साहित्य

गोपी की दशा : कान्हा का स्नान….!!देवराज बंसल के लिखे भजन!!

Dev Raj Bansal
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गोपी की दशा
सुबह-सुबह ही उठकर मैंने गैया के धनी निचोड़ी
दूध दिया था कम ही उसने हंडिया भरी थी थोड़ी
तभी मेरा माथा ठनका था
दूध बिलोने लगी थी जब टूट गई है डोरी
अब कैसे अपने कन्हैया को कर आऊंगी माखन चोरी
तभी मेरा माथा ठनका था
अभी उजाला नहीं हुआ है बंद सभी बाजार
कैसे क्या करूं मैं हो गई हूं लाचार
तभी मेरा माथा ठनका था
आज नहीं वह माखन से लिपटा अपना मुख दिखलाइए गा
जब नहीं लटकी हांडी देखेगा लौट तभी वह जाएगा
तभी मेरा माथा ठनका था
जब मैं चुपके से बाहर निकलती तभी भाग बह जाता है
मेरे हाथ में लाठी देखकर वह अति घबराता है
तभी मेरा माथा ठनका था
देव मेरे भाग्य में क्या इतना भी सुख नहीं रहा
कन्हैया मेरी इस दशा को क्यों नहीं है देख रहा
तभी मेरा माथा ठनका था
देवराज बंसल 8800873570

Dev Raj Bansal
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कान्हा का स्नान
आओ सखियों झटपट आओ यशोदा ललना नहला रही
वस्त्र उतारने के लिए उसके बातों में उसे लगा रही
बदन पर पानी फेंका है उसने लगा वह मुस्कुराने
सिर पर पानी जैसे गिरा देखो है लगा चिल्लाने
रोने चिल्लाने की उसकी आवाज यहां तलक है आ रही
साबुन लगाया मुंह पर उसके कहीं आंख में चला ना जाए
कैसे सांस है घुट रही उसकी जिया मेरा घबराए
इस निर्दई को तो देखो है कैसे मुस्कुरा रही
सुकोमल हमारा कान्हा है कठोर है इसके हाथ
बाहें कैसे मरोड़ रही है उसकी कैसी है यह मात्
राम ही बचाए ऐसी दुष्टा से है कैसे उसे रुला रही
पौछ रही है ऐसे उसको जैसे उसमें जान नहीं
हम भी तो ऐसी बनी हुई है जैसे हममें प्राण नहीं
मैं नंद की नंदानी हूं हमको यह बतला रही
जी तो कर रहा है ऐसा बंद करें इस से बतियाना
हमारा भी तो लगता है इन्हीं इसी का है कान्हा
देव हो गया खुश यह देख कर है अब उसको दूध पिला रही
देवराज बंसल
8800873570

Dev Raj Bansal
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तकदीर का लिखारी
किसने लिखी तकदीर मेरी वह कलम कहां से लाया था
उसने स्वयं लिखा है लेख या किसी से लिखवाया था
दिन का ज्वाला था या थी कोई रात अंधेरी
अंधेरे में ही लिख दिया सब दीया नहीं जलाया था
ना जाने कौन गुरु था वह शिष्य था जिसका
तीखी कलम ना की उसने उल्टा उसे चलाया था
कर्म खाता नहीं खोला मेरा उसमें कुछ तो पढ़ लेता
कुछ तो पुण्य भी होगा जिसने मानव जन्म दिलाया था
लिख रहा था जिस कागज पर उस पर स्याही बहा डाली
उल्टी-सीधी रेखाएं खींचकर मेरा हाथ बनाया था
देव चलो सब ऐसा ही था क्या किसी से कहना है
सुनने वाला भी तो नहीं था सुनता जो सुना सुनाया था
देवराज बंसल 8800873570