश टक जाती है तो उस राह से होकर आते जाते पैर यूं धुल जाते हैं मानों प्रकृति ने हमारे स्वागत में उन्हें तैनात किया है।

गर्मियों में जब सारी घास सूख जाती है, बची घास को पशु चर लेते हैं तब ये रास्ता बारिश की राह ताकता हुआ तमाम वनस्पतियों के बीज, जड़े, जड़ों की गांठें अपने अंदर समेट लेता है कि बारिश की बूंदे धरती को छुएं और ये वनस्पतियां अपने स्वरूप में आकर खिलखिलाएं।

सड़कों पर उग आई घास को घसियारिन घास काटती बातें करती आपको मिल जाएंगी जो आपको देखते ही प्रणाम करेंगी आपका हाल पुंछ लेंगी।


इस राह के किनारे किनारे कुछ पेड़ लगाए हैं जो खेत के कुछ हिस्सों को नुकसान तो पहुंचाते हैं परंतु इनकी छांव में जब राही जुड़ाते हैं, पशु आराम करते हैं, पक्षी अपना नीड़ बनाकर सारा दिन अपनी आवाज में संगीत सुनाते हैं तब लगता है कि वो थोड़ा सा नुकसान इन सारे सुखों पर भारी है।

खेत से फसल जब कट जाती है तब गांव वाले इन खेतों में उग आई घास को चराने के लिए अपने पशु लाते हैं। पशु खेतों में चरते हैं और उनके रखवाले इन पेड़ो के नीचे बैठकर दुनिया जहान की बातें करते हैं संग में आए बच्चे खेलते रहते हैं।

इस राह के किनारे किनारे बरहे बने हुए हैं जिनसे होकर बोरिंग का पानी खेतों में जाता है। इन्हें छूकर बहने वाली हवा गर्मियों में बड़ी सुखदायक लगती है।

हमारे गांव में वाक करने के लिए पार्क की आवश्यकता नहीं पड़ती है इन राहों पर ही घूम लिजिए। वाक और मानसिक सुख दोनों मिल जाएगा।
बड़ी भली लगती हैं गांव की घर को जाती ये राहें!