साहित्य

गाँधी तेरे देश में…..हिंसक बैठे हैं कई कई भेष में…..By – साधना कृष्ण

साधना कृष्ण

Lalganj, Bihār, India
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गाँधी !गाँधी !गाँधी तेरे देश में।
हिंसक बैठे हैं कई कई भेष में।।
जो पहले बेखौफ खून बहाते हैं
औ घड़ियाली आँसू दिखलाते हैं।
मुक्ति मिली ह़ै अंग्रेजों से केवल
असल आजादी हम तलाशते हैं।
पल पल बीत रहा रंज क्लेश में
गाँधी तेरे देश में………………।।
जिस नोटों पर छपते हो आप
उनसे कमाई न होती निष्पाप।
काली कमाई करने वालों का
कटता जीवन ज्यों अभिशाप।
सत्य आदर्श शेष है संदेश में
गाँधी तेरे देश में……………।।
झूठे मक्कार भी तुझको मनाते
स्वार्थहित में तुझे खूब भूनाते।
करते पहले मनमानी मनभर वे
फिर भी तुझको हैं शीश नवाते।
हो मूरत तुम ज्यों श्री गणेश में
गाँधी तेरे देश में……………।।
साधना कृष्ण


साधना कृष्ण
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एक गीत वेदनासिक्त….एक गीत…..
बाँसुरी श्वास का तोड़ कर तू गयी
नेह का इक निशां छोड़ कर तू गयी
हर घड़ी मैं यहाँ मीन बन के तड़पता
सुधियों का दिया ले के चलता रहा
आँसुओं की अगन में जलता रहा
स्वयं ही स्वयं को मैं छलने लगा
ख्वाब का महल तोड़ का तू गयी
बाँसुरी श्वास का……….।
हर घड़ी मैं यहाँ…………।।
इस फरेबी जगत ने रुलाया बहुत
किन्तु अश्रु को मैंने छिपाया बहुत
नींद रुठी नजर से रोज इस तरह
प्रतीक्षा में साँझ से भोर कर गयी
बाँसुरी श्वास का………..।
हर घड़ी मैं यहाँ…………।।
मौन जो मन हुआ स्वर खो गये
कांधें पर हम निज लाश ढो गये
मेघ पावस का बन झमकी बहुत
रिक्त अंतस में शोर कर तू गयी
बाँसुरी श्वास का………..।
हर घड़ी मैं यहाँ………….।।
थकन आई मगर ठहर पाई नहीं
साथ एकाकी के सँवर पाई नहीं
ढुंढता रह गया तू दिखी न कहीं
मुँह ऐसे भला मोड़ कर तू गयी
बाँसुरी श्वास का………..।
हर घड़ी मैं यहाँ…………।।
साधना कृष्ण