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ग़ाज़ा में हालात और अधिक जटिल होते जा रहे हैं, बाइडन प्रशासन और नेतन्याहू सरकार के बीच ग़ज़ा की जंग को लेकर मतभेद : रिपोर्ट

इसराइल को कुछ हथियारों और उपकरणों की सप्लाई रोकने के बारे में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का एलान बहुत से लोगों के लिए हैरान करने वाली बात थी.

अमेरिका सैद्धांतिक तौर पर इसराइल का और ख़ासकर जब वो जंग के हालात से गुजर रहा हो तो उसे समर्थन देता आया है.

लेकिन बाइडन प्रशासन का ये फ़ैसला अमेरिका की इस घोषित नीति को ख़ारिज करती हुई मालूम देती है.

बाइडन ने ये एलान नौ मई के दिन किया. इसे इसराइल के लिए एक सख़्त और साफ़ संदेश के तौर पर देखा जा रहा है कि उसे ग़ज़ा की जंग में अपने तौर-तरीक़े बदलने होंगे.

इतना ही नहीं, इसराइल पर इस बात के लिए भी दबाव है कि रफ़ाह शहर को लेकर उसके जो इरादे हैं, उस पर वो लगाम लगाए.

सात अक्टूबर, 2023 को हमास के हमले के बाद शुरू हुई इसराइल की जवाबी कार्रवाई बड़ी संख्या में फ़लस्तीनी विस्थापित हुए हैं.

इनमें से ज़्यादातर लोगों ने रफ़ाह में पनाह ले रखी है.

बाइडन प्रशासन और इसराइल की बिन्यामिन नेतन्याहू सरकार के बीच ग़ज़ा की जंग को लेकर जो मतभेद हैं, उसकी इंतेहा उस वक़्त देखने को मिली जब राष्ट्रपति बाइडन ने सीएनएन को दिए एक इंटरव्यू में कहा, “रिहाइशी इलाकों पर इन्हीं बमों को बरसाने और अन्य तरीकों के इस्तेमाल के कारण ग़ज़ा में आम लोग मारे जा रहे हैं.”

राष्ट्रपति बाइडन उन्हीं बमों के बारे में बात कर रहे थे जिनकी सप्लाई इसराइल को रोकी गई है.

उन्होंने इसी इंटरव्यू में रफ़ाह पर हमले को लेकर इसराइल को एक बार फिर से आगाह भी किया.

इसराइल को हथियारों और उपकरणों की सप्लाई रोकने का अमेरिकी फ़ैसला बाइडन प्रशासन और बिन्यामिन नेतन्याहू की सरकार के बीच चल रहे विवाद का नतीज़ा था.

जो बाइडन चाहते हैं कि युद्ध विराम और बंधकों की रिहाई को प्राथमिकता दी जाए. वे युद्ध के बाद फ़लस्तीनियों और अरब देशों की समझदारी और समन्वय से ग़ज़ा पट्टी के प्रबंधन के लिए एक रणनीति बनाना चाहते हैं. लेकिन बिन्यामिन नेतन्याहू हमास को बर्बाद कर देने के अपने मक़सद को हासिल करने तक रुकना नहीं चाहते हैं.

इस मक़सद को हासिल करने के लिए नेतन्याहू के पास जंग जारी रखने और रफ़ाह पर हमले के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है.

बाइडन प्रशासन की नीतियां और फ़ैसलों में विरोधाभास

हथियारों और उपकरणों की सप्लाई रोकने के फ़ैसले के कुछ ही दिनों बाद बाइडन प्रशासन ने अमेरिकी कांग्रेस को बताया कि वो इसराइल को एक अरब डॉलर से अधिक मूल्य का आर्म्स पैकेज भेज रहे हैं.

इस पैकेज में इसराइल के लिए टैंक, मोर्टार तोपखाने और परिवहन वाहनों के उपकरण शामिल हैं.

बाइडन प्रशासन की नीतियों में ये विरोधाभास इसलिए दिखाई देता है क्योंकि वो जिस स्थिति का वह सामना कर रहे हैं, वह जटिल और राजनीतिक रूप से मुश्किल है.

राष्ट्रपति पद अपने कार्यकाल की शुरुआत से बाइडन प्रशासन का ये नज़रिया है कि मध्य पूर्व के संघर्षों से दूरी बनाकर रखी जाए ताकि चीन और रूस पर अधिक ध्यान दिया जा सके.

लेकिन ग़ज़ा की जंग ने बाइडन प्रशासन के इस नज़रिये को ख़त्म कर दिया है. मध्य पूर्व अब उसकी प्राथमिकता सूची में फिर से शीर्ष पर है और राष्ट्रपति बाइडन को इससे निपटना होगा.

हालात और अधिक जटिल होते जा रहे हैं

हमास के हमले के बाद राष्ट्रपति बाइडन खुद इसराइल गए थे. वहां जाकर उन्होंने इसराइल को समर्थन देने वाली अमेरिका की पारंपरिक नीति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का भी इज़हार किया. उस समय राष्ट्रपति बाइडन का वही रुख था जो इसराइल के लिए सहानुभूति रखने वाले ज़्यादातर अमेरिकियों का था.

इस सहानुभूति की वजह भी थी क्योंकि बहुत से अमेरिकियों ने ये देखा कि इसराइल पर अभूतपूर्व हमला हुआ है, उसके लोग बड़ी संख्या में मारे गए हैं, कुछ को अगवा भी किया गया है.

लेकिन बाइडन के उस इसराइल दौरे के वक़्त ऐसी रिपोर्टें भी आईं कि उन्होंने बिन्यामिन नेतन्याहू को वही ग़लती न करने की सलाह दी है जो अमेरिका ने 11 सितंबर के हमले के बाद अफ़ग़ानिस्तान और इराक़ में जंग का मोर्चा खोलकर की थी.

हालांकि, इसराइल ने जंग की शुरुआत की और अमेरिका ने शुरू में इसका समर्थन किया. जैसा कि हमेशा से होता आया है, इसराइल अमेरिकी हथियारों पर लगभग पूरी तरह से निर्भर था.

लेकिन आने वाले महीनों में मामला और अधिक जटिल और रक्तरंजित होता चला गया.

जंग की शुरुआत के बाद से अमेरिका ने इसराइल के समर्थन में हथियारों की सौ से अधिक खेप भेजी है, जिसकी क़ीमत लगभग एक चौथाई अरब डॉलर के क़रीब है. इन हथियारों ने निश्चित रूप से इसराइल के सैन्य अभियानों में एक प्रमुख भूमिका निभाई है.

राष्ट्रपति बाइडन पर दबाव

लेकिन घरेलू मोर्चे पर बाइडन प्रशासन के लिए हालात मुश्किल होते दिख रहे हैं.

जंग में बढ़ती तबाही और बड़ी संख्या में आम नागरिकों के हताहत के बावजूद अब तक इसराइल का समर्थन करते रहे राष्ट्रपति बाइडन को अपने इस रुख के चलते देश में और देश के बाहर भी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है.

अमेरिका खुद को संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय मंच पर आहिस्ता-आहिस्ता अलग-थलग पड़ते हुए देख रहा है. इसकी वजह भी है.

ग़ज़ा में फ़लस्तीनी लोगों की तकलीफ़ों को ख़त्म करने और युद्ध विराम के लिए जहां एक और दुनिया भर के मुल्क अपील कर रहे हैं तो दूसरी अमेरिका इसराइल को इस जंग में अपना समर्थन दे रहा है.

राष्ट्रपति बाइडन पर इस वक़्त घरेलू मोर्चे से ही सबसे ज़्यादा दबाव पड़ रहा है.

आम अमेरिकियों का एक तबका जिसमें वे लोग भी शामिल हैं जो बाइडन की डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य हैं, ग़ज़ा की जंग के बारे में उनके प्रशासन से इतर राय रखते हैं.

ये हमें उस वक़्त देखने को मिला जब अमेरिकी विश्वविद्यालय के परिसरों में छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया और बाइडन प्रशासन की नीति में बदलाव की मांग की.

राष्ट्रपति बाइडन पर पड़ रहा दबाव उस वक़्त और बढ़ गया जब रिपब्लिकन पार्टी के उनके विरोधियों ने इसराइल को हथियारों और उपकरणों की सप्लाई रोकने के उनके फ़ैसले की कड़ी आलोचना की.

प्रदर्शनों का तूफ़ान

ऐतिहासिक रूप से अमेरिकी कांग्रेस इसराइल का पुरज़ोर समर्थन करती रही है. इसमें दोनों ही मुख्य पार्टियों के राजनेता शामिल हैं.

कांग्रेस ने हाल ही में इसराइल के लिए 15 अरब डॉलर की मदद का पैकेज मंज़ूर किया है. इस सहायता पैकेज को बाइडन प्रशासन ने मंज़ूरी के लिए अमेरिकी कांग्रेस में पेश किया था.

बाइडन इसराइल के प्रति अपने मज़बूत समर्थन के लिए भी जाने जाते हैं. लेकिन, हाल के दिनों में इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू और राष्ट्रपति बाइडन के बीच मतभेद खुलकर सामने आने लगे थे.

बाइडन ने रफ़ाह में इसराइली सैन्य अभियान का पुरज़ोर विरोध किया था. रफ़ाह में कई लाख से अधिक फ़लस्तीनी पनाह लिए हुए हैं. इसराइल ने इन लोगों को सुरक्षित ज़ोन में जाने के लिए कहा है.

बाइडन ने नेतन्याहू से कहा था कि जब तक इसराइल के पास नागरिकों की सुरक्षा और उन तक मदद का पहुंचना जारी रहने को लेकर ठोस योजना ना हो, रफ़ाह पर हमला ना किया जाए.

यही नहीं अमेरिका और क़तर की कोशिशों के बावजूद, मिस्र में ग़ज़ा में संघर्ष विराम और इसराइली बंधकों कि रिहाई को लेकर हुई शांति वार्ता भी बिना किसी अंजाम तक पहुंचे ही टूट गई.

इसराइल के रफ़ाह पर हमले करने पर ज़ोर देने के बाद बाइडन ने इसराइल को भेजे जा रहे हथियार, जिनमें मिसाइलें भी शामिल थीं, को रोक दिया. जो मिसाइलें इसराइल के लिए भेजी जा रहीं थीं उनमें से कई एक टन से भी अधिक वज़नी थीं.

बाइडन ने उम्मीद की थी कि इससे इसराइल पर दबाव बनेगा और इसराइल रास्ता बदलने के लिए तैयार हो जाएगा. साथ ही घरेलू राजनीति में उनके समर्थकों का ग़ुस्सा भी कुछ कम होगा.

लेकिन, जब बाइडन को रिपबल्किन पार्टी की तरफ़ से भारी विरोध का सामना करना पड़ा है.

भले ही उनकी अपनी पार्टी के मुख्य नेताओं और कांग्रेस ने उनके इस क़दम और नेतन्याहू के साथ उनके मतभेद का समर्थन किया, पार्टी में ऐसे में भी कई लोग थे, जो ये मानते हैं कि युद्ध के बीच इसराइल पर इस तरह का दबाव नहीं बनाया जाना चाहिए था.

इसराइल को हथियारें की खेप रोकने के बाइडन प्रशासन के फ़ैसले पर उनकी अपनी डेमोक्रेटिक पार्टी के कुछ नेताओं की नाराज़गी के संकेत वाशिंगटन पोस्ट अख़बार ने भी दिए थे.

अब ये माना जा रहा है कि बाइडन प्रशासन कांग्रेस को फिर से ये बताएगा कि वह इसराइल को एक अरब डॉलर के हथियार भेजने जा रहा है.

अमेरिकी नीति को मुश्किल राजनीतिक परिस्थिति से दो चार होना पड़ रहा है.

ग़ज़ा युद्ध अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है, इसराइल रफ़ाह की तरफ़ आक्रामक हो रहा है. ये भी स्पष्ट है कि बाइडन ने इसराइल पर दबाव बनाने का दुर्लभ क़दम उठाया है.

लेकिन वास्तव में, वो ऐसे राजनीतिक हालात में आगे बढ़ रहे हैं जो दुनिया के सबसे ताक़तवर व्यक्ति के लिए भी मुश्किल नज़र आ रहे हैं.

अब बाइडन की नीति इसराइल का समर्थन करने के पारंपरिक सिंद्धांत और इसराइल पर दबाव बनाने के प्रयास के बीच झूल रही है ताकि अमेरिका की सबसे मज़बूत सहयोगी की वो भूमिका फिर से स्थापित हो सके जिसमें अमेरिका इसराइल को कुछ निर्णयों को अपने हिसाब से लेने की क्षमता में आ सके.

अगर ऐसा नहीं होगा तो अमेरिका इसराइल, फ़लस्तीनियों और अरब देशों के बीच मध्यस्थ नहीं रह जाएगा, ख़ासकर युद्ध के बाद की स्थिति में.

बाइडन ने इसराइल को दंडित नहीं किया है, बल्कि वो ऐसी स्थिति में आना चाहते हैं जहां वो इसराइल पर दबाव भी बना सकें और ज़रूरत पड़ने पर सैन्य रूप से इसराइल की मदद भी कर सकें.

बाइडन को उम्मीद है कि उनका संदेश पहुंच गया है. हालांकि, इससे ऐसा संकट ज़रूर खड़ा हुआ जो बाइडन को लगता है कि जल्द ही दूर हो जाएगा.

बाइडन के सामने राष्ट्रपति चुनाव भी हैं और इनके लिए उन्हें अपनी पूरी पार्टी को अपने पीछे खड़ा करना होगा और साथ ही स्वतंत्र मतदाताओं का मन भी जीतना होगा, क्योंकि ऐसा ना कर पाने पर वो ट्रंप को शायद चुनाव में ना हरा पाएं.

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राफ़िद जाबौरी
पदनाम,बीबीसी अरबी सेवा, वाशिंगटन